हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर (AM Khanwilkar) को लोकपाल का अध्यक्ष नियुक्त किया।
संबंधित तथ्य
केंद्र सरकार ने छह सदस्य भी नियुक्त किए हैं:
तीन न्यायिक सदस्य
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी (Lingappa Narayana Swamy)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय यादव (Sanjay Yadav)
विधि आयोग की अध्यक्ष ऋतु राज अवस्थी (Ritu Raj Awasthi)
प्रथम लोकपाल अध्यक्ष (First Lokpal Chairperson)
पहले लोकपाल अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष थे, जिन्होंने मार्च 2019 में पदभार सँभाला था।
मई 2022 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद से, झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रदीप कुमार मोहंती कार्यवाहक लोकपाल अध्यक्ष हैं।
तीन गैर-न्यायिक सदस्य: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा, गुजरात के पूर्व मुख्य सचिव पंकज कुमार और पूर्व ग्रामीण विकास सचिव अजय तिर्की।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्पत्ति: वर्ष 1809 में स्वीडन में लोकपाल संस्था का आधिकारिक उद्घाटन किया गया।
स्वीडन से, लोकपाल की इस संस्था का विस्तार अन्य स्कैंडिनेवियाई देशों- फिनलैंड (1919), डेनमार्क (1955) और नॉर्वे (1962) में फैल गई।
न्यूजीलैंड लोकपाल को अपनाने वाला पहला राष्ट्रमंडल देश है और बाद में UK ने भी इसे अपनाया।
तर्क: लोकपाल की संस्था विधायिका के प्रति प्रशासनिक जवाबदेही के सिद्धांत पर आधारित है।
भारत में: लोकपाल और लोकायुक्त शब्द डॉ. एल. एम. सिंघवी द्वारा गढ़े गए थे।
संवैधानिक लोकपाल की अवधारणा पहली बार 1960 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन कानून मंत्री अशोक कुमार सेन द्वारा संसद में प्रस्तावित की गई थी।
वर्ष 1966 में: प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने संसद सदस्यों सहित सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायतों पर ध्यान देने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर दो स्वतंत्र प्राधिकरणों की स्थापना की सिफारिश की।
वर्ष 2002 में: एम. एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में संविधान के कामकाज की समीक्षा करने वाले आयोग ने लोकपाल एवं लोकायुक्त की नियुक्ति की सिफारिश की, साथ ही यह भी सिफारिश की कि प्रधानमंत्री को प्राधिकरण के दायरे से बाहर रखा जाए।
वर्ष 2005 में: वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की कि लोकपाल का कार्यालय बिना किसी देरी के स्थापित किया जाना चाहिए।
वर्ष 2013 में: अन्ना हजारे के नेतृत्व में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन’ ने केंद्र सरकार पर दबाव डाला और परिणामस्वरूप लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2013 संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया।
इसे 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिली और 16 जनवरी, 2014 को यह लागू हो गया।
वर्ष 2017 में: उच्चतम न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया कि केवल ‘विपक्ष के नेता’ की अनुपस्थिति के कारण लोकपाल नियुक्ति प्रक्रिया को रोकने की आवश्यकता नहीं है।
इस निर्णय ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि लोकपाल नियुक्ति प्रक्रिया को चयन समिति में ‘विपक्ष के नेता’ की जगह सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को शामिल करने के लिए 2013 अधिनियम में संशोधन होने तक इंतजार करना चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष (LoP) का पद केवल उस पार्टी को दिया जाता है, जिसके पास सदन की कम-से-कम 10% सीट क्षमता हो।
लोकायुक्त के बारे में
लोकायुक्त भारत की प्रत्येक राज्य सरकार के लिए भारतीय संसदीय लोकपाल है, जिसे राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
यह एक भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है, जिसका उद्देश्य लोक सेवकों के खिलाफ शिकायतों, आरोपों की जाँच करना है।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अनुसार, ‘प्रत्येक राज्य एक निकाय स्थापित करेगा, जिसे राज्य के लिए लोकायुक्त के रूप में जाना जाएगा।’
भारत में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मौजूदा कानून एवं अधिनियम
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI)
केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और राज्य सतर्कता आयोग
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC)
अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968
केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964
प्रशासनिक न्यायाधिकरण जैसे- केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT)
लोकपाल (Lokpal)
लोकपाल के बारे में: ‘लोकपाल’ शब्द संस्कृत के शब्द ‘लोक’ से बना है जिसका अर्थ है लोग और ‘पाल’ का अर्थ है ‘लोगों का रक्षक’।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में पारित किया गया था। यह एक वैधानिक निकाय है।
लोकपाल स्वतंत्र भारत में अपनी तरह की पहली संस्था है, जिसे लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत उपरोक्त अधिनियम के दायरे में आने वाले सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की पूछताछ एवं जाँच करने के लिए स्थापित किया गया है।
लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) अधिनियम, 2016: इसने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संशोधन किया।
भ्रष्टाचार: एक गंभीर चिंता का विषय
भ्रष्टाचार एक घातक विकार है, जिसका समाज पर व्यापक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यह लोकतंत्र और कानून के शासन को कमजोर करता है, मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है, बाजारों को विकृत करता है, जीवन की गुणवत्ता को नष्ट करता है और संगठित अपराध, आतंकवाद तथा मानव सुरक्षा के लिए अन्य खतरों को पनपने देता है।
भ्रष्टाचार, विकास के लिए निर्धारित धन का दुरुपयोग करके, बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने की सरकार की क्षमता को कम करके, असमानता एवं अन्याय को बढ़ावा देकर और विदेशी सहायता एवं निवेश को हतोत्साहित करके गरीबों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाता है।
भ्रष्टाचार आर्थिक रूप से खराब प्रदर्शन का एक प्रमुख तत्त्व है और गरीबी उन्मूलन एवं विकास में एक बड़ी बाधा है।
भारत भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्ता है
भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी बहुपक्षीय संधि है।
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा बातचीत के बाद, इसे अक्टूबर 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया और दिसंबर 2005 में लागू हुई।
पारदर्शी एवं उत्तरदायी शासन प्रदान करने की सरकार की प्रतिबद्धता भ्रष्टाचार के कृत्यों को रोकने एवं दंडित करने के लिए कानून पारित करने और लोकपाल निकाय के निर्माण में परिलक्षित होती है।
वर्ष 2013 के अधिनियम की संशोधित धारा 44: इसने 30 दिनों की समय सीमा को प्रतिस्थापित कर दिया। इसका अर्थ है कि लोक सेवक अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से करेंगे।
वर्ष 2013 के अधिनियम की धारा 44 सरकारी सेवा में शामिल होने के 30 दिनों के भीतर लोक सेवकों की संपत्ति एवं देनदारियों का विवरण प्रस्तुत करने के प्रावधान से संबंधित है।
शासनादेश (Mandate)
पारदर्शी शासन के लिए भारत के नागरिकों की चिंताओं एवं आकांक्षाओं को संबोधित करना।
सार्वजनिक हित की सेवा के लिए और सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए इसमें निहित शक्तियों का उपयोग करने का प्रयास करेगा।
संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाने वाली रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष प्रस्तुत करना।
नियुक्ति: अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिशें प्राप्त करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी:
प्रधान मंत्री- अध्यक्ष
लोक सभा के अध्यक्ष
लोक सभा में विपक्ष के नेता
भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
अध्यक्ष एवं सदस्यों (ऊपर संदर्भित) द्वारा अनुशंसित एक प्रतिष्ठित न्यायविद् को राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाता है।
संरचना: लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य होते हैं।
लोकपाल सर्च कमेटी के बारे में
चयन के लिए: अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने के लिए चयन समिति कम-से-कम आठ व्यक्तियों का एक सर्च पैनल गठित करती है।
उम्मीदवारों की एक सूची: वर्ष 2013 के लोकपाल अधिनियम के तहत, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्य बनने के इच्छुक उम्मीदवारों की एक सूची बनाता है।
शॉर्टलिस्टिंग: यह सूची फिर प्रस्तावित आठ-सदस्यीय सर्च समिति के पास जाती है, जो नामों को शॉर्टलिस्ट करेगी और उन्हें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले चयन पैनल के समक्ष रखती है।
चयन पैनल सर्च समिति द्वारा सुझाए गए नामों में भी किसी को चुन सकता है और नहीं भी चुन सकता है।
अध्यक्ष या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अथवा त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा और उत्कृष्ट क्षमता वाला कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिए।
उसके पास भ्रष्टाचार विरोधी नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता एवं बीमा और बैंकिंग, कानून तथा प्रबंधन सहित वित्त से संबंधित मामलों में कम-से-कम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता होनी चाहिए।
सदस्य: अधिकतम आठ सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य होने चाहिए और न्यूनतम 50% सदस्य SC/ ST/ OBC/अल्पसंख्यक और महिलाएँ होनी चाहिए।
न्यायिक सदस्य या तो उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश होते हैं।
गैर-न्यायिक सदस्य: ये सत्यनिष्ठा और उत्कृष्ट क्षमताओं वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति होने चाहिए।
उनके पास भ्रष्टाचार विरोधी नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, कानून और प्रबंधन से संबंधित मामलों में कम-से-कम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान एवं विशेषज्ञता होनी चाहिए।
कार्यकाल: लोकपाल अध्यक्ष एवं सदस्यों को पाँच साल के लिए नियुक्त किया जाता है या जब तक वे 70 वर्ष के नहीं हो जाते, जो भी पहले हो, तब तक सेवा करते हैं।
वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं और कोई संवैधानिक या सरकारी पद धारण नहीं कर सकते।
वे 5 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकते।
सेवा की शर्तें: अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन भत्ते एवं सेवा की अन्य शर्तें क्रमशः भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर हैं।
क्षेत्राधिकार (Jurisdiction)
लोकपाल के पास केंद्र सरकार पर अपने सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार क्षेत्र है।
इसमें प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, संसद सदस्य और केंद्र सरकार के समूह A अधिकारी और उनसे जुड़े मामलों शामिल हैं।
अधिकार क्षेत्र में संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या केंद्र अथवा राज्य सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित किसी भी बोर्ड, निगम, सोसायटी, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी और निदेशक भी शामिल हैं।
लोकपाल के पासशक्तियाँ (Powers with Lokpal)
जाँच करने की शक्ति: जब कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो लोकपाल अपनी जाँच शाखा या किसी अन्य एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जाँच का आदेश दे सकता है अथवा प्रथम दृष्टया मामला होने पर इसे किसी भी एजेंसी द्वारा जाँच के लिए भेज सकता है।
CVC पर अधिकार: लोकपाल, केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संबंध में, शिकायतों को केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) को भेजेगा, जो समूह A और B के अंतर्गत आने वाले अधिकारियों के बारे में एक रिपोर्ट भेजेगा और समूह C और D के लोगों के खिलाफ CVC अधिनियम के अनुसार कार्रवाई करेगा।
CBI पर क्षेत्राधिकार: लोकपाल के पास लोकपाल द्वारा भेजे गए मामलों के लिए केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) सहित किसी भी केंद्रीय जाँच एजेंसी पर अधीक्षण एवं निर्देशन की शक्ति होगी।
सिविल न्यायालय की शक्तियाँ: लोकपाल की जाँच शाखा को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
तलाशी एवं जब्ती की शक्ति: लोकपाल को इन शक्तियों के साथ-साथ नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत प्रारंभिक जाँच और पूछताछ करने एवं संपत्ति की कुर्की का आदेश देने की भी शक्ति प्राप्त है।
विशेष परिस्थितियों में शक्ति: लोकपाल के पास विशेष परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के कारण उत्पन्न संपत्तियों, आय, प्राप्तियों एवं लाभों को जब्त करने की शक्तियाँ हैं।
स्थानांतरण और निलंबन पर शक्ति: लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे लोक सेवकों के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने की शक्ति है।
लोकपाल की सीमाएँ और चुनौतियाँ (Limitations and Challenges Faced by the Lokpal)
असाधारण मामलों में कोई जाँच नहीं: लोकपाल अंतरराष्ट्रीय संबंधों, बाहरी एवं आंतरिक सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित मामलों में प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोपों की जाँच नहीं कर सकता है।
संवैधानिक स्थिति का अभाव: इसका कोई संवैधानिक समर्थन नहीं है।
कहीं-न-कहीं संवैधानिक स्थिति का अभाव भी अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी का एक कारण है।
प्रख्यात न्यायविद के लिए कोई मानदंड नहीं: यह तय करने का कोई मानदंड नहीं है कि ‘प्रख्यात न्यायविद्’ कौन है, यह लोकपाल की नियुक्ति पद्धति में हेरफेर कर सकता है।
अज्ञात शिकायतों की अनुमति नहीं: यह गुमनाम शिकायतों की अनुमति नहीं देता है, जो संभावित व्हिसलब्लोअर को आगे आने से रोक सकती हैं।
न्यायपालिका का बहिष्कार: न्यायपालिका को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। इसका मतलब है कि लोकपाल न्यायिक सदस्यों की जाँच नहीं कर सकता है।
अपील के कोई प्रावधान नहीं: लोकपाल के कार्यों के खिलाफ अपील के लिए कोई पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं।
राजनीतिक प्रभाव: लोकपाल नियुक्ति समिति में राजनीतिक दलों के सदस्य होते हैं और इसलिए लोकपाल को राजनीतिक प्रभाव में रखने की संभावना बनी रहती है।
व्हिसलब्लोअर को कोई प्रतिरक्षा नहीं (No Immunity to Whistle Blowers): लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 व्हिसलब्लोअर को किसी भी प्रकार की ठोस प्रतिरक्षा प्रदान करने में विफल रहा है।
शिकायत के लिए विशिष्ट समय सीमा: भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत उस तारीख से सात साल की अवधि के बाद दर्ज नहीं की जा सकती, जिस दिन अपराध होने का आरोप लगाया गया है।
लोकपाल अधिनियम ने राज्यों से इसके लागू होने के एक वर्ष के भीतर लोकायुक्त नियुक्त करने का भी आह्वान किया। हालाँकि, केवल कुछ राज्यों ने ही लोकायुक्त की नियुक्ति की।
अभियोजन रिकॉर्ड: संसद में पेश संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, लोकपाल ने आज तक भ्रष्टाचार के एक भी आरोपी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया है।
लोकपाल कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों से संकेत मिलता है कि, वर्ष 2019-20 के बाद से, भ्रष्टाचार विरोधी निकाय को 8,703 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 5,981 शिकायतों का निपटारा किया गया।
नियुक्ति में देरी: प्रथम अध्यक्ष की सेवानिवृत्ति के दो साल बाद, वर्तमान अध्यक्ष की नियुक्ति की गई है।
इसके अलावा संसाधनों और जनशक्ति की कमी से लोकपाल पर असर पड़ता है।
आगे की राह
अधिक स्वायत्तता: भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिए, लोकपाल को कार्यात्मक स्वायत्तता और मानव शक्ति की उपलब्धता दोनों के संदर्भ में और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है।
उदाहरण: महत्त्वपूर्ण निर्णयों के मामले में दो-तिहाई बहुमत के प्रावधान को बदलने की आवश्यकता है और राष्ट्र को प्रभावित करने वाले प्रधानमंत्री के असाधारण मामलों पर विचार किया जाना चाहिए।
अधिक पारदर्शिता: जनता का विश्वास जीतने और उत्कृष्ट तरीके से काम करने के लिए पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ाना आवश्यक है।
सरकार द्वारा अपनाए गए स्लोगन ‘लेस गवर्नमेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ का अक्षरश: पालन किया जाना चाहिए।
शक्तियों का विकेंद्रीकरण: किसी एक संस्था या प्राधिकरण में बहुत अधिक शक्ति के संकेंद्रण से बचने के लिए विकेंद्रीकृत संस्थानों की बहुलता की आवश्यकता है।
अधिक स्वतंत्रता: ऐसे संस्थानों को उन लोगों से वित्तीय, प्रशासनिक और कानूनी रूप से स्वतंत्र होना चाहिए, जिनकी जाँच एवं मुकदमा चलाने के लिए उन्हें बुलाया गया है।
लोकपाल की स्वतंत्रता लोकपाल को राजनीतिक प्रभाव से दूर रखने में मदद कर सकती है।
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