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समुद्र तटीय राज्यों में मत्स्य पालन की संभावनाएँ (Fishing potential in coastal states)

Samsul Ansari January 10, 2024 03:39 301 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग ने केरल सरकार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) एवं केंद्रीय समुद्री मत्स्य पालन अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute- CMFRI) के सहयोग से कोच्चि (केरल) में ‘समुद्र  तटीय राज्यों में मत्स्य पालन की क्षमता के दोहन’ पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की।  

संबंधित तथ्य

  • समुद्र तटीय राज्यों में मत्स्य पालन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार-विमर्श: केंद्र एवं राज्य सरकारों के प्रमुख हितधारकों , शोधकर्त्ताओं, उद्योग प्रतिनिधियों एवं चिकित्सकों ने भारत के समुद्र तटीय राज्यों में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने संबंधी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार-विमर्श किया है। 
    • उदाहरण- सतत प्रथाएँ/टिकाऊ प्रथाएँ, निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता, बुनियादी ढाँचे की कमी 
    •  साथ ही विभिन्न समुद्र तटीय राज्यों में समुद्री मत्स्यन उद्योग को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • नीति आयोग ने मत्स्य पालन क्षेत्र में आंध्र प्रदेश की उपलब्धियों की सराहना की और समुद्र तटीय राज्यों में उत्पादन एवं उत्पादकता के मामले में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।

भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र

  • भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि वाला देश तथा चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है।
    • देश में कुल मछली उत्पादन वर्ष 1950-51 के 0.75 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 14.16 मिलियन टन हो गया है तथा औसत वार्षिक वृद्धि दर लगभग 8 प्रतिशत हुई है। 
    • भारत की नीली क्रांति से मत्स्यन एवं जलीय कृषि उद्योगों में अत्यधिक सुधार हुआ है। 
  • समुद्री मत्स्य संसाधन: भारत के समुद्री मत्स्य संसाधन लगभग 8000 किमी. से अधिक विशाल समुद्र तट, 0.53 मिलियन वर्ग किमी. महाद्वीपीय मग्नतट एवं  2.02 मिलियन वर्ग किमी. विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone- EEZ) के साथ विस्तृत हैं।
  • समुद्र तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश: कुल 9 समुद्री राज्य गुजरात, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा गोवा हैं साथ ही 4 केंद्रशासित प्रदेश (दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव, पुडुचेरी, लक्षद्वीप द्वीप समूह तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) हैं। 

भारत के समुद्र तटीय राज्यों में मत्स्य पालन क्षेत्र संबंधी संभावनाएँ

  • मछुआरों की आय में सुधार: समुद्र तटीय राज्यों के लिए यह एक आशाजनक क्षेत्र है जो परिवर्तनीय उत्पादन के साथ आय में योगदान देता है तथा मछुआरों की आय में वृद्धि करता है।
    • भारत की कुल मत्स्य पालन क्षमता 22.31 मिलियन मीट्रिक टन अनुमानित की गई है, इसमें से समुद्री मत्स्य पालन क्षमता अनुमानित रूप से 5.31 मिलियन मीट्रिक टन है, इस क्षमता के दोहन से वर्ष 2025 तक मछुआरों की आय दोगुना होने की संभावना है। 
  • समुद्री खाद्य निर्यात को बढ़ावा देना: इस उद्योग को एक उभरता हुआ क्षेत्र माना जा रहा है तथा इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने का अनुमान है। 
    • वर्ष 2021-22 में, देश ने 7.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का 1.36 मिलियन मीट्रिक टन समुद्री खाद्य निर्यात किया, जो मूल्य के हिसाब से अब तक का उच्चतम निर्यात है।
    • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) में वित्त वर्ष 2025 के लिए निर्यात को दोगुना कर 12.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया  है।
  • रोजगार के अवसर उत्पन्न करना:  भारत में मत्स्य पालन एक तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है, जो 28 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। मत्स्य पालन क्षेत्र की वृद्धि एवं विकास के माध्यम से कई क्षेत्रों में रोजगार एवं उद्यमिता के अवसर प्रदान करने की भारी क्षमता है, जैसे- मत्स्य पालन से संबंधित गतिविधियाँ, मत्स्य प्रसंस्करण, कोल्ड चेन, आदि।
    • उदाहरण के लिए भारत में सजावटी मत्स्य पालन क्षेत्र (Ornamental Fish Farming) को आगे बढ़ाने के लिए, भारत सरकार समुद्री क्षेत्रों में सजावटी मछली समूहों के निर्माण के माध्यम से इसके समग्र विकास के लिए प्रयास कर रही है। 
    • वित्त वर्ष 2022-23 में PMMSY के तहत सजावटी मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए 189.14 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।
  • पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना: पोषण एवं खाद्य सुरक्षा में मछली की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मछली को ‘ नेचरल सुपरफूड‘ माना जाता है तथा यह प्रोटीन एवं वसा की एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड, आयोडीन, विटामिन D एवं कैल्शियम सहित आवश्यक पोषक तत्वों का भी स्रोत है। 
    • मछली, एनिमल प्रोटीन का एक किफायती और समृद्ध स्रोत होने के कारण  भुखमरी और कुपोषण को कम करने के लिए सबसे स्वास्थ्यप्रद विकल्पों में से एक है।

समुद्री राज्यों में भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ

  • समुद्री मत्स्य प्रबंधन: मत्स्य पालन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे- मुक्त पहुँच आधारित मत्स्यन संपत्ति अधिकार प्रणाली, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय कानूनी एवं नीतिगत ढाँचे के कई पहलुओं में कमजोरियाँ, राज्य सरकार की निगरानी, ​​​​नियंत्रण एवं अवेक्षण (Monitoring, Control and Surveillance) संबंधी कम क्षमता और मछली भंडारण की स्थिरता संबंधी ज्ञान में कमी

अंतर्देशीय मत्स्य पालन (Inland Fisheries)

  • अंतर्देशीय संसाधन: ये संसाधन नदियों, नहरों, बाढ़ क्षेत्र की झीलों, तालाबों तथा टैंकों, जलाशयों एवं खारे जल द्वारा प्रभावित क्षेत्रों आदि के रूप में मौजूद हैं।
  • मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज: PMMSY ने पारंपरिक जल से अंतर्देशीय मत्स्य पालन को सफलतापूर्वक अलग किया है एवं इस दिशा में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया है, जिससे कई प्रतिभाशाली और उद्यमशील युवाओं को मत्स्य पालन में उद्यम करने हेतु प्रेरणा मिली है। 
  • कश्मीर घाटी की युवा महिला उद्यमी ‘रीसर्क्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम’ का उपयोग करके ठंडे जल में ‘रेनबो ट्राउट’ (एक प्रकार की मछली) का कुशलतापूर्वक पालन कर रही हैं।
  • ‘बायोफ्लॉक’ संवर्धित झींगा की सहायता से आंध्रप्रदेश के नेल्लूर में एक्वाप्रेन्योर सफल निर्यातक बन गए हैं।

  • बुनियादी ढाँचे में कमी: अपर्याप्त कोल्ड चेन सुविधाओं के कारण मत्स्य उत्पादन के बाद उनके रख-रखाव को लेकर नुकसान उठाना पड़ता है। 
    • समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र में मत्स्य उत्पादन के बाद का प्रबंधन, मूल केंद्रों तथा मत्स्यन बंदरगाहों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, जैसे- कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, रसद सुविधाओं आदि की कमी से प्रभावित है। 
  • जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ : दुनिया भर में समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर समुद्री तापमान में बदलाव के कारण तेजी से प्रभावित हो रहा है। साथ ही समुद्र में मत्स्य संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण समुद्री जैव विविधता की वर्तमान हानि दर तीव्र हुई है।
    • उदाहरण के लिए- केरल में वर्ष 2019-20 और 2020-21 में समुद्री मत्स्य उत्पादन में गिरावट आई, जिसका मुख्य कारण समुद्र मौसम में चरम बदलाव था।
  • भारत और पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष: यह संघर्ष मुख्य रूप से मछुआरों द्वारा मछली पकड़ने के दौरान राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के उल्लंघन से उत्पन्न होता है क्योंकि उनके पास अपने अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण के संबंध में चेतावनी देने के लिए नेविगेशनल उपकरणों की कमी होती है। 
    • भारत और पाकिस्तान के बीच समस्या: गुजरात के ओखा में मछुआरे गलती से भारतीय क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण कर रहे थे तथा उन्हें पाकिस्तान की नौसेना के गश्ती दल द्वारा पकड़ लिया गया था।
    • भारत-श्रीलंका के बीच समस्या: दोनों देशों के बीच मछुआरों को लेकर कभी-कभी गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है, जैसे पिछले कुछ महीनों में रामेश्वरम में भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा पकड़ा गया था।
  • बाह्य कारकों के प्रति संवेदनशीलता: प्राकृतिक आपदाएँ या किसी रोग का प्रकोप जैसे बाह्य कारक मछुआरों की आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं। 
  • गहरे समुद्र में ट्रॉलिंग: गहरे समुद्र में ट्रॉलिंग समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती है क्योंकि यह एक ऐसी विधि है जिसमें बड़ी संख्या में मछलियों को पकड़ने के साथ-साथ समुद्री जीवन बाधित होता है। शार्क, समुद्री कछुए और प्रवाल भित्ति इससे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं जिससे पर्यटन भी प्रभावित होता है। 
    • भारत तथा श्रीलंका के बीच स्थित पाक जलडमरूमध्य क्षेत्र के गहरे समुद्र में अक्सर ट्रॉलिंग की जाती है जहाँ प्रत्येक 3 किमी. पर लगभग 2000 ट्रॉलर चलते हैं।
  • अवैध, असूचित और अनियमित (IUU) मत्स्यन: भारत के भीतर IUU को मछली पकड़ने के संबंध में आमतौर पर एक गैर-पारंपरिक सुरक्षा चिंता के रूप में देखा जाता है, जिसमें खाद्य एवं आर्थिक सुरक्षा के साथ-साथ व्यापक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे भी शामिल हैं। 
    • IUU मछली पकड़ने की गतिविधियाँ, मानव तस्करी एवं मछली पकड़ने वाले जहाजों में दवाओं एवं हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं।
  • अन्य चुनौतियाँ : अपशिष्ट प्रबंधन, बिचौलियों का शोषण, प्रसंस्करण क्षेत्र से जुड़ी मछुआरों की मेहनत, प्रमाणीकरण एवं पता लगाने की क्षमता आदि देश में समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास को सीमित करने वाले अन्य कारक हैं।

सरकारी पहल

  • समुद्री मत्स्य पालन प्रबंधन: भारत के संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत मत्स्य पालन राज्य का विषय है। प्रादेशिक जल (Territorial Water) से परे मछली पकड़ना एवं मत्स्य पालन संघ सूची के अंतर्गत आता है।
  • प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY):  इस योजना का उद्देश्य मत्स्य पालन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उत्पादकता और उत्पादन अंतराल को संबोधित करना, नवाचार और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना आदि है। 

इंटीग्रेटेड मल्टी-ट्रॉफिक एक्वाकल्चर फिशिंग (IMTA)

  • IMTA के माध्यम से अपशिष्ट को कम करने और बायोरेमेडिएशन जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करने के लिए विभिन्न पोषण संबंधी स्तरों से कई जलीय प्रजातियों का एकीकृत तरीके से पालन और दक्षता में सुधार किया जाता है।
  • निम्न पोषण स्तर की प्रजातियाँ पोषक तत्वों के रूप में उच्च पोषण स्तर की प्रजातियों के मल और अखाद्य चारे जैसे अपशिष्ट उत्पादों का उपयोग करती हैं।  
  • IMTA को स्थल या समुद्र पर जलीय कृषि को अधिक सतत् और लाभदायक बनाने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है।

  • इसमें वर्ष 2025 के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किये गए हैं, जिसमें मछली उत्पादन को 70 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ाना, जलीय कृषि उत्पादकता को मौजूदा राष्ट्रीय औसत 3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 टन प्रति हेक्टेयर करना, निर्यात को दोगुना [46,589 करोड़ (US$ 5.72 बिलियन) से 100,000 करोड़ (US $ 12.28 बिलियन)] करना और 55 लाख से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न करना, मत्स्य पालन के क्षेत्रीय लाभ को मजबूत करने एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए मछुआरों और मछली किसानों की आय को दोगुना करना शामिल है।
  • राष्ट्रीय मत्स्य पालन नीति, 2020: भारत सरकार ने समुद्री मत्स्य पालन पर राष्ट्रीय नीति-2017, ड्राफ्ट, नेशनल इनलैंड फिशरीज एंड एक्वाकल्चर पॉलिसी (NIFAP) और ड्राफ्ट नेशनल मैरीकल्चर पॉलिसी (NMP) को ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ कारकों के साथ एकीकृत करके एक व्यापक और एकीकृत ‘राष्ट्रीय मत्स्य पालन नीति, 2020‘ पेश करने का निर्णय लिया है।
  • सागर परिक्रमा: यह 75वें आजादी का अमृत महोत्सव की भावना के रूप में मत्स्य पालन करने वाले सभी किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने वाली तटीय क्षेत्र के पार समुद्र क्षेत्र से संबंधित एक रूपरेखा है। 
    • इसके आयोजन के दौरान मछुआरों, विशेषकर तटीय मछुआरों को  PMMSY, किसान क्रेडिट कार्ड तथा राज्य योजना से संबंधित प्रमाण पत्र प्रदान किए जाते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: विश्व बैंक ने वर्ष 2020-2021 में भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र की रिकवरी में सहायता के लिए 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर की धनराशि को मंजूरी दी। इस क्षेत्र में लगभग 5.5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ और COVID-19 महामारी के कारण एक वर्ष के दौरान मत्स्य उत्पादन में लगभग 40% की गिरावट पाई गई थी।
  • राज्य संबंधी विशिष्ट पहल 
  • आंध्र प्रदेश मत्स्य पालन नीति, 2015: इसमें मछली और झींगा उत्पादन में सुधार की परिकल्पना की गई तथा इसका लक्ष्य झींगा उत्पादन में विश्व को दूसरे स्थान पर पहुँचाना था। 

आगे की राह

  • सतत् मत्स्य पालन प्रथाएँ: समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए सतत् मत्स्यन प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना। इसमें संबंधित नियमों को लागू करना, पर्यावरण-अनुकूल मत्स्यन के तरीकों को अपनाना और उत्तरदायी मत्स्यन उत्पादन को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए- छोटी मछलियों को पकड़ने (Juvenile Fishing) से रोकना जैसे मत्स्य पालन क्षेत्र को सख्ती से विनियमित करने के लिए केरल समुद्री मत्स्य पालन विनियमन अधिनियम (KMFRA) जैसे नियमों में संशोधन किया गया था। इससे वर्ष 2018- 2019 में समुद्री कब्जे में 26% की वृद्धि पाई गई।
    • सतत मत्स्यन प्रथाएँ, जैसे- संरक्षित क्षेत्र और नो-टेक जोन, जहाँ मछली पकड़ना प्रतिबंधित या निषिद्ध है, अपनाना तथा मछलियों की आबादी को बढ़ाना’ और महत्वपूर्ण आवासों एवं प्रजनन स्थलों की रक्षा करना आदि।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: कोल्ड चेन सुविधाओं को विकसित करने, लैंडिंग केंद्रों के विकास करने एवं मछली पकड़ने के बंदरगाहों में बुनियादी सुधार करने में निवेश करके समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र में बुनियादी ढाँचा संबंधी अंतराल को संबोधित करना। 
    • उदाहरण के लिए- PMMSY जैसी योजनाओं का उद्देश्य मत्स्य उत्पादन के बाद के बुनियादी ढाँचे और प्रबंधन को सही करके मत्स्य पालन क्षेत्र में महत्वपूर्ण उत्पादकता तथा उत्पादन अंतराल को संबोधित करना है। 
  • जलवायु संबंधी लचीलापन: मत्स्य पालन प्रबंधन योजना में पहले से ही जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों को शामिल करना और अप्रत्याशित पर्यावरणीय घटनाओं के विरुद्ध आवश्यक समायोजन हेतु बेहतर आपातकालीन कार्रवाइयों को लागू करने के लिए मत्स्य प्रबंधन को अद्यतन करना चाहिए।
    • इसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और जलवायु अनुकूलन बुनियादी ढाँचे सहित जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के प्रभाव को संबोधित करने के लिए विकासशील रणनीतियाँ और उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • विविधीकरण और मूल्यवर्धन: सजावटी मत्स्य पालन जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देकर मत्स्य पालन क्षेत्र में विविधीकरण को प्रोत्साहित करना। इसके अतिरिक्त बेहतर प्रसंस्करण तकनीकों का प्रयोग, प्रमाणन और ट्रेसेबिलिटी के माध्यम से मूल्य संवर्धन का समर्थन करता है जो भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकता है।
  • प्रौद्योगिकी अपनाना: उन्नत जलीय कृषि तकनीकों का उपयोग करने सहित समुद्री मत्स्य पालन में प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देना। प्रौद्योगिकी उत्पादकता में सुधार कर सकती है, पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकती है और अधिक युवाओं को मत्स्य पालन क्षेत्र में उद्यम करने के लिए आकर्षित कर सकती है, आदि।
    • उदाहरण के लिए- भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) को NavIC या  GPS जैसी अन्य तकनीक के साथ मिलाकर मछली पकड़ने वाले जहाजों के साथ अंतरराष्ट्रीय अतिक्रमण की घटनाओं को कम करने और बेहतर स्थानिक क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए उपयोग किया जा सकता है जहाँ मछुआरों को ‘पोस्ट हार्वेस्टिंग’ का अधिकार सौंपा जाता है। 
  • मछुआरों को सब्सिडी प्रदान करना: सब्सिडी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हो सकती है। प्रत्यक्ष सब्सिडी में जहाजों, गियर, इंजन आदि की खरीद शामिल है। अप्रत्यक्ष सब्सिडी में कल्याणकारी योजनाओं, बंदरगाहों के निर्माण, मछली पकड़ने के बंदरगाह आदि  के माध्यम से वित्तीय सहायता शामिल है।

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