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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर G-4 देशों की चर्चा

Lokesh Pal August 20, 2024 04:29 103 0

संदर्भ

हाल ही में भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान के प्रतिनिधित्व वाले G4 देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में तत्काल सुधार की माँग की है।

  • उन्होंने आधुनिक वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व की कमी एवं अपर्याप्तता के मुद्दे पर प्रकाश डाला।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बारे में

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत वर्ष 1945 में स्थापित, संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।

  • पहला सत्र: इसका पहला सत्र 17 जनवरी, 1946 को वेस्टमिंस्टर, लंदन में आयोजित किया गया। 
  • मुख्यालय: न्यूयॉर्क सिटी (New York City)
  • अधिदेश: संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।
  • सदस्य: इसमें 15 सदस्य हैं, जिनमें 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 अस्थायी सदस्य हैं, जो दो वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।
    • स्थायी सदस्य: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और यूनाइटेड किंगडम।
    • 10 अस्थायी सदस्य:  इन सदस्यों का चुनाव क्षेत्रीय आधार पर किया जाता हैं।
      • अफ्रीकी एवं एशियाई क्षेत्र से पाँच सदस्य
      • पूर्वी यूरोपीय क्षेत्र से एक सदस्य
      • लैटिन अमेरिकी एवं कैरेबियाई क्षेत्र से दो सदस्य
      • पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य क्षेत्र से दो सदस्य

अस्थाई सदस्यों का चुनाव

  • प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य दो वर्ष के कार्यकाल के लिए पाँच अस्थायी सदस्यों का चुनाव करते हैं, जिनमें से पाँच को प्रत्येक वर्ष बदल दिया जाता है।
  • अनुमोदन के लिए, किसी उम्मीदवार को उस सीट के लिए डाले गए सभी मतों में से कम-से-कम दो-तिहाई मत प्राप्त करना आवश्यक है, जिसके परिणामस्वरूप यदि दो उम्मीदवार लगभग बराबरी पर हों तो गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • सेवानिवृत्त होने वाला सदस्य तत्काल पुनःनिर्वाचन के लिए पात्र नहीं होता है।

  • निर्णयन प्रक्रिया: सुरक्षा परिषद के निर्णय बाध्यकारी हैं।
  • वीटो पॉवर: यह सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रस्ताव को वीटो (अस्वीकार) करने की स्थायी सदस्य की शक्ति को संदर्भित करता है।
    • आलोचना: पाँचों सदस्यों के पास मौजूद बिना शर्त वीटो को संयुक्त राष्ट्र का सबसे अलोकतांत्रिक चरित्र माना गया है।
      • आलोचकों का यह भी दावा है कि युद्ध अपराधों एवं मानवता के विरुद्ध अपराधों पर अंतरराष्ट्रीय निष्क्रियता का मुख्य कारण वीटो शक्ति है।
    • वीटो शक्ति के समर्थक: वे इसे अंतरराष्ट्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने वाला, सैन्य हस्तक्षेपों पर अंकुश लगाने वाला तथा अमेरिकी वर्चस्व के विरुद्ध महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय मानते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अध्याय VI: जब सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए किसी खतरे पर विचार करती है तो वह सबसे पहले अध्याय VI के तहत विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के तरीकों पर विचार करती है।
  • चार्टर का अध्याय VII: परिषद अपने निर्णयों को लागू करने के लिए भी कदम उठा सकती है।
    • वह आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है या हथियार प्रतिबंध का आदेश दे सकता है।
    • दुर्लभ अवसरों पर, सुरक्षा परिषद ने सदस्य देशों को अपने निर्णयों के क्रियान्वयन के लिए सामूहिक सैन्य कार्रवाई सहित सभी आवश्यक साधनों का उपयोग करने के लिए अधिकृत किया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता

  • लंबे समय से लंबित सुधार: वर्ष 1963 में केवल एक बार इसका विस्तार किया गया तथा इसमें 4 अस्थायी सदस्य जोड़े गए।
    • यद्यपि संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्य संख्या 113 से बढ़कर 193 हो गई है, परंतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
    • प्रतिशत में कमी: संयुक्त राष्ट्र की स्थापना वर्ष 1945 में हुई थी और इसमें कुल 51 देशों में से 11 देश शामिल थे, यानी कुल सदस्य देशों का लगभग 22%। 
      • जबकि आज संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश हैं तथा परिषद के केवल 15 सदस्य हैं, अर्थात 8% से भी कम।
  • समसामयिक मुद्दों पर विफलता: गृहयुद्धों और आंतरिक संघर्षों में प्रभावी हस्तक्षेप करने में इसकी विफलता, जहाँ राष्ट्रों की संप्रभुता एक प्रमुख विचारणीय विषय है।
    • उदाहरण के लिए: इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष, रूस-यूक्रेन संघर्ष, यमन, सीरिया और म्यांमार जैसे मामलों में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपने सदस्यों के बीच राजनीतिक विभाजन के कारण हिंसा को रोकने या सार्थक मानवीय सहायता प्रदान करने में असमर्थ रही है।
  • व्यापक एवं समावेशी प्रतिनिधित्व: संयुक्त राष्ट्र विशाल जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करता है, हालाँकि इसके स्थायी सदस्यों में केवल 5 ही हैं।
    • सुदूर पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • अनेक देश, जनसंख्या के आधार पर तथा सदस्यता के अनुपात के आधार पर, इस निकाय में पर्याप्त प्रतिनिधित्व महसूस नहीं करते हैं, जिससे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
  • समकालीन वास्तविकताएँ: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व करती है और इसलिए यह विश्व में बदलते शक्ति संतुलन के अनुरूप नहीं है।
  • स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो शक्ति: पाँच स्थायी सदस्यों (चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) को परिषद के किसी भी प्रस्ताव या निर्णय पर वीटो का विशेषाधिकार प्राप्त है।
  • अनुचित प्रतिनिधित्व एवं समानता
    • अनुचित महत्त्व: परिषद की संरचना उस समय के शक्ति संतुलन को अनुचित महत्त्व देती है।
      • उदाहरण के लिए, यूरोप में विश्व की जनसंख्या का मात्र 5% हिस्सा रहता है, तथापि किसी भी वर्ष में (रूस को छोड़कर) 33% सीटों पर उसका नियंत्रण होता है।
    • न्याय में अन्याय: जापान और जर्मनी दशकों से संयुक्त राष्ट्र के बजट में दूसरे और तीसरे सबसे बड़े योगदानकर्ता रहे हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र चार्टर में उन्हें अभी भी ‘शत्रु राष्ट्र’ के रूप में संदर्भित किया जाता है। (चूँकि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के विजयी मित्र राष्ट्रों द्वारा की गई थी) 
    • अवसर का खंडन: यह भारत जैसे अन्य देशों को अवसर से वंचित करता है, जिनकी जनसंख्या बहुत अधिक है, विश्व अर्थव्यवस्था में उनकी बड़ी हिस्सेदारी है या जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में योगदान दिया है (जैसे शांति अभियानों में भागीदारी) जिससे विश्व मामलों के विकास को आकार देने में मदद मिली है तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

G4 देश बनाम कॉफी क्लब 

  • ‘यूनाइटिंग फॉर कन्सेनसस’ (UFC) एक आंदोलन है, जिसे ‘कॉफी क्लब’ का उपनाम दिया गया है।

  • यूनाइटिंग फॉर कन्सेनसस (UfC) 1990 के दशक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों के विस्तार का विरोध करने वाले एक आंदोलन के रूप में उभरा।
  • यह G4 देशों द्वारा प्रस्तावित स्थायी सीटों के लिए दावेदारी का मुकाबला करता है।
  • सदस्य: अधिकांश सदस्य मध्यम आकार के देश हैं जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बड़ी क्षेत्रीय शक्तियों द्वारा स्थायी सीटें हासिल करने का विरोध करते हैं।
  • इस क्लब में प्रमुख स्थान पाने वाले देशों में इटली, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण कोरिया, अर्जेंटीना और पाकिस्तान शामिल हैं।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता: इसमें वे राष्ट्र शामिल हैं जो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के कारण G4 देशों का विरोध करते हैं, जैसे भारत के विरुद्ध पाकिस्तान, जर्मनी के विरुद्ध इटली, ब्राजील के विरुद्ध अर्जेंटीना एवं मैक्सिको आदि।

राष्ट्रों को किन बाधाओं का सामना करना पड़ा है? 

  • मौजूदा स्थायी सदस्यों की वीटो शक्ति: स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी में मुख्य बाधाओं में से एक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वर्तमान स्थायी सदस्यों (संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम) के पास मौजूद वीटो शक्ति है।
    • इन सदस्यों द्वारा स्थायी सीटों के विस्तार को मंजूरी देने की संभावना नहीं है, क्योंकि इससे उनकी शक्ति एवं प्रभाव कम हो जाएगा।
  • अन्य देशों से विरोध: ब्राजील, जर्मनी और जापान सहित अन्य देश भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की आकांक्षा रखते हैं और वे भारत की दावेदारी का विरोध कर सकते हैं।
    • विरोध विभिन्न कारणों से हो सकता है, जैसे क्षेत्रीय राजनीति या संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्द्धा।
  • मौजूदा सदस्यों के बीच आम सहमति का अभाव: स्थायी सीटों के विस्तार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मौजूदा सदस्यों के बीच कोई आम सहमति नहीं है।
    • कुछ सदस्य इस विचार के लिए तैयार हो सकते हैं, जबकि अन्य इसका विरोध कर सकते हैं। आम सहमति के बिना, भारत की कोशिश सफल होने की संभावना नहीं है।
  • ऐतिहासिक मुद्दे: शीत युद्ध के दौरान भारत के गुटनिरपेक्षता के इतिहास और वर्ष 1998 में उसके परमाणु परीक्षणों ने कुछ देशों में नकारात्मक धारणा उत्पन्न की है। इन ऐतिहासिक मुद्दों का इस्तेमाल स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का विरोध करने के आधार के रूप में किया जा सकता है।
  • वर्तमान मुद्दे: भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड, उसकी कश्मीर नीति और चीन तथा पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवादों का इस्तेमाल भी स्थायी सीट के लिए उसकी उपयुक्तता पर सवाल उठाने के लिए किया गया है।
    • इन मुद्दों का इस्तेमाल भारत के प्रयास का विरोध करने वाले देशों द्वारा उसके खिलाफ तर्क देने के लिए किया जा सकता है।
  • वित्तीय योगदान: कुछ सदस्य यह तर्क दे सकते हैं कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र को पर्याप्त वित्तीय योगदान नहीं दिया है, जो स्थायी सदस्यता के लिए विचार किए जाने का मानदंड है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार एजेंडा

  • वर्तमान वार्ता प्रक्रिया निर्णय 62/557 पर आधारित है जिसे वर्ष 2008 में अपनाया गया था।
  • इसमें सुधार के लिए पाँच प्रमुख मुद्दे परिभाषित किये गये हैं:-
    • सदस्यता की श्रेणियाँ
    • वीटो का प्रश्न
    • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व
    • सुरक्षा परिषद का विस्तारित आकार और इसकी कार्य पद्धतियाँ
    • सुरक्षा परिषद और महासभा के बीच संबंध।
  • निर्णय 62/557: इसमें यह भी कहा गया है कि किसी भी समाधान को ‘सर्वाधिक संभव राजनीतिक स्वीकृति’ प्राप्त करनी होगी, हालाँकि वर्ष 1998 में संयुक्त राष्ट्र महासभा पहले ही इस बात पर सहमत हो चुकी थी कि संयुक्त राष्ट्र के दो-तिहाई सदस्य देशों का समर्थन पर्याप्त है।
  • सर्वसम्मति बनाम बहुमत: फिर भी, यदि ये शर्तें पूरी भी हो जाएँ तो भी P5 में से कोई भी अंतिम प्रस्ताव पर वीटो लगा सकता है।
    • उदाहरण के लिए चीन और रूस ने पहले कहा था कि सुधार सर्वसम्मति पर आधारित होना चाहिए, न कि बहुमत पर।

G4 द्वारा सुझाया गया रोडमैप

G4 राष्ट्रों द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार हेतु निम्नलिखित माँगें रखी गईं:

  • प्रतिनिधित्व में वृद्धि: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार के समूह के मॉडल में स्पष्ट रूप से प्रस्ताव दिया गया है कि छह स्थायी और चार या पाँच अस्थायी सदस्यों को जोड़कर सुरक्षा परिषद की सदस्यता को वर्तमान 15 से बढ़ाकर 25-26 किया जाए।
    • छह नए स्थायी सदस्यों में से दो-दो सदस्य अफ्रीकी देशों और एशिया प्रशांत देशों से, एक-एक सदस्य लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों से तथा एक-एक सदस्य पश्चिमी यूरोपीय देशों और अन्य देशों से प्रस्तावित है।
  • अफ्रीका पर ध्यान केंद्रित करना: G4 का मानना ​​है कि स्थायी एवं अस्थायी श्रेणियों में अफ्रीकी प्रतिनिधित्व, अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और प्रभावी परिषद के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार का एक अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए।
    • अफ्रीका की महत्ता: अफ्रीका एक ऐसा महाद्वीप है जिसकी जनसांख्यिकी सबसे युवा है, प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, इस महाद्वीप की आर्थिक क्षमताएँ बढ़ रही हैं, अफ्रीका एक बड़े बाजार के रूप में उभर रहा है।
  • ऐतिहासिक अन्याय: G4 ने जोर देकर कहा कि प्रमुख बहुपक्षीय निकायों में प्रतिनिधित्व अभी भी अफ्रीका एवं दुनिया के कई अन्य क्षेत्रों के लिए एक वास्तविकता नहीं है और इस ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करना आवश्यक है।
    • यह बात न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से, बल्कि भावी पीढ़ियों के दृष्टिकोण से भी सत्य है।
    • G20 ने पिछले वर्ष सितंबर 2023 में भारत की अध्यक्षता में आयोजित नई दिल्ली शिखर सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी संघ को पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया था।
    • चूँकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की चर्चा के एजेंडा में अफ्रीका का हिस्सा 70 प्रतिशत से अधिक है, इसलिए इसके स्थायी मुद्दों को संबोधित किया जाना चाहिए।
  • भावी कार्रवाई: आगामी कुछ दिनों में न्यूयॉर्क में वार्षिक उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के लिए वैश्विक नेता एकत्रित होंगे तथा वे संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा आयोजित महत्त्वाकांक्षी भविष्य के शिखर सम्मेलन में भी भाग लेंगे।
    • शिखर सम्मेलन में अंतर-सरकारी स्तर पर बातचीत के आधार पर, कार्रवाई-उन्मुख ‘भविष्य के लिए समझौता’ तैयार किया जाएगा, जिसमें अन्य बातों के अलावा सतत विकास एवं वृद्धि के लिए वित्तपोषण, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर अध्याय होंगे।

ग्रुप ऑफ फोर (G4) राष्ट्रों के बारे में

  • G4 राष्ट्र पारंपरिक रूप से वार्षिक उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान मिलते हैं।
  • प्रतिनिधित्व: यह ब्राजील, जर्मनी, भारत और जापान के समूह का प्रतिनिधित्व करता है जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के इच्छुक हैं।
  • उद्देश्य: इसका गठन वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करने के लिए किया गया था।

आगे की राह 

  • पुनर्गठित UNSC: 21वीं सदी की बदलती भू-राजनीति में स्थायी सदस्यता के लिए भारत का दावा एक वास्तविक माँग है। स्थायी सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए भारत संभवतः सबसे स्पष्ट एवं सबसे कम विवादास्पद विकल्प है।
  • एकतरफा कामकाज से बचना चाहिए: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपनी योजनाओं और कार्यों के कारण लगातार आलोचनाओं का शिकार हो रही है, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में विफलता हो रही है।
    • ऐसा कहा जाता है कि यह निर्विवाद अधिकार के साथ एकतरफा तरीके से कार्य कर रहा है, केवल निहित स्वार्थों के लिए कार्य कर रहा है तथा अपने निर्णय लेने में गैर-स्थायी सदस्यों को शामिल नहीं कर रहा है।

निष्कर्ष

सुरक्षा परिषद एकमात्र वैश्विक प्रणाली है जो सभी देशों को एक साझा मंच पर लाती है, इसलिए इसकी प्रभावशीलता एवं प्रासंगिकता को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए यथाशीघ्र सुधारवादी कदम उठाए जाने चाहिए।

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