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‘फसल से घर’ तक

Lokesh Pal September 30, 2025 03:51 9 0

संदर्भ 

29 सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय खाद्य हानि एवं अपव्यय जागरूकता दिवस’ (International Day of Awareness of Food Loss and Waste – IDAFLW) मनाया जाता है, ताकि खाद्य अपव्यय के वैश्विक संकट को उजागर किया जा सके।

  • विश्व स्तर पर उत्पादित कुल भोजन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है।

IDAFLW के प्रमुख वैश्विक निष्कर्ष

  • ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि: वर्ष 2021 में वैश्विक खाद्यान्न का लगभग 13% (लगभग 1.25 अरब टन) फसल कटाई के पश्चात, लेकिन खुदरा दुकानों तक पहुँचने से पूर्व नष्ट हो गया।
  • उपभोक्ता-स्तरीय अपव्यय: वर्ष 2022 में घरों, खुदरा दुकानों और खाद्य सेवाओं में 19% खाद्यान्न (लगभग 1.05 अरब टन) की हानि हुई।
  • घरेलू योगदान: घरेलू स्तर पर 60% वैश्विक खाद्य अपव्यय होता है, जो उपभोक्ता व्यवहार के प्रभाव को दर्शाता है।
  • खाद्य असुरक्षा: वर्ष 2023 में, विश्व की लगभग 28.9% आबादी (2.33 अरब लोग) मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा से पीड़ित होगी, जबकि 11 में से 1 व्यक्ति भुखमरी का सामना करेगा।
  • जलवायु प्रभाव: खाद्य हानि और अपव्यय वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 8-10% का योगदान करते हैं, जो विमानन और शिपिंग क्षेत्रों के संयुक्त उत्सर्जन से भी अधिक है।

खाद्य हानि और खाद्य अपव्यय के बारे में

  • खाद्य हानि खेत से बाजार तक, मुख्यतः कटाई, परिवहन और भंडारण के दौरान होती है।
    • खाद्य हानि और अपव्यय के प्रमुख कारणों में कटाई के पश्चात् अप्रत्याशित वर्षा से फसलों को होने वाली क्षति, बाजार तक पहुँचने से पूर्व फलों एवं सब्जियों जैसी वस्तुओं का खराब होना तथा भंडारण चरण में चूहों के कारण या कुप्रबंधन से उत्पन्न हानियाँ शामिल हैं।
  • खाद्यान्न की बर्बादी खुदरा और उपभोक्ता स्तर पर होती है।
    • यह तब देखा जाता है, जब सुपरमार्केट दिखावटी कारणों से उत्पादों को अस्वीकार कर देते हैं, घरों में लोग आवश्यकता से अधिक खाना पकाते हैं या बचा हुआ खाना फेंक देते हैं, अथवा जब ग्राहक आवश्यकता से अधिक खाना परोस लेते हैं और प्लेट में खाना बर्बाद कर देते हैं।

भारत का खाद्यान्न उत्पादन और हानि

  • रिकॉर्ड उत्पादन: तीसरे अग्रिम अनुमान (2024-25) के अनुसार, भारत ने 353.96 मिलियन टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हासिल किया, जिसमें 117.51 ​​मिलियन टन गेहूँ और 149.07 मिलियन टन चावल शामिल है।
    • भारत विश्व स्तर पर खाद्यान्न का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, फिर भी उसे लगातार ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि का सामना करना पड़ता है, जिससे किसानों की आय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा दोनों प्रभावित होती है।
  • हानि संबंधी आर्थिक भार: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) द्वारा कराए गए नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (NABCONS) के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि से भारत को वार्षिक रूप से लगभग ₹1.5 ट्रिलियन की हानि होती है, जो कृषि सकल घरेलू उत्पाद के 3.7% के बराबर है।
    • इतने बड़े नुकसान के परिणामस्वरूप जल ऊर्जा और श्रम की बर्बादी होती है तथा लाखों लोगों के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है।
  • फसलवार हानि:: मुख्य फसलों को लगातार भारी नुकसान हो रहा है: धान को 4.8% और गेहूँ को 4.2%।
    • फल और सब्जियों जैसी फसलों को और भी अधिक नुकसान हो रहा है, जिनमें 10-15% तक का नुकसान हो रहा है, जो भंडारण, रखरखाव और परिवहन संबंधी अक्षमताओं को दर्शाता है।
  • खाद्य हानि का जलवायु प्रभाव: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM), और हरित जलवायु कोष (GCF) द्वारा वर्ष 2023 में किए गए एक संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि भारत में खाद्य हानि से प्रतिवर्ष 33 मिलियन टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड-समतुल्य उत्सर्जन होता है।
    • अनाज, विशेष रूप से धान (मेथेन उत्सर्जन की तीव्रता के कारण), और पशुधन उत्पाद इन उत्सर्जनों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण बढ़ता है।

भारत में खाद्य अनाज भंडारण प्रणाली

  • भंडारण प्रणालियों के प्रकार: खाद्य पदार्थों के भंडारण के विभिन्न तरीके हैं और कुछ प्रमुखों में शामिल हैं:
    • केंद्रीकृत भंडारण: मुख्य रूप से भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य एजेंसियों द्वारा प्रबंधित किया जाता है। केंद्रीय पूल के अंतर्गत अनाज की खरीद, भंडारण और वितरण सुनिश्चित करता है।
    • शीत भंडारण: फल, सब्जियाँ, डेयरी उत्पाद, मांस और समुद्री भोजन जैसी वस्तुओं के लिए उपयोग किया जाता है। ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि को कम करने और पोषण गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करता है।
    • विकेंद्रीकृत भंडारण: प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (Primary Agricultural Credit Societies- PACS), ग्रामीण गोदाम और किसानों द्वारा फार्म स्टोरेज के माध्यम से लागू किया गया। स्थानीय उपलब्धता सुनिश्चित करता है और परिवहन लागत को कम करता है।

भारत में खाद्य अनाज भंडारण प्रणाली

खाद्यान्नों का केंद्रीकृत भंडारण
  • नोडल एजेंसी के रूप में FCI: केंद्रीय पूल के तहत खाद्य पदार्थों की खरीद, भंडारण और वितरण के लिए जिम्मेदार है। खरीद सीधे FCI या राज्य सरकार एजेंसियों (SGA) द्वारा की जा सकती है। SGAs द्वारा खरीदे गए अनाज को FCI को सौंप दिया जाता है, जिसमें लागत प्रतिपूर्ति की जाती है।
  • उद्देश्य: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद के माध्यम से किसानों की आय की रक्षा करना, बफर स्टॉक बनाए रखना और खाद्य कीमतों को स्थिर रखना।
  • बुनियादी ढाँचा: अनाज को ढके हुए गोदामों, वेयरहाउस और आधुनिक स्टील ‘साइलो’ में संगृहीत किया जाता है, जिससे सुरक्षा और गुणवत्ता का रखरखाव सुनिश्चित होता है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): केंद्रीकृत भंडार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का  आधार हैं, जो देशव्यापी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। अधिशेष अनाज को कमी वाले राज्यों में स्थानांतरित किया जाता है।
  • क्षमता (जुलाई 2025): FCI और राज्य एजेंसियों के पास कुल 917.83 लाख मीट्रिक टन।
    • कवर किया गया भंडारण: गोदामों और साइलो जैसी पूरी तरह से छत/दीवार से घिरी संरचनाएँ।
    • कवर और प्लिंथ (Cover and Plinth- CAP) भंडारण: वायु संचार और सुरक्षा के लिए लकड़ी के बक्सों (डननेज) का उपयोग करके ऊँचे चबूतरे पर अनाज का भंडारण किया जाता है।
कोल्ड स्टोरेज अवसंरचना
  • भूमिका: जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं (फल, सब्जियाँ, डेयरी, मांस, समुद्री भोजन) के लिए आवश्यक। गुणवत्ता में गिरावट को रोकता है और ‘शेल्फ लाइफ’ बढ़ाता है।
  • इसमें शामिल सुविधाएँ: प्री-कूलिंग, तौल, छंटाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, नियंत्रित वातावरण (CA) भंडारण, ब्लास्ट फ्रीजिंग और रेफ्रिजरेटेड परिवहन (रीफर वैन)
  • प्रभाव: ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि को कम करता है, विपणन योग्य अधिशेष सुनिश्चित करता है और जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देता है।
  • सरकारी सहायता: प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) और कृषि अवसंरचना कोष (AIF) जैसी योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • स्थिति (जून 2025): भारत भर में 8,815 कोल्ड स्टोरेज, जिनकी संयुक्त क्षमता 402.18 लाख मीट्रिक टन है।
विकेंद्रीकृत भंडारण और PACS भूमिका
  • विकेंद्रीकृत खरीद योजना (DCP): वर्ष 1997-98 में शुरू की गई, जिससे राज्य सरकारों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत सीधे खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और वितरण की अनुमति मिलती है।
  • लाभ: स्थानीय खरीद को प्रोत्साहित करती है, परिवहन लागत बचाती है और क्षेत्रीय स्तर पर अनाज की आपूर्ति सुनिश्चित करती है।
  • प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) की भूमिका
    • सहकारी ऋण संरचना की मूलभूत शाखा के रूप में कार्य करना।
    • 500-2000 मीट्रिक टन तक की ग्राम-स्तरीय भंडारण क्षमताएँ बनाना।
    • खरीद केंद्रों और उचित मूल्य दुकानों (FPS) दोनों के रूप में कार्य करना।
    • स्थानीय भंडारण को सक्षम बनाकर, हानि को कम करके और बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करके किसानों की सहायता करना।
  • आधुनिकीकरण के लिए सरकार का प्रयास
    • कंप्यूटरीकरण परियोजना: रिकॉर्ड-कीपिंग, पारदर्शिता और दक्षता में सुधार हेतु ₹2,516 करोड़ के परिव्यय के साथ स्वीकृत।
    • विस्तार: जून 2025 तक।
      • 73,492 PACS को कंप्यूटरीकृत किया गया।
      • 5,937 नए PACS पंजीकृत किए गए, जिससे ग्रामीण भंडारण प्रणाली की पहुँच बढ़ी और उसे मजबूती मिली।

अनाज भंडारण के प्रमुख उद्देश्य

  •  ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि को कम करना: शीत भंडारण और आधुनिक गोदामों सहित उचित भंडारण, कृषि उपज की बर्बादी को अत्यधिक सीमा तक कम करता है।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) जैसे कार्यक्रमों के तहत वितरण के लिए खाद्यान्नों का बफर स्टॉक बनाए रखना आवश्यक है।
  • संकटकालीन बिक्री को रोकना: भंडारण सुविधाओं तक पहुँच किसानों को अपनी उपज को सुरक्षित रखने और उसे इष्टतम समय पर बेचने की सुविधा प्रदान करती है, जिससे संकटकालीन बिक्री से बचा जा सकता है और उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • मूल्य स्थिरीकरण: रणनीतिक बफर स्टॉक बनाए रखने से उपभोक्ताओं को आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद मिलती है।
  • गुणवत्ता बनाए रखना: वैज्ञानिक भंडारण नमी और कीटों जैसे कारकों को नियंत्रित करके यह सुनिश्चित करता है कि खाद्यान्न मानव उपभोग के लिए उपयुक्त रहें।

भारत में अनाज भंडारण की आवश्यकता

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): NFSA, 2013 का उद्देश्य पात्र लाभार्थियों को रियायती मूल्यों पर पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध कराकर खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है।
    • इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, मजबूत और वैज्ञानिक भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता है, जो खाद्यान्नों के क्षरण को रोके, पोषण संबंधी गुणवत्ता बनाए रखे और अनाज व बीजों की उपयोग अवधि को बढ़ाना।
  • जनसंख्या का दबाव: भारत में विश्व के कृषि योग्य क्षेत्रफल का केवल 11% हिस्सा है, लेकिन यह वैश्विक जनसंख्या के 18% का भरण-पोषण करता है।
    • 1.4 अरब से अधिक की जनसंख्या के साथ, निर्बाध खाद्य आपूर्ति, पर्याप्त भंडारण अवसंरचना पर निर्भर करती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अनाज पूरे वर्ष समाज के सभी वर्गों तक पहुँचता रहे।
  • भंडारण की कमी: वर्ष 2023-24 में 332.3 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) के रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और वर्ष 2024-25 में लगभग 354 मिलियन मीट्रिक टन के अनुमानित उत्पादन के बावजूद, उपलब्ध भंडारण क्षमता माँग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।
    • अपर्याप्त भंडारण के कारण कुल उत्पादन का अनुमानित 10-15% ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि होती है, जो कीटों, नमी और अनुचित प्रबंधन के कारण होता है।
    • विश्व स्तर पर, अन्य देश अधिशेष भंडारण क्षमता (~131%) बनाए रखते हैं, जबकि भारत में भंडारण क्षमता में उल्लेखनीय कमी (~47%) आई है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: भारत में भंडारण क्षमता विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न है।
    • कुछ दक्षिणी राज्यों की भंडारण क्षमता 90% से अधिक है, जबकि उत्तरी राज्य, जो गेहूँ और चावल का एक बड़ा हिस्सा उत्पादित करते हैं, की भंडारण क्षमता 50% से कम है।
    • भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य एजेंसियों द्वारा प्रबंधित केंद्रीय गोदामों पर अत्यधिक निर्भरता परिवहन लागत और परिवहन के दौरान खराब होने के जोखिम को बढ़ाती है।
  • भंडारण का रणनीतिक महत्त्व: पर्याप्त अनाज भंडारण कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है।
    • यह NFSA के तहत बफर स्टॉक की सुरक्षा करता है, किसानों को संकटग्रस्त बिक्री से और उपभोक्ताओं को मुद्रास्फीति से बचाकर कीमतों को स्थिर करता है तथा कवक संदूषण, कीट क्षति और एफ्लाटॉक्सिन को रोककर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • इसके अलावा, पर्याप्त भंडारण अवसंरचना सूखे, बाढ़ या महामारी के दौरान आपूर्ति बनाए रखकर आपदा की तैयारी में सहायक होती है।
    • पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, भंडारण हानि को कम करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी कम होता है, जो सतत् विकास लक्ष्य 13 (SDG 13)- जलवायु कार्रवाई के अनुरूप है।

खाद्यान्न भंडारण को मजबूत करने के लिए भारत की पहल

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: लगभग 67% आबादी को सब्सिडी युक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराता है, जिसके लिए मजबूत बफर स्टॉक और भंडारण प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
  • कृषि अवसंरचना कोष (AIF): ब्याज अनुदान और ऋण गारंटी के साथ फसल कटाई के बाद और ‘फार्म-गेट’ अवसंरचना के वित्तपोषण के लिए वर्ष 2020 में शुरू किया गया।
    • गोदामों और कोल्ड स्टोर सहित कुल 1.27 लाख परियोजनाओं (सितंबर 2025 तक) के लिए 1.17 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव था, जिसमें से 73,155 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई है।
  • कृषि विपणन अवसंरचना (AMI): ISAM का एक भाग; गोदामों के निर्माण/नवीनीकरण में सहायता करता है।
    • जून 2025 तक, 27 राज्यों में 49,796 परियोजनाओं ने 4,829.37 करोड़ रुपये की सब्सिडी के साथ 982.94 लाख मीट्रिक टन क्षमता का निर्माण किया।
  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY): आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण और शीत शृंखला अवसंरचना का निर्माण करना।
    • जून 2025 तक, 1,601 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई (1,133 कार्यरत), जिससे 255.66 लाख मीट्रिक टन वार्षिक प्रसंस्करण क्षमता बढ़ेगी।
  • शीत भंडारण के लिए पूँजी निवेश सब्सिडी: 5,000-20,000 मीट्रिक टन के शीत/कैल्शियम-मुक्त भंडारण के लिए 35% सब्सिडी (सामान्य क्षेत्रों में) और 50% सब्सिडी (पूर्वोत्तर, पहाड़ी, अनुसूचित क्षेत्रों में) प्रदान की जाती है।
    • वैज्ञानिक भंडारण, शेल्फ-लाइफ विस्तार और मूल्य शृंखला दक्षता को बढ़ावा देता है।
  • सहकार-से-समृद्धि: भंडारण चुनौतियों का समाधान करने के लिए, सरकार ने सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना (मई 2023) को मंजूरी दी।
    • इस योजना के अंतर्गत, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को बहु-कार्यात्मक इकाइयों के रूप में विकसित किया जा रहा है ताकि वे भंडारण और खरीद सेवाएँ प्रदान कर सकें, अनाज का प्रसंस्करण, छँटाई और ग्रेडिंग कर सकें, उचित मूल्य की दुकानें (FPS) संचालित कर सकें और मूल्यवर्द्धन केंद्र स्थापित कर सकें।
    • इन पहलों का उद्देश्य भंडारण सुविधाओं को किसानों के निकट लाना, परिवहन के दौरान होने वाले नुकसान को कम करना, दक्षता में सुधार लाना और उत्पादकों को उनके उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करना है।
    • अगस्त 2025 तक, 11 PACS गोदाम पूरे हो चुके हैं; विस्तार के लिए 500 से अधिक PACS की पहचान की गई है।
  • स्टील ‘साइलो’ पहल: घाटे को कम करने के लिए मशीनीकृत थोक भंडारण को बढ़ावा देता है।
    • जून 2025 तक, 48 साइलो (27.75 LMT) पूरे हो चुके हैं, 87 साइलो (36.875 LMT) निर्माणाधीन हैं, और 54 साइलो (25.125 LMT) निविदा चरण में हैं।
  • परिसंपत्ति मुद्रीकरण (FCI भूमि): खाली FCI भूमि पर गोदामों का निर्माण। 17.47 लाख मीट्रिक टन क्षमता (जुलाई 2025) वाले 177 स्थलों की पहचान की गई है।
  • केंद्रीय क्षेत्र योजना – “भंडारण एवं गोदाम”: पूर्वोत्तर, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और केरल पर केंद्रित है।
    • वर्ष 2025 तक ₹379.50 करोड़ (पूर्वोत्तर) और ₹104.58 करोड़ (अन्य) का परिव्यय पूरी तरह से जारी किया गया है।
  • निजी उद्यमी गारंटी (PEG) योजना: वर्ष 2008 में PPP माध्यम में शुरू की गई।
    • भंडारण क्षमता को किराए पर लेने के लिए सरकारी गारंटी प्रदान करती है, आधुनिक भंडारण में निजी निवेश को प्रोत्साहित करती है।
  • डिजिटल एवं जलवायु प्रतिबद्धताएँ: राष्ट्रीय संकेतक ढाँचे के अंतर्गत सतत् विकास लक्ष्य 12.3.1 (खाद्य हानि एवं अपव्यय) की निगरानी, ​​साथ ही स्टॉक परिवहन की निगरानी के लिए डिजिटल खरीद प्रणाली और AI-आधारित पायलट योजना।

वैश्विक पहल और विश्व की सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • अंतरराष्ट्रीय खाद्य हानि एवं अपव्यय जागरूकता दिवस (IDAFLW): खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के नेतृत्व में 29 सितंबर को खाद्य हानि एवं अपव्यय की वैश्विक चुनौती के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 12.3: इसका उद्देश्य खुदरा और उपभोक्ता स्तर पर प्रति व्यक्ति वैश्विक खाद्य अपव्यय को आधा करना और वर्ष 2030 तक उत्पादन एवं आपूर्ति शृंखलाओं में खाद्य हानि को कम करना है।
  • यूरोपीय संघ (EU) खाद्य हानि एवं अपव्यय निवारण कार्यक्रम: यह ‘फार्म टू फूड’ रणनीतियों, खाद्य अपव्यय की अनिवार्य रिपोर्टिंग, खाद्य बैंकों के माध्यम से पुनर्वितरण, तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका – खाद्य पुनर्प्राप्ति चुनौती (EPA): अतिरिक्त भोजन दान करके और अपरिहार्य अपशिष्ट को खाद तथा जैव ऊर्जा में पुनर्चक्रित करके खाद्य अपव्यय को रोकने के लिए संगठनों को प्रोत्साहित करता है।
  • जापान का खाद्य पुनर्चक्रण कानून (2001): व्यवसायों को अतिरिक्त खाद्यान्न को पशु आहार, उर्वरक और जैव ईंधन में पुनर्चक्रित करने की आवश्यकता होती है, जिससे पुनर्चक्रण दर 80% से अधिक हो जाती है।
  • दक्षिण कोरिया का अनिवार्य खाद्य अपशिष्ट पुनर्चक्रण: स्मार्ट डिब्बों के साथ ‘पे-एज-यू-थ्रो’ प्रणाली लागू करता है और 95% से अधिक खाद्य अपशिष्ट को चारे, खाद या ऊर्जा में पुनर्चक्रित करता है।
  • चीन का ‘क्लीन प्लेट अभियान’ (2020): अत्यधिक ऑर्डर के विरुद्ध जागरूकता को बढ़ावा देता है, जिम्मेदार उपभोग को प्रोत्साहित करता है।
  • वैश्विक नवीन प्रौद्योगिकियाँ
    • हर्मेटिक स्टोरेज (अफ्रीका): एयरटाइट स्टोरेज बैग और साइलो (जैसे- पर्ड्यू इम्प्रूव्ड क्रॉप स्टोरेज – PICS बैग)  ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि को अत्यधिक कम करते हैं।
    • यूरोप और अमेरिका में IoT और AI: स्मार्ट सेंसर, ब्लॉकचेन ट्रेसेबिलिटी और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स भंडारण, परिवहन और वितरण को अनुकूलित करते हैं।
    • कोल्ड चेन मॉडल (नीदरलैंड, डेनमार्क): एकीकृत ‘फार्म-टू-रिटेल’ कोल्ड चेन जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं का संरक्षण करती हैं, नुकसान कम करती हैं और पोषण संबंधी गुणवत्ता सुनिश्चित करती हैं।

अनाज भंडारण बुनियादी ढाँचे में वृद्धि के लाभ

  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा: NFSA (2013) के अंतर्गत लगभग 67% आबादी के लिए बफर स्टॉक सुनिश्चित करता है, पंचायत/ग्राम स्तर तक खाद्य सुरक्षा को मजबूत करता है और फफूँद संदूषण, कीटों तथा अफ्लाटॉक्सिन को रोकता है।
  • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी: वैज्ञानिक भंडारण क्षमता का विस्तार वर्तमान नुकसान को लगभग 10-15% तक कम करता है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने और अपव्यय-जनित उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है (SDG 13 – जलवायु कार्रवाई का समर्थन करते हुए)।
  • मूल्य स्थिरीकरण और किसान सशक्तीकरण: किसानों को संकटकालीन बिक्री से बचाता है, उपभोक्ताओं को मुद्रास्फीति से बचाता है, और किसानों को बाजार चुनने, स्थानीय स्तर पर कृषि-इनपुट तक पहुँचने, आय में विविधता लाने तथा बेहतर मूल्य प्राप्त करने की अनुमति देता है।
  • कम हैंडलिंग और परिवहन लागत: पैक्स (PACS) को खरीद केंद्र और उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के रूप में स्थापित करने से, अनाज को कई बार परिवहन करने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे रसद लागत और रिसाव कम होता है।
  • कुशल एवं लचीली आपूर्ति शृंखला: विकेंद्रीकृत भंडारण, खेतों और उपभोक्ताओं के बीच के अंतराल को पाटता है, जिससे एक स्थिर एवं पारदर्शी अनाज वितरण प्रणाली सुनिश्चित होती है।
  • आपदा तैयारी: सूखा, बाढ़ या महामारी जैसी आपात स्थितियों के लिए भंडार बनाए रखता है, जिससे आपूर्ति लचीलापन मजबूत होता है।
  • क्षेत्रीय संतुलन और रणनीतिक महत्त्व: राज्य-स्तरीय असमानताओं को कम करता है, अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी में सुधार करता है और जलवायु परिवर्तन एवं जनसंख्या वृद्धि के विरुद्ध राष्ट्रीय खाद्य संप्रभुता में वृद्धि करता है।

भारत में खाद्यान्न भंडारण- प्रमुख आयाम और चुनौतियाँ

  • सामाजिक-आर्थिक आयाम
    • खाद्य संबंधी अन्याय और भुखमरी संबंधी विरोधाभास: यद्यपि भारत ने वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड ~354 मिलियन मीट्रिक टन खाद्यान्न की कटाई की है, फिर भी लाखों लोग खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हैं। कटाई के बाद होने वाला नुकसान, कमजोर समूहों तक भोजन पहुँचने से रोकता है, जिससे उपलब्धता और पहुँच के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है।
    • कमजोर समूहों पर प्रभाव: कुपोषण महिलाओं, बच्चों और हाशिए पर स्थित समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहा है। दूध, दालें, फल और सब्जियों जैसी वस्तुओं में पोषक तत्त्वों की कमी, प्रछन्न भूख के संकट को और बढ़ा देती है।
    • वैश्विक भूख सूचकांक (2024): भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर है, जो भुखमरी के गंभीर स्तर को दर्शाता है। बौनापन (आयु के हिसाब से कम ऊँचाई) और ऊँचाई के हिसाब से कम वजन जैसे संकेतक, खाद्य हानि से बढ़ती पोषण संबंधी गहरी कमी को दर्शाते हैं।
    • सामाजिक असमानता: शहरी मध्यम वर्ग उपभोक्ता स्तर पर भोजन की बर्बादी करता है, जबकि गरीब परिवारों को राशन की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वितरण तथा उपभोग में असमानताएँ उजागर होती हैं।
  • पर्यावरणीय आयाम
    • बर्बाद प्राकृतिक संसाधन: ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि से जल, भूमि और ऊर्जा की अपव्यय होती है। वैश्विक स्तर पर, बर्बाद भोजन के कारण वार्षिक रूप से लगभग 250 अरब क्यूबिक मीटर ताजे जल की खपत होती है। अकेले भारत में, यह नुकसान लगभग 10 करोड़ लोगों की वार्षिक पेयजल आवश्यकता के बराबर है।
    • मृदा और जल क्षरण: लैंडफिल में फेंका गया भोजन मेथेन उत्सर्जन और विषाक्त निक्षालन उत्पन्न करता है, जिससे भूजल दूषित होता है और मृदा का क्षरण होता है।
    • जलवायु भार: खाद्य अपशिष्ट वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 8-10% का योगदान देता है, जो विमानन और जहाजरानी क्षेत्रों के संयुक्त उत्सर्जन से भी अधिक है। भारत में खाद्य अपशिष्ट से वार्षिक रूप से 33 मिलियन टन से अधिक CO₂ समतुल्य उत्सर्जन होता है।
  • आर्थिक आयाम
    • प्रत्यक्ष मौद्रिक प्रभाव: NABCONS (2022) ने अनुमान लगाया है कि  ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि ₹1.5 ट्रिलियन होगी जो कृषि-जीडीपी के 3.7% के बराबर है।
    • किसानों की आय: खराब होने से विपणन योग्य अधिशेष कम हो जाता है, जिससे बिक्री में संकट उत्पन्न होता है और बीज, उर्वरक और सिंचाई में निवेश क्षमता सीमित हो जाती है।
    • खाद्य मुद्रास्फीति: घाटे से प्रेरित आपूर्ति की कमी से सब्जियों, दालों और प्याज की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे मुद्रास्फीति संबंधी अस्थिरता बढ़ती है और परिवारों पर बोझ पड़ता है।
    • समष्टि आर्थिक तनाव: खाद्य पदार्थों के खराब होने पर सिंचाई, सब्सिडी, बिजली और खरीद पर सार्वजनिक व्यय निरर्थक हो जाता है, जिससे सामाजिक लाभ प्रदान किए बिना राजकोषीय लागत बढ़ जाती है।
      • कोल्ड चेन और भंडारण प्रणालियाँ आपूर्ति शृंखला की दक्षता को कमजोर करती हैं और चारा खराब होने का कारण बनती हैं, जिससे पशुपालन का अर्थशास्त्र प्रभावित होता है।
  • खाद्यान्न भंडारण में लगातार बाधाएँ
    • अपर्याप्त भंडारण क्षमता: फसल वृद्धि के बावजूद, वर्तमान क्षमता माँग के 60% से भी कम को पूरा कर पाती है, जिससे FCI गोदामों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ जाती है।
    • क्षेत्रीय असंतुलन: दक्षिणी राज्य 90% से अधिक क्षमता बनाए रखते हैं, जबकि उत्तरी राज्य 50% से भी कम क्षमता पर कार्य करते हैं, जिससे रसद संबंधी बाधाएँ और बर्बादी होती है।
    • ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि: कीटों, नमी और अवैज्ञानिक भंडारण के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 10-15% अनाज नष्ट हो जाता है, जिससे राष्ट्रीय भंडार और किसानों की आय दोनों कम हो जाती है।
    • कमजोर कोल्ड चेन अवसंरचना: भारत के 8,815 कोल्ड स्टोरेज (जून 2025 तक 402.18 लाख मीट्रिक टन क्षमता) जल्दी खराब होने वाले, पोषक तत्त्वों से युक्त खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने के लिए अपर्याप्त हैं, जिससे प्रछन्न भुखमरी की स्थिति और भी खराब हो रही है।
    • तकनीकी कमियाँ: स्टील साइलो, वायुरोधी भंडारण और IoT-आधारित निगरानी को सीमित रूप से अपनाने के कारण यह प्रणाली पुराने गोदामों पर निर्भर है।
    • शासन संबंधी मुद्दे: FCI, राज्य एजेंसियों और सहकारी समितियों की भूमिकाओं का एक-दूसरे से मेल न खाने से समन्वय में देरी होती है, जबकि रिसाव और अन्यत्र उपयोग से कार्यकुशलता कम होती है।
    • जलवायु जोखिम: बाढ़, लू और अत्यधिक वर्षा में वृद्धि के कारण खुले भंडारण (CAP) पर प्रभाव पड़ता है, जिससे भंडार खराब होने और संदूषण का शिकार हो जाता है।

आगे की राह

  • आधुनिक और जलवायु-अनुकूल अवसंरचना: भंडारण और शीत शृंखला सुविधाओं का उन्नयन आवश्यक है।
    • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) जैसी योजनाओं के तहत प्री-कूलिंग इकाइयों, प्रशीतित परिवहन, आधुनिक गोदामों और मशीनीकृत साइलो में निवेश से अनाज आधारित वस्तुओं के नुकसान को अत्यधिक कम किया जा सकता है।
    • सौर ऊर्जा से संचालित कोल्ड स्टोरेज और कम लागत वाले कूलिंग चैंबर्स का विस्तार विशेष रूप से लघु किसानों के लिए मददगार होगा।
  • अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम हस्तक्षेप: ये हस्तक्षेप आपूर्ति शृंखला में खाद्य हानि को कम करते हैं, गुणवत्ता में सुधार करते हैं, कुशल वितरण सुनिश्चित करते हैं, और खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को मजबूत करते हैं।
    • अपस्ट्रीम: ‘पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि में मशीनीकरण से रिसाव कम होता है; फसल कटाई के बाद की बेहतर देखभाल (सुखाना, थ्रेसिंग, ग्रेडिंग) नुकसान को रोकती है; और जलवायु-प्रतिरोधी बीजों को अपनाने से चरम मौसम से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
    • डाउनस्ट्रीम: ‘फार्म-गेट’ से लेकर खुदरा क्षेत्र तक कोल्ड चेन का विस्तार, अधिशेष अवशोषण के लिए खाद्य प्रसंस्करण पार्कों का निर्माण और रीफर वैन तथा गोदामों के माध्यम से रसद को मजबूत करके खेत से बाजार तक के अंतर को कुशलतापूर्वक पाटा जा सकता है।
  • योजनाओं का अभिसरण: भारत को कृषि अवसंरचना कोष (AIF), PMKSY और विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के बीच सामंजस्य की आवश्यकता है।
    • ये सब मिलकर ‘फार्म टू फूड’ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकते हैं:- 
      • PACS, उपज एकत्र करती हैं।
      • AIF भंडारण के लिए धन मुहैया कराता है। 
      • PMKSY प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाती है। 
      • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) अंतिम छोर तक वितरण सुनिश्चित करती है।
  • डिजिटल और स्मार्ट समाधान: तकनीक को मुख्यधारा में लाना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) माँग का पूर्वानुमान लगा सकता है और भंडारण को अनुकूलित कर सकता है; इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) सेंसर वास्तविक समय में अनाज की गुणवत्ता की निगरानी कर सकते हैं; और ब्लॉकचेन खरीद और वितरण में पारदर्शिता ला सकता है।
    • डिजिटल डैशबोर्ड SDG 12.3 (वर्ष 2030 तक खाद्य अपशिष्ट को आधा करना) की दिशा में प्रगति की निगरानी कर सकते हैं।
  • सहकारी और सामुदायिक संस्थाओं को मजबूत करना: निष्क्रिय PACS को पुनर्जीवित करना और उन्हें पंचायत स्तर पर भंडारण, खरीद और खुदरा गतिविधियों से जोड़ना, परिवहन लागत को कम करेगा और किसानों को सशक्त बनाएगा।
    • किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के साथ एकीकरण सामुदायिक स्तर पर एकत्रीकरण और विपणन को मजबूत कर सकता है।
  • टिकाऊ और चक्रीय प्रथाएँ: वायुरोधी भंडारण को बढ़ावा देने से कीटों और कवकों से होने वाले नुकसान में कमी आती है, जबकि चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल अपनाने से (अतिरिक्त भोजन को खाद, पशु आहार या जैव ऊर्जा में परिवर्तित करने से) लैंडफिल में जमाव को रोका जा सकता है और मेथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
  • हितधारक भागीदारी: प्रभावी हितधारक भागीदारी सरकार, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और उपभोक्ताओं के बीच समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित करती है ताकि खाद्य हानि को कम किया जा सके और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सके।
    • सरकार: जलवायु और खाद्य सुरक्षा नीतियों में खाद्य हानि में कमी को एकीकृत करना, योजनाओं का अभिसरण सुनिश्चित करना और नवाचार को समर्थन देना आवश्यक है।
    • निजी क्षेत्र: भंडारण, कोल्ड चेन, लॉजिस्टिक्स और खाद्य-तकनीकी समाधानों में निवेश करना चाहिए।
    • नागरिक समाज एवं गैर-सरकारी संगठन: खाद्य बैंकों का विस्तार कर सकते हैं, जागरूकता अभियान संचालित कर सकते हैं और पुनर्वितरण नेटवर्क का समर्थन कर सकते हैं।
    • उपभोक्ता: ‘खाद्य बचाना, खाद्य बाँटना’ जैसे जिम्मेदार उपभोग अभियानों के माध्यम से प्लेट-स्तर पर होने वाली बर्बादी को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना।
  • खाद्य सुरक्षा को जलवायु कार्रवाई से जोड़ना: खाद्यान्न हानि को कम करने से दोहरा लाभ होता है, यह कमजोर आबादी के लिए उपलब्धता में सुधार करता है और साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को भी कम करता है।
    • इससे भारत की खाद्य सुरक्षा मजबूत होती है और पेरिस समझौते के तहत उसकी जलवायु प्रतिबद्धताएँ आगे बढ़ती हैं।

निष्कर्ष

खाद्यान्न हानि और बर्बादी को कम करने से SDG 12.3 (जिम्मेदार उपभोग), SDG 2 (शून्य भुखमरी) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) को बढ़ावा मिलता है, जबकि संवैधानिक मूल्यों [अनुच्छेद-39 (b) – समान संसाधन वितरण; अनुच्छेद-47 – पोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य] को बनाए रखते हुए एक समावेशी, सतत् और खाद्य रूप से सुरक्षित समाज का निर्माण सुनिश्चित किया जाता है।

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