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प्रथम भारत-अमेरिका, हिंद महासागर वार्ता

Lokesh Pal November 15, 2024 03:32 66 0

संदर्भ

हिंद महासागर क्षेत्र में जारी सहयोग को और गहरा करते हुए, भारत और अमेरिका पहली अमेरिकी-भारत हिंद महासागर वार्ता (U.S.-India Indian Ocean Dialogue) आयोजित करने के लिए तैयार हैं।

भारत-अमेरिका हिंद महासागर वार्ता के बारे में

  • ऐतिहासिक संदर्भ: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग की शुरुआत वर्ष 2015 में शुरू हुई हैं, जब राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए संयुक्त रणनीतिक विजन जारी किया था, जिसने क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक पहलों की नींव रखी थी।
  • उद्देश्य: इस वार्ता का प्राथमिक लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि बढ़ाने वाले उपायों पर चर्चा करना और उन्हें बढ़ावा देना है।
    • यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण समुद्री सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास जैसी क्षेत्रीय चिंताओं का समाधान करता है।
  • मुख्य प्रतिभागी: इस वार्ता में अमेरिकी उप विदेश मंत्री और प्रधान उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वर्चुअल रूप से भाग लेंगे।
  • तकनीकी सहयोग: संवाद के समानांतर, महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (Critical and Emerging Technologies) पर iCET अंतर-सत्रीय बैठक निर्धारित है।
  • हालिया राजनीतिक संदर्भ: यह संवाद अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर हो रहा है, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत गए हैं। जैसे-जैसे ट्रांजिशन आगे बढ़ रहा है, दोनों देश अपनी साझेदारी को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में।

हिंद महासागर वार्ता (Indian Ocean Dialogue) के बारे में

  • ‘हिंद महासागर रिम एसोसिएशन’ (Indian Ocean Rim Association- IORA) द्वारा आयोजित हिंद महासागर वार्ता, हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा करने के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करती है।
  • उत्पत्ति: हिंद महासागर वार्ता की शुरुआत वर्ष 2013 में ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में मंत्रिपरिषद की 13वीं बैठक के बाद की गई थी, जिसमें साझा विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग के महत्त्व को रेखांकित किया गया था।
  • उद्घाटन सत्र: हिंद महासागर वार्ता का पहला सत्र वर्ष 2014 में भारत के केरल में आयोजित किया गया था, जिसमें समुद्री सुरक्षा, आपदा राहत और आर्थिक साझेदारी सहित सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • चर्चा के क्षेत्र: हिंद महासागर वार्ता में जिन प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा की गई उनमें आर्थिक सहयोग, समुद्री सुरक्षा, ब्लू इकोनॉमी और आपदा प्रतिक्रिया शामिल हैं, जिनका उद्देश्य क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करना और सतत् विकास को बढ़ावा देना है।

हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association-IORA) के बारे में

  • उत्पत्ति: ‘हिंद महासागर रिम एसोसिएशन’ वर्ष 1997 में स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • सदस्य: इसमें 23 सदस्य देश और 11 संवाद साझेदार शामिल हैं, जो क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देने के लिए मिलकर कार्य करते हैं।
    • एशिया: भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ईरान, मलेशिया, मालदीव, ओमान, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन।
    • अफ्रीका: केन्या, मेडागास्कर, मोजाम्बिक, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, कोमोरोस, मॉरीशस, सेशेल्स।
    • ओशिनिया: ऑस्ट्रेलिया।
    • यूरोप: फ्राँस।
  • संवाद साझेदार: चीन, मिस्र, सऊदी अरब, जर्मनी, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, रूस, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • सचिवालय: IORA का सचिवालय एबेने, मॉरीशस में स्थित है, जो संगठन की गतिविधियों और क्षेत्रीय जुड़ावों के लिए प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • प्रशासन: IORA का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय, विदेश मंत्रियों की परिषद, प्रगति की समीक्षा करने और क्षेत्रीय सहयोग के लिए भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करने के लिए वार्षिक बैठक करता है।

भारत-अमेरिका सहयोग

  • रक्षा सहयोग
    • प्रमुख समझौते: LEMOA, COMCASA और BECA जैसे आधारभूत समझौते भारत और अमेरिका के बीच सैन्य अंतर-संचालन तथा सुरक्षित संचार चैनलों को बढ़ाते हैं।
  • रक्षा व्यापार: प्रमुख रक्षा अधिग्रहणों में MQ-9B  सीगार्डियन ड्रोन और GE F414 जेट इंजन का सह-उत्पादन शामिल है।

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौते

  • सैन्य सूचना का सामान्य सुरक्षा समझौता (General Security of Military Information Agreement- GSOMIA): वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित यह समझौता गारंटी देता है कि दोनों देश अपने बीच साझा की जाने वाली किसी भी वर्गीकृत सूचना या प्रौद्योगिकी की सुरक्षा करेंगे।
    • इसका उद्देश्य अंतर-संचालनीयता को बढ़ावा देना था तथा देश को भविष्य में अमेरिकी हथियारों की बिक्री की नींव रखना था।
  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज समझौता ज्ञापन (Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA): इस पर वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह सैन्य रसद साझा करने के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
  • संचार, संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications, Compatibility and Security Agreement- COMCASA): वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित, यह समझौता अमेरिका को भारत को अपने स्वामित्व वाले एन्क्रिप्टेड संचार उपकरण और प्रणालियों की आपूर्ति करने में सक्षम बनाता है, जिससे दोनों पक्षों के उच्च-स्तरीय सैन्य नेताओं के बीच सुरक्षित शांति और युद्धकालीन संचार संभव हो पाता है।
  • बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (Basic Exchange and Cooperation Agreement- BECA): वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित यह समझौता भारत को अमेरिकी भू-स्थानिक खुफिया जानकारी तक वास्तविक समय तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे मिसाइलों और सशस्त्र ड्रोन जैसी स्वचालित प्रणालियों और हथियारों की सटीकता में वृद्धि होगी।

  • आर्थिक जुड़ाव
    • व्यापार: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में 191 बिलियन डॉलर से अधिक होगा।
    • FDI: अमेरिका ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत में 6.04 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जिससे आर्थिक संबंध मजबूत हुए।
  • रणनीतिक साझेदारियाँ
    • बहुपक्षीय संबंध: भारत और अमेरिका क्वाड और I2U2 जैसे ढाँचों के अंतर्गत सहयोग करते हैं। अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत के पक्ष का भी समर्थन करता है।
    • स्वच्छ ऊर्जा: रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (Strategic Clean Energy Partnership- SCEP) और जलवायु एजेंडा 2030 जैसी पहल अक्षय ऊर्जा और महत्त्वपूर्ण खनिज संसाधनों में सहयोग को प्रोत्साहित करती हैं।
  • शिक्षा आदान-प्रदान: ‘फुलब्राइट-नेहरू कार्यक्रम’ और GIAN जैसे कार्यक्रम शैक्षिक आदान-प्रदान तथा अनुसंधान साझेदारी को बढ़ावा देते हैं।
  • सांस्कृतिक संपत्ति समझौता (वर्ष 2024): सांस्कृतिक संपत्ति पर वर्ष 2024 का समझौता भारतीय पुरावशेषों को अवैध तस्करी से बचाता है।
  • प्रवासी संबंध: 4.4 मिलियन से अधिक की आबादी वाला भारतीय-अमेरिकी समुदाय दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों को गहरा करने में योगदान देता है, जिससे लोगों के बीच आपसी संपर्क मजबूत होता है।

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (Initiative on Critical and Emerging Technologies- iCET) के बारे में

  • उद्देश्य: iCET उच्च तकनीक और उभरते क्षेत्रों में भारत-अमेरिका सहयोग के लिए आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
    • iCET का प्राथमिक उद्देश्य महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में रणनीतिक सहयोग का निर्माण करना, सह-विकास, आपूर्ति शृंखला लचीलापन और दोनों देशों के बीच मजबूत तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है।

iCET के अंतर्गत प्रमुख फोकस क्षेत्र

  • सामान्य AI मानक स्थापित करना: iCET का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मानकों को विकसित करना और उन्हें संरेखित करना है, जिससे अंतर-संचालन और नैतिक AI प्रथाओं को सक्षम बनाया जा सके।
    • इस संरेखण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि AI सिस्टम साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और विश्वसनीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप विकसित किए जाएँ।
  • रक्षा तकनीक को बढ़ाना और स्टार्टअप को जोड़ना: रक्षा क्षेत्र में, iCET संयुक्त विकास को आगे बढ़ाने और रक्षा प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • यह भारतीय और अमेरिकी रक्षा स्टार्टअप को जोड़ने का भी प्रयास करता है, जिससे रक्षा क्षेत्रों में नवाचार तथा सहयोग को सक्षम बनाया जा सके।
  • सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम का निर्माण: सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी के रणनीतिक महत्त्व को पहचानते हुए, iCET एक लचीला सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम स्थापित करने की पहल का समर्थन करता है।
    • इस सहयोग में चिप निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना, आपूर्ति शृंखला विविधीकरण और महत्त्वपूर्ण सेमीकंडक्टर घटकों को सुरक्षित करना शामिल है।
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग को मजबूत करना: iCET मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग के विस्तार पर जोर देता है।
    • इसमें उपग्रह प्रौद्योगिकी, अन्य ग्रहों की खोज में सहयोग और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का समर्थन करना शामिल है क्योंकि यह मानव अंतरिक्ष उड़ान पहल को आगे बढ़ाता है।
  • 5G/6G विकास और ‘ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क’ (OpenRAN) प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाना: iCET दूरसंचार अवसंरचना को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें 5G और 6G प्रौद्योगिकी सहित अगली पीढ़ी के दूरसंचार पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
    • ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (OpenRAN) प्रौद्योगिकी पर सहयोगात्मक कार्य का उद्देश्य सुरक्षित, लचीला और लागत प्रभावी नेटवर्क समाधान बनाना है।
  • iCET का विस्तार: हालाँकि iCET की शुरुआत QUAD ढाँचे के भीतर एक द्विपक्षीय पहल के रूप में हुई थी, इस तकनीकी साझेदारी को NATO और यूरोपीय सहयोगियों के साथ-साथ अन्य वैश्विक भागीदारों तक विस्तारित करने की रणनीतिक योजनाएँ हैं, जिससे साझा सिद्धांतों और मानकों के आधार पर तकनीकी सहयोग का एक व्यापक नेटवर्क बनाया जा सके।

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