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भारत में बंधुत्व (fraternity in india)

Samsul Ansari January 30, 2024 06:09 611 0

संदर्भ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख द्वारा हाल ही में लोगों के मध्य ‘भाईचारे’ को बढ़ावा देने के महत्त्व पर जोर दिया गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश के नागरिकों द्वारा स्वयं के लिए संविधान का निर्माण किया गया। अतः इसके मूल्यों को बनाए रखने और उनके पालन की भी आवश्यकता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भाईचारा।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भाईचारा-संवैधानिक प्रावधान, महत्त्व, चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

बंधुत्व के बारे में

  • यह एक राष्ट्र के नागरिकों के मध्य भाईचारे और एकजुटता के विचार को संदर्भित करता है तथा व्यक्तियों के बीच एकता, सामाजिक सद्भाव तथा आपसी सम्मान की भावना उत्पन्न करता है।
  • अम्बेडकर : अंबेडकर के अनुसार, बंधुत्व भारतीय समाज में व्यक्तियों को जाति व्यवस्था से मुक्त होने और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने को संदर्भित करता है और यह लोकतंत्र का दूसरा नाम है।
  • बंधुत्व से संबंधित विचार: इसमें सहानुभूति, एकजुटता, सामूहिक देखभाल और प्रेम जैसे तत्त्व शामिल हैं।

बंधुत्व के अवधारणा की उत्पत्ति

  • प्राचीन युग: प्लेटो और अरस्तू द्वारा उनके  लेखन के माध्यम से राजनीतिक बंधुत्व के विचार पर जोर दिया गया था।
  • मध्यकालीन युग: इस युग में बंधुत्व की धारणा धर्म, विशेषकर यूरोप में ईसाई समाज से जुड़ा हुआ था।
  • फ्रांसीसी क्रांति: बंधुत्व की अवधारणा को वर्ष 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के दौरान क्रांतिकारी त्रिमूर्ति “लिबर्टे, एगलाइट, फ्रेटरनाइट” द्वारा राजनीतिक महत्त्व प्राप्त हुआ था ।
  • भारत में भाईचारा: भारतीय संविधान की मसौदा समिति (Draft committee) में “भाईचारा” पर एक खंड शामिल किया गया था I

पश्चिमी दुनिया में बंधुत्व

एम. सी. विलियम्स: उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि सामुदायिक संबंध एक अभिन्न मूल्य प्रणाली का निर्माण करते  हैं, जो भाईचारे की स्थापना हेतु आधार का निर्माण करते हैं। पश्चिमी दुनिया में, भाईचारा इसी तर्ज पर विकसित हुआ।

बंधुत्व और भारतीय संविधान

  • प्रस्तावना: भारत की प्रस्तावना में उल्लेख किया गया है कि भारतीय गणतंत्र का लक्ष्य बंधुत्व  को बढ़ावा देना, “व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को सुनिश्चित करना” है।
  • मौलिक कर्तव्य -अनुच्छेद-51A(e): भारत के सभी लोगों के मध्य सद्भाव और समान बंधुत्व  की भावना को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  • भारतीय संविधान बंधुत्व को “व्यक्ति की गरिमा” की पुष्टि के स्रोत के रूप में देखता है।
  • भारतीय संविधान राष्ट्र की एकता को बंधुत्व से प्राप्त करता है।

भारत में भाईचारे से जुड़ी चुनौतियाँ

  • वैचारिक मतभेद: देश के लोगों के मध्य के वैचारिक मतभेद भाईचारे में बाधक होते हैं, इसलिए उनके मध्य धर्मनिरपेक्षता संबंधी समझ को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
  • जातिवाद: यह न केवल समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों का खंडन करता है बल्कि संविधान द्वारा समर्थित व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण के लिए भी चुनौती पेश करता है।
  • सांप्रदायिकता: भारत में नागरिक जीवन मुख्य रूप से सांप्रदायिक आधार पर संचालित होता  है, जिसके कारण सामुदायिक हितों के मध्य टकराव उत्पन्न होता है।
  • सामाजिक असमानताएँ: बंधुत्व के सार को बनाए रखने हेतु मौजूदा सामाजिक असमानताओं पर ध्यान देना भी आवश्यक है अगर इसे नजरअदाज किया जाता है तो बंधुत्व की के गुणों का ह्रास होता है। इसे सामाजिक समन्वय के आधार पर निर्मित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे  इन मतभेदों पर पूर्ण प्रकाश नहीं पड़ता।
  • कट्टरवाद: यह सोच भाईचारे के विचार को कमजोर करती है। एक कट्टरपंथी सोच नकारात्मक रूप से कई प्रकार की विशिष्टताओं से युक्त हो सकती है और किसी भी प्रकार का कट्टरवाद (कठोर और अतिवादी सोच) सच्चे भाईचारे के संबंधों में बाधा उत्पन्न करता है।
  • कानून के अधीन खराब सुरक्षा: हालाँकि कानून में समानता के तत्त्व मौजूद हैं, लेकिन हमेशा कानून के तहत समान सुरक्षा प्राप्त नहीं हो पाती , जिससे सामाजिक विभाजन में वृद्धि होती है।

आगे की राह

  • गांधीवादी दृष्टिकोण (सार्वभौमिक धर्म का अभ्यास) के  पालन की आवश्यकता: गांधी जी ने सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना अपनाने का उपदेश दिया था , जिसके तहत सभी को एक राष्ट्र के रूप में रहने की कोशिश करनी चाहिए, न कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के रूप में विभाजित होकर।
  • जातिगत क्रियाशीलता का समाधान : जाति और राजनीतिक बंधुत्व संबंधी विचारों  का अस्तित्व एकसाथ संभव नहीं है। जाति व्यवस्था विभिन्न जातियों और उप-जातियों के बीच परस्पर संबंधों पर कठोर प्रतिबंध लगाती है।
  • राजनीतिक कंडीशनिंग: भाईचारे के विकास हेतु केवल नैतिक विचारों पर निर्भर रहने के बजाय, राजनीतिक तरीकों को अपनाकर सावधानीपूर्वक इसके सुदृढीकरण की आवश्यकता है।
  • धार्मिक कट्टरवाद का मुकाबला: समाज में समानता लाने और कट्टरवाद तथा धार्मिक भेदभाव की अवधारणा का मुकाबला करने के लिए सख्त कार्रवाई एवं कदम उठाए जाने की आवश्यकता।
  • भाईचारे के संबंध में जागरूकता फैलाना : लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने से न्याय, समानता, अधिकार और सशक्तीकरण जैसे मुद्दों पर लोगों का मत संभव हो सकेगा।
  • संवैधानिक मूल्यों के साथ एकीकरण: सरकार को आवश्यक सार्वजनिक निवेश करने का प्रयास करना  चाहिए और सभी व्यक्तियों के लिए न्यूनतम सभ्य जीवन सुनिश्चित करने की दिशा में भी अग्रसर रहना चाहिए।

             News Source: The Hindu

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