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तिब्बत में लगातार हो रहा बृहत् क्षरण भारत के लिए चिंता का विषय

Lokesh Pal August 27, 2024 02:58 162 0

संदर्भ

जर्नल ऑफ रॉक मैकेनिक्स एंड जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग’ में प्रकाशित चीन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में वर्ष 2017 से तिब्बती पठार के सेडोंगपु गली (Sedongpu Gully) में बड़े पैमाने पर विनाश की घटनाओं (भूस्खलन एवं मृदा क्षरण) में वृद्धि देखी जा रही है। 

सेडोंगपु गली (Sedongpu Gully)

  • सेडोंगपु गली, सेडोंगपु ग्लेशियर और घाटी के जलग्रहण क्षेत्र में अवस्थित है। 
  • जल निकासी: यह नदी ग्रेट बेंड (Great Bend) के पास यारलुंग जांग्बो (Yarlung Zangbo) (सांग्पो नदी) नदी में मिलती है। 
    •  यह गुली यारलुंग सांग्पो नदी में मलबे के प्रवाह का एक प्रमुख स्रोत है। 
  • ग्रेट बेंड: तिब्बत-अरुणाचल प्रदेश सीमा के पास अवस्थित यह बेंड पृथ्वी पर सबसे गहरे गार्ज में से एक है, जो 505 किमी. लंबा और 6,009 मीटर गहरा है। 

  • आगामी परियोजना: चीन सांग्पो नदी पर 60 गीगावाट की जलविद्युत परियोजना विकसित करने की योजना बना रहा है। 
    • यह परियोजना यांग्सी नदी पर बने थ्री गॉर्जेस डैम (Three Gorges Dam), जो विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत संयंत्र है, की तुलना में तीन गुना अधिक क्षमता वाली होगी। 

  • नीचे की ओर प्रवाह: सांग्पो नदी अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी बन जाती है और अंततः दिबांग और लोहित नदियों के साथ मिलकर ब्रह्मपुत्र नदी का निर्माण करती है, जो आगे चलकर जमुना (Jamuna) के रूप में बांग्लादेश में प्रवाहित होती है। 
  • पर्यावरणीय स्थितियाँ एवं निहितार्थ
    • आधारशिला संरचना: सेडोंगपु बेसिन की आधारशिला मुख्य रूप से प्रोटेरोजोइक संगमरमर से निर्मित हुई है। 
    • तापमान की प्रवृत्तियाँ
      • ऐतिहासिक तापमान: वर्ष 2012 से पहले, भूमि की सतह का तापमान -5º से -15º सेल्सियस तक था, जो शायद ही कभी 0º सेल्सियस से अधिक होता था।
      • हालिया तापमान वृद्धि: वर्ष 1981 से 2018 के बीच, बोमी (Bomi) और लिंझी (Linzhi) के नजदीकी मौसम स्टेशनों में वार्षिक तापमान 0.34º से 0.36º सेल्सियस प्रति वर्ष की दर से बढ़ा, जो वैश्विक औसत से अधिक था। 

बृहत् क्षरण (Mass Wasting) क्या है? 

  • यह गुरुत्वाकर्षण द्वारा संचालित ढलानों से नीचे चट्टान या मृदा की गति के लिए एक सामान्य शब्द है। 
  • जल, वायु या बर्फ द्वारा होने वाले कटाव के विपरीत, बड़े पैमाने पर होने वाले क्षरण में मलबा किसी गतिशील माध्यम द्वारा नहीं ले जाया जाता है। 
  • बृहत् क्षरण के प्रकार
    • विसर्पण: ढलान से नीचे की ओर मिट्टी और चट्टान का धीमा, क्रमिक प्रवाह। 
    • मृदा सर्पण (Solifluction): जल-संतृप्त मृदा का नीचे की ओर धीमा प्रवाह, जो प्रायः पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों में होता है।
    • चट्टान गिरना: चट्टान या खड़ी ढलान से चट्टानों का तेजी से गिरना। 
    • मलबा प्रवाह: जल, मिट्टी और चट्टान का तेजी से बहने वाला मिश्रण जो नीचे की ओर प्रवाहित होता है। 
    • भूस्खलन: चट्टान या मिट्टी के एक बड़े पिंड का अचानक और तेजी से ढलान से नीचे खिसकना।
    • घटना
      • ग्रहीय पिंडों पर बड़े पैमाने पर विनाश: पृथ्वी, मंगल, शुक्र और बृहस्पति के मून आयो (Moon Io) सहित विभिन्न ग्रहीय पिंडों पर बड़े पैमाने पर विनाश हो सकता है। 
        • इसमें ढलान वाली गति के विपरीत, न्यूनतम क्षैतिज विस्थापन के साथ ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर गति शामिल होती है। 
  • शमन के उपाय
    • ढलान स्थिरीकरण: ढलान कोण और स्थिरता के मुद्दों को कम करने के लिए प्रतिधारक दीवारों, सीढ़ीनुमा ढाँचे और ग्रेडिंग का उपयोग। 
    • अवरोधों का निर्माण: गिरते हुए मलबे को रोकने या विक्षेपित करने के लिए अवरोधक दीवारें अथवा रॉकफॉल नेट जैसे अवरोध खड़े करना। 
    • वनरोपण: जड़ प्रणालियों के साथ मृदा को मजबूत करने, कटाव को कम करने और ढलानों को स्थिर करने के लिए वनस्पतियाँ लगाना। 
      • यह मृदा संरचना को बढ़ाता है और जल अपवाह को कम करता है।
    • बेहतर जल निकासी
      • जल निकासी प्रणालियाँ: जल प्रवाह को प्रबंधित करने और जलभराव को रोकने के लिए उचित जल निकासी प्रणाली स्थापित करना। 
      • विधियाँ: संवेदनशील क्षेत्रों से जल को दूर ले जाने के लिए नालियों, पुलियों और चैनलों का उपयोग। 
    • निगरानी और पूर्व चेतावनी: ढलान की स्थिरता की निगरानी और गति के प्रारंभिक संकेतों का पता लगाने के लिए प्रणालियाँ लागू करना। 
    • इंजीनियरिंग समाधान: क्रमिक द्रव्यमान क्षय के कारण होने वाली विकृति के विरुद्ध सड़कों और पाइपलाइनों जैसी संरचनाओं को मजबूत बनाना।

इन उपायों को अपनाकर, बड़े पैमाने पर होने वाली बर्बादी के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा होगी और मानव सुरक्षा के लिए जोखिम कम होगा।

ऐतिहासिक बाढ़ की घटनाएँ

  • वर्ष 2000 की बाढ़: पूर्वी सियांग और धेमाजी में बाढ़, यिगोंग नदी पर मलबे से बने बाँध के टूटने के कारण आई, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ। 

सेडोंगपु अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • बढ़ती आवृत्ति: अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2017 के बाद से बड़े पैमाने पर अपशिष्टों के उत्सर्जन की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसमें 700 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक मलबा उत्सर्जित हुआ है। 
  • बड़े पैमाने की घटनाएँ: इन घटनाओं में बर्फ-चट्टान हिमस्खलन, बर्फ-मोरेन हिमस्खलन और ग्लेशियर मलबे का प्रवाह शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप लाखों घन मीटर मलबा एकत्रित हुआ।
  • योगदान देने वाले कारक: तीव्र तापमान वृद्धि और भूकंपीय गतिविधियों ने इस क्षेत्र को अस्थिर कर दिया है, जिसके कारण भूस्खलन और मलबे का प्रवाह अधिक हो गया है। 
    • शोध पद्धति: अध्ययन में सेडोंगपु गली जलग्रहण क्षेत्र में भूस्खलन पैटर्न का विश्लेषण करने के लिए दिसंबर 1969 से जून 2023 तक के उपग्रह डेटा का उपयोग किया गया। 
  • सामूहिक अपव्यय की घटनाओं के प्रकार
    • बर्फ-चट्टान हिमस्खलन (Ice-Rock Avalanche): इन घटनाओं ने सांग्पो और उसकी सहायक नदी यिगोंग को अस्थायी रूप से अवरुद्ध कर दिया। 
    • बर्फ-मोरेन हिमस्खलन (Ice-Moraine Avalanche) और ग्लेशियर मलबा प्रवाह (Glacier Debris Flow): अन्य महत्त्वपूर्ण सामूहिक-क्षयकारी घटनाओं के रूप में पहचान की गई। 
  • अवरोधों के परिणाम
    • आकस्मिक बाढ़: बर्फ-चट्टान हिमस्खलन द्वारा बनाए गए मलबे के बाँधों के टूटने से निचले इलाकों में भयावह आकस्मिक बाढ़ आई, जैसे कि वर्ष 2000 में अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी सियांग और असम में धेमाजी जिले में। 
    • बाढ़ के कारण: ये बाढ़ें बड़े पैमाने पर भूस्खलन से उत्पन्न हुए मलबे और चट्टानी पदार्थों से बने बांधों के टूटने से उत्पन्न होती हैं। 
  • भारत और बांग्लादेश के लिए निहितार्थ
    • ब्रह्मपुत्र नदी: यारलुंग सांग्पो (Yarlung Tsangpo) भारत और बांग्लादेश में बहते हुए ब्रह्मपुत्र नदी बन जाती है। 
    • अवसादन में वृद्धि: यारलुंग सांग्पो  में अवसादन का बढ़ा हुआ भार अंततः ब्रह्मपुत्र तक पहुँच जाएगा, जिससे इसके मार्ग और प्रवाह पैटर्न पर असर पड़ेगा। 
    • बढ़े हुए अवसादन के प्रभाव
      • नदी में लहरें उठना: तलछट के उच्च स्तर के कारण नदी में लहरें उठ सकती हैं, विशेष रूप से असम के मैदानी क्षेत्रों में। 
      • तटीय अपरदन: अवसादन में वृद्धि से तटीय अपरदन अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकता है। 
      • बाढ़ का खतरा: तलछट के कारण नदी तल का ऊँचा होना बाढ़ के खतरे को बढ़ा सकता है। 
      • नौवहन संबंधी चुनौतियाँ: रेत और गाद के जमा होने से नदी के जलमार्ग अवरुद्ध हो सकते हैं, जिससे नौवहन जटिल हो सकता है और असम तथा बांग्लादेश में मछली पकड़ने से जुड़ी आजीविका पर असर पड़ सकता है। 

भारत के रणनीतिक उपाय 

  • जलविद्युत विकास: भारत अपनी प्रस्तावित अरुणाचल प्रदेश जलविद्युत परियोजना में अवसादन और बहाव के प्रभावों से जुड़े संभावित जोखिमों को कम करने के लिए ‘बफर’ को शामिल करने की योजना बना रहा है। 
  • बफर ​का उद्देश्य: इन बफर ​​का उद्देश्य ब्रह्मपुत्र नदी में बढ़ते अवसादन से संबंधित चिंताओं का समाधान करना है, जो नदी के ऊपरी भाग में चल रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों और जलविद्युत विकास के परिणामस्वरूप हो सकता है।

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