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फ्लैश फ्लड, भूस्खलन और बादल फटना

Lokesh Pal April 22, 2025 03:08 42 0

संदर्भ

20 अप्रैल, 2025 को जम्मू और कश्मीर के रामबन जिले में बड़े पैमाने पर बादल फटने (Cloudbursts) से कई स्थानों पर फ्लैश फ्लड एवं भूस्खलन हुआ।

संबंधित तथ्य

  • रामबन जिला प्रशासन ने घटनाओं के बारे में जानकारी देते हुए फ्लैश फ्लड, भूस्खलन और बादल फटने जैसे शब्दों का प्रयोग किया।

बादल फटना/ क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) के बारे में 

  • बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) को ‘लगभग 10 x 10 किलोमीटर क्षेत्र में एक घंटे में 10 सेमी. या उससे अधिक वर्षा’ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • उदाहरण: 26 जुलाई, 2005 को बादल फटने (केवल 24 घंटों में रिकॉर्ड तोड़ 944 मिमी वर्षा) की एक विनाशकारी घटना के कारण मुंबई में तीव्र वर्षा हुई, जिससे शहर में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया और 1,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
  • तंत्र: पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वतीय उत्थापन (Orographic Lift) नामक प्रक्रिया के कारण सामान्य घटना है:
    • गर्म वायु पर्वतीय ढलानों के साथ ऊपर उठती है।
    • यह ऊँचाई पर कम दाब के कारण फैलती है और ठंडी हो जाती है।
    • ठंडे होने से संघनन होता है और आर्द्रता उत्पन्न होती है।
    • यदि गर्म आर्द्र वायु का आरोहण होता है, तो यह वर्षा में देरी कर सकती है जब तक कि एक बड़ी मात्रा अचानक संघनित होकर मूसलाधार वर्षा के रूप में न गिर जाए।
  • भारत में घटनाएँ: भारत में, मानसून के मौसम में बादल फटने की घटनाएँ प्रायः देखी जाती हैं, विशेष तौर पर हिमालय, पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर पर्वतीय राज्यों जैसे क्षेत्रों में।
  • फ्लैश फ्लड से संबंध: बादल फटने की घटनाएँ प्रायः फ्लैश फ्लड का कारण बनती हैं और मई-सितंबर के बीच यह घटनाएँ सामान्य हो गई हैं, जब देश के अधिकांश हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम होता है।
  • प्रभाव
    • अचानक, स्थानीय स्तर पर भारी वर्षा।
    • प्रायः जल निकासी के अधिक होने और तेजी से जल जमा होने के कारण फ्लैश फ्लड और भूस्खलन होता है।
    • छोटे क्षेत्र और कम समय सीमा के कारण पता लगाना मुश्किल होता है।

फ्लैश फ्लड (Flash Floods) 

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, आकस्मिक बाढ़ एक अचानक, तीव्र बाढ़ की घटना है जो आमतौर पर अल्प अवधि, सामान्यतः 6 घंटे से भी कम समय में, तीव्र वर्षा के कारण होती है, जो प्रायः बादल फटने या भारी आंधी के साथ घटित होती है।

आकस्मिक बाढ़ (Flash Flood) के कारण

  • बांध की क्षमता से अधिक जल: बाढ़ वर्षा के अलावा अन्य कारणों से भी उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, जब जल, बांध की क्षमता से अधिक हो जाता है, तो इससे आकस्मिक बाढ़ आ सकती है।
    • सिक्किम के चुंगथांग बांध से जल छोड़े जाने के कारण तीस्ता नदी में अचानक 15-20 फीट तक जल का स्तर बढ़ गया, जिससे नदी के निचले इलाकों में बाढ़ आ गई।
  • बादल फटना: भारत में, फ्लैश फ्लड प्रायः बादल फटने से जुड़ी होती है, जो अचानक, तीव्र वर्षा की घटनाएँ होती हैं जो थोड़े समय के भीतर होती हैं।
    • जुलाई 2022 में अमरनाथ यात्रा शिविर में अचानक आई बाढ़ में कम-से-कम 13 लोगों की मौत हो गई।
  • पिघलते ग्लेशियर: हिमालयी राज्यों को ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बनने वाली ग्लेशियल झीलों के उफान की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
    • वर्ष 2013 में केदारनाथ में बादल फटना और GLOF की घटना।  
  • भूस्खलन: फ्लैश फ्लड के साथ भूस्खलन होता है, जो ढलान से नीचे चट्टान, बोल्डर, चट्टानी परत या मलबे का अचानक खिसकना है।
    • फरवरी 2021 में, उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ ने लगभग 200 लोगों की जान ले ली और कई घर बह गए।
  • शहरीकरण और खराब जल निकासी व्यवस्था: व्यापक कंक्रीट सतहों और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों वाले शहरी क्षेत्रों में फ्लैश फ्लड आने की संभावना होती है। अभेद्य सतहें जल को जमीन में निस्पंदित होने से रोकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप तीव्र बहाव होता है और बाढ़ का जोखिम बढ़ जाता है।
    • नई दिल्ली बाढ़ (2023) का हालिया उदाहरण।
  • वनों की कटाई और मृदा अपरदन: वनों या घास के मैदानों जैसी वनस्पतियों को हटाने से मृदा की प्राकृतिक जल अवशोषण क्षमता बाधित हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन मानवीय गतिविधियों के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप अनियमित मौसम पैटर्न और तूफान आदि जैसी चरम मौसमी घटनाएँ होती हैं, जिससे बाढ़ की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

भूस्खलन (Landslides)

  • NDMA के अनुसार, ‘भूस्खलन गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में चट्टान, मलबे और पृथ्वी जैसी ढलान निर्माणकारी सामग्रियों का नीचे की ओर खिसकना है।’
  • कारक: जब गुरुत्वाकर्षण से खिंचाव पर्वतीय या पर्वत की ढलान बनाने वाली भू-सामग्री की शक्ति से अधिक हो जाता है।

भूस्खलन का कारण

  • प्राकृतिक कारकों के कारण: मुख्य रूप से पर्वतीय इलाकों में होता है जहाँ मृदा, चट्टान, भूविज्ञान और ढलान की अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं।
    • यह प्राकृतिक कारणों से होता है, जिसमें भारी वर्षा, भूकंप, बर्फ पिघलना और बाढ़ के कारण ढलानों का कटाव शामिल है।

  • मानवजनित गतिविधियों के कारण: जैसे कि खुदाई, पहाड़ियों और पेड़ों की कटाई, बुनियादी ढाँचे का अत्यधिक विकास और मवेशियों द्वारा अत्यधिक चारण।
  • अतिरिक्त भार: भूस्खलन का जोखिम इस बात के प्रति सचेत न रहने के कारण बढ़ गया है कि इसमें क्षेत्र का भार झेलने की क्षमता है या नहीं।
  • नियमों का अभाव: कई पर्वतीय क्षेत्रों में भवन निर्माण के नियम नहीं हैं। प्रायः, नियमों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता है।
  • निर्माण एवं विकास: नए निर्माण, बुनियादी ढाँचे का विकास और यहाँ तक ​​कि कृषि पद्धतियाँ भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
  • वहन क्षमता से अधिक होना: प्रत्येक पर्वतीय क्षेत्र की एक वहन क्षमता होती है।
    • विकास आवश्यक है, और स्थानीय आबादी के लिए बुनियादी ढाँचे या नई सुविधाओं या आर्थिक गतिविधि के निर्माण को रोका नहीं जा सकता लेकिन इन्हें विनियमित किया जाना चाहिए।
    • स्थिरता को ध्यान में रखना होगा, ताकि भार वहन क्षमता से अधिक न हो।

भूस्खलन संबंधी चिंताएँ एवं संवेदनशीलता

  • भारत वैश्विक स्तर पर भूस्खलन की आशंका वाले शीर्ष पाँच देशों में से एक है, जहाँ भूस्खलन की घटना के कारण प्रत्येक वर्ष प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में कम-से-कम एक मौत की सूचना मिलती है।
  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India-GSI) के अनुसार, भारत के लगभग 0.42 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूभाग या इसके लगभग 13% क्षेत्र, जो 15 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में विस्तृत है, भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में से एक है।
    • इसमें देश के लगभग सभी पर्वतीय क्षेत्र शामिल हैं।
  • उत्तर पूर्वी राज्य: लगभग 0.18 मिलियन वर्ग किलोमीटर या इस संवेदनशील क्षेत्र का 42% हिस्सा पूर्वोत्तर क्षेत्र में है, जहाँ का भूभाग अधिकतः पर्वतीय है।
    • वर्ष 2015 से वर्ष 2022 के बीच, सिक्किम सहित इस क्षेत्र के आठ राज्यों में 378 बड़े भूस्खलन की घटनाएँ दर्ज की गईं, जिसके परिणामस्वरूप जान-माल का नुकसान हुआ।
    • ये घटनाएँ इस अवधि के दौरान भारत में हुए सभी बड़े भूस्खलनों का 10% थीं।
  • पूरे देश में केरल में सबसे अधिक 2,239 भूस्खलन की घटनाएँ हुईं, जिनमें से अधिकांश राज्य में वर्ष 2018 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हुए।

चरम मौसम की घटनाएँ

  • परिभाषा: जब मौसम की स्थिति सामान्य मौसम से काफी अलग होती है, तो इसे चरम मौसम या गंभीर मौसम कहा जाता है।
    • चरम मौसम की स्थिति कुछ समय तक रह सकती है या कभी-कभी इसे सामान्य होने में केवल एक या दो दिन लग सकते हैं।

भारत में चरम मौसम की स्थिति के कारण

  • जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग: बढ़ते तापमान से हीटवेव, चक्रवात और अनियमित वर्षा में वृद्धि होती है।
    • चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि (उदाहरण के लिए, अरब सागर के गर्म होने के कारण चक्रवात बिपरजॉय 2023 तीव्र हो गया)।
  • पर्वत निर्माणकारी प्रभाव (Orographic Effects): पर्वतीय क्षेत्रों में, गर्म नम हवा ऊपर उठती है, तेजीसे ठंडी होती है, और नमी उत्सर्जित करती है, जिससे कभी-कभी बादल फटते हैं और स्थानीय स्तर पर तीव्र वर्षा होती है।
    • अप्रैल 2025 में रामबन की घटना में पर्वतीय वर्षा शामिल थी, जिसके कारण बादल फटने, फ्लैश फ्लड आने और भूस्खलन की घटनाएँ हुईं।
  • वनों की कटाई और अनियमित शहरी विस्तार: वनों को काटना और बिना योजना के शहरों का विस्तार करना प्राकृतिक जल निकासी को कम करता है और सतही अपवाह को बढ़ाता है।
    • रामबन आपदा में अनियोजित निर्माण और पारंपरिक ‘स्टॉर्म वाटर निकासी’ नालों के अवरुद्ध होने के कारण भारी क्षति हुई, जिससे बाढ़ एवं भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ गईं।
  • संवेदनशील क्षेत्रों में दुर्बल भूविज्ञान और बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ: तन्य भूगर्भीय संरचनाओं वाले पर्वतीय क्षेत्र निर्माण और ड्रिलिंग के अधीन होने पर अधिक कमजोर हो जाते हैं।
    • NDMA दिशा-निर्देश हिमालय की ढलानों को भू-गतिकी के हिसाब से सक्रिय और भूस्खलन के लिए अत्यधिक संवेदनशील मानते हैं। रामबन में, संचालित 4-लेन राजमार्ग सुरंग ने पहले से ही अस्थिर पहाड़ों को कमजोर कर दिया है।
  • बादल फटने से फ्लैश फ्लड आती है: अचानक, तीव्र वर्षा प्राकृतिक और कृत्रिम जल निकासी को बाधित करती है, जिससे विनाशकारी बाढ़ आती है।
    • जम्मू और कश्मीर में गुरेज और तंगधार जैसे क्षेत्रों में प्रायः संकरी घाटियों और भारी वर्षा के कारण फ्लैश फ्लड आती है।
  • पश्चिमी विक्षोभ से जुड़ा चरम मौसम: विशेष तौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में पश्चिमी विक्षोभ के कारण अचानक वर्षा, ओले या बर्फबारी होती है।
    • प्रायः विक्षोभ के बाद बनिहाल, गुलमर्ग और किश्तवाड़ जैसे क्षेत्रों में हिमस्खलन और हिम तूफान आते हैं।
  • चट्टानी क्षेत्र और खराब अवशोषण के कारण फ्लैश फ्लड: पर्वतीय क्षेत्रों में, चट्टानी मृदा वर्षा को जल्दी से अवशोषित नहीं करती है, जिससे अचानक अपवाह और बाढ़ आती है।
    • आकस्मिक बाढ़ में भारी मात्रा में मलबा (कीचड़, चट्टानें, वाहन और यहाँ तक कि इमारतें भी) होता है।
  • जम्मू और कश्मीर की जलवायु संवेदनशीलता: जम्मू और कश्मीर अपनी स्थलाकृति और बदलती जलवायु के कारण बहु-खतरे वाला क्षेत्र है।
    • NDMA ने पाया कि भारत का 15% क्षेत्र विशेषतः हिमालयी राज्य भूस्खलन-प्रवण है।
  • अल नीनो और ला नीना: पूर्वी भारत में वर्ष 2023 की अलनीनो घटना ने वास्तव में सूखे का कारण बना, और असम/बंगाल में वर्ष 2022 की ला नीना ने भारी वर्षा और बाढ़ का कारण बना।

आगे की राह

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को संस्थागत बनाना: विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में वास्तविक समय निगरानी प्रणाली को लागू करना और पूर्वानुमान क्षमता को मजबूत करना।
    • वास्तविक समय भूस्खलन निगरानी और चेतावनी प्रणाली मामूली ढलान परिवर्तनों के आधार पर अलर्ट जारी करने और समय पर निकासी को सक्षम करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • नियोजन में जोखिम क्षेत्रीकरण को एकीकृत करना: सभी निर्माण और भूमि-उपयोग नियोजन में भूस्खलन जोखिम क्षेत्रीकरण (LHZ) और भूकंपीय जोखिम क्षेत्रीकरण को अनिवार्य बनाना।
    • संवेदनशील क्षेत्रों में विकास को प्रतिबंधित करने के लिए LHZ मानचित्रण को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
  • अनियोजित शहरी विस्तार को विनियमित करना: पर्वतीय शहरों में सख्त शहरी नियोजन मानदंड लागू करना और प्राकृतिक जल मार्गों के पास निर्माण कार्यों को रोकना।
    • अनियमित विस्तार, अवरुद्ध स्टॉर्म वाटर अपवाह और विशेषज्ञ नियोजन की कमी, वर्षा के प्रभाव को और खराब करती है।
  • पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अवसंरचना परियोजनाओं को लागू करना: संवेदनशील  क्षेत्रों में सभी प्रमुख अवसंरचना के लिए भूवैज्ञानिक, जल विज्ञान और पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता है।
    • लगातार सुरंग बनाने और सड़क काटने की गतिविधियाँ संवेदनशील संरचनाओं को अस्थिर कर सकती हैं और उन्हें विनियमित किया जाना चाहिए।
  • ढलान स्थिरीकरण और जल निकासी प्रबंधन को बढ़ावा देना: ढलान की विफलता को कम करने के लिए ढलान संरक्षण कार्य, मलबा निकासी और उचित जल निकासी प्रणाली लागू करना।
    • भूस्खलन के जोखिम को कम करने के लिए नियंत्रण कार्य, संयम कार्य और उचित जल निकासी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • स्थानीय समुदाय की तैयारी और प्रतिक्रिया का निर्माण करना: आपदा चेतावनी पहचान, सुरक्षित निकासी और राहत प्रबंधन में स्थानीय आबादी को प्रशिक्षित करना और शामिल करना।
    • सामुदायिक भागीदारी को प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया में एक मुख्य स्तंभ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • संस्थागत तंत्र और समर्पित अनुसंधान केंद्र स्थापित करना: दिशा-निर्देशों में प्रस्तावित राज्य स्तरीय आपदा प्रबंधन संस्थान और भूस्खलन अनुसंधान, अध्ययन और प्रबंधन केंद्र स्थापित करना।
    • भूस्खलन डेटा, अनुसंधान और प्रशिक्षण का प्रबंधन करने के लिए एक केंद्रीय निकाय की स्थापना करना।

निष्कर्ष 

रामबन आपदा भारत के संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में मजबूत आपदा प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है। पूर्व चेतावनी प्रणालियों को एकीकृत करना, अनियोजित विकास को विनियमित करना और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देना बादल फटने, फ्लैश फ्लड और भूस्खलन के विनाशकारी प्रभावों को कम कर सकता है।

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