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भारत में मुफ्तखोरी की संस्कृति: एक बढ़ती चिंता

Lokesh Pal February 24, 2025 02:37 11 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव से पहले मतदाताओं को मुफ्त उपहार देने की राजनीतिक दलों की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई है।

संबंधित तथ्य

  • न्यायालय ने सवाल किया कि क्या ऐसी नीतियाँ ‘परजीवियों का एक वर्ग’ उत्पन्न कर रही हैं और लोगों को कार्य करने से हतोत्साहित कर रही हैं।

मुफ्तखोरी (‘फ्रीबीज’) या रेवड़ी संस्कृति को समझना

  • ‘फ्रीबीज’ से तात्पर्य ऐसी वस्तु या सेवा से है, जो प्राप्तकर्ता को बिना किसी लागत के दी जाती है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फ्रीबीज को मुफ्त में दिए जाने वाले सार्वजनिक कल्याण उपायों के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें मुफ्त बिजली, जल, सार्वजनिक परिवहन, कृषि ऋण माफी और सब्सिडी शामिल हैं।

मुफ्त (‘फ्रीबीज’) और कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर

कल्याणकारी उपाय

‘फ्रीबीज’

जीवन की गरिमा बनाए रखने के लिए आवश्यक, जैसे- स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा। गैर-योग्य वस्तुओं का बड़े पैमाने पर वितरण, जिससे सरकारी राजस्व का ह्रास होता है।
मानव विकास में तेजी लाना तथा आर्थिक वृद्धि में योगदान देना इसका उद्देश्य है। कार्य के लिए प्रोत्साहन कम करना और आर्थिक संतुलन बिगाड़ना।
उदाहरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए राज्य समर्थन। उदाहरण: लैपटॉप, स्कूटर, घरेलू उपकरणों का निःशुल्क वितरण।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए मुद्दे

  • बेरोजगारी को बढ़ावा: मुफ्त राशन और प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण लोगों को रोजगार की तलाश करने से हतोत्साहित करते हैं, जिससे श्रम शक्ति कम हो जाती है।
  • संसाधनों का गलत आवंटन: राज्य न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे जैसी आवश्यक सेवाओं की तुलना में मुफ्त सुविधाओं को प्राथमिकता देते हैं।
  • राजकोषीय बोझ: पंजाब जैसे राज्यों में, अत्यधिक सब्सिडी (कुल राजस्व का 16%) अर्थव्यवस्थाओं को दिवालियापन की ओर धकेल रही है।
  • राजनीतिक शोषण: न्यायालय ने मतदाताओं को प्रभावित करने के साधन के रूप में चुनाव के समय फ्रीबीज का उपयोग करने के विरुद्ध चेतावनी दी, इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रियाओं का उल्लंघन करार दिया।

मुफ्तखोरी (‘फ्रीबीज’) पर सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व टिप्पणियाँ

  • वर्ष 2013 का सुब्रमण्यम बालाजी केस: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ऐसे मामले विधायी नीति के दायरे में आते हैं और न्यायिक जाँच से परे हैं।
    • इसने इस बात पर भी जोर दिया कि इस तरह के व्यय को न तो गैर-कानूनी माना जा सकता है और न ही इसे ‘भ्रष्ट व्यवहार’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, विशेषकर तब जब वे राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
  • वर्ष 2021 का विशेषज्ञ पैनल का प्रस्ताव: सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की जाँच के लिए नीति आयोग, RBI और राजनीतिक प्रतिनिधियों सहित एक विशेषज्ञ पैनल का प्रस्ताव रखा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
  • वर्ष 2022 की चुनाव संबंधी मुफ्त उपहार समीक्षा: सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों द्वारा वित्तपोषण स्रोतों पर स्पष्टता के बिना अस्थिर योजनाओं की घोषणा करने पर चिंता व्यक्त की।

मुफ्त सुविधाओं की वकालत

आलोचना के बावजूद, कुछ लोग तर्क देते हैं कि फ्रीबीज महत्त्वपूर्ण सामाजिक कार्य में भूमिका निभाती हैं:-

  • गरीबी उन्मूलन और सामाजिक सुरक्षा: महामारी के दौरान मुफ्त खाद्य वितरण से 800 मिलियन लोगों को लाभ हुआ, जिससे बुनियादी जीविका सुनिश्चित हुई।
    • निःशुल्क आवास, शौचालय और स्वास्थ्य सेवा जैसी कल्याणकारी पहल वंचितों को अत्यधिक अभाव से बाहर निकलने में मदद करती हैं।
  • बुनियादी ढाँचे और जीवन स्तर में सुधार: मुफ्त बिजली, जल और स्वच्छता ने जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाया है, जैसा कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट में स्पष्ट है।
    • पंजाब में किसानों के लिए मुफ्त बिजली जैसी योजनाएँ लंबे समय से चली आ रही सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करती हैं।
  • मानव विकास को बढ़ावा देना: निःशुल्क शिक्षा, मध्याह्न भोजन और स्वास्थ्य सेवाएँ साक्षरता, पोषण और कल्याण को बढ़ाती हैं, जो दीर्घकालिक आर्थिक प्रगति में योगदान देती हैं।
    • बुनियादी सुविधाओं तक बेहतर पहुँच से स्वस्थ और अधिक उत्पादक नागरिक सुनिश्चित होते हैं।
  • आर्थिक प्रोत्साहन और कार्यबल भागीदारी: महिलाओं के लिए मुफ्त या सब्सिडी युक्त सार्वजनिक परिवहन कार्यबल भागीदारी एवं वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ाता है।
    • कल्याणकारी योजनाएँ उपभोक्ता खर्च को बढ़ाती हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक समानता और राजनीतिक स्थिरता: मुफ्त उपहार आय असमानताओं को कम करते हैं, सामाजिक अशांति को रोकते हैं और स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
    • राजनीतिक दल इन पहलों को जन कल्याण और लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आवश्यक बताते हैं।
  • DPSP के अनुरूप: भारत के संविधान के अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य, ‘अपनी आर्थिक क्षमता और विकास के भीतर’ कुछ विशेष मामलों में ‘सार्वजनिक सहायता’ प्राप्त करने के लिए प्रभावी प्रावधान कर सकता है।
    • सुब्रमण्यम बालाजी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि तमिलनाडु की डीएमके सरकार द्वारा लैपटॉप एवं टीवी का वितरण राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के अनुरूप था।
  • संकट में तत्काल राहत प्रदान करना: महामारी, प्राकृतिक आपदा, दंगे या युद्ध की स्थिति जैसी आपात स्थितियों के दौरान मदद करने के लिए वे एक प्रभावी उपकरण हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान मुफ्त टीकाकरण ने अभूतपूर्व चुनौती पर नियंत्रण पाने में मदद की।
  • सतत् विकास और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना: नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के लिए लक्षित सब्सिडी पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देती है।
    • मुफ्त सुविधाएँ अल्पकालिक राहत प्रदान करती हैं, जिससे लाभार्थी शिक्षा और रोजगार में निवेश कर सकते हैं, तथा दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।

दुनिया भर में मुफ्तखोरी (‘फ्रीबीज’) और समाजवादी प्रयोग

  • अत्यधिक मुफ्तखोरी (‘फ्रीबीज’) के कारण आर्थिक पतन
    • वेनेजुएला, जो कभी तेल समृद्ध देश था, को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि मुफ्त भोजन, परिवहन और अन्य सेवाओं के कारण बड़े पैमाने पर निर्भरता बढ़ गई।
    • जब लोगों ने कार्य करना बंद कर दिया, तो देश आयात पर बहुत अधिक निर्भर हो गया।
  • गतिरोध और प्रगति का अभाव
    • क्यूबा में, व्यापक राज्य-नियंत्रित कल्याण ने पुराने बुनियादी ढाँचे और सीमित तकनीकी पहुँच के साथ आर्थिक ठहराव को जन्म दिया है।
    • प्रतिस्पर्द्धी बाजारों की अनुपस्थिति ने नागरिकों को सरकारी सहायता पर निर्भर रखा है, जिससे आर्थिक गतिशीलता सीमित हो गई है।
  • कल्याण के माध्यम से सत्तावादी नियंत्रण
    • उत्तर कोरिया बुनियादी सुविधाएँ तो उपलब्ध कराता है, लेकिन इसके लिए उसे राजनीतिक और आर्थिक आजादी की कीमत चुकानी पड़ती है।
    • निजी क्षेत्र की वृद्धि के बिना नियंत्रित अर्थव्यवस्था के कारण अत्यधिक गरीबी और प्रगति में कमी हुई है।
  • पूँजीवादी अनुकूलन के साथ समाजवादी मॉडल
    • चीन समाजवाद को आक्रामक पूँजीवाद एवं विस्तारवाद के साथ संतुलित करता है, जिससे राज्य नियंत्रण बनाए रखते हुए आर्थिक विकास होता है। 
    • असफल समाजवादी राज्यों के विपरीत, चीन का मॉडल विकास को गति देने के लिए बाजार तंत्र को एकीकृत करता है।
  • अत्यधिक कल्याण पर न्यायिक सीमाएँ
    • अमेरिका में न्यायालयों ने ऐसे कल्याणकारी व्यय के विरुद्ध निर्णय दिया है, जो सार्वजनिक उद्देश्यों की पूर्ति के बजाय मुख्य रूप से निजी व्यक्तियों को लाभ पहुँचाते हैं (कोट्स बनाम कैंपबेल मामला)।
    • रॉबर्ट्स बनाम हॉपवुड (1925) में न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्य व्यय अत्यधिक नहीं होना चाहिए या समाजवादी परोपकार पर आधारित नहीं होना चाहिए।
  • उत्तरदायी कल्याण नीतियों की आवश्यकता
    • भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में आवश्यक कल्याण उचित है, लेकिन टेलीविजन या गैर-आवश्यक वस्तुओं जैसे अत्यधिक उपहार में सार्वजनिक उद्देश्य की कमी होती है। 
    • निर्भरता एवं ठहराव को रोकने के लिए सामाजिक समर्थन और आर्थिक प्रोत्साहन के बीच संतुलन की आवश्यकता है।

भारत में मुफ्त उपहारों के हालिया उदाहरण

  • दिल्ली की मुफ्त बिजली योजना: आप सरकार की 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की नीति ने डिस्कॉम पर वित्तीय दबाव डाला है।
    • नवनिर्वाचित पार्टी ने इस नीति को जारी रखने का वादा किया है।
  • महाराष्ट्र चुनाव में मुफ्तखोरी का उन्माद: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टियों के बीच मुफ्तखोरी की होड़ देखने को मिली।
  • पंजाब में किसानों को मुफ्त बिजली: भूजल स्तर में कमी और वित्तीय कुप्रबंधन में योगदान।
  • कर्नाटक की ‘गृह लक्ष्मी’ योजना: परिवार की महिला मुखियाओं को 2,000 रुपये प्रति माह देने से राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है।
  • तमिलनाडु में मुफ्त लैपटॉप वितरण: डिजिटल साक्षरता के उद्देश्य से प्रदान किए गए लैपटॉप कई लाभार्थियों ने नकद में बेच दिए, जिससे उद्देश्य विफल हो गया।
  • राजस्थान की मुफ्त मोबाइल योजना: महिलाओं के लिए सरकार की 1,200 करोड़ रुपये की पहल ने स्थिरता को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

मुफ्तखोरी संस्कृति का प्रभाव

  • राजकोषीय तनाव: पंजाब, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्य बढ़ते कल्याण व्यय के कारण वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं।
    • नीति आयोग के ‘राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (Fiscal Health Index-FHI) 2025’ ने बाह्य ऋण में वृद्धि के कारण 18 प्रमुख राज्यों में पंजाब को अंतिम स्थान दिया था।
  • निर्भर मानसिकता: दीर्घकालिक मुफ्त योजनाएँ व्यक्तियों को उत्पादक रोजगार की तलाश करने से हतोत्साहित करती हैं।
    • महाराष्ट्र जैसे राज्य व्यापक पात्रता कार्यक्रमों के कारण श्रम की कमी से जूझ रहे हैं।
  • कैस्केडिंग प्रभाव: हाल ही में राजस्थान सरकार ने दिल्ली जैसे राज्यों के नक्शेकदम पर चलते हुए वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए राज्य बजट के दौरान 150 यूनिट मुफ्त बिजली की घोषणा की।
  • विकृत आर्थिक प्राथमिकताएँ: सरकारी खर्च आवश्यक बुनियादी ढाँचे से हटकर अल्पकालिक राजनीतिक लाभ की ओर स्थानांतरित हो जाता है।
    • कर्नाटक ने चुनावी वादों को पूरा करने पर हजारों करोड़ खर्च किए, जिससे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए बजट की कमी हो गई।
  • पर्यावरणीय परिणाम: पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में मुफ्त बिजली योजनाओं के कारण भूजल का अत्यधिक उपयोग।

आगे की राह

  • विधायी और नीतिगत सुधार: चुनावी वादों को विनियमित करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) में संशोधन करना। राजनीतिक दलों द्वारा अपनी योजनाओं के लिए धन जुटाने के तरीके के बारे में वित्तीय प्रकटीकरण पर सख्त दिशा-निर्देश लागू करना।
  • राजकोषीय उत्तरदायित्व उपाय: मुफ्त उपहारों पर व्यय की सीमा निर्धारित करना, उन्हें GSDP के 1% या राज्य कर राजस्व के 1% पर सीमित करना। यह सुनिश्चित करना कि वित्त आयोग द्वारा निर्धारित राजस्व घाटा, मुफ्त उपहारों के कारण अधिक न हो।
  • भारत के चुनाव आयोग (ECI) को मजबूत बनाना: घोषणा-पत्रों को विनियमित करने और अवास्तविक वादों की जाँच करने के लिए ECI को सशक्त बनाना। अभियान वादों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक आदर्श घोषणा-पत्र प्रस्तुत करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता एवं जवाबदेही: मुफ्त उपहारों की वित्तीय व्यवहार्यता पर सवाल उठाने के लिए मतदाताओं को प्रोत्साहित करना। यह सुनिश्चित करना कि सरकारें अल्पकालिक लाभों की तुलना में दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता दें।
  • सब्सिडी को मुफ्त सुविधाओं से अलग करना: सब्सिडी का उद्देश्य विशिष्ट क्षेत्रों या क्षेत्रों में विकास संबंधी कमियों को दूर करना है, जहाँ प्रगति अपर्याप्त रही है।
    • उदाहरण के लिए, सौर पैनल प्रोत्साहनों की तरह नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी, मात्र दान के बजाय सतत् विकास को बढ़ावा देने वाले रणनीतिक निवेश हैं।
  • कल्याणकारी योजनाओं के लिए बेहतर आवंटन: मानव पूँजी पर ध्यान केंद्रित करने से लोगों की पसंद पर मुफ्त सुविधाओं का प्रभाव कम होगा।

निष्कर्ष

भारत में राजनीतिक मुफ्त उपहारों की संस्कृति एक बढ़ती चुनौती है, जो राजकोषीय स्थिरता और श्रम प्रोत्साहन को खतरे में डालती है। हालाँकि समावेशी विकास के लिए कल्याणकारी उपाय आवश्यक हैं, गैर-योग्यता युक्त सामानों का अंधाधुंध वितरण आर्थिक कुप्रबंधन का कारण बन सकता है। कानूनी संशोधनों, वित्तीय अनुशासन और मतदाता जागरूकता के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा तथा उत्तरदायी शासन के बीच संतुलन बनाना होगा। मुफ्त उपहारों की संस्कृति से निपटने के लिए बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, यह सुनिश्चित करना कि अल्पकालिक चुनावी लाभों की तुलना में दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी जाए।

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