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भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे का वित्तपोषण

Lokesh Pal November 26, 2024 03:05 5 0

संदर्भ

विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार, भारत को अपनी शहरी बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वर्ष 2036 तक लगभग 70 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जबकि खर्च आवश्यक राशि का सिर्फ एक-चौथाई से थोड़ा अधिक है।

भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए प्रमुख आँकड़े और अनुमान

  • शहरी जनसंख्या: भारत की शहरी जनसंख्या पिछले दशक में 400 मिलियन से बढ़कर अगले तीन दशकों में 800 मिलियन हो जाने का अनुमान है।
    • वर्ष 2036 तक, इसके कस्बों और शहरों में 600 मिलियन लोग या 40 प्रतिशत जनसंख्या होगी, जो वर्ष 2011 में 31 प्रतिशत थी, विश्व बैंक के अनुसार, शहरी क्षेत्रों का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 70 प्रतिशत योगदान होगा।
  • शहरी वित्तपोषण: विश्व बैंक की रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत को अपनी शहरी बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वर्ष 2036 तक 70 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जो वार्षिक रूप से 4.6 लाख करोड़ रुपये के बराबर है।
    • सरकारी निवेश सालाना 1.3 लाख करोड़ रुपये है, जो वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार आवश्यक राशि का केवल 27% है। 
    • अनुमानित निवेश का लगभग 50% बुनियादी शहरी सेवाओं के लिए और शेष 50% शहरी परिवहन के लिए है।

भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे की प्रमुख चुनौतियाँ

  • नगर निगम का वित्त 
    • वित्त पोषण अंतर: भारत को शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए वार्षिक रूप से 4.6 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान निवेश केवल 1.3 लाख करोड़ रुपये है, जो वर्तमान आवश्यकता का केवल 27% है।
    • नगर निगम का वित्त: वर्ष 2002 से नगर निगम का वित्त GDP के 1% पर स्थिर है।
    • आत्मनिर्भरता में गिरावट: वर्ष 2010 और 2018 के बीच नगर पालिकाओं के अपने राजस्व का हिस्सा 51% से गिरकर 43% हो गया है।
    • कर संग्रह में अक्षमता: बंगलूरू और जयपुर जैसे नगर निगम अपने संभावित कर राजस्व का केवल 5%-20% ही एकत्र करते हैं। संपत्ति कर संग्रह सालाना केवल 25,000 करोड़ रुपये है, जो GDP के केवल 0.15% के बराबर है।
    • कम लागत वसूली: शहरी सेवाओं से राजस्व सृजन लागत का केवल 20%-50% ही कवर करता है।
  • कम अवशोषण क्षमता
    • खर्च न किए गए फंड: कुल नगरपालिका राजस्व का लगभग 23% अप्रयुक्त रहता है, जो फंड के उपयोग में अक्षमता को दर्शाता है।
    • बजट का कम उपयोग: हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों ने वर्ष 2018-19 में अपने पूँजीगत व्यय बजट का केवल 50% उपयोग किया।
    • योजनागत व्यय: अमृत और स्मार्ट सिटी मिशन जैसी केंद्रीय योजनाओं की उपयोग दर क्रमशः 80% और 70% है, जो कार्यान्वयन चुनौतियों को दर्शाती है।
  • PPP निवेश में गिरावट
    • निवेश में कमी: शहरी बुनियादी ढाँचे में PPP निवेश वर्ष 2012 में ₹8,353 करोड़ के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया, लेकिन वर्ष 2018 तक यह तेजी से घटकर ₹467 करोड़ रह गया।
    • व्यवहार्यता का अभाव: परियोजनाओं में अक्सर परियोजना-विशिष्ट राजस्व या व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण की कमी होती है, जिससे वे निजी निवेशकों के लिए व्यावसायिक रूप से अनाकर्षक हो जाती हैं।
  • शहरी स्थानीय निकायों में अकुशलता 
    • कमजोर राजकोषीय स्वायत्तता: शहरी स्थानीय निकाय राज्य और केंद्र के हस्तांतरण पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो 37% से बढ़कर 44% हो गया है, लेकिन सतत् वित्तपोषण के लिए अपर्याप्त है।
    • सीमित क्षमता: ULB  के पास शहरी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की प्रभावी रूप से योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए तकनीकी तथा प्रशासनिक क्षमता का अभाव है।
  • शहरी विकास के साथ खराब एकीकरण 
    • भूमि मूल्य अधिग्रहण की चुनौतियाँ: शहरी परिवहन (जैसे, मेट्रो परियोजनाएँ) में महत्त्वपूर्ण निवेश के बावजूद, पारगमन केंद्रों के पास भूमि मूल्य का दोहन करने के लिए शहरी विकास के साथ पर्याप्त एकीकरण नहीं है।
    • पुरानी प्रथाएँ: शहरी सेवा वितरण, विशेष रूप से सार्वजनिक परिवहन में, अप्रचलित प्रबंधन तकनीकों के कारण बाधा उत्पन्न होती है।
  • पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता के मुद्दे 
    • जलवायु संबंधी सुभेद्यताएँ: कई परियोजनाएँ पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई हैं, जो कि जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की उच्च संवेदनशीलता को देखते हुए महत्त्वपूर्ण है।
      • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए अपर्याप्त योजना के कारण मुंबई की तटीय सड़कें और जल निकासी प्रणालियाँ बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील होती जा रही हैं।
    • अनियमित परियोजनाओं का तैयार करना: परियोजनाओं को अक्सर जल्दबाजी में तैयार किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अधूरे डिजाइन और दीर्घकालिक प्रभावों पर अपर्याप्त विचार होता है।
      • बंगलूरू में, झील पुनरुद्धार परियोजनाओं की योजना खराब तरीके से बनाई गई और जल्दबाजी में तैयार की गई, जिससे अतिक्रमण और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे मुद्दों का समाधान करने में विफलता मिली, जिसके परिणामस्वरूप अल्पकालिक सुधार और दीर्घकालिक पर्यावरणीय गिरावट हुई।
  • शहरी विस्तार की चुनौतियाँ
    • अनियोजित शहरी विकास: तेजी से शहरीकरण के कारण शहरों का अनियोजित विस्तार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर शहरी विस्तार हुआ है। 
      • गुरुग्राम जैसे शहरों के अनियमित विस्तार के कारण शहरी विस्तार गंभीर हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप भूमि का अकुशल उपयोग हुआ है और निजी परिवहन पर निर्भरता बढ़ गई है।
    • कृषि एवं पारिस्थितिकी भूमि पर अतिक्रमण: शहरी क्षेत्रों का विस्तार प्रायः उपजाऊ कृषि भूमि और पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर अतिक्रमण करता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता को खतरा उत्पन्न होता है।
      • बंगलूरू में शहरी विस्तार के कारण झीलों और हरित क्षेत्रों का विनाश हुआ है, जिसके कारण बार-बार बाढ़ आ रही है और शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव उत्पन्न हो रहा है।
    • अकुशल भूमि उपयोग (Inefficient Land Use): खराब नियोजन और खंडित भूमि विकास नीतियों के परिणामस्वरूप अकुशल भूमि उपयोग हुआ है, जिससे पर्याप्त आवास, परिवहन और बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने में चुनौतियाँ पैदा हुई हैं।
    • परिधीय क्षेत्रों के लिए अपर्याप्त नियोजन (Inadequate Planning for Peripheral Areas): उपनगरीय और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में अक्सर उचित बुनियादी ढाँचे, शासन और कनेक्टिविटी का अभाव होता है, जिससे असमान विकास और सेवा वितरण अंतराल होता है।
      • हैदराबाद जैसे शहरों के तीव्र विकास के कारण परिधीय क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, खराब कनेक्टिविटी और आवश्यक सेवाओं तक सीमित पहुँच रह गई है, जिससे असमानता और क्षेत्रीय विषमताएँ बढ़ गई हैं।

भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए वित्तपोषण तंत्र 

  • सरकारी स्थानांतरण (अंतर-सरकारी राजकोषीय स्थानांतरण)
    • शहरी बुनियादी ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारों से हस्तांतरण के माध्यम से वित्तपोषित होता है। ये फंड सामान्यत: विशिष्ट परियोजनाओं या कार्यक्रमों के लिए निर्धारित किए जाते हैं।
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT) और स्मार्ट सिटी मिशन केंद्र सरकार की योजनाओं के उदाहरण हैं, जो बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए राज्य और स्थानीय सरकारों को वित्त उपलब्ध कराते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी
    • PPP शहरी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण, डिजाइन, निर्माण और संचालन के लिए सरकार तथा निजी क्षेत्र की संस्थाओं के बीच सहयोगात्मक प्रयास हैं।
    • 24×7 जल आपूर्ति परियोजना के लिए पुणे नगर निगम के म्युनिसिपल बॉण्ड एक ऐसा मामला है, जहाँ PPP ने बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • म्यूनिसिपल बॉण्ड:
    • नगर निगम बॉण्ड शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा विशिष्ट बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए वित्त एकत्रित करने के लिए जारी किए गए ऋण प्रतिभूतियाँ हैं।
    • पुणे नगर निगम ने जल आपूर्ति परियोजना के लिए आंशिक निधि जुटाने के लिए नगर निगम बॉण्ड के माध्यम से ₹2 बिलियन जुटाए। इसी तरह, बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) का बॉण्ड जारी करने का रिकॉर्ड मजबूत है।
  • वाणिज्यिक ऋण वित्तपोषण
    • शहरी स्थानीय निकाय या राज्य सरकारें वाणिज्यिक बैंकों या आवास और शहरी विकास निगम (HUDCO) जैसे विकास वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त कर सकती हैं। ये ऋण बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने में मदद करते हैं।
    • मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों ने प्रमुख शहरी विकास परियोजनाओं के लिए सफलतापूर्वक वाणिज्यिक ऋण प्राप्त कर लिया है।
  • कर वृद्धि वित्तपोषण (TIF)
    • TIF एक वित्तपोषण तंत्र है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र (शहरी विकास के कारण) से संपत्ति कर राजस्व में भविष्य में होने वाली वृद्धि का उपयोग उस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के विकास को वित्तपोषित करने के लिए किया जाता है।
    • नोएडा ने TIF का उपयोग नए विकसित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए किया, जिसमें विकास में वृद्धि से उत्पन्न भविष्य के संपत्ति कर राजस्व का उपयोग किया गया।
  • विशेष प्रयोजन वाहन (SPVs)
    • SPV ऐसी संस्थाएँ हैं, जो विशेष रूप से बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण और प्रबंधन के उद्देश्य से बनाई गई हैं। 
    • दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) दिल्ली की मेट्रो प्रणाली के वित्तपोषण और निर्माण का प्रबंधन करने के लिए बनाई गई SPV का एक उदाहरण है।
  • विकास शुल्क और प्रभाव शुल्क
    • स्थानीय सरकारें डेवलपर्स या संपत्ति मालिकों से उनके विकास से आस-पास के बुनियादी ढाँचे पर पड़ने वाले प्रभाव के लिए शुल्क ले सकती हैं। इन शुल्कों का उपयोग बढ़ते क्षेत्रों में नए बुनियादी ढाँचे को निधि देने के लिए किया जाता है।
    • बेंगलुरु विकास प्राधिकरण (BDA) तेजी से शहरीकृत हो रहे क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास को निधि देने के लिए बिल्डरों पर विकास शुल्क लगाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
    • शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए FDI भी वित्तपोषण का एक संभावित स्रोत हो सकता है।
    • दिल्ली के IGI हवाई अड्डे के विस्तार को आंशिक रूप से निजी अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से FDI के माध्यम से वित्तपोषित किया गया था, जो हवाई अड्डे के आधुनिकीकरण परियोजना का हिस्सा थे।

भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएँ

  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT)
    • वर्ष 2015 में शुरू की गई यह योजना 500 शहरों में शहरी बुनियादी ढाँचे के विकास पर केंद्रित है।
    • इसमें जल आपूर्ति, सीवरेज, जल निकासी, गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन और हरित क्षेत्र शामिल हैं।
  • लघु एवं मध्यम शहरों के लिए शहरी अवसंरचना विकास योजना (UIDSSMT)
    • वर्ष 2005-06 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य छोटे और मध्यम शहरों में बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है।
    • यह योजना वर्ष 2005-06 में शुरू होकर सात वर्ष की अवधि के लिए शुरू की गई थी।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना -शहरी (PMAY-U): इस योजना में इन-सीटू स्लम पुनर्विकास (ISSR) शामिल है, जो स्लम पुनर्वास के लिए संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करता है।
    • इसे 25 जून, 2015 को लॉन्च किया गया था।
    • उद्देश्य: शहरी क्षेत्रों में सभी के लिए आवास उपलब्ध कराना।
    • लाभार्थी: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS), निम्न आय वर्ग (LIG) और मध्यम आय वर्ग (MIG)।
  • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) [SBM (U)]
    • यह कार्यक्रम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्हें सम्मानित करने के लिए 2 अक्टूबर, 2014 को प्रारंभ किया गया था।
    • SBM-U का अंतिम लक्ष्य शहरों और वार्डों को खुले में शौच से मुक्त (ODF) घोषित करना है। यदि किसी शहर या वार्ड में दिन के किसी भी समय कोई भी व्यक्ति खुले में शौच करते हुए नहीं पाया जाता है तो उसे ODF माना जाता है।
  • स्मार्ट सिटी मिशन
    • इस मिशन की शुरुआत जून 2015 में की गई थी और इसे मूल रूप से वर्ष 2020 में पूरा किया जाना था। परंतु इसे मार्च 2025 तक बढ़ा दिया गया है।
    • लक्ष्य: देश भर में 100 स्मार्ट शहरों का विकास करना और शहरों को अधिक सतत्, समावेशी और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाकर जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना।
    • जुलाई 2024 तक, 100 शहरों ने मिशन के हिस्से के रूप में 7,188 परियोजनाएँ (कुल परियोजनाओं का 90%) पूरी कर ली हैं, जिनकी लागत ₹ 1,44,237 करोड़ है।
  • प्रधानमंत्री ई-बस सेवा योजना
    • प्रधानमंत्री-ई-बस सेवा योजना शहरों में इलेक्ट्रिक बसों (e-buses) की संख्या बढ़ाने का एक कार्यक्रम है।
    • यह योजना 16 अगस्त, 2023 को प्रारंभ की गई थी।
    • लक्ष्य: इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2024-25 से वर्ष 2028-29 तक 38,000 से अधिक ई-बसें प्रचलन में लाना है।
  • राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन 
    • राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM) नगरपालिका सेवाओं को डिजिटल बनाने और भारत के शहरों और कस्बों के लिए एक साझा डिजिटल बुनियादी ढाँचा निर्मित करने का एक कार्यक्रम है।
    • लक्ष्य: शहरों और कस्बों के बीच डिजिटल विभाजन को कम करना और यह सुनिश्चित करना कि पूरे देश में डिजिटल सेवाएँ उपलब्ध हों सके।
    • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) द्वारा फरवरी 2021 में लॉन्च किया गया।

भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए सुधार उपाय

  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार
    • राज्य वित्त आयोगों को मजबूत बनाना: शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को न्यायसंगत वित्तीय हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिए राज्य वित्त आयोगों को सशक्त बनाना।
    • नगरपालिका स्वायत्तता बढ़ाना: बेहतर संसाधन प्रबंधन और परियोजना कार्यान्वयन को सक्षम करने के लिए ULB को अधिक वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करना।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: नगरपालिका बॉण्ड और ऋण उधार तंत्र के माध्यम से निजी पूँजी को आकर्षित करना।
      • वर्ष 2017 में, पुणे नगर निगम (PMC) को नगरपालिका बॉण्ड के माध्यम से ₹2 बिलियन जुटाने के लिए व्यापक रूप से सराहना मिली थी।
  • मध्यम अवधि के सुधार
    • एक शक्तिशाली परियोजना पाइपलाइन का विकास करना
      • उच्चाधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति और 12वीं पंचवर्षीय योजना कार्यसमूह ने 20 वर्षों में शहरी बुनियादी ढाँचे में 70 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव रखा है, जिसमें से 15% का वित्तपोषण सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से किया जाएगा।
        • इसके लिए 250-300 वार्षिक PPP परियोजनाओं की आवश्यकता होगी, जिन्हें 600-800 परियोजनाओं की पाइपलाइन द्वारा समर्थित किया जाएगा।
      • परियोजनाओं को दीर्घकालिक शहरी विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करना, ताकि कार्यान्वयन के लिए तत्परता सुनिश्चित हो सके।
    • परियोजना तैयारी को वित्तीय सहायता से अलग करना
      • वित्तीय, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत परियोजना तैयारी के लिए पर्याप्त समय और संसाधन सुनिश्चित करना।
      • जलवायु-लचीले और भविष्य के लिए तैयार बुनियादी ढाँचे के डिजाइन पर ध्यान देना।
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का लाभ उठाना (DPI)
      • नियोजन, क्रियान्वयन और निगरानी के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके शहरी सेवा वितरण का आधुनिकीकरण करना।
      • परिचालन दक्षता और नागरिक अनुभव को बेहतर बनाने के लिए डेटा एनालिटिक्स और स्वचालन का उपयोग करना।
    • शहरी परियोजनाओं में भूमि मूल्य का आकलन
      • भूमि मूल्य में वृद्धि को शामिल करने के लिए शहरी परिवहन परियोजनाओं (जैसे, मेट्रो और रेल) ​​को शहरी विकास के साथ एकीकृत करना।
      • परिवहन केंद्रों के करीब नौकरियाँ और आवास लाने के लिए पारगमन-उन्मुख विकास (Transit Oriented Development- TOD) के लिए नीतियों को लागू करना।
  • वित्तपोषण और राजस्व सृजन 
    • नगर निगम के राजस्व स्रोतों में सुधार
      • अभिलेखों को अद्यतन करके, संग्रह दक्षता को बढ़ाकर और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर संपत्ति कर प्रणाली को मजबूत करना।
      • उपयोगकर्ता शुल्क, विज्ञापन और पार्किंग शुल्क जैसे गैर-कर राजस्व स्रोतों में विविधता लाना ।
    • प्रोत्साहन-आधारित अनुदान की शुरुआत
      • बुनियादी ढाँचे के विकास और सेवा वितरण में शहरी स्थानीय निकायों के प्रदर्शन को केंद्रीय और राज्य अनुदानों से जोड़ना।
      • बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए नगर पालिकाओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना।
  • क्षमता निर्माण और संस्थागत सुदृढ़ीकरण 
    • प्रशासनिक एवं तकनीकी क्षमता निर्माण
      • वित्तीय नियोजन, परियोजना प्रबंधन और आधुनिक शासन प्रथाओं में ULB कर्मियों को प्रशिक्षित करना।
      • परियोजना की तैयारी और निष्पादन के लिए मानकीकृत रूपरेखा तथा टूलकिट विकसित करना।
    • नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देना
      • यह सुनिश्चित करने के लिए कि बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ सभी हितधारकों की जरूरतों को पूरा करती हैं, भागीदारीपूर्ण नियोजन प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करना।
      • सार्वजनिक निगरानी तंत्र के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना।
  • सहयोग और समन्वय
    • बहुस्तरीय शासन को सुदृढ़ बनाना
      • निर्बाध नीति कार्यान्वयन के लिए केंद्र, राज्य और
      •  स्थानीय सरकारों के बीच समन्वय में सुधार करना।
      • आवास, परिवहन और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में एकीकृत शहरी नियोजन को बढ़ावा देना।
    • निजी क्षेत्र को शामिल करना
      • PPP को अधिक आकर्षक और सतत् बनाने के लिए जोखिम-साझाकरण तंत्र बनाना।
      • निजी क्षेत्र की भागीदारी पारस्परिक रूप से लाभकारी हो, यह सुनिश्चित करने के लिए एक स्पष्ट नियामक ढाँचा विकसित करना।

निष्कर्ष

भारत का शहरी भविष्य नवीन सुधारों और सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से वित्तीय, संरचनात्मक और शासन संबंधी चुनौतियों का समाधान करने पर आधारित है। सतत् प्रथाओं को प्राथमिकता देकर, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर और स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाकर, भारत अपनी बढ़ती आबादी की माँगों को पूरा करने के लिए समावेशी, कुशल और जलवायु-लचीले शहरी क्षेत्र निर्मित कर सकता है।

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