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भारत में किसानों का विरोध प्रदर्शन

Lokesh Pal February 15, 2024 06:22 131 0

संदर्भ

हाल ही में किसान मजदूर मोर्चा (KMM) और संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 250 से अधिक छोटे-बड़े  किसान संघों ने दो वर्ष बाद अपना विरोध पुनः शुरू कर दिया है।

संबंधित तथ्य 

  • दिल्ली चलो: इन किसान मोर्चों ने सरकार को किसानों से किए वादे याद दिलाने के लिएदिल्ली चलो अभियान का आह्वान किया है।
  • मुद्दा: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) गारंटी कृषि क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों में से एक है और कृषक संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी की माँग कर रहे हैं।
  • वार्ता : सरकार के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रदर्शनकारी किसानों से वार्ता की है लेकिन वार्ता का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

किसानों के विरोध की पृष्ठभूमि

  • सरकार वर्ष 2020 में तीन कृषि कानून लाई थी-
    • किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम: किसानों को कृषि उपज बाजार समितियों (APMCs) के बाहर अपनी कृषि उपज बेचने की अनुमति देने वाला एक तंत्र स्थापित करने का प्रावधान करता है।

    • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम : किसानों को अनुबंध खेती करने और अपनी उपज का स्वतंत्र रूप से विपणन करने की अनुमति देता है।
    • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम:  इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाना है। {असाधारण (संकटग्रस्त) स्थितियों को छोड़कर}
  • किसानों की चिंताएँ
    • सरकारी एजेंसियाँ ​​नियत मंडियों में कम खरीदारी कर रही हैं, क्योंकि कृषि उपज का APMC के बाहर क्रय-विक्रय  हो रहा है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली अप्रासंगिक हो जाना।
    • किसानों की आय निश्चित न होना और उनका बड़े निगमों के भरोसे पर निर्भर हो जाना।
  • किसानों का विरोध: इन कानूनों को किसानों द्वारा अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा, जो एक वर्ष से अधिक समय तक चला और अंततः वर्ष 2021 में वापस ले लिया गया। किसानों ने अब फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

हालिया विरोध प्रदर्शन में किसानों की माँगें

  • MSP को कानूनी दर्जा: एम. एस. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर MSP को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाया जाए। कुछ अन्य माँगों में शामिल हैं:
    • कर्ज माफी: किसानों एवं मजदूरों की संपूर्ण कर्ज माफी।
    • भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का कार्यान्वयन: अधिग्रहण से पहले किसानों से लिखित सहमति और आधिकारिक दर से चार गुना मुआवजे के प्रावधान के साथ अधिनियम का कार्यान्वयन।
    • WTO से हटना : भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) से हट जाना चाहिए और सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगा देनी चाहिए।
    • पेंशन सहायता: किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन।
    • मनरेगा के तहत रोजगार: मनरेगा के तहत प्रति वर्ष 200 (100 के बजाय) दिनों का रोजगार, 700 रुपये की दैनिक मजदूरी और मनरेगा योजना को खेती से जोड़ा जाना चाहिए।

एम.एस.स्वामीनाथन समिति

  • दिवंगत एम.एस. स्वामीनाथन कोभारत की हरित क्रांति का जनककहा जाता था। हाल ही में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
  • उन्होंने राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF) की अध्यक्षता की।
  • NCF की सिफारिश: MSP के लिए C2+50% फॉर्मूला यानी MSP उत्पादन की भारित औसत लागत से कम-से-कम 50% अधिक होना चाहिए।
  • इसने कृषिको संविधान की समवर्ती सूची में जोड़ने की सिफारिश की।
  • गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए ‘मुख्य’ कृषि भूमि और वन को कॉर्पोरेट क्षेत्र को स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  • कृषि संबंधी बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ाना और किसानों को ऋण उपलब्धता में वृद्धि।
  • इसने संरक्षण खेती को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बारे में

  • परिचय: इसे 1960 के दशक के मध्य में पेश किया गया था, जब भारत खाद्यान्न की कमी का सामना कर रहा था।
  • परिभाषा: किसी फसल के लिए MSP वह कीमत है, जिस पर सरकार को किसानों से उस फसल की खरीद करनी होती है यदि बाजार मूल्य नीचे गिर जाता है।
  • उद्देश्य
    • यह सुनिश्चित करना कि किसानों को एक निश्चित न्यूनतमपारिश्रमिक मिले ताकि उनकी खेती की लागत वसूल हो सके।
    • भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए कुछ फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
  • घोषणाकर्ता: इसे केंद्र सरकार द्वारा कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर घोषित किया जाता है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP)

  • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
  • यह MSP गणना के लिए निम्नलिखित लागतों पर विचार करता है:
    • A2: किसान द्वारा सीधे नकद लिए बीज, उर्वरक, कीटनाशक, वेतन योग्य श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि और वस्तु के रूप में भुगतान की गई सभी लागतें।
    • A2+FL: A2 लागतों में पारिवारिक श्रम के अवैतनिक मूल्य को शामिल करके उनका  समायोजित मूल्य
    • C2: यह एक अधिक व्यापक लागत है, जो A2+FL के अतिरिक्त स्वामित्व वाली भूमि और अचल पूँजी संपत्तियों पर छोड़े गए किराये और ब्याज को ध्यान में रखती है।

  • लागत और कीमतें (Costs and Prices-CACP)
  • ध्यान में रखे गए कारक: CACP निम्नलिखित कारकों पर विचार करता है जैसे:-
    • किसी वस्तु की माँग और आपूर्ति।
    • इसकी उत्पादन लागत।
    • बाजार मूल्य रुझान (घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय दोनों)।
    • अंतर-फसल मूल्य समता।
    • कृषि आदानों और कृषि उत्पादों की कीमतों का अनुपात; उत्पादन लागत पर न्यूनतम 50% मार्जिन।
    • उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर MSP का संभावित प्रभाव।
  • MSP के तहत फसलों का कवरेज: हालाँकि सरकार ने 23 फसलों के लिए MSP की घोषणा की है।
    • वह MSP देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है।
    • यह प्रभावी रूप से इनमें से केवल एक-तिहाई फसलों की ही खरीद करता है।
  • MSP की स्थिति: इसका कोई वैधानिक/कानूनी समर्थन नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से मिलने वाले सब्सिडी वाले अनाज के विपरीत, किसानों के लिए MSP प्राप्त करना कोई अधिकार नहीं है। किसान, अधिकार के तौर पर MSP की माँग नहीं कर सकते हैं।
  • गन्ने के लिए MSP: गन्ना एकमात्र फसल जहाँ MSP भुगतान में कुछ वैधानिक तत्त्व मौजूद हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी कीमत आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 द्वारा निर्धारित की जाती है।
    • गन्ना खरीद के 14 दिनों के भीतर किसानों को उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price’-FRP) भुगतान करने की जिम्मेदारी पूरी तरह से चीनी मिलों की है।

MSP को कानूनी समर्थन न देने के कारण

ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनके कारण सरकारें MSP को कानूनी गारंटी देने में अनिच्छुक रही हैं:

  • सरकार पर भारी सब्सिडी बोझ: सरकार की मौजूदा MSP प्रणाली के अंतर्गत बढ़ता खाद्य बिल, वार्षिक बजट में राजकोषीय घाटे में वृद्धि का कारण बनता है।
  • खाद्यान्न प्रबंधन: अगर सरकार को MSP का भुगतान करने के इच्छुक खरीदारों की अनुपस्थिति के कारण इसे खरीदना भी पड़ता है तो सरकार के पास इतनी बड़ी मात्रा में उपज खरीदने, भंडारण करने और विपणन करने के लिए भौतिक संसाधन नहीं हैं।
  • MSP में निरंतर वृद्धि: बढ़ती खरीद के कारण भारतीय खाद्य निगम (FCI) के गोदाम अनाज से भर चुके हैं, और न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के कारण FCI अपने स्टॉक को अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाभ पर नहीं बेच पा रहा है।

किसानों से संबंधित मुद्दे

  • मूल्य अस्थिरता: फसल के चरम मौसम के दौरान किसानों को अक्सर मूल्य अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।  आपूर्ति में अचानक वृद्धि से कीमतों में गिरावट आ सकती है, जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है, जिससे उनकी उपज के लिए उन्हें पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता है।
  • स्टॉक सीमाएँ: आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत स्टॉक सीमा और विदेशी व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम के तहत प्रतिबंध कृषि जिंसों की कीमतों को कम बनाए रखते हैं।
  • निम्न खाद्य मुद्रास्फीति को प्राथमिकता: खाद्य मुद्रास्फीति को कम रखने पर जोर कभी-कभी किसानों के लिए उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करने के उद्देश्य से टकरा सकता है। सरकार की कम आयात शुल्क की मुद्रास्फीति रोधी नीतियाँ भी कीमतों को कम करती हैं।

  • APMC के बाहर बिक्री: MSP के अंतर्गत आने वाली अधिकांश फसलों की बिक्री APMC में नहीं होती है। इसलिए, क्रेता या विक्रेता किसानों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
    • इन लेनदेन के लिए MSP की गारंटी देना संभव नहीं है। कई लघु और सीमांत किसान अपनी उपज गाँव के व्यापारियों को बेचते हैं, जो कृषि उपज विपणन समिति के दायरे से बाहर हैं।

कृषि उपज बाजार समिति (APMC)

  • यह एक वैधानिक निकाय है, जिसे राज्य सरकारों द्वारा निर्दिष्ट बाजार क्षेत्रों के भीतर कृषि उपज के विपणन और व्यापार को विनियमित तथा देखरेख करने के लिए स्थापित किया गया है।
  • यह नियामक तंत्र कई लाभ प्रदान करता है:-
    • उचित मूल्य निर्धारण: यह सुनिश्चित करने के लिए उचित मूल्य निर्धारण तंत्र स्थापित करता है कि किसानों को उनके प्रयासों और निवेश के लिए उचित प्रतिफल मिले।
    • बिचौलियों का उन्मूलन: बिचौलियों को हटा कर यह सुनिश्चित करना कि किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर लाभ मिले।
    • बाजार शुल्क में कमी: बाजार शुल्क और फीस को विनियमित करके, यह बाजार दक्षता में सुधार लाता है और किसानों पर अनावश्यक वित्तीय बोझ को कम करता है।
    • उत्पादकों के हितों की सुरक्षा: APMC यह सुनिश्चित करती है कि उत्पादक-विक्रेताओं (किसानों) के हितों की रक्षा की जाए, जिससे उन्हें संकटग्रस्त बिक्री के लिए मजबूर होने से रोका जा सके।

आगे की राह

  • आम सहमति: सरकार और किसानों के बीच लगातार बातचीत होनी चाहिए ताकि किसानों की आय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आम सहमति बनाई जा सके।
  • आय समर्थन: कई अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि किसानों को मूल्यके बजायआयसमर्थन देना बेहतर है। इसका आशय है कि किसानों के बैंक खातों में वार्षिक एक निश्चित धनराशि स्थानांतरित करना, चाहे वह प्रति किसान हो (केंद्र की पीएम-किसान सम्मान निधि के रूप में) या प्रति एकड़ (तेलंगाना सरकार की रायथु बंधु) के आधार पर।
  • विशेषज्ञ समिति में प्रतिनिधित्व: किसानों का एक मुद्दा यह था कि समिति में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व नहीं था। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समिति में सभी हितधारकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए।
  • कृषि विपणन प्रणाली का सुदृढ़ीकरण: किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाने और घरेलू और निर्यात अवसरों का लाभ उठाने के लिए APMC को देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप मजबूत बनाया जाना चाहिए।
  • राज्य किसान आयोगों की स्थापना: इसकी सिफारिश राष्ट्रीय किसान आयोग ने की थी। किसानों की समस्याओं पर गतिशील सरकारी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों में किसानों के प्रतिनिधित्व के साथ राज्य स्तरीय किसान आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
  • कृषि अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण: कृषि बुनियादी ढाँचे में समग्र सुधार समय की माँग है। किसानों को बेहतर परिवहन और भंडारण सुविधाओं के साथ-साथ मौसम और बाजार की स्थितियों के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। इससे वे सोच-समझकर निर्णय लेने में सक्षम होंगे।

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