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स्थायी रसायन

Lokesh Pal August 14, 2024 02:47 78 0

संदर्भ

मानवजनित गतिविधियों के दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव के प्रबंधन के उद्देश्य से एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए, अमेरिकी शोधकर्ताओं ने स्थायी रसायनों के उद्गम और गंतव्य का पता लगाने की एक विधि खोज निकाली है।

संबंधित तथ्य

  • अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) इन रसायनों को विनियमित करने और उनमें से अधिकांश को पेयजल से समाप्त करने की योजना बना रही है।
  • स्थायी रसायन
    • परिचय
      • वे मानव निर्मित रसायन हैं, जिनका उपयोग नॉनस्टिक कुकवेयर, जल-विकर्षक कपड़े, दाग-प्रतिरोधी कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन, अग्निशामक रूपों और कई अन्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है जो ग्रीस, जल तथा तेल का प्रतिरोध करते हैं।
      • वे अपने उत्पादन और उपयोग के दौरान मृदा, जल एवं हवा में प्रवेश कर सकते हैं।
      • अधिकांश PFAs विघटित नहीं होते हैं, वे लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं।
      • इसके अलावा इनमें से कुछ PFAs मनुष्यों और जीवों में बन सकते हैं यदि वे बार-बार रसायनों के संपर्क में आते हैं।
    • हानिकारक प्रभाव
      • PFA के संपर्क में रहने के कारण कुछ बीमारियों के होने का जोखिम बढ़ जाता है, जिसमें प्रजनन क्षमता में कमी, बच्चों में विकासात्मक प्रभाव, शरीर के हार्मोन में हस्तक्षेप, कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि और कुछ प्रकार के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
      • हाल के शोध से यह भी पता चला है कि कुछ PFA के लंबे समय तक निम्न-स्तर के संपर्क में विभिन्न बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण के बाद मनुष्यों के लिए एंटीबॉडी का निर्माण करना मुश्किल हो सकता है।
  • नई तकनीक
    • ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक का उपयोग किया है, जिसमें चुंबकीय क्षेत्र और रेडियो तरंगों का उपयोग करके विश्व भर के पारिस्थितिकी तंत्रों में इन रसायनों के प्रसार पर नजर रखी जाती है।
    • इस तकनीक में नमूनों को एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र से गुजारा जाता है और फिर उनके परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगों के विस्फोट का अवलोकन किया जाता है। 
    • इससे अणु में कार्बन समस्थानिकों की संरचना का पता चलता है और रसायन को उसकी पहचान मिलती है, एक ऐसी उपलब्धि, जो पहले कभी भी रसायनों के साथ हासिल नहीं की गई थी।

स्टॉकहोम कन्वेंशन

परिचय

  • यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को  PFAs से बचाने के लिए एक वैश्विक संधि है। 
  •  PFAs ऐसे रसायन हैं, जो लंबे समय तक पर्यावरण में बरकरार रहते हैं तथा भौगोलिक तौर पर व्यापक रूप से वितरित हो जाते हैं, जीवित जीवों के वसायुक्त ऊतक में जमा हो जाते हैं एवं मनुष्यों और वन्यजीवों के लिए जहरीले होते हैं।

उद्देश्य

  • सुरक्षित विकल्पों के संक्रमण का समर्थन करना।
  • कार्रवाई के लिए अतिरिक्त POPs को लक्षित करना।
  • POPs युक्त पुराने स्टॉकपाइल्स और उपकरण की सफाई करना।
  • POP-मुक्त भविष्य के लिए मिलकर काम करना।
  • भारत की स्थिति
    • भारत ने अनुच्छेद-25 (4) के अनुसार, 13 जनवरी, 2006 को स्टॉकहोम समझौते की पुष्टि की थी, जिसने इसे स्वयं को एक डिफॉल्ट “ऑप्ट-आउट” स्थिति में रखने के लिए सक्षम बनाया, ताकि समझौते के विभिन्न अनुलग्नकों में संशोधन तब तक लागू न हो सके, जब तक कि सत्‍यापन/ स्वीकृति/ अनुमोदन या मंजूरी का प्रपत्र स्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र के न्यासी/धरोहर स्थान (Depositary) में जमा न हो जाए।


  • स्थायी रसायनों के उद्गम और गंतव्य का पता लगाने में कठिनाइयाँ
    • प्रबल बंध: इन रसायनों के पर्यावरण में असाधारण रूप से लंबे समय तक बने रहने का कारण उनके मध्य प्रबल  बंध है।
      • अत्यधिक मजबूत आणविक बंध,  जो स्थायी रसायनों को उनकी उपयोगी विशेषताएँ देते हैं, जिनका उपयोग अग्निरोधी से लेकर नॉन-स्टिक सतहों और दवाओं तक में किया जाता है, उन्हें पर्यावरण में विखंडित होने से भी बचाते हैं।
      • इससे वे मृदा और कार्बनिक पदार्थों में प्रदूषण के रूप में जमा हो जाते हैं, जिनसे वे आसानी से चिपक जाते हैं।
      • हालाँकि, रसायनों के आणविक बंध भी उनका पता लगाना मुश्किल बनाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि पारंपरिक ‘रासायनिक फिंगरप्रिंटिंग’ में एक ‘मास स्पेक्ट्रोमीटर’ में अणुओं को अलग करना शामिल है, जो स्थायी रसायनों के कठिन आणविक बंधों के साथ अच्छी तरह से कार्य नहीं करता है।

खोज का महत्त्व

  • इन स्थायी रसायनों की संरचना में अंतर-आणविक बलों की शक्ति के कारण, शोधकर्ताओं ने परमाणु चुंबकीय अनुनाद (NMR) स्पेक्ट्रोस्कोपी नामक तकनीक का विकल्प चुना।
  • इस तकनीक का उपयोग अणु की संरचना को मापने और इसे अलग किए बिना इसके समस्थानिकों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
    • समस्थानिक उन रासायनिक तत्त्वों को संदर्भित करते हैं, जिनके परमाणुओं में न्यूट्रॉन की संख्या में अंतर होता है। 
    • स्थायी रसायन, कार्बन समस्थानिकों को फ्लोरीन से जोड़कर बनाए जाते हैं। एक बार आणविक बंध बनने के बाद, वे लगभग अटूट हो जाते हैं।
  • शोधकर्ताओं की तकनीक, अणु में प्रत्येक स्थान पर कार्बन समस्थानिकों के मिश्रण को निर्धारित करने के लिए अपने स्वयं के कंप्यूटेशनल उपकरणों के साथ NMR उपकरण का उपयोग करती है। 
  • चूँकि प्रत्येक फ्लोरीन परमाणु से जुड़े कार्बन समस्थानिकों का मिश्रण रसायन के निर्माण के तरीके के लिए अद्वितीय है, इसलिए इस जानकारी का उपयोग किसी रसायन का पता लगाने के लिए फिंगरप्रिंट की तरह किया जा सकता है।
  • यह अणुओं के लिए एक अंतर्निहित बारकोड की तरह है।

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