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विदेशी न्यायाधिकरण (FTs)

Lokesh Pal July 20, 2024 03:55 144 0

संदर्भ

हाल ही में असम सरकार ने राज्य पुलिस की सीमा शाखा से कहा कि वह वर्ष 2014 से पहले अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिमों के मामलों को विदेशी न्यायाधिकरणों (Foreigners Tribunals – FTs) को न भेजे।

  • उच्चतम न्यायालय ने 12 वर्ष पहले मृत किसान रहीम अली को विदेशी घोषित करने के FT के आदेश को रद्द कर दिया। 
  • वर्ष 1997 में असम में लगभग 3 लाख लोगों को बिना किसी पूछताछ या नोटिस के संदिग्ध मतदाता घोषित कर दिया गया था। उन्हें असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (Assam National Register of Citizens- NRC) से बाहर कर दिया गया।

विदेशी न्यायाधिकरण (Foreigners Tribunals- FTs) के बारे में

  • परिभाषा: विदेशी न्यायाधिकरण अर्द्ध-न्यायिक निकाय हैं, जो यह निर्धारित करने के लिए स्थापित किए जाते हैं कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला कोई व्यक्ति ‘विदेशी’ है या नहीं।
  • स्थापना: विदेशी न्यायाधिकरण की स्थापना फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 के तहत की गई थी, जिसे केंद्र सरकार ने फॉरेनर्स एक्ट, 1946 की धारा 3 की शक्तियों का उपयोग करके अधिनियमित किया था।
  • संरचना: प्रत्येक FT का नेतृत्व न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं एवं न्यायिक अनुभव वाले सिविल सेवकों में से एक सदस्य द्वारा किया जाता है।
  • केवल असम में: पूरे भारत में लागू होने के बावजूद, FTs वर्तमान में केवल असम में ही संचालित है। अन्य राज्यों में, संदिग्ध अवैध अप्रवासियों को विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत स्थानीय न्यायालयों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
  • हालिया संशोधन: प्रारंभ में, केवल केंद्र सरकार ही FTs की स्थापना कर सकती थी। 
    • विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश में वर्ष 2019 के संशोधन ने राज्य सरकारों को भी यह शक्ति प्रदान की।

विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश, 1964 

  • इसे केंद्र सरकार द्वारा विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 के तहत जारी किया गया था। 
  • यह पूरे देश पर लागू है।
  • कोई व्यक्ति इस विवरण के अंतर्गत आता है या नहीं, इस पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार एक न्यायाधिकरण की स्थापना का आदेश दे सकता है।
  • वर्ष 2019 में विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन। 
    • यह NRC के खिलाफ दायर दावों एवं आपत्तियों के नतीजे से संतुष्ट नहीं होने वाले व्यक्तियों द्वारा की गई अपीलों को निर्धारित करता है।
      • चूँकि NRC का कार्य केवल असम में चल रहा है, इसलिए, उपरोक्त आदेश आज की तारीख में सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए केवल असम पर लागू है।
    • संशोधन आदेश में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रिब्यूनल को उसकी राय जानने के लिए संदर्भित करने का भी प्रावधान है कि क्या अपीलकर्ता विदेशी अधिनियम, 1946 के अर्थ के तहत ‘विदेशी’ है या नहीं।

कार्यप्रणाली

  • वर्ष 1964 के आदेश के अनुसार: FT के पास कुछ मामलों में सिविल न्यायालय की शक्तियाँ हैं, जैसे किसी भी व्यक्ति को बुलाना और उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना तथा शपथ पर उसकी जाँच करना और कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा करना।
  • व्यक्ति को नोटिस: एक न्यायाधिकरण को संबंधित प्राधिकारी से संदर्भ प्राप्त होने के 10 दिनों के भीतर कथित तौर पर विदेशी होने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी या राज्य की आधिकारिक भाषा में नोटिस देना आवश्यक है।
  • जवाब देना एवं साक्ष्य जमा करना: ऐसे व्यक्ति के पास नोटिस का जवाब देने के लिए 10 दिन एवं अपने मामले के समर्थन में सुबूत प्रस्तुत करने के लिए 10 दिन का समय होता है।
  • मामले का निपटान: एक FT को संदर्भ के 60 दिनों के भीतर मामले का निपटान करना होता है। 
  • निर्वासन: यदि व्यक्ति नागरिकता का कोई सुबूत देने में विफल रहता है, तो FT उसे बाद में निर्वासन के लिए एक हिरासत केंद्र, जिसे अब ‘ट्रांजिट कैंप’ कहा जाता है, में भेज सकता है।

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