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सिविल सेवा के लिए नैतिक मूल्य

Lokesh Pal June 05, 2024 06:30 406 0

संदर्भ 

उपराष्ट्रपति ने अपने आवास पर IAS 2022 बैच के सहायक सचिवों को संबोधित करते हुए सिविल सेवकों से उच्चतम नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखने का आग्रह किया।

उपराष्ट्रपति के संबोधन पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

  • उच्च और समावेशी प्रतिनिधित्व: उन्होंने सभी सामाजिक वर्गों, विशेष रूप से कमजोर, हाशिए पर और वंचित पृष्ठभूमि के लोगों के प्रतिनिधित्व पर ध्यान दिया। 
  • महत्व: सिविल सेवक परिवर्तन के वाहक, गुणवत्तापूर्ण शासन में महत्त्वपूर्ण हितधारक और त्वरित विकास के पथप्रदर्शक हैं।
  • अधिकारियों से अपील
    • सीखना कभी बंद न करें और अपने कौशल को निरंतर अद्यतन करते रहें।
    • सिविल सेवक राजनीतिक व्यवस्थाओं के साथ स्वयं को खुश नहीं कर सकते
    • राष्ट्रवादी, संघवाद दृष्टिकोण अपनाएँ, हमेशा राष्ट्र के हित को सर्वोच्च रखें और कानून के शासन को बनाए रखें।
      • कानून का शासन: इसका अर्थ है कि सभी कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। 
    • सिविल सेवकों को हमेशा पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से परे चीजों को देखना चाहिए।

भारत में आधुनिक सिविल सेवाएँ

  • परिचय: भारत में सिविल सेवा प्रणाली ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अपने लाभ के लिए शुरू की गई थी। वर्ष 1835 में मैकाले की रिपोर्ट लागू होने से ब्रिटिश भारत की सिविल सेवाओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव आए।
    • लॉर्ड कॉर्नवालिस सिविल सेवाओं की स्थापना करने वाले पहले व्यक्ति थे। 
    • नए कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए लॉर्ड वेलेजली ने 1800 ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने अपने संबंधित क्षेत्रों में एक संघीय लोक सेवा आयोग और एक प्रांतीय लोक सेवा आयोग के गठन का प्रस्ताव रखा।
  • अखिल भारतीय सेवाएँ: तीन अखिल भारतीय सेवाएँ हैं – भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा।
    • इनका चयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जिसमें अधिकारियों को विभिन्न राज्य कैडर आवंटित किए जाते हैं। 
    • इसके बाद केंद्र को प्रत्येक राज्य से एक निश्चित प्रतिशत अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मिलते हैं। ये नौकरशाह सीधे केंद्र के लिए कार्य करते हैं। 
    • अखिल भारतीय सेवाएँ भारत के संविधान के अनुच्छेद-312 द्वारा शासित होती हैं।
  • केंद्रीय सिविल सेवाएँ: अन्य सेवाओं को केंद्रीय सिविल सेवाएँ कहा जाता है। ये सेवाएँ केंद्र सरकार के अधीन हैं और इनमें कोई राज्य कैडर प्रणाली नहीं है। 
    • इनमें भारतीय विदेश सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क सेवा तथा कई अन्य सेवाएँ शामिल हैं।
  • लागू नियम: सिविल सेवकों के लिए नियमों के दो सेट हैं – एक अखिल भारतीय सेवाओं (All India Services- AIS) के लिए और दूसरा केंद्रीय सिविल सेवाओं (Central Civil Services- CCS) के लिए। विशेष रूप से डिजाइन किए गए आचरण नियम एक अधिकारी के व्यवहार और आचरण को नियंत्रित करते हैं।
    • AIS आचरण नियम, 1968 तथा  CCS आचरण नियम, 1964 अधिकतर एक जैसे हैं।
    • इन्हें तत्कालीन गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा गठित वर्ष 1962 की समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था।
    • भ्रष्टाचार निवारण संबंधी इस समिति की अध्यक्षता राज्य सभा के सदस्य के. संथानम् ने की थी।

एक सिविल सेवक की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ

  • निष्पक्षता: यह सभी व्यक्तियों या समूहों के साथ समान व्यवहार करने और किसी भी आंतरिक या बाहरी प्रभाव के बिना व्यवहार करने पर जोर देता है। यह एक ऐसा मार्ग है, जो नैतिक उद्देश्य और तर्क के साथ अधिक सुसंगत है।
    • गुणात्मक मूल्य: निष्पक्षता एक गुणात्मक मूल्य है और निर्णयकर्ता से निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होने की अपेक्षा करता है। सिविल सेवकों को समुदाय के साथ मनुष्य के रूप में व्यवहार करने की आवश्यकता है और पक्षपात के लिए कोई जगह नहीं है।
      • जाति, वर्ग, धर्म, लाभ और वरीयताओं की भावनाओं के लिए इस तरह के सिविल सेवकों के तर्क में कोई स्थान  नहीं है।

  • संबद्ध सुधार समितियाँ: सिविल सेवकों के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों के समाधान और सिविल सेवकों के बीच ईमानदारी और अनुशासन बनाए रखने के लिए विभिन्न सुधार समितियाँ गठित की गई हैं, जैसे:
    • संथानम् समिति (1964)
    • भर्ती और चयन प्रक्रियाओं पर अलघ समिति (2001)
    • अखिल भारतीय सेवाओं और अन्य समूह ‘A’ सेवाओं के लिए प्रदर्शन मूल्यांकन, पदोन्नति, पैनल और नियुक्ति पर सुरिंदर नाथ समिति (2003)
    • सेवाकालीन प्रशिक्षण पर युगंधर समिति (2003)
    • होता समिति (2004)
    • दूसरी प्रशासनिक सुधार समिति की रिपोर्ट (2005)

  • सत्यनिष्ठा: यह स्पष्ट नैतिक विश्वास रखने तथा जीवन के सभी स्तरों और अंतःक्रियाओं में आचरण में इनका पालन करने की दृढ़ इच्छाशक्ति का गुण है।
    • यह कार्यों में ईमानदारी और उच्चतम नैतिक मानकों को लगातार बनाए रखने को संदर्भित करता है, जो कमजोर वर्गों के बीच विश्वास बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण: अशोक खेमका, एक IAS अधिकारी, अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं, भ्रष्टाचार को चुनौती देने और सार्वजनिक सेवा में नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिए उन्हें कई बार स्थानांतरित किया गया है।
      • एक लोक सेवक की निर्णय लेने की प्रक्रिया बड़ी संख्या में लोगों के कल्याण से संबंधित होती है, इसलिए उच्च स्तर की सत्यनिष्ठा होना महत्त्वपूर्ण है।

  • निष्पक्षता और ईमानदारी के बीच संबंध: निष्पक्ष आचरण वाला व्यक्ति ईमानदारी के उच्चतम रूप की छवि बनाता है और एक रोल मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है तथा उचित नेतृत्व प्रदान कर सकता है, जिसकी लोक सेवकों से हमेशा अपेक्षा की जाती है। 

  • सहानुभूति और करुणा: इसमें हाशिए पर पड़े समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं और चुनौतियों को समझना और उनका समाधान करना शामिल है।
    • उदाहरण: IAS अधिकारी आर्मस्ट्रांग पेम, जिन्हें मणिपुर में ‘पीपुल्स रोड’ की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है, का काम दूरदराज के इलाके में 100 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने के लिए संसाधन और सामुदायिक समर्थन जुटाना इन मूल्यों को दर्शाता है।
  • समानता: यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से वंचितों को संसाधनों और अवसरों तक उचित पहुँच मिले। 
    • उदाहरण: भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, जो बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को अनिवार्य बनाता है, समानता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य वंचित बच्चों के लिए शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराना है।
  • सामाजिक न्याय: यह असमानता को कम करने और वंचित वर्गों के कल्याण में सुधार करने की प्रतिबद्धता है। 
    • उदाहरण: भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है, जो हाशिए पर रहने वाले समुदायों के विरुद्ध भेदभाव और हिंसा को रोकने की माँग करता है।
  • समावेशिता: यह सुनिश्चित करना कि समाज के सभी वर्ग, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समूह, विकास प्रक्रिया में शामिल हों।
    • उदाहरण: भारत की पहली दृष्टिबाधित महिला IAS अधिकारी प्रांजल पाटिल द्वारा दिव्यांग लोगों के लिए सार्वजनिक सेवाओं में समावेशिता और पहुँच को बढ़ावा देने के प्रयास, इस मूल्य को मूर्त रूप देते हैं।
  • ईमानदारी: यह सच बोलने और व्यवहार में पारदर्शी होने की क्षमता है।
    • उदाहरण: IAS अधिकारी तुकाराम मुंडे, जो अपने कर्तव्यों को पूरा करने में अपनी ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए जाने जाते हैं।
  • निष्पक्षता: यह व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों या हितों के बजाय साक्ष्य और तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता है।
    • उदाहरण: भारत का चुनाव आयोग, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
  • जवाबदेही: यह कार्यों एवं निर्णयों के लिए जिम्मेदारी लेने की क्षमता है।
    • उदाहरण: ग्रेटर मुंबई नगर निगम, जिसने नागरिकों के लिए अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने के लिए एक तंत्र स्थापित किया है।
  • पारदर्शिता: यह जानकारी प्रदान करने और व्यवहार में खुलेपन की क्षमता है।
    • उदाहरण: केंद्रीय सूचना आयोग, जो नागरिकों को सूचना तक पहुँचने का अधिकार प्रदान करके सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
  • विविधता के लिए सम्मान: यह संस्कृति, जातीयता और धर्म में अंतर को महत्त्व देने और सम्मान करने की क्षमता है।
    • उदाहरण: IAS अधिकारी रोहिणी सिंधुरी दासरी, जिन्होंने अपने जिले में विविधता को बढ़ावा देने के लिए एक सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया।
  • व्यावसायिकता: यह आचरण और व्यवहार के उच्च मानकों को बनाए रखने की क्षमता है।
    • उदाहरण: भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी किरण बेदी, जो अपनी व्यावसायिकता और सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती हैं।
  • संविधान और राष्ट्र के प्रति निष्ठा: यह व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों पर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की क्षमता है।
    • उदाहरण: भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जो राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा और इसकी प्रगति और विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।
  • लोक सेवा के प्रति समर्पण: यह ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ जनहित की सेवा करने की क्षमता है।
    • उदाहरण: IAS अधिकारी के. विजयेंद्र पांडियन, जिन्होंने अपने जिले में सार्वजनिक सेवा वितरण को बेहतर बनाने के लिए अथक प्रयास किया।
  • नैतिक व्यवहार और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता: यह सभी कार्यों और निर्णयों में नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों का पालन करने की क्षमता है।
    • उदाहरण: भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी प्रदीप सिंह, जिन्होंने वर्ष 2019 में UPSC सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम रैंक हासिल की और अपनी सफलता का श्रेय नैतिक व्यवहार तथा सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दिया।

सरदार पटेल के अनुसार स्वतंत्र भारत के एक सिविल सेवक की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या होनी चाहिए?

  • समानता: सिविल सेवकों का कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक को सामान समझना ​चाहिए।
  • अनुकूलनशीलता: स्वतंत्र भारत के सिविल सेवकों को प्रशासन के लोकतांत्रिक तरीकों के अनुकूल स्वयं को ढालना होगा।
  • अनुशासन: सिविल सेवकों को अनुशासित होना चाहिए।
  • एक टीम भावना: एक सिविल सेवक को एक टीम भावना विकसित करनी चाहिए। इसका अर्थ है कि टीम या समूह के सदस्यों के बीच गर्व की भावना साझा करना।
    • इसके बिना, सेवा का कोई मतलब नहीं रह जाता। एक सिविल सेवक को सेवा से जुड़े होने को एक गौरवपूर्ण विशेषाधिकार के रूप में समझना चाहिए।

नोलन समिति के नैतिक आचरण के सात सिद्धांत

  • वर्ष 1994 में, ब्रिटेन सरकार ने सार्वजनिक जीवन में मानकों पर समिति की स्थापना की, समिति की अध्यक्षता लॉर्ड नोलन ने की और उसे सार्वजनिक जीवन में व्यवहार के मानकों में सुधार के लिए सिफारिशें करने का कार्य सौंपा गया।
    • समिति की पहली रिपोर्ट में सार्वजनिक जीवन के सात सिद्धांत स्थापित किए गए, जिन्हें ‘नोलन सिद्धांत’ के नाम से भी जाना जाता है।

  • निस्वार्थता: सार्वजनिक पद के धारकों को स्वयं, अपने परिवार या अपने मित्रों के लिए वित्तीय या अन्य लाभ प्राप्त करने हेतु ऐसा नहीं करना चाहिए।
  • ईमानदारी: सार्वजनिक पद के धारकों को अपने आप को किसी बाहरी व्यक्ति या संगठन के प्रति किसी वित्तीय या अन्य दायित्व में नहीं डालना चाहिए, जो उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निष्पादन में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं।
  • वस्तुनिष्ठता: सार्वजनिक नियुक्तियाँ करने, अनुबंध प्रदान करने या पुरस्कार और लाभों के लिए व्यक्तियों की सिफारिश करने सहित सार्वजनिक व्यवसाय करने में, सार्वजनिक पद के धारकों को वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर चुनाव करना चाहिए।
  • जवाबदेही: सार्वजनिक पद के धारक अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं और उन्हें अपने पद के लिए जो भी जाँच उचित हो, उसके लिए खुद को प्रस्तुत करना चाहिए।
  • खुलापन: सार्वजनिक पद के धारकों को अपने द्वारा लिए गए सभी निर्णयों और कार्यों के बारे में यथासंभव खुला होना चाहिए। उन्हें अपने निर्णयों के लिए कारण बताने चाहिए और केवल तभी जानकारी सीमित करनी चाहिए जब व्यापक सार्वजनिक हित स्पष्ट रूप से इसकी माँग करते हों।
  • ईमानदारी: सार्वजनिक पद के धारकों का कर्तव्य है कि वे अपने सार्वजनिक कर्तव्यों से संबंधित किसी भी निजी हित की घोषणा करें और सार्वजनिक हित की रक्षा करने वाले तरीके से उत्पन्न होने वाले किसी भी संघर्ष को हल करने के लिए कदम उठाएँ।
  • नेतृत्व: सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्तियों को नेतृत्व और उदाहरण द्वारा इन सिद्धांतों को बढ़ावा देना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए।

भारत में सिविल सेवकों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • राजनीतिक हस्तक्षेप: सिविल सेवकों को अक्सर कानून या सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करने के बजाय, अपने या अपने सहयोगियों के हित में निर्णय लेने के लिए निर्वाचित अधिकारियों के दबाव का सामना करना पड़ता है। इससे हितों का टकराव पैदा हो सकता है और अधिकारियों के लिए अपना काम प्रभावी ढंग से करना जटिल हो सकता है।
  • कार्य-जीवन संतुलन: सिविल सेवा कॅरियर, खास तौर पर IAS और IPS अधिकारियों के लिए, जो अपनी शुरुआती पोस्टिंग में होते हैं, अक्सर लंबे समय तक कार्य करना और बार-बार तबादले करना शामिल होता है। इससे व्यक्तिगत संबंधों में तनाव आ सकता है और स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन बनाए रखना जटिल हो सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे तथा  संसाधनों की कमी: कई भारतीय जिलों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, उचित बुनियादी ढाँचे और संसाधनों की कमी है। इससे IAS अधिकारियों के लिए सरकारी कार्यक्रमों को लागू करना और सेवाओं को प्रभावी ढंग से वितरित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • सार्वजनिक दबाव और अपेक्षाएँ: सिविल सेवकों से जटिल समस्याओं को हल करने और एक बड़ी और विविध आबादी की जरूरतों को पूरा करने की अपेक्षा की जाती है। यह एक कठिन कार्य हो सकता है और अगर अधिकारी इन अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ हैं तो उन्हें जनता की आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।
  • भ्रष्टाचार: भारत भ्रष्टाचार से जूझ रहा है और सिविल सेवकों पर कभी-कभी भ्रष्ट आचरण में शामिल होने या उन्हें अनदेखा करने का दबाव डाला जाता है। यह उन अधिकारियों के लिए नैतिक दुविधा हो सकती है, जो कानून को बनाए रखना चाहते हैं।
  • लालफीताशाही और नौकरशाही: जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं को नेविगेट करना सिविल सेवकों के लिए समय लेने वाला और निराशाजनक हो सकता है। यह प्रगति को धीमा कर सकता है और परिवर्तन को लागू करना मुश्किल बना सकता है।
  • व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे: सिविल सेवकों, विशेष रूप से आईपीएस अधिकारियों के लिए, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जहाँ उनके कार्य के कारण उन्हें हिंसा या अपराधियों या चरमपंथियों से धमकियों का खतरा हो सकता है। 
  • सीमित स्वायत्तता: सिविल सेवकों द्वारा लिए गए निर्णयों को अक्सर उच्च अधिकारियों से अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जो उनकी स्वायत्तता और स्थानीय आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होने की क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: सिविल सेवकों के लिए स्पष्ट और पारदर्शी जवाबदेही तंत्र की कमी के बारे में चिंताएँ मौजूद हैं, जिससे लापरवाही या कदाचार को संबोधित करना मुश्किल हो जाता है।

सिविल सेवकों पर विनियम

  • सिविल सेवकों के लिए आचार संहिता
    • आचरण नियम: 1930 के दशक में, ‘क्या करें और क्या न करें’ वाले निर्देशों का एक संग्रह ‘आचरण नियम’ शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया था। 
    • अखिल भारतीय सेवा (IAS) नियम: वर्ष 1955 में इन नियमों ने सार-संग्रह को अलग-अलग नियमों में विभाजित कर दिया।
      • संथानम् समिति (1964) ने ऐसे नियमों को काफी व्यापक बनाने की सिफारिश की, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1964 का संस्करण सामने आया। बाद में इन नियमों को अतिरिक्त व्यवहार मानदंडों को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया। 
      • अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के अनुसार, सेवा का प्रत्येक सदस्य निम्नलिखित का पालन करेगा
        • ईमानदारी और सत्यनिष्ठा।
        • राजनीतिक तटस्थता।
        • कर्तव्यों के निर्वहन में योग्यता, निष्पक्षता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बढ़ावा देना।
        • जवाबदेही और पारदर्शिता।
        • जनता के प्रति जवाबदेही, विशेष तौर पर कमजोर वर्ग के प्रति।
        • जनता के साथ शिष्टाचार और अच्छा व्यवहार।
    • मानदंड शामिल करना: आचरण नियमों में कुछ सामान्य मानदंड शामिल हैं, जैसे कि ‘निष्ठा और कर्तव्य के प्रति पूर्ण समर्पण बनाए रखना’ और ‘सरकारी कर्मचारी के अनुचित आचरण’ में शामिल न होना।
      • आचार संहिता का उद्देश्य आम तौर पर सरकारी कर्मचारियों के लिए अवांछनीय समझी जाने वाली विशिष्ट गतिविधियों को सूचीबद्ध करना है। 
      • हाल ही में यह चिंता उत्पन्न हुई है कि स्वीकार्य आचरण की सूची में अधिक ‘सामान्य मानदंड’ जोड़े जाने चाहिए।
  • सिविल सेवकों के लिए आचार संहिता
    • भारत में, सिविल सेवकों के लिए कोई आचार संहिता नहीं है, हालाँकि अन्य देशों में ऐसी संहिताएँ मौजूद हैं। 
    • भारत में कई आचरण नियम हैं, जो विभिन्न प्रकार की सामान्य गतिविधियों पर रोक लगाते हैं। ये आचरण दिशा-निर्देश एक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं, लेकिन ये आचार संहिता नहीं हैं।
  • लोक सेवा विधेयक: कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2007 में प्रस्तावित ‘लोक सेवा विधेयक’ का मसौदा।
    • इससे संबंधित: इसमें सिविल सेवकों की सामान्य अपेक्षाओं का एक समूह स्थापित करने का प्रयास किया गया है, जिसे ‘मूल्यों’ के रूप में जाना जाता है। विधेयक में निम्नलिखित मुख्य ‘मूल्यों’ की परिकल्पना की गई है:
      • संविधान की प्रस्तावना में निहित विभिन्न आदर्शों के प्रति निष्ठा।
      • गैर-राजनीतिक कार्यप्रणाली।
      • लोगों की बेहतरी के लिए सुशासन सिविल सेवा का प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए।
      • वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष रूप से कार्य करने का कर्तव्य।
      • निर्णय लेने में जवाबदेही और पारदर्शिता।
      • उच्चतम नैतिक मानकों का रखरखाव।
      • सिविल सेवकों के चयन में योग्यता को देश की सांस्कृतिक, जातीय और अन्य विविधताओं के अनुरूप मानदंड बनाया जाना।
      • व्यय में मितव्ययिता सुनिश्चित करना और अपव्यय से बचना
      • स्वस्थ और अनुकूल कार्य वातावरण का प्रावधान।
      • कार्यों के निष्पादन में संचार, परामर्श और सहयोग, अर्थात् प्रबंधन में सभी स्तरों के कर्मियों की भागीदारी।
    • अन्य प्रावधान
      • विभिन्न संहिताएँ: मसौदा विधेयक में लोक सेवा संहिता और लोक सेवा प्रबंधन संहिता के प्रावधान भी शामिल हैं, जो अधिक विशिष्ट कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को परिभाषित करते हैं।
      • लोक सेवा प्राधिकरण: इसमें संहिता और ऊपर उल्लिखित मूल्यों के कार्यान्वयन की देखरेख करने के साथ-साथ मूल्यों और संहिता पर सलाह देने की भी परिकल्पना की गई है।
      • दंड का प्रावधान: संहिता का उल्लंघन करने पर संस्थाओं और संगठनों के प्रमुखों द्वारा लगाए जाने वाले वर्तमान बड़े और छोटे दंडों के समान दंड लगाया जाएगा।

लोक सेवकों में अनैतिक व्यवहार को रोकने के तरीके

  • प्रशिक्षण एवं शिक्षा: भारत सरकार ने लोक सेवकों के लिए कई प्रशिक्षण एवं शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे सभी IAS अधिकारियों के लिए नैतिकता और सत्यनिष्ठा पर अनिवार्य ऑनलाइन प्रशिक्षण।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता निर्माण कार्यक्रम (National Programme for Civil Services Capacity Building- NPCSCB) अर्थात् मिशन कर्मयोगी: एक शीर्ष निकाय द्वारा संचालित और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में, इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत सिविल सेवाओं को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है।

    • iGOT कर्मयोगी: यह एक ऑनलाइन शिक्षण मंच है, जिसे सभी सरकारी कर्मचारियों के क्षमता निर्माण के लिए डिजिटल इंडिया स्टैक के एक अभिन्न अंग के रूप में विकसित किया जा रहा है। 
      • यह लगभग 2.0 करोड़ उपयोगकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए ‘किसी भी समय-कहीं भी-किसी भी डिवाइस’ पर शिक्षण प्रदान करेगा, जो अब तक पारंपरिक उपायों के माध्यम से प्राप्त करना असंभव था।

  • आचार संहिता का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता: केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964, भारत में सभी लोक सेवकों से अपेक्षित नैतिक आचरण को रेखांकित करते हैं।
  • निगरानी एवं प्रवर्तन: केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission- CVC) एक स्वतंत्र निकाय है, जो सरकारी एजेंसियों और लोक सेवकों में नैतिक व्यवहार की निगरानी करता है तथा उसे लागू करता है।
  • व्हिसल-ब्लोअर संरक्षण (Whistle-blower Protection): व्हिसल-ब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014, सरकारी एजेंसियों में भ्रष्टाचार या कदाचार की रिपोर्ट करने वाले व्हिसल-ब्लोअर को संरक्षण प्रदान करता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, नागरिकों को सरकारी सूचना तक पहुँच की अनुमति देकर सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
  • कोई राजनीतिक संबद्धता नहीं: सदस्यों को राजनीतिक दलों का हिस्सा बनने या उनकी सहायता करने की अनुमति नहीं है।
    • IAS के नियम 5(1) में कहा गया है कि ‘सेवा का कोई भी सदस्य किसी भी राजनीतिक दल या किसी ऐसे संगठन का सदस्य नहीं होगा अथवा अन्यथा उससे संबद्ध नहीं होगा जो राजनीति में भाग लेता है, न ही वह किसी राजनीतिक आंदोलन या राजनीतिक गतिविधि में भाग लेगा, या सहायता के लिए सदस्यता लेगा, या किसी अन्य तरीके से सहायता करेगा।’
    • यद्यपि सदस्य व्यक्तिगत राजनीतिक विश्वास रख सकते हैं, लेकिन ये नियम इस बात को सीमित करते हैं कि वे किस सीमा तक उन पर कार्य कर सकते हैं।
  • दहेज पर सख्त प्रतिबंध: जहाँ तक ​​नियमों का सवाल है, दहेज लेना और देना दोनों सख्त वर्जित हैं।
    • IAS के नियम 11 (1-A) के अनुसार, ‘सेवा का कोई भी सदस्य- (i) दहेज नहीं देगा, न लेगा, न देने या लेने के लिए प्रेरित करेगा; या (ii) दुल्हन या दूल्हे के माता-पिता या अभिभावक से, जैसा भी मामला हो, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दहेज की माँग नहीं करेगा।”
    • वास्तव में किसी भी सिविल सेवक को मिलने वाले किसी भी ‘बड़े’ उपहार की सूचना देना आवश्यक है।
  • भारी दंड के प्रावधानों का सख्त पालन: उल्लंघन के लिए दो तरह के दंड दिए जा सकते हैं – बड़ा और छोटा। बड़े दंड में सेवा से ‘बर्खास्तगी’ भी शामिल हो सकती है।

निष्कर्ष

आगे बढ़ते हुए, ईमानदारी, सहानुभूति, समानता, सामाजिक न्याय और समावेशिता जैसे आधारभूत मूल्यों का सुदृढ़ीकरण और अभ्यास अधिक प्रभावी तथा न्यायसंगत लोक प्रशासन के विकास के लिए अनिवार्य है। ये मूल्य न केवल समाज के कमजोर वर्गों की सेवा करने में सिविल सेवकों का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि भविष्य के लिए एक मजबूत, पारदर्शी और समावेशी शासन ढाँचा भी सुनिश्चित करते हैं।

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