तमिलनाडु के नीलगिरी (Nilgiris) में कुन्नूर वन क्षेत्र (Coonoor Forest Range) में लगभग एक सप्ताह से वनाग्नि (Forest fires) की घटना देखी गई है।
संबंधित तथ्य
बांबी बकेट ऑपरेशन (Bambi Bucket Operations): इस वनाग्नि पर नियंत्रण पाने के लिए भारतीय वायु सेना द्वारा ‘बांबी बकेट’ (Bambi Bucket) ऑपरेशन चलाया गया, जिसके तहत कुन्नूर वन क्षेत्र पर जल छिड़काव किया गया।
बांबी बकेट, जिसे हेलीकॉप्टर बकेट या हेली बकेट (Heli Bucket) भी कहा जाता है, एक विशेष कंटेनर है, जिससे वन क्षेत्रों पर जल छिड़काव किया जाता है।
भारत की वनाग्नि की संवेदनशीलता (Forest Fire Vulnerability of India)
वनाग्नि प्रवण क्षेत्र (Forest Fire Prone Area): भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) द्वारा प्रकाशित द्विवार्षिक भारत राज्य वन रिपोर्ट (India State of Forest Report- ISFR), 2019 के अनुसार, भारत के 36% से अधिक वन क्षेत्र में बार-बार आग लगने का खतरा था।
वन क्षेत्र का लगभग 4% आग के प्रति ‘अत्यधिक प्रवण’ (Extremely Prone) था, और अन्य 6% आग के प्रति ‘बहुत अधिक प्रवण’ (Very Highly Prone) था।
संवेदनशील राज्य (Vulnerable States): हाल के दिनों में वनाग्नि की लगातार घटनाओं वाले 11 मुख्य राज्य हैं:- आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड।
पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में वनाग्नि की संवेदनशीलता: FSI के अनुसार, शुष्क पर्णपाती वनों में गंभीर आग लगती है, जबकि सदाबहार, अर्द्ध-सदाबहार और पर्वतीय समशीतोष्ण वनों में आग लगने का खतरा तुलनात्मक रूप से कम होता है।
पूर्वोत्तर भारत, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के वन नवंबर से जून की अवधि के दौरान आग के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।
वनाग्नि को ट्रिगर करने वाले कारक
भारत में 95% वनाग्नि की घटनाएँ मानवीय गतिविधियों के कारण होती है, जैसे- कृषि अपशिष्टों को जलाना, वनों में लकड़ी जलाना आदि।
सूखा और उच्च तापमान वनाग्नि के खतरे को और बढ़ा देते हैं।
भारत में वनाग्नि का मौसम: नवंबर से जून तक भारत में वनाग्नि की प्रबल संभावना मानी जाती है।
देश भर में आमतौर पर अप्रैल-मई आग की सबसे भीषण घटनाओं वाले महीने होते हैं।
वर्ष 2024 में वनाग्नि की स्थिति: FSI डेटा के अनुसार, मार्च 2024 के दौरान, मिजोरम (3,738), मणिपुर (1,702), असम (1,652), मेघालय (1,252), और महाराष्ट्र (1,215) में सर्वाधिक वनाग्नि की घटनाएँ घटित होती हैं।
वनाग्नि के कारण
प्राकृतिक कारण
आकाशीय बिजली:वनाग्नि का एक कारण आकाशीय बिजली भी है।
ज्वालामुखीय विस्फोट: ज्वालामुखी में विस्फोट के दौरान पृथ्वी की पर्पटी से गर्म मैग्मा लावे के रूप में बाहर निकलता है, जिससे यह पहाड़ों से नीचे बह कर जंगलों में फैल जाता है, जिससे आग लग जाती है।
उच्च तापमान: गर्म और शुष्क तापमान और उच्च वृक्ष घनत्व वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि के सहायक कारक हैं।
मानवजनित कारण: ये घटनाएँ तब घटित होती हैं जब आग का कोई स्रोत जैसे- लौ, विद्युतीय चिंगारी आदि ज्वलनशील पदार्थ के संपर्क में आती हैं।
इस वर्ष आग लगने का कारण क्या है?
औसत तापमान में वृद्धि: पिछले दो महीनों में, दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिकतम, न्यूनतम और औसत तापमान सामान्य से ऊपर बना हुआ है, जिससे ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत से पहले ही तापमान में बढ़ोतरी होती है।
यहाँ अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया, जो मार्च के मध्य के लिए असामान्य है।
शुष्क बायोमास की उपलब्धता: सर्दी के मौसम से ही इन वनों में शुष्क बायोमास की उपलब्धता होना।
दक्षिण भारत का सबसे गर्म महीना: यह फरवरी 1901 के बाद से दक्षिण भारत का सबसे गर्म महीना था और जनवरी एक सदी से भी अधिक समय में पाँचवाँ सबसे गर्म महीना था।
अतिरिक्त ताप कारक (Excess Heat Factor- EHF) की व्यापकता: IMD ने पश्चिमी आंध्र प्रदेश और पड़ोसी कर्नाटक में EHF की व्यापकता सामान्य से काफी अधिक होने की चेतावनी दी है।
EHF एक क्षेत्र में हीटवेव की संभावना की भविष्यवाणी करता है।
शुष्कता की व्यापकता: वर्षा की अनुपस्थिति और प्रचलित उच्च तापमान के कारण, IMD ने दक्षिणी भारत के लगभग सभी जिलों को ‘मंद’ शुष्कता के अंतर्गत वर्गीकृत किया है।
वनाग्नि का प्रभाव
जैव विविधता की हानि: वनाग्नि का वन आवरण, वृक्षों के विकास, वनस्पति और समग्र वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
आग से कई हेक्टेयर वन क्षेत्र का ह्रास हो जाता है, जिससे यह वनस्पतियों के विकास के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
मृदा का क्षरण: वनाग्नि से मृदा के पोषक तत्त्वों का ह्रास हो जाता है और मृदा की संरचना में भी बदलाव आता है, जिससे मृदा का क्षरण होता है और शीर्ष उपजाऊ मृदा नष्ट हो जाती है।
मृदा की उर्वरता: इससे मृदा के कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं और मृदा की संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और मृदा में नाइट्रोजन भंडार खत्म हो सकता है।
वनाग्नि ह्यूमस और मृदा की सूक्ष्म वनस्पतियों को भी नष्ट कर देती है, जो बदले में वन विकास को प्रभावित करता है।
उत्तर-पूर्वी भारत में, वनाग्नि से जुड़े अल्पकालिक झूम कृषि चक्रों से मृदा की उर्वरता पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ा है।
छोटे झूम कृषि चक्र से उपलब्ध परती बायोमास में कमी आती हैं और मृदा की उर्वरता को ठीक होने के लिए कम समय देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक पैदावार और दक्षता कम होती है।
झूम खेती के तहत वनस्पति को जलाकर भूमि को साफ किया जाता है, कई वर्षों तक खेती की जाती है, और फिर मृदा की उत्पादकता कम होने पर इसे परती भूमि के रूप में छोड़ दिया जाता है।
आक्रामक विदेशी प्रजातियों (IAS) में वृद्धि: भारत के वनों में कुछ आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (IAS) आग पर निर्भर हैं।
जंगलों के विखंडन और आग के कारण पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण हुआ है, जिससे वे विदेशी प्रजातियों के आक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं। उदाहरण- लैंटाना कैमरा (Lantana Camara) आग को और भड़काता है।
वन्यजीवों को नुकसान: वनाग्नि से वन्यजीवों और पक्षियों को भारी नुकसान होता है। इससे जंगली जीवों के निवास स्थान का नुकसान होता है, जिससे अवैध शिकार, प्रतिकूल मौसम की स्थिति या शिकारी प्रजातियों द्वारा शिकार के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
वायु प्रदूषण: वनाग्नि N₂O और अन्य एरोसोल जैसी ताप रोकने वाली गैसों का उत्सर्जन करती है, जो क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती हैं।
आग लगने के बाद जंगल की सफाई और वनस्पति संरचना में लगातार बदलाव के परिणामस्वरूप शुद्ध उत्सर्जन हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन: वनाग्नि पेड़ों, झाड़ियों, कूड़े-कचरे और मृदा में जमा कार्बन को वायुमंडल में छोड़कर जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
भारत में वनाग्नि को रोकने के लिए की गई पहलें
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan- NDMP) 2019: संशोधित NDMP 2019 के तहत, विशिष्ट समयबद्ध कार्य योजनाओं और केंद्रीय, राज्य एजेंसियों और प्रमुख हितधारकों की स्पष्ट भूमिकाओं तथा जिम्मेदारियों के साथ, वनाग्नि को एक खतरे के रूप में शामिल और संबोधित किया गया है।
वनाग्नि चेतावनी प्रणाली (Forest Fire Alert System): वर्ष 2004 से, FSI ने वास्तविक समय में वनाग्नि की निगरानी के लिए वनाग्नि चेतावनी प्रणाली विकसित की।
जनवरी 2019 में लॉन्च किए गए अपने उन्नत संस्करण में, प्रणाली अब नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह जानकारी का उपयोग करती है।
अग्नि मौसम सूचकांक आधारित वनाग्नि खतरा रेटिंग प्रणाली (Fire Weather Index based Forest Fire Danger Rating System- FFDRS): यह भूमि पर संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करती है।
जोखिम में कमी और शमन
अत्यधिक अग्नि प्रवण क्षेत्रों की पहचान
संसाधन आवंटन और जुटाना
वनाग्नि जियो-पोर्टल (Van Agni Geo-portal): यह भारत में वनाग्नि से संबंधित जानकारी के लिए एकल प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है।
वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPFF): इसे वर्ष 2018 में भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन सीमांत समुदायों को सूचित, सक्षम और सशक्त बनाकर तथा उन्हें राज्य वन विभागों के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करके वनाग्नि की घटनाओं को कम करने हेतु शुरू किया गया था।
NAPFF द्वारा सुझाए गए उपाय
1. अग्नि जोखिम क्षेत्रीकरण और मानचित्रण
जोखिम
वन नियोजन में अग्नि जोखिम क्षेत्रों का उपयोग
2. वनाग्नि को रोकना
प्रभावी संचार रणनीति
समुदायों को उनकी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए सशक्त बनाना
समुदायों की क्षमता निर्माण
3. आग के प्रति वनों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना
नमी एवं जल संरक्षण
वन तल बायोमास प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन
4. वनाग्नि हेतु तैयारी
वनाग्नि का पता लगाना और चेतावनी देना
महत्त्वपूर्ण संसाधनों और परिसंपत्तियों के स्थान का डिजिटलीकरण करें
वनाग्नि रेखाएँ
जलने पर नियंत्रण रखना
5. आग दमन
फील्ड स्टाफ, अग्नि पर नजर रखने वालों और सामुदायिक अग्निशामकों के लिए प्रशिक्षण
अग्निशामकों को सुसज्जित करना
अग्नि शमन के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का विकास
पर्याप्त जनशक्ति की व्यवस्था
6. पोस्ट फायर प्रबंधन
वनाग्नि से नुकसान का आकलन
कारणों की उचित जाँच
आग प्रभावित क्षेत्रों की बहाली
7. अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय
8. वनाग्नि के लिए उत्कृष्टता केंद्र
आगे की राह
वनाग्नि रेखा (Forest Fireline): इसमें ‘वनाग्नि रेखा’ के रूप में जानी जाने वाली वन सीमा के साथ जंगल के अपशिष्ट को हटाकर आग को रोकना शामिल है।
यह लाइन जंगल में आग को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक फैलने से रोकती है। लाइन बनाने के दौरान एकत्रित कूड़े को एकांत में जला दिया जाता है।
भारत में वनाग्नि प्रबंधन के लिए संस्थागत व्यवस्था
वर्तमान में, महानिरीक्षक (IG) स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता वाला वन संरक्षण प्रभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), भारत सरकार के आपदा प्रबंधन (NDM) प्रभाग के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर वनाग्नि प्रबंधन कार्य की देखभाल करता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM), अंतरराष्ट्रीय संगठन, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), वन अनुसंधान संस्थान (FRI) और देश में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्य क्षेत्रीय कार्यालय।
सर्वोत्तम प्रथाएँ
ऑस्ट्रेलिया की बुशफायर सुरक्षा प्रणाली: यह लोगों को विक्टोरिया क्षेत्र में एक विशेष ऐप का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो आग के जोखिमों के बारे में समय पर जानकारी प्रदान करती है और हितधारकों को निर्णय लेने में मदद करता है।
इंडोनेशिया का अग्नि मुक्त ग्राम कार्यक्रम: यह स्थानीय समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य हितधारकों को आग के कारणों का समाधान करने के लिए प्रेरित करता है।
अग्निरोधक बनाना: आम तौर पर, आग तभी फैलती है जब उसके रास्ते में ईंधन (सूखी वनस्पति) की निरंतर आपूर्ति होती रहती है।
इसलिए, वनाग्नि को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका इसे फैलने से रोकना है, जो जंगलों में अग्निरोधक बनाकर किया जा सकता है।
राष्ट्रीय वनाग्नि ज्ञान नेटवर्क: इसे देश में वनाग्नि के सभी आयामों को कवर करने के लिए स्थापित किया जाना चाहिए।
इस तरह के नेटवर्क को वनाग्नि प्रबंधकों, नीति निर्माताओं और योजनाकारों, निर्णय निर्माताओं, समुदाय आदि सहित सभी हितधारकों की महसूस की गई आवश्यकता के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
क्षमता निर्माण: संभावित आग की घटनाओं का समय पर पता लगाने और वनाग्नि से निपटने के लिए वन कर्मियों और संस्थानों की क्षमता बढ़ाना।
प्रशिक्षण, कार्यबल, उपकरण आदि के मामले में वन रक्षकों की क्षमता को सर्वोत्तम स्तर पर बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है ताकि वे वनाग्नि से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम हो सकें।
वनाग्नि प्रबंधन के लिए अलग प्रभाग: यह आवश्यक है कि प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, वनाग्नि प्रबंधन के लिए एक अलग प्रभाग स्थापित किया जाए, जो विशेष रूप से वनाग्नि के मुद्दे से निपट सके।
वनाग्नि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी नवाचारों को बढ़ावा देना: अनुसंधान संस्थानों को वनाग्नि के बारे में पूर्व सूचना प्राप्त करने, इसका पता लगाने और इसे नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त तंत्र विकसित करने हेतु उचित तकनीक विकसित करने के लिए अनुसंधान करने की आवश्यकता है।
सहयोग को मजबूत करना: वनाग्नि के बारे में प्रारंभिक चेतावनी उत्पन्न करने में शामिल संगठनों के साथ आवश्यक सहयोग की आवश्यकता है।
मौसम विभाग और मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करने वाले अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों को तापमान और वर्षा की स्थिति के बारे में पूर्व जानकारी प्राप्त करने के लिए सहयोग किया जा सकता है, जो वनाग्नि के लिए मुख्य निर्णायक कारक हैं।
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