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भारत में कृषि विपणन संबंधी रूपरेखा

Lokesh Pal December 04, 2024 03:09 67 0

संदर्भ

केंद्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय द्वारा तैयार ‘कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीतिगत फ्रेमवर्क’ को सार्वजनिक टिप्पणियों तथा सुझावों के लिए जारी किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • कृषि कानूनों को निरस्त करना: भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान तीन कृषि कानून लाकर कृषि सुधारों की शुरुआत करने की कोशिश की, लेकिन किसानों के विरोध के कारण अंततः उन्हें निरस्त करना पड़ा।
  • अधिकार क्षेत्र: कृषि राज्य सूची का विषय है, जबकि कृषि व्यापार समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है।

कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीतिगत फ्रेमवर्क के मसौदे में प्रमुख प्रस्ताव

  • सशक्त कृषि विपणन सुधार समिति का गठन
    • GST अधिकार प्राप्त राज्य वित्त मंत्रियों की समिति के समान एक पैनल बनाने का सुझाव दिया गया।
    • संरचना: राज्य कृषि मंत्री, बारी-बारी से इसकी अध्यक्षता करेंगे।
    • पंजीकरण: सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकरण किया गया जाएगा।
    • समिति का गठन: समिति का गठन गैर-सांविधिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से किया जाना चाहिए।
    • संचालन: त्रैमासिक बैठकें या आवश्यकतानुसार; एक स्थायी सचिवालय प्रस्तावित किया गया है।
  • समिति के लक्ष्य
    • राज्यों को राज्य APMC अधिनियमों में सुधार प्रावधानों को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
    • नियमों को अधिसूचित करना तथा एकल लाइसेंसिंग/पंजीकरण प्रणाली और एकल शुल्क के माध्यम से कृषि उपज के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की दिशा में आगे बढ़ने के लिए राज्यों के बीच आम सहमति बनाना।
  • राज्यों के लिए प्रस्तावित सुधार
    • आदर्श कृषि उत्पाद विपणन अधिनियम, 2003 को अपनाना।
    • 12 चिह्नित सुधार क्षेत्रों का कार्यान्वयन, जिनमें शामिल हैं:
      • निजी थोक बाजार।
      • प्रसंस्करणकर्त्ता, निर्यातक तथा खुदरा विक्रेताओं द्वारा सीधे प्राथमिक उत्पादक से खरीदारी करना।
      • गोदामों और कोल्ड स्टोरेज के लिए ‘डीम्ड मार्केट यार्ड’ का दर्जा देना।
      • राज्यों में एकल-समय बाजार शुल्क और एकीकृत व्यापार लाइसेंस की सुविधा प्रदान करना।
  • किसानों के लिए मूल्य बीमा योजना: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के समान मूल्य आश्वासन तंत्र का प्रस्ताव किया गया, जिसका उद्देश्य है:-
    • मूल्य में गिरावट के दौरान किसानों की आय को स्थिर करना।
    • आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना।
    • कृषि क्षेत्र में ऋण प्रवाह को बढ़ाना।

भारतीय किसानों के लिए अपनी उपज बेचने के अवसर

  • फार्मगेट या स्थानीय बाजार (हाट): किसान सीधे गाँव के एग्रीगेटर्स या स्थानीय बाजारों में उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं, लेकिन कीमत आमतौर पर खरीदार द्वारा तय की जाती है।
  • कृषि उपज मंडी समिति (APMC) थोक मंडी: किसान APMC मंडियों में निजी व्यापारियों को अपनी उपज बेच सकते हैं, जहाँ कीमतें भी खरीदारों द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
  • सरकारी एजेंसियाँ: सरकारी खरीद एजेंसियाँ ​​उन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करती हैं, जिनकी उपज विशिष्ट गुणवत्ता मानकों को पूरा करती है, जिससे मूल्य का आधार उपलब्ध होता है।

प्रस्तावित मसौदा नीति का महत्त्व 

  • बाजार विखंडन को संबोधित करना: यह प्रस्ताव राज्य के APMC अधिनियमों के कारण वैधानिक रूप से गठित बाजार समिति द्वारा प्रबंधित और विनियमित अधिसूचित बाजार क्षेत्र के नाम पर राज्य के अंतर्गत होने वाले बाजारों के विखंडन को संबोधित करने का प्रयास करता है।
  • विचारों में मतभेद को दूर करना: कृषि विपणन पर केंद्र, राज्यों तथा किसानों के बीच आपसी मुद्दों का समाधान करने का प्रयास किया गया है।

कृषि विपणन के बारे में

  • कृषि विपणन में कृषि उपज को खेतों से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने से संबंधित सभी गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
    • इसमें संग्रहण, ग्रेडिंग, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और बिक्री शामिल हैं।
  • भारत में कृषि विपणन कृषि उपज विपणन समिति (APMC) अधिनियमों द्वारा शासित होता है, जिसका प्रशासन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

कृषि विपणन के बढ़ते महत्त्व के कारण

  • विपणन योग्य अधिशेष में वृद्धि: उन्नत प्रौद्योगिकी तथा बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों के कारण कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं का अधिशेष बढ़ गया है।
    • इस अधिशेष को प्रबंधित करने के लिए कुशल तथा उत्तरदायी बाजार आवश्यक हैं।
  • बागवानी फसलों के लिए बाजार आवश्यकताएँ: उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों की ओर विविधीकरण, जो भारी और जल्दी खराब होने वाली होती हैं, आपूर्ति शृंखला में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उचित हैंडलिंग और भंडारण की आवश्यकता होती है।
  • मूल्य खोज और मूल्य संकेत: कृषि विपणन में विभिन्न चरणों में कीमतों की खोज करना और विशेष रूप से उपभोक्ताओं से किसानों तक मूल्य संकेतों को प्रसारित करना शामिल है।
    • मूल्य संकेत किसानों को बाजार के रुझान को समझने में मदद करते हैं तथा उन्हें क्या उगाना है, कब बेचना है तथा किस कीमत पर बेचना है, इस बारे में निर्णय लेने में मदद करते हैं, जिससे उचित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित होता है तथा उत्पादन माँग के अनुरूप होता है।
  • शहरी आबादी को भोजन उपलब्ध कराना: बढ़ते शहरीकरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी केंद्रों तक खाद्यान्न पहुँचाने के लिए कुशल कृषि विपणन प्रणालियों की आवश्यकता होती है, ताकि शहरों में खाद्यान्न की बढ़ती माँग को पूरा किया जा सके।

कृषि विपणन में APMC तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की भूमिका

  • कृषि उपज मंडी समितियाँ (APMC)
    • बाजार विनियमन: APMC की स्थापना कृषि उपज के विपणन को विनियमित करने, निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करने तथा बिचौलियों द्वारा शोषण के खिलाफ सुरक्षा के लिए की गई थी।
    • मूल्य निर्धारण: APMC नीलामी के माध्यम से पारदर्शी मूल्य निर्धारण की सुविधा प्रदान करती हैं, जिससे किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलती है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: ये बाजार यार्ड के भीतर गोदामों, कोल्ड स्टोरेज तथा परिवहन जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे प्रदान करती हैं।
    • गुणवत्ता मानक: APMC बिक्री से पहले उपज का निरीक्षण तथा ग्रेडिंग करके गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करती हैं।
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955
    • मूल्य नियंत्रण तथा विनियमन: इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति तथा वितरण को विनियमित करना है ताकि उचित मूल्य पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
      • यह सरकार को स्टॉकहोल्डिंग सीमा लगाने, कीमतों को नियंत्रित करने और विशेष रूप से कमी या आपात स्थिति के दौरान आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में आवश्यक वस्तुओं की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है।
    • बाजार स्थिरीकरण: खाद्यान्न, दालों तथा खाद्य तेलों जैसी आवश्यक वस्तुओं को विनियमित करके, ECA बाजार की कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है तथा उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    • ECA से संबंधित मुद्दे: ECA मूल्य नियंत्रण तथा स्टॉकहोल्डिंग प्रतिबंध लगाकर निजी क्षेत्र की भागीदारी को सीमित करता है, जिससे बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा आती है।
      • यह अधिशेष अवधि के दौरान अनावश्यक नियंत्रण लागू करके मूल्य अस्थिरता का कारण भी बनता है, जिससे बाजार संचालित मूल्य निर्धारण में बाधा उत्पन्न होती है।

भारत में कृषि विपणन के समस्या क्षेत्र

  • खंडित बाजार संरचना: भारत में कृषि बाजारों को राज्य-विशिष्ट कृषि उपज बाजार समिति अधिनियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो विपणन प्रणाली को खंडित करते हैं।
    • देश भर में लगभग 2,500 APMC-विनियमित थोक बाजार हैं।
    • किसानों को अक्सर अपनी उपज निर्धारित APMC मंडियों में बेचने के लिए बाध्य किया जाता है, जिससे व्यापक बाजार तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
  • विनियामक बाधाएँ: उच्च बाजार शुल्क, उपकर शुल्क और लाइसेंसिंग आवश्यकताएँ लेन-देन लागत को बढ़ाती हैं।
    • विभिन्न राज्यों के अलग-अलग नियम हैं, जिससे एकीकृत राष्ट्रीय बाजार के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • APMC समस्याएँ: भारत में APMC प्रणाली को APMC बाजारों में व्यापारियों की सीमित संख्या जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा कम हो रही है, व्यापारियों के बीच गुटबाजी हो रही है तथा कमीशन शुल्क और बाजार शुल्क के रूप में अनुचित कटौती हो रही है।
    • उदाहरण: हरियाणा और पंजाब में, FCI द्वारा खरीदे गए गेहूँ और गैर-बासमती चावल के लिए मंडी शुल्क तथा ग्रामीण विकास शुल्क, निजी व्यापारियों द्वारा खरीदे गए बासमती चावल के शुल्क से चार से छह गुना अधिक है।
  • छोटी एवं सीमांत जोतें: खंडित भूमि स्वामित्व से उत्पादन तथा परिवहन लागत बढ़ जाती है, जिससे विपणन मार्जिन कम हो जाता है।
    • वर्ष 2022 तक, भारत में 121 मिलियन कृषि जोतें थीं; इनमें से 99 मिलियन जोतें छोटी और सीमांत (87%) हैं।
  • अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ: शीत भंडारण सहित उचित भंडारण की कमी के कारण किसानों को अपनी उपज तुरंत, अक्सर कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • अधिकांश मौजूदा भंडारण सुविधाएँ बहुत खराब स्थिति में हैं, जिससे कृषि उपज की गुणवत्ता प्रभावित होती है और फसल कटाई के बाद नुकसान होता है।
      • उदाहरण: NABCONS द्वारा अखिल भारतीय फसल कटाई उपरांत हानि सर्वेक्षण, 2022 से पता चलता है कि देश को 1.53 ट्रिलियन रुपये ($18.5 बिलियन) की खाद्यान्न हानि हुई है, जिसमें 12.5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) अनाज, 2.11 MMT तिलहन और 1.37 MMT दालें शामिल हैं।
  • खराब परिवहन अवसंरचना: सभी मौसमों के लिए उपयुक्त सड़कें, जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए उपयुक्त वाहनों और मंडियों तक संपर्क सड़कों की कमी होने के कारण परिवहन लागत बढ़ जाती है।
  • ऋण तक सीमित पहुँच: किसान किफायती संस्थागत ऋण तक सीमित पहुँच के कारण साहूकारों से उच्च ब्याज दर पर ऋण लेते हैं, जिससे उन्हें ऋण चुकाने के लिए समय से पहले अपनी उपज बेचनी पड़ती है।
    • उदाहरण: केवल 30% किसान औपचारिक स्रोतों से उधार लेते हैं, जबकि लगभग 50% छोटे और सीमांत किसान किसी भी स्रोत से उधार लेने में असमर्थ हैं।
  • बाजार की जानकारी का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और सीमित ICT पहुँच के कारण किसान बाजार कीमतों से अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे वे बिचौलियों पर निर्भर हो जाते हैं।
  • अपर्याप्त विपणन अनुसंधान: विपणन, भंडारण तथा पैकेजिंग में अनुसंधान की तुलना में उत्पादन पर अधिक जोर देने से पुरानी तकनीकें और उपभोक्ता वरीयताओं की अपर्याप्त समझ उत्पन्न होती है।
  • किसान संगठनों का अभाव: किसान व्यक्तिगत रूप से कार्य करते हैं, जिससे लागत बढ़ती है और सौदेबाजी की शक्ति कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप संगठित व्यापारियों द्वारा उनका शोषण होता है।
    • किसानों को अक्सर अपनी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता है।
      • उदाहरण: दूध बेचने वाले डेयरी किसानों को अमूल जैसी सहकारी समितियों के सदस्यों की तुलना में कम कीमत मिल सकती है, जो बेहतर दरों पर समझौता करते हैं और भंडारण सहायता प्रदान करते हैं।

कृषि विपणन में किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) की भूमिका

  • सौदेबाजी की शक्ति: FPOs किसानों को उपज को एकत्रित करके बेहतर कीमतों पर सौदेबाजी करने में सक्षम बनाते हैं।
  • बाजार तक पहुँच: वे छोटे किसानों को स्थानीय तथा राष्ट्रीय दोनों बाजारों तक बेहतर पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें बिक्री के अवसरों को बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • मूल्य संवर्द्धन: FPO अक्सर मूल्य संवर्द्धन प्रसंस्करण में निवेश करते हैं, जैसे पैकेजिंग, ग्रेडिंग या कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण, जिससे उत्पादों की विपणन क्षमता बढ़ती है और किसानों की आय में सुधार होता है।
  • प्रौद्योगिकी तथा ज्ञान साझा करना: FPO किसानों को उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों, बाजार के रुझान और सूचना तक पहुँच प्रदान करते हैं।
  • क्रेडिट पहुँच: वित्तपोषण तथा ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।

भारत में कृषि विपणन में सुधार के लिए सरकारी उपाय

  • राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) का शुभारंभ: वर्ष 2016 में सरकार ने e-नाम (e-NAM) लॉन्च किया, जिससे किसान अपनी उपज को विभिन्न बाजारों में बड़ी संख्या में खरीदारों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पारदर्शी तरीके से बेच सकेंगे।
  • कृषक उत्पादक संगठनों का गठन और संवर्द्धन: भारत सरकार ने वर्ष 2027-28 तक 10,000 नए FPOs बनाने और बढ़ावा देने के लिए ‘10,000 किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के गठन और संवर्द्धन’ की केंद्रीय क्षेत्र योजना को मंजूरी दी है।

राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM)

  • e-NAM एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है, जिसे भारत भर में मौजूदा कृषि उपज बाजार समिति (APMC) मंडियों को जोड़ने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाया जा सके।
  • लॉन्च किया गया: e-NAM को आधिकारिक तौर पर 14 अप्रैल, 2016 को लॉन्च किया गया था।
  • वित्तपोषित: यह प्लेटफॉर्म पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है।
  • कार्यान्वित: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत लघु कृषक कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (Small Farmers Agribusiness Consortium- SFAC)।
  • उद्देश्य: e-NAM का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धी मूल्य खोज के लिए एक ऑनलाइन मंच प्रदान करके किसानों के लिए बेहतर विपणन अवसर प्रदान करना है।

  • कृषि अवसंरचना कोष (AIF): सरकार ने ब्याज अनुदान और वित्तीय सहायता के माध्यम से भंडारण और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों जैसी फसलोत्तर अवसंरचना परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए 1,00,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ कृषि अवसंरचना कोष की स्थापना की है।
  • कृषि विपणन अवसंरचना (AMI) योजना: कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (Integrated Scheme for Agricultural Marketing- ISAM) के तहत, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों और वेयरहाउस के निर्माण का समर्थन करती है, जिससे भंडारण क्षमता बढ़ जाती है।
    • लाभार्थी की श्रेणी के आधार पर परियोजना पूंजीगत लागत पर 25% से 33.33% तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है।
  • निजी बाजारों की स्थापना: 120 से अधिक निजी बाजार स्थापित किए गए हैं, जो किसानों को वैकल्पिक विपणन चैनल प्रदान करते हैं और उनकी उपज के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करते हैं।
  • मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018: कृषि उपज विपणन समितियों के अधिकार क्षेत्र से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बाहर रखा गया है।
    • इसमें विवाद समाधान के लिए प्रावधान शामिल हैं, जैसे सौदेबाजी, सुलह, तथा विवाद निपटान अधिकारी को रेफर करना।
  • आदर्श कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्द्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2017
    • कृषि उपज तथा पशुधन दोनों के लिए एक ही लाइसेंस के साथ एकीकृत कृषि बाजार बनाने के लिए APMC अधिनियम, 2003 को प्रतिस्थापित करता है।
    • प्रत्येक 80 किलोमीटर पर विनियमित थोक कृषि बाजारों की स्थापना को अनिवार्य बनाता है।
    • निजी बाजार यार्ड, गोदामों और कोल्ड स्टोरेज को विनियमित कृषि-बाजारों के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है।
  • ऑपरेशन ग्रीन्स: इसका उद्देश्य इन फसलों की कीमत में अस्थिरता को कम करने के लिए टमाटर, प्याज और आलू की फसलों की आपूर्ति को स्थिर करना है।

आगे की राह

  • आर्थिक सर्वेक्षण के सुझावों का प्रभावी कार्यान्वयन: वर्ष 2024 के आर्थिक सर्वेक्षण में इंगित किया गया कि ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) को लागू करना, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को समर्थन देना और सहकारी समितियों को कृषि विपणन में भाग लेने में सक्षम बनाना, बाजार के बुनियादी ढाँचे को बढ़ा सकता है और बेहतर मूल्य खोज की सुविधा प्रदान कर सकता है।
  • राज्यों को वित्तीय प्रोत्साहन: नीति आयोग ने कृषि सुधारों को लागू करने के लिए राज्यों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने के 15वें वित्त आयोग के विचार को पुनर्जीवित किया है।
    • वित्त आयोग ने राज्यों द्वारा कृषि सुधारों के कार्यान्वयन के लिए प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन की सिफारिश की थी।
  • e-NAM सुधार
    • व्यापारियों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने तथा अलग-अलग लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए सभी APMC में एकीकृत e-NAM ट्रेडिंग लाइसेंस लागू करना।
    • प्लेटफॉर्म में अधिक APMC को एकीकृत करके, क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाकर तथा किसानों को बेहतर मूल्य खोज के लिए खरीदारों के बड़े पूल तक पहुँच प्रदान करके e-NAM कवरेज का विस्तार करना।
    • अधिक किसानों को बिचौलियों पर निर्भर रहने के बजाय सीधे e-NAM के माध्यम से अपनी उपज बेचने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • नमूना आधारित बिक्री सक्षम: किसानों को अपनी पूरी उपज ले जाने के बजाय, प्रासंगिक गुणवत्ता प्रमाणीकरण के साथ, मंडी में अपनी उपज का एक नमूना लाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
    • इससे परिवहन लागत में बचत होगी और APMC में भीड़ कम होगी, साथ ही परिवहन के लिए तैयार वर्गीकृत उपज प्राप्त होने से व्यापारियों को लाभ होगा।
  • APMC के पास भंडारण और बैंकिंग सुविधाएँ: APMC के पास बैंकिंग तथा भंडारण सुविधाएँ प्रदान करना, साथ ही कटाई के बाद के महीनों में संकटपूर्ण स्थिति के दौरान बिक्री से बचने के लिए गोदाम रसीदों के आधार पर ऋण भी उपलब्ध कराना।

निष्कर्ष

चूँकि कृषि राज्य सूची का विषय है, इसलिए इसमें सुधारों हेतु चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। देश के कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए केंद्र, राज्यों और किसानों के बीच आम सहमति बनाने तथा सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को सम्मिलित करने की आवश्यकता है।

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