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चौथी वैश्विक सामूहिक प्रवाल विरंजन घटना

Lokesh Pal March 11, 2024 06:34 104 0

संदर्भ

आस्ट्रेलिया में हवाई सर्वेक्षण के दौरान ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क (Great Barrier Reef  Marine Park) के दो-तिहाई हिस्से में व्यापक प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) घटना देखी गई।

संबंधित तथ्य

  • यह सर्वेक्षण रीफ अथॉरिटी (Reef Authority) द्वारा ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्यूट ऑफ मरीन साइंस (Australian Institute of Marine Science- AIMS) के साथ संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।
  • सबसे अधिक प्रभावित स्थान: कोरल ब्लीचिंग का प्रभाव 300 से अधिक तटवर्ती, मध्य शेल्फ एवं अपतटीय चट्टानों में देखा गया, जो कि कुकटाउन (Cooktown) के केप मेलविले (Cape Melville) से लेकर मरीन पार्क की दक्षिणी सीमा में बुंडाबर्ग (Bundaberg) के उत्तर तक फैली हुई थी।
    • दक्षिणी ग्रेट बैरियर रीफ प्रवाल विरंजन से सबसे अधिक प्रभावित था।
  • कारण: सर्वेक्षणों के परिणाम ग्रीष्म ऋतु के दौरान उत्पन्न हीट स्ट्रेस के पैटर्न के अनुरूप हैं, जिसमें लंबे समय तक मरीन पार्क में समुद्र की सतह का तापमान औसत से ऊपर देखा गया है।
  • वर्तमान प्रवाल विरंजन घटना: यह पिछले आठ वर्षों में पाँचवीं घटना है।
  • कोरल रीफ वॉच कार्यक्रम ने अनुमान लगाया है कि यह पृथ्वी पर चौथी वैश्विक सामूहिक प्रवाल विरंजन घटना हो सकती है, जिसमें हिंद, प्रशांत एवं अटलांटिक महासागरों में स्थित प्रवाल चट्टानों में विरंजन के गंभीर संकेत दिखाई दे सकते हैं।

कोरल (Coral)

  • प्रवाल, निडेरिया संघ (Phylum Cnidaria) के कोलोनियल समुद्री अकशेरुकी जीव हैं।
  • पॉलिप (Polyp): एक व्यक्तिगत प्रवाल को पॉलिप के रूप में जाना जाता है। पॉलिप एक थैली जैसा जीव है और ये एक एक्सोस्केलेटन (Exoskeleton) जैसी संरचना का निर्माण करते हैं। पॉलिप्स पौधे जैसी कोशिकाओं के साथ सहजीवी संबंध बनाते हैं, जिन्हें जूक्सांथेलाई (Zooxanthellae) या एककोशिकीय डाइनोफ्लैजेलेट्स (Unicellular Dinoflagellates) कहा जाता है।

प्रवालों के विकास के लिए आवश्यक शर्तें

  • उथला जल स्तर: प्रवालों को अपनी वृद्धि के लिए सूर्य के प्रकाश एवं साफ उथले जल स्तर की आवश्यकता होती है।
  • स्वच्छ जल: स्वच्छ जल सूर्य के प्रकाश को जल के अंदर आने देता है। जब जल अपारदर्शी होता है तो प्रवाल अच्छी तरह नहीं पनप पाते हैं।
  • गर्म जल: प्रवाल संरचना को स्थायी बने रहने के लिए गर्म जल की आवश्यकता होती है। विभिन्न समुद्री क्षेत्रों में रहने वाले विभिन्न प्रवाल, जल के 20-32 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना कर सकते हैं।
  • लवणता: प्रवालों को जीवित रहने के लिए खारे जल (लवणता लगभग 27 ppt) की आवश्यकता होती है एवं नमक तथा जल के अनुपात में एक निश्चित संतुलन की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि प्रवाल उन क्षेत्रों में नहीं पनपते हैं जहाँ नदियाँ अत्यधिक मात्रा में ताजा जल समुद्र में प्रवाहित करती हैं।

बैरियर रीफ (Barrier Reef)

  • बैरियर रीफ्स तट से दूर एवं तट के समानांतर एक टूटी तथा अनियमित रिंग के रूप में विकसित होती हैं। ये खुले, अक्सर गहरे जल के लैगून द्वारा अपने निकटवर्ती स्थल खंड से अलग होती हैं।
  • इन्हें तीन प्रवाल भित्तियों में सबसे बड़ी, सबसे ऊँची तथा चौड़ी रीफ माना जाता है।

ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ (GBR)

  • स्थान: यह ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट पर अवस्थित है।
  • GBR 2,300 किलोमीटर तक फैला है तथा लगभग 3,000 अलग-अलग चट्टानों से बना है, इसमें दुनिया का सबसे बड़ा प्रवाल चट्टानों का संग्रह है, जिसमें 400 प्रकार के प्रवाल हैं।
  • इसे वर्ष 1981 में विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site)  के रूप में नामांकित किया गया था।

प्रवाल चट्टानें (Coral Reefs)

  • प्रवाल चट्टानें तब बनती हैं जब प्रवाल कॉलोनी में एक साथ रहने वाले हजारों पॉलिप्स इसके नीचे कैल्शियम कार्बोनेट एक्सोस्केलेटन का स्राव करते हैं। समय के साथ, कई प्रवाल कॉलोनियों के कंकाल मिलकर प्रवाल चट्टान की संरचना का निर्माण करते हैं।
  • प्रवाल भित्तियों कोसमुद्री वर्षावनभी कहा जाता है क्योंकि वे पृथ्वी पर सबसे विविध पारिस्थितिकी तंत्रों में से कुछ का निर्माण करते हैं।
  • वितरण: ये ज्यादातर 30º उत्तरी एवं 30º दक्षिणी अक्षांशों के बीच उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय जल में पाए जाते हैं।
    • उदाहरण: इंडोनेशियाई/फिलीपींस द्वीपसमूह में प्रवाल विविधता के साथ दुनिया की सबसे बड़ी सघनता है।
    • भारत में, ये अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, कच्छ की खाड़ी एवं मन्नार की खाड़ी के आसपास मौजूद हैं।
  • भूमिका: यह जूक्सांथेला जैसे- मछली, अकशेरुकी, शैवाल एवं सूक्ष्मजीवों के अलावा कई समुद्री प्रजातियों के लिए आश्रय या घर के रूप में कार्य करता है।
  • प्रवाल चट्टान/कोरल रीफ रिलीफ (Coral Reef Relief) के प्रकार
    • फ्रिंजिंग रीफ (तटीय चट्टानें): यह एक महाद्वीपीय तट या द्वीप से जुड़ी एक प्रवाल संरचना होती है, जिसे कभी-कभी एक संकीर्ण, उथले लैगून द्वारा अलग किया जाता है जिसे बोट चैनल (Boat Channel) के रूप में जाना जाता है।
    • अवरोधक चट्टान: बैरियर रीफ्स तट से दूर एवं तट के समानांतर एक टूटी तथा अनियमित रिंग के रूप में विकसित होती हैं। ये खुले, अक्सर गहरे जल के लैगून द्वारा अपने निकटवर्ती स्थल खंड से अलग होते हैं।
    • एटाॅल चट्टानें: ये वे चट्टानें हैं, जो मोटे तौर पर गोलाकार होती हैं एवं एक बड़े केंद्रीय लैगून को घेरती हैं।
      • यदि किसी ज्वालामुखीय द्वीप के चारों ओर एक फ्रिंजिंग रीफ बनती है, जो समुद्र तल से पूरी तरह से नीचे की ओर बढ़ती जाती है। हालाँकि प्रवाल ऊपर की ओर बढ़ता रहता है, तो एक एटाॅल बनता है।

  • कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र के लाभ
    • तटीय सुरक्षा: प्रवाल चट्टानें, सॉक्स तरंग के अवशोषक के रूप में कार्य करती हैं एवं तूफान तथा कटाव से तटरेखाओं को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
    • रोजगार के अवसर: यह मछली पकड़ने के उद्योग को बढ़ावा देने वाले स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार प्रदान करता है।
    • पर्यटन के अवसर: यह गोताखोरी एवं स्नॉर्कलिंग आदि जैसी मनोरंजक गतिविधियों के अवसर प्रदान करता है।
    • भोजन और दवाओं का स्रोत: ये भोजन एवं नई दवाओं का भी स्रोत हैं क्योंकि यह मछलियों तथा अन्य समुद्री जीवों को आकर्षित करते हैं।
      • ये पारिस्थितिकी तंत्र दुनिया भर के स्वदेशी लोगों के लिए सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।

कारण

  • तापमान: प्रवाल केवल एक विशिष्ट तापमान सीमा के अंदर ही जीवित रह सकते हैं तथा ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रवालों पर दबाव पड़ने के कारण वैश्विक समुद्री सतह का तापमान बढ़ रहा है।
  • सबएरियल एक्सपोजर (Subaerial Exposure): निम्न ज्वार, समुद्र के स्तर में गिरावट एवं टेक्टॉनिक उत्थान के परिणामस्वरूप बाहरी वातावरण में प्रवाल का अचानक संपर्क हो सकता है। वायुमंडलीय परिस्थितियों में अचानक परिवर्तन के कारण अक्सर भूमिगत संपर्क के परिणामस्वरूप ब्लीचिंग होती है तथा प्रवाल की मृत्यु हो जाती है।
  • अवसादन: तटीय निर्माण एवं खनन जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप कटाव की उच्च दर हो सकती है, जल में तलछट की मात्रा बढ़ सकती है एवं प्रकाश संश्लेषण की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हो सकती है।

अकार्बनिक पोषक तत्त्व: अमोनिया एवं नाइट्रेट जैसे अकार्बनिक पोषक तत्त्वों में वृद्धि के कारण जूक्सांथेला 2-3 गुना बढ़ जाता है, जो कम प्रवाल प्रतिरोध तथा रोग संवेदनशीलता जैसे माध्यमिक प्रतिकूल प्रभाव पैदा कर सकता है।

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