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न्यायपालिका के भीतर CJI द्वारा चिह्नित किए गए चार मुद्दे

Lokesh Pal February 07, 2024 06:18 121 0

संदर्भ

हाल ही में उच्चतम न्यायालय की स्थापना की 75वीं वर्षगाँठ पर भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कानूनी पेशे के भीतर चार मुद्दों पर प्रकाश डाला।

उच्चतम न्यायालय फाउंडेशन के बारे में

  • यह 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया।
    • भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश हरिलाल जेकिसुनदास कानिया थे।
  • भारत के संविधान को अपनाने और राष्ट्र के एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद 28 जनवरी,1950 को इसका उद्घाटन किया गया।
    • अनुच्छेद-124: यह संविधान में उच्चतम न्यायालय की स्थापना से संबंधित है।
  • वर्ष 1958 में उच्चतम न्यायालय  अपने वर्तमान भवन में स्थानांतरित हो गया। 
    • अनुच्छेद-130: इसमें उच्चतम न्यायालय की सीट का उल्लेख है। (जिसका निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है)
  • वर्तमान संख्या:  भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मुख्य न्यायाधीश और 33 अन्य न्यायाधीश।
    • वर्तमान भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश हैं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश  द्वारा उठाए गए मुद्दों के संदर्भ में:

पहला: स्थगन की संस्कृति और न्याय वितरण पर इसका प्रभाव:

  • स्थगन क्या है?
    • स्थगन का अर्थ है जब अदालत की सुनवाई बाद की तारीख के लिए स्थगित कर दी जाती है।
  • कानूनी ढांचा: सिविल प्रक्रिया संहिता वर्ष1908 के आदेश XVII के अनुसार अदालतें किसी मुकदमे के दौरान किसी पक्ष को तीन बार से अधिक स्थगित नहीं किया जा सकता हैं ऐसा करने के  लिए पक्ष के नियंत्रण के अतिरिक्त वैध कारण की आवश्यकता होती है।
  • इसका प्रभाव: लंबे समय तक स्थगन से मामलों में देरी होती है और लंबित मामलों के संख्या में वृद्धि होती है। जो ऐसी प्रथाओं के दुष्चक्र को जन्म दे सकता है।
    • विधि आयोग की 239वीं रिपोर्ट (वर्ष 2012) ने भी इस पर प्रकाश डाला हैं।

दूसरा: मौखिक तर्कों की अवधि को नियंत्रण में रखना:

    • संवैधानिक पीठ के मामलों पर: अदालत दक्षता को बढ़ावा देने और वकीलों द्वारा दोहराए जाने वाले तर्कों को रोकने के लिए पक्षों को सहयोग करने और मौखिक बहस के लिए एक समय-सारणी स्थापित करने का निर्देश देगी।
    • मध्यम सफलता(Moderate Success): पहले के मामलों जैसे कि अयोध्या शीर्षक विवाद में समय-निर्धारण प्रयासों के बावजूद लंबी सुनवाई हुई।
  • समय सारिणी एवं प्रबंधन: 
      • तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बड़ी संख्या में शामिल पक्षों और वकीलों के कारण पक्षों को सुनवाई के लिए एक समय-सारणी तैयार करने का निर्देश दिया।
      •  भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के नेतृत्व में ईडब्ल्यूएस (EWS-Economically Weaker Section)

 आरक्षण से संबंधित एक संविधान पीठ ने निर्धारित समय प्रबंधन के माध्यम से दक्षता का प्रदर्शन किया।

  • यूएस मॉडल (US Model): यूएस  उच्चतम न्यायालय मौखिक दलीलों को प्रति पक्ष के लिए 30 मिनट तक ही निर्धारित करता है।
    • विधि आयोग 230वीं रिपोर्ट वर्ष 2009: इसने संवैधानिक व्याख्या या जटिल कानूनी मुद्दों से जुड़े मामलों को छोड़कर मौखिक बहस को डेढ़ घंटे तक सीमित करने की सिफारिश की।

तीसरा: लंबी अदालती छुट्टियों के विकल्प:

  • वकीलों और न्यायाधीशों के लिए लचीला समय: एक प्रथा जो कर्मचारियों को उनके काम के घंटे चुनने की अनुमति देती है।
    • इसे वर्ष 2022 में फिलीपींस में महानगर और क्षेत्रीय अदालतों में पेश किया गया था।
  • मलिमथ समिति रिपोर्ट वर्ष 2003: उच्चतम न्यायालय  के कार्य दिवस को तीन सप्ताह तक बढ़ाने की सिफारिश की गई।
    • वर्ष 2014 में उच्चतम न्यायालय  ने इस सिफारिश के आधार पर ग्रीष्मकालीन अवकाश को घटाकर सात सप्ताह कर दिया।

चौथा: पहली पीढ़ी के वकीलों के लिए समान अवसर:

  • पहली पीढ़ी के वकीलों और हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों के लिए समावेशिता के प्रयास सफल होने की संभावना रखते हैं।
  • हालिया प्रगति:
    • कानूनी पेशे में महिलाओं का महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व शामिल है
      • जिला न्यायालय के 36.3% न्यायाधीश।
      • 50% से अधिक जूनियर सिविल जज की भर्ती। 
      • उच्चतम न्यायालय में 41% लॉ क्लर्क उम्मीदवार।
  •  उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) की पहल
    • विविधता को बढ़ावा देना जैसे महिला वकीलों के लिए बेहतर सुविधाएँ।
    • वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम के लिए पहली पीढ़ी के वकीलों को प्राथमिकता देना।
    • सभी कार्य दिवसों पर वीडियो कॉन्फ्रेंस में उपस्थित होने की अनुमति।

संबंधित मुद्दों का न्यायपालिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

किए गए महत्वपूर्ण सुधार:

वैकल्पिक विवाद समाधान विधियों का परिचय: समय पर न्याय वितरण सुनिश्चित करने के लिए लोक अदालतों, ग्राम न्यायालयों और ऑनलाइन विवाद समाधान को नियोजित किया गया है।

  • ग्राम न्यायालयों के लिए एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल स्थापित किया गया है जो राज्यों/उच्च न्यायालयों को मासिक रूप से मामलों के निपटान सहित प्रासंगिक डेटा अपलोड करने की अनुमति देता है।
  • जघन्य अपराधों, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, बच्चों आदि से जुड़े मामलों में त्वरित न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट जैसी पहल शुरू की गई है।

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT- Information and Communication Technology) को बढ़ावा देने के माध्यम:

  • वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यवाही संचालित करने के लिए वर्चुअल कोर्ट सिस्टम (Virtual Court System) की शुरूआत।
  • परीक्षण के आधार पर उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में ई-सेवा (E-Sewa Kendras) केंद्र स्थापित किए गए हैं जो ई-कोर्ट(E-Court) परियोजना के तहत सुविधाओं तक केंद्रीकृत पहुंच प्रदान करते हैं जिससे वादियों (litigants) को मामले की स्थिति की जानकारी और अदालत के फैसले और आदेश प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • राष्ट्रीय सेवा और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया की ट्रैकिंग (National Service and Tracking of Electronic Process- NSTEP) प्रणाली एक केंद्रीकृत प्रक्रिया सेवा ट्रैकिंग एप्लिकेशन और जमानतदारों के लिए एक मोबाइल ऐप के माध्यम से सम्मन, नोटिस और प्रक्रियाओं की त्वरित वितरण की सुविधा प्रदान करती है जिससे देरी कम होती है।
  • सेवा के रूप में सुरक्षित पहुँच योग्य और सुगम्य वेबसाइट (S3 WAAS) वेबसाइट, ई-समिति के लिए एक दिव्यांग-अनुकूल वेबसाइट, अंग्रेजी और हिंदी सहित 13 क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध है।
  • न्यायिक प्रशासन की विश्वसनीयता: मुकदमे की प्रतीक्षा में लंबित मामलों के कारण कानूनी मामलों को सुलझाने में वर्षों या दशकों तक का लंबा विलंब हो सकता है।
  • आर्थिक लागत: लंबी अदालती कार्यवाही वादियों (litigants) पर वित्तीय बोझ डालती हैजिससे कानूनी लड़ाई की लागत बढ़ जाती है।
  • व्यावसायिक गतिविधियों पर बोझ: न्याय प्रणाली की अक्षमताएँ व्यावसायिक संचालन में बाधा डाल सकती हैं आर्थिक गतिविधियों में देरी या बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
  • सार्वजनिक विश्वास कम होना: लंबी देरी और सीमित कानूनी सहायता कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास कम कर सकती है।

आगे की राह:

  • नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता: निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नियुक्ति प्रणाली में बदलाव।
  • विचाराधीन कैदियों के लिए फास्टट्रैक निर्णय: निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ गलत आरोपों और दंड को रोकने के लिए जांच में सुधार की आवश्यकता है
  • सर्वोत्तम समय उपयोग: कानूनी कार्यवाही में निर्णय देने के लिए समय सीमा होनी चाहिए।
  • भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण का निर्माण: अदालत प्रणाली के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए इसका निर्माण।
  • नवीन दृष्टिकोणों का परिचय: न्याय प्रणाली में बड़े पैमाने पर बैकलॉग को संबोधित करने के लिए। 
  • निचली न्यायपालिका पर ध्यान: जिला अदालतों के बेहतर कामकाज के लिए सुधार आवश्यक है, जो चिंता का प्राथमिक क्षेत्र है।

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