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कल्याणकारी योजनाओं में ‘फेशियल रिकॉग्निशन’ तकनीक को शामिल करना

Lokesh Pal September 20, 2025 03:14 14 0

संदर्भ

जुलाई 2025 से भारत सरकार ने पोषण ट्रैकर ऐप (Poshan Tracker app) के माध्यम से आंगनवाड़ी लाभार्थियों के लिए फेशियल रिकॉग्निशन (Facial Recognition) अनिवार्य कर दिया है।

  • यद्यपि इस कदम का उद्देश्य लीकेज को रोकना था, लेकिन इससे श्रमिकों पर बोझ बढ़ने और बहिष्कार का खतरा था।

फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (Facial Recognition Technology- FRT) के बारे में

  • फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT): एक एल्गोरिथम-आधारित बायोमेट्रिक प्रणाली है, जो किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं की पहचान और मानचित्रण करके चेहरे का डिजिटल मानचित्र बनाती है।
    • इसके बाद उत्पन्न चेहरे के टेंपलेट का सत्यापन या पहचान के लिए डेटाबेस से मिलान किया जाता है।
  • ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (Automated Facial Recognition System- AFRS): यह लोगों की पहचान करने हेतु एक बड़े डेटाबेस (फोटो और वीडियो) का उपयोग करता है।
  • कार्य
    • फेस कैप्चर (Face Capture): कैमरा चेहरे की एक छवि या वीडियो को कैप्चर करता है।
    • फीचर एक्सट्रैक्शन (Feature Extraction): सॉफ्टवेयर चेहरे के चिह्नों (आँखें, नाक, होंठ, गाल की हड्डियाँ, जबड़े की रेखा) का विश्लेषण करके एक अद्वितीय गणितीय निरूपण [‘फेशियल सिग्नेचर’ (Facial Signature)] तैयार करता है।
    • डेटाबेस स्टोरेज: फेशियल सिग्नेचर को किसी मौजूदा डेटाबेस में संगृहीत किया जाता है या उससे मिलान किया जाता है।
    • तुलना: सिस्टम AI एल्गोरिदम का उपयोग करके संगृहीत रिकॉर्ड के साथ समानता की जाँच करता है।
    • निर्णय: पहचान की पुष्टि (सत्यापन) करता है या किसी अज्ञात व्यक्ति की पहचान (पहचान) करता है।

आंगनवाड़ी सेवाओं में ‘फेशियल रिकॉग्निशन’

  • पृष्ठभूमि: वर्ष 2021 में, केंद्र सरकार ने पोषण संबंधी पहलों की निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत एप्लिकेशन प्लेटफॉर्म, पोषण ट्रैकर (Poshan Tracker) लॉन्च किया।
    • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (Anganwadi worker- AWW) को अपने स्मार्टफोन पर पोषण ट्रैकर ऐप इंस्टॉल करना होगा और समय-समय पर बच्चों की पोषण स्थिति अपलोड करनी होगी।
  • कार्यान्वयन आवश्यकताएँ: लाभार्थियों को फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर (FRS) के माध्यम से अपने चेहरे की पहचान करवानी होगी, जो अब इस ऐप के साथ एकीकृत है, अन्यथा गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ‘टेक होम राशन’ (Take Home Rations- THR) नहीं दिया जाएगा।
    • इस चरण तक पहुँचने के लिए: सबसे पहले e-KYC पूरा करना होता है, जहाँ महिला का आधार और बायोमेट्रिक विवरण दर्ज किया जाता है और OTP द्वारा सत्यापित किया जाता है।
  • उद्देश्य
    • कोई बच्चा या महिला भोजन पाने के लिए किसी और व्यक्ति की नकल न करने पाए और लाभ पंजीकृत व्यक्ति तक पहुँच सके।
    • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWW) या कोई भी व्यक्ति, बच्चे के भोजन का दुरूपयोग न करने पाए।

पोषण ट्रैकर (Poshan Tracker) के बारे में

  • यह केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) द्वारा शुरू की गई एक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) आधारित प्रणाली है।
  • आंगनवाड़ी केंद्रों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विकास चार्ट और विकास मापक उपकरणों का उपयोग करके, 8.9 करोड़ बच्चों (0-6 वर्ष) के विकास और पोषण की वास्तविक समय में निगरानी करता है।
  • समय पर हस्तक्षेप के लिए कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करने में मदद करता है।

चुनौतियाँ

  • कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में विकृति: समय और संसाधन डिजिटल प्रमाणीकरण में लग जाते हैं, जिससे पोषण, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा जैसे सेवा परिणामों पर ध्यान कम हो जाता है।
    • उदाहरण: आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पोषण ट्रैकर ऐप पर लाभार्थियों को प्रमाणित करने में घंटों बिताती हैं, जिससे प्रीस्कूल शिक्षा और स्वास्थ्य निगरानी के लिए कम समय बचता है।
    • उदाहरण: अनिवार्य नरेगा मोबाइल मॉनिटरिंग सेवा (NREGA Mobile Monitoring Service- NMMS) ऐप-आधारित उपस्थिति के कारण मनरेगा कर्मचारियों को देरी का सामना करना पड़ता है, जिससे वास्तविक कार्य पर ध्यान कम हो जाता है।
  • तकनीकी त्रुटियाँ और बुनियादी ढाँचे की कमी: ऐप क्रैश होना, खराब इंटरनेट, पुराने उपकरण और ऑफलाइन कार्यक्षमता की कमी विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
    • उदाहरण: असम में, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने खराब कनेक्टिविटी और बार-बार होने वाली खराबी का हवाला देते हुए फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) का विरोध किया।
    • उदाहरण: झारखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की दुकानों ने कमजोर कनेक्टिविटी के कारण आधार बायोमेट्रिक मिलान में गड़बड़ी की सूचना दी, जिससे वास्तविक परिवारों को राशन नहीं मिल पाया।
  • वास्तविक लाभार्थियों का बहिष्कार: मशीनों की खराबी (चेहरे का मेल न खाना, उँगलियों के निशानों में त्रुटि) कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच को सीधे तौर पर रोक देती है।
    • उदाहरण: बच्चों के बदलते चेहरे आंगनवाड़ियों में फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) को भ्रमित करते हैं, जिससे माताओं को बार-बार आना पड़ता है और उनके कार्य में भी व्यवधान आ जाता है।
  • क्षमता और प्रशिक्षण में कमी: अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को सीमित डिजिटल प्रशिक्षण दिया जाता है, उनमें समस्या निवारण कौशल का अभाव होता है और मशीनों की खराबी के कारण उत्पन्न अतिरिक्त कार्यभार के लिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं प्रदान किया जाता है।
    • उदाहरण: कई आँगनवाड़ी कार्यकर्ता पोषण ट्रैकर ऐप के क्रैश होने पर उसे चलाने के लिए अपने बच्चों पर निर्भर रहती हैं।
  • अधिकार मशीन अनुमोदन तक सीमित: कल्याणकारी अधिकार, जैसे- NFSA और मनरेगा, अब बिना शर्त अधिकारों से परिवर्तित होकर, मशीन रिकॉग्निशन पर आधारित सशर्त लाभों के रूप में कार्यान्वित किए जा रहे हैं।
    • उदाहरण: यहाँ तक कि जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सभी लाभार्थियों को व्यक्तिगत रूप से जानते भी हों, तब भी यदि ऐप प्रमाणीकरण से इनकार करता है, तो वे राशन वितरित नहीं कर सकते हैं।
  • कल्याण का अमानवीयकरण: कमजोर समूहों को नागरिकों के बजाय संदिग्ध माना जाता है, जिससे उनकी गरिमा और विश्वास कम होता है।
    • उदाहरण: FRS, जिसका उपयोग आमतौर पर आपराधिक जाँच में किया जाता है, अब आंगनवाड़ियों में महिलाओं और बच्चों पर उपयोग किया जा रहा है।
    • उदाहरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, मशीन द्वारा सत्यापन न होने पर धोखाधड़ी मानकर लाभार्थियों को अपराधी बना देता है।
  • अनुचित प्राथमिकताएँ: ‘फर्जी लाभार्थियों’ जैसे मामूली मुद्दों को हल करने के लिए तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जबकि कल्याणकारी योजनाओं में मुख्य समस्याएँ जैसे राशन की खराब गुणवत्ता, अनियमित आपूर्ति, स्थिर बजट (वर्ष 2018 से THR में प्रति बच्चा/दिन ₹8) और अनुबंधों में भ्रष्टाचार का समाधान नहीं किया गया है।
    • उदाहरण: आंगनवाड़ियों में, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद, पोषण गुणवत्ता में सुधार और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से राशन आपूर्ति के विकेंद्रीकरण की तुलना में FRS को प्राथमिकता दी गई है।
  • प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: मशीन आधारित सत्यापन प्रणालियाँ श्रमिकों और लाभार्थियों को निर्दोष साबित होने तक दोषी मानती हैं, जिससे कल्याणकारी योजनाओं में ‘दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष’ होने का मूल सिद्धांत कमजोर पड़ता है।
    • उदाहरण: आंगनवाड़ी कार्यकर्ता FRS की विफलता को नजरअंदाज नहीं कर सकते, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से लाभार्थियों की प्रामाणिकता का सत्यापन करते हों।

व्यापक निहितार्थ: स्वचालन और ध्रुवीकरण

  • स्वचालन के माध्यम से ध्रुवीकृत समाज: जो लोग तकनीक डिजाइन और नियंत्रित करते हैं (इंजीनियर, प्रशासक, ऐप डेवलपर) उनके पास सत्ता होती है।
    • श्रमिक वर्ग और लाभार्थी उन मशीनों पर निर्भर रह जाते हैं, जिन्हें वे नियंत्रित नहीं कर सकते, और तकनीक के विफल होने पर बहिष्कार का जोखिम उठाते हैं।
  • हालिया उदाहरण
    • दिल्ली और असम की आंगनवाड़ी (2025): ग्रामीण क्षेत्रों में बार-बार विफलताओं और अव्यावहारिकता के कारण कार्यकर्ताओं ने फेशियल रिकॉग्निशन अनिवार्य करने का विरोध किया।
    • आधार बायोमेट्रिक्स: वृद्ध और दिव्यांग लोगों को प्रायः फिंगरप्रिंट के असमान होने का सामना करना पड़ता है, जिससे उनको पेंशन या राशन से वंचित होना पड़ता है।
    • कृषि सब्सिडी योजनाएँ [जैसे- आंध्र प्रदेश रयथु भरोसा (Andhra Pradesh Rythu Bharosa)]: असमान बायोमेट्रिक्स या खाता विवरण के कारण किसानों को बाहर रखा गया, और उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।
  • डिजिटल विभाजन: स्थायी कनेक्टिविटी, उपकरणों या डिजिटल साक्षरता के बिना नागरिक सबसे अधिक पीड़ित होते हैं, जिससे असमानता और गहरी होती है।
  • विश्वास की कमी: जब लाभार्थी बार-बार प्रणालीगत त्रुटियों के कारण योजनाओं तक पहुँच खो देते हैं, तो कल्याणकारी योजनाओं में विश्वास कम हो जाता है, जिससे गरीब लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं।

आगे की राह

  • उपयोगकर्ता-केंद्रित डिजाइन: कल्याणकारी तकनीक का निर्माण ऐसा किया जाना चाहिए, जो पहुँच को सरल बनाए, जटिल न बनाए।
    • लाभार्थियों और श्रमिकों, दोनों के लिए लचीलापन और उपयोग में आसानी सुनिश्चित करना।
  • हाइब्रिड सत्यापन सिस्टम: मशीनें खराब होने पर सामुदायिक सत्यापन और मैनुअल ओवरराइड की अनुमति देना।
    • स्थानीय लाभार्थियों के बारे में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदत्त जानकारी पर विश्वास करना।
  • मुख्य सेवा वितरण को मजबूत बनाना: राशन की गुणवत्ता में सुधार करना, बजट आवंटन बढ़ाना और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • स्वयं सहायता समूहों और महिला समूहों के माध्यम से विकेंद्रीकृत उत्पादन पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करना।
  • कार्यकर्ता सहायता और प्रशिक्षण: बेहतर प्रशिक्षण, कार्यात्मक उपकरण और बढ़े हुए कार्यभार के लिए मुआवजा प्रदान करना।
  • पारदर्शिता और परामर्श: यदि धोखाधड़ी के कोई साक्ष्य मौजूद हों, तो उन्हें प्रकाशित करना।
    • तकनीक को लागू करने से पूर्व अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं और सामुदायिक हितधारकों को शामिल करना।
  • गरिमा और अधिकारों की रक्षा करना: महिलाओं और बच्चों को अधिकार-धारक मानना, संदिग्ध नहीं मानना।
    • कल्याणकारी अधिकारों को बिना शर्त और मशीन की दक्षता से स्वतंत्र रखना।

निष्कर्ष

कल्याणकारी योजनाओं में ‘फेशियल रिकॉग्निशन’ जैसी तकनीक को शामिल करने से जवाबदेही बढ़ाने और धोखाधड़ी कम करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इसकी कीमत उन लोगों को नहीं चुकानी चाहिए, जिन्हें मदद की सर्वाधिक आवश्यकता है। कल्याणकारी कार्यक्रम केवल इस बात पर निर्भर नहीं होने चाहिए कि कोई मशीन कितनी अच्छी तरह कार्य करती है।

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