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G2: अमेरिका-चीन संबंध

Lokesh Pal November 05, 2025 02:46 24 0

संदर्भ

डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी बैठक से पूर्व सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, ‘G2 शीघ्र ही आयोजित होगा!’

एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग के बारे में

  • स्थापना: एशिया-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, व्यापार उदारीकरण और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1989 में स्थापित किया गया था।
  • स्वरूप: एक क्षेत्रीय आर्थिक मंच (संधि-आधारित संगठन नहीं); निर्णय गैर-बाध्यकारी और सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
  • सचिवालय: सिंगापुर में स्थित।
  • सदस्यता: प्रशांत क्षेत्र की 21 अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है:-
    • वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 50%
    • विश्व व्यापार का लगभग 50%
    • विश्व की लगभग 40% जनसंख्या (2.7 अरब लोग)।
    • प्रमुख सदस्यों में अमेरिका, चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और इंडोनेशिया शामिल हैं।
    • भारत वर्तमान में एक पर्यवेक्षक सदस्य है, पूर्ण सदस्य नहीं।

भारत और APEC

  • सदस्यता प्रयास
    • भारत ने वर्ष 1993 और फिर वर्ष 2007 में APEC की सदस्यता के लिए आवेदन किया था, लेकिन वर्ष 1997 में नए सदस्यों पर लगे प्रतिबंध के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया।
    • कुछ सदस्य (जैसे- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) भारत के प्रवेश का समर्थन करते हैं; जबकि अन्य सदस्य भारत की व्यापार बाधाओं और RCEP जैसे प्रमुख व्यापार समूहों में उसकी गैर-सदस्यता का हवाला देते हुए, सतर्कता बरतते हैं।
  • सहभागिता: भारत एक पर्यवेक्षक के रूप में भाग लेता है और कनेक्टिविटी, डिजिटल व्यापार और सतत् विकास पर क्षेत्रीय पहलों के माध्यम से सदस्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ अनौपचारिक रूप से सहयोग करता है।

संबंधित तथ्य

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुसान में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की।

शिखर सम्मेलन के मुख्य बिंदु

  • व्यापार युद्धविराम: अमेरिका और चीन ने अमेरिका के साथ एक वर्ष के व्यापार युद्धविराम पर सहमति जताई है, जिसके तहत टैरिफ को 57% से घटाकर 47% किया जाएगा, चीन अमेरिका से सोयाबीन का आयात फिर से शुरू करेगा और नए दुर्लभ मृदा निर्यात प्रतिबंधों को स्थगित करेगा।
  • दुर्लभ मृदा और सामरिक सामग्रियाँ: चीन ने 5 दुर्लभ मृदा धातुओं (रक्षा और तकनीक के लिए महत्त्वपूर्ण) पर प्रतिबंधों को स्थगित कर दिया है; इसे एक सामरिक रियायत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन 7 धातुओं पर अभी भी प्रतिबंध आरोपित है।
  • फेंटेनल सहयोग: चीन ने फेंटेनल के पूर्ववर्ती निर्यात के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का वादा किया; अमेरिका ने भी फेंटेनल से संबंधित टैरिफ को आधा करके जवाबी कार्रवाई की।
  • प्रौद्योगिकी और सेमीकंडक्टर: सेमीकंडक्टर तक पहुँच पर चर्चा हुई, लेकिन उच्च-स्तरीय AI चिप (जैसे- एनवीडिया ब्लैकवेल) के निर्यात प्रतिबंध में कोई बदलाव नहीं; ट्रंप ने भविष्य में वार्ता की संभावना का संकेत दिया।
  • रणनीतिक संदेश और परिणाम: दोनों पक्षों ने ताइवान मुद्दे पर वार्ता से दूरी बनाई, यूक्रेन पर सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की; शी जिनपिंग ने कहा कि चीन ‘किसी भी देश की भूमि ग्रहण करने की कोशिश नहीं करता है’, जिससे प्रतिद्वंद्विता के बजाय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने का संकेत मिलता है।

G2 के बारे में

  • उत्पत्ति: यह शब्द अर्थशास्त्री फ्रेड बर्गस्टन (2005) द्वारा गढ़ा गया, जिन्होंने अमेरिका और चीन को दो लोगों का समूह” के रूप में परिकल्पित किया था, जो वैश्विक आर्थिक सुधार और स्थिरता के समन्वय हेतु एक भू-आर्थिक समूह है।
  • उद्देश्य: व्यापार, जलवायु, वित्त तथा वैश्विक शासन जैसे विषयों पर सहयोग हेतु, यह तंत्र G7/G20 के समान तो है, परंतु दो प्रमुख शक्तियों के प्रभुत्व में संचालित होता है।
  • विकास
    • इस विचार को वर्ष 2008-09 के ट्रांस-अटलांटिक वित्तीय संकट (TAFC) के दौरान बल मिला, जिसे वैश्विक वित्तीय संकट (GFC) भी कहा जाता है।
    • TAFC के परिणाम: ट्रांस-अटलांटिक अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्राँस) का संकुचन और वैश्विक आय एवं व्यापार में चीन की हिस्सेदारी में तीव्र वृद्धि होना।
    • चीन की प्रतिक्रिया: एक व्यापक राजकोषीय प्रोत्साहन लागू किया, विश्व व्यापार को स्थिर किया और वैश्विक अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ को भी राहत मिली।
    • इसने चीन को एक प्रणालीगत स्थिरता प्रदान करने वाले के रूप में स्थापित किया, जिससे उसके उत्थान में तेजी आई और अमेरिका तथा चीनी अर्थव्यवस्थाओं की गहरी परस्पर निर्भरता उजागर हुई।
    • हालाँकि इसे कभी संस्थागत रूप नहीं दिया गया, फिर भी यह अवधारणा समय-समय पर तब उभरी, जब भी वैश्विक संकटों ने अमेरिका-चीन अक्ष की केंद्रीयता को उजागर किया।
  • वर्तमान पुनरुत्थान: ट्रंप की घोषणा ‘G2 शीघ्र ही आयोजित होगा’ इस विचार के औपचारिक राजनीतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है, जो चीन को अमेरिका के समकक्ष स्वीकार करने और द्विध्रुवीय, प्रभाव-क्षेत्रीय ढाँचे के माध्यम से वैश्विक प्रबंधन करने के उद्देश्य का संकेत देता है।

भारत और इसके निकट क्षेत्र के लिए निहितार्थ

  • रणनीतिक पुनर्संरेखण: अमेरिका-चीन ‘G2’ चीन को अमेरिका के समकक्ष के रूप में उभारता है, जिससे एक संतुलनकारी साझेदार के रूप में भारत का रणनीतिक मूल्य कम हो जाता है।
  • बहुध्रुवीयता का क्षरण: G2 एक द्विध्रुवीय व्यवस्था का संकेत देता है, जो उभरती शक्तियों को समान प्रतिनिधित्व देने वाली बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के भारत के दृष्टिकोण को कमजोर करता है।
    • दो देशों में शक्ति का संकेंद्रण भारत, जापान और आसियान जैसी मध्यम शक्तियों को हाशिए पर लाता है।
    • उदाहरण: भारत की वर्ष 2023 की G20 अध्यक्षता ने एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ पर बल दिया, जिसमें बहुध्रुवीय समावेशन पर जोर दिया गया, जो G2 शक्ति संकेंद्रण के विपरीत है।
  • हिंद-प्रशांत और क्वाड पर प्रभाव
    • क्वाड का प्रभाव कम होना: क्वाड की रणनीतिक प्रासंगिकता कम होती जा रही है, क्योंकि अमेरिका चीन के साथ संतुलन के स्थान पर उसके साथ समझौते को प्राथमिकता दे रहा है।
      • चीन एशिया में (दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक) रणनीतिक अवस्थिति प्राप्त कर रहा है, जबकि अमेरिका की निवारक विश्वसनीयता कम हो रही है।
    • क्षेत्रीय आर्थिक और सुरक्षा दबाव: भारत और ब्राजील अब चीन (47%) की तुलना में उच्च अमेरिकी टैरिफ (लगभग 50%) का सामना कर रहे हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो रही है।
      • दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव आर्थिक दबाव और सीमा पर उसकी आक्रामकता को बढ़ा सकता है।
  • रूस कारक: भारत को एक बदलते त्रिकोणीय समीकरण के बीच रूस को आश्वस्त’ करना जारी रखना चाहिए, जहाँ अमेरिका मौन रूप से चीन-रूस साझेदारी को स्वीकार करता है।
    • अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर टैरिफ में 10% की कमी की, जबकि चीन रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है।
    • बुसान वार्ता के दौरान ट्रंप द्वारा रूस के साथ चीन के तेल व्यापार को स्वीकार करने से पश्चिमी प्रतिबंध कम हुए हैं और भारत का ऊर्जा संतुलन जटिल हो गया है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: एशियाई राष्ट्र (जापान, ऑस्ट्रेलिया, आसियान) अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं; संभवतः वे अमेरिका से स्वतंत्र होकर गहन अंतर-एशियाई सहयोग की ओर अग्रसर होंगे।
    • क्षेत्रीय संतुलन चीनी केंद्रीयता की ओर झुक रहा है, जिससे भारत अपने पड़ोस और समुद्री कूटनीति को मजबूत करने के लिए बाध्य हो रहा है।

पुस्तक ‘द इंडिया वे: स्ट्रैटेजीज फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ (2020) में

  • विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत की बहुपक्षीय नीति के लिए उसे “अमेरिका को शामिल करना, चीन को प्रबंधित करना, यूरोप को साधना, रूस को आश्वस्त करना, जापान को शामिल करना, पड़ोसियों को शामिल करना, पड़ोस का विस्तार करना और समर्थन के पारंपरिक क्षेत्रों का विस्तार करना होगा।”

भारत के लिए आगे की राह

  • बहु-संरेखण रणनीति को पुनर्परिभाषित करना: भारत को अमेरिका को प्रबंधित करना, चीन से जुड़ना, रूस को आश्वस्त करना और यूरोप को विकसित करना’ के दृष्टिकोण से अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को और गहरा करना होगा।
  • क्षेत्रीय और मध्य-शक्ति गठबंधनों को मजबूत करना: G2 के द्वि-एकाधिकार को संतुलित करने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया, आसियान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करना।
  • आर्थिक और तकनीकी लचीलेपन को सुदृढ़ करना: G2-संचालित व्यापार समूहों के प्रति जोखिम को कम करने के लिए विनिर्माण, डिजिटल और अर्द्धचालक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता में तेजी लाना।
    • उदाहरण: भारत सेमीकंडक्टर मिशन (2024-25) और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं हरित प्रौद्योगिकी के लिए PLI योजनाएँ उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करती हैं।
  • बहुध्रुवीय और समावेशी वैश्विक मंचों पर नेतृत्व: द्विध्रुवीय प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए G20, BRICS+, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और वैश्विक दक्षिण मंचों में नेतृत्व को पुनः स्थापित करना।
    • उदाहरण: भारत की G-20 अध्यक्षता (2023) और वर्ष 2025 की निरंतर संलग्नताओं के दौरान, नई दिल्ली ने अफ्रीकी संघ के समावेशन का समर्थन किया, जिससे बहुध्रुवीयता और समतापूर्ण शासन को बल मिला।
  • पड़ोसी और समुद्री कूटनीति को गहरा करना: भारत की परिधि को सुरक्षित करने के लिए नेबरहुड फर्स्ट’ और सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के माध्यम से प्रभाव बढ़ाना।
  • दीर्घकालिक रणनीतिक धैर्य को संस्थागत बनाना: प्रतिक्रियात्मक कूटनीति से बचना; दीर्घकालिक क्षमता निर्माण में निवेश करते हुए अमेरिका और चीन दोनों के साथ संबंध प्रगाढ़ करना।
    • उदाहरण: सीमा तनावों के बावजूद, चीन के प्रति भारत की सतर्क नीति तथा ब्रिक्स-प्लस मंच पर उसका निरंतर जुड़ाव उस रणनीतिक परिपक्वता को प्रतिबिंबित करता है, जो प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग के मध्य संतुलन स्थापित करने में सक्षम है।
  • चीन और अमेरिका के साथ मुद्दा-आधारित सहयोग: वैश्विक मुद्दों (जलवायु, स्वास्थ्य) पर सहयोग करके, प्रौद्योगिकी और व्यापार में प्रतिस्पर्द्धा करके और सुरक्षा मामलों पर वार्ता करके एक क्षेत्र-वार दृष्टिकोण अपनाना।
    • G20, ब्रिक्स+ और हिंद-प्रशांत जैसे मंचों के माध्यम से दोनों शक्तियों को व्यावहारिक रूप से शामिल करना तथा अनुचित साझेदारी से बचना।

निष्कर्ष

चूँकि G2 एक अनौपचारिक और अप्रतिष्ठित अवधारणा बनी हुई है, इसलिए भारत को बहुध्रुवीय ढाँचे और क्षेत्रीय साझेदारियों को सक्रिय रूप से सुदृढ़ करना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी भी अमेरिकी-चीनी गठबंधन को उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और प्रभाव को बाधित करने से रोका जा सके।

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