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राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) कार्यान्वयन में खामियाँ

Lokesh Pal November 06, 2024 04:29 46 0

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) को दी गई रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP) के कार्यान्वयन में खामियों का खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

  • उपलब्धियाँ: निधि उपयोग के मामले में शीर्ष पाँच शहर हैं: अमृतसर (99%), झाँसी (98%), पुणे (96%), झारखंड (94%) तथा नवी मुंबई (92%)।
    • आधार वर्ष 2017 की तुलना में अमृतसर में PM10 के स्तर में 38% सुधार देखा गया।
  • प्रमुख योगदानकर्ता: PM10 के प्रमुख स्रोत के रूप में सड़क की धूल, वाहनों से निकलने वाला धुआँ एवं उद्योग क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन है।
  • कार्यान्वयन अंतराल: इसमें ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’ के पूरा न होने और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लक्ष्यों को पूरा करने में खराब प्रदर्शन और NCAP निधियों का कम उपयोग शामिल है।
    • NCAP निधि का कम उपयोग: NCAP के तहत निधि व्यय के मामले में दिल्ली सबसे निचले पाँच शहरों में से एक है, जहाँ इसकी 68% निधि का उपयोग नहीं हुआ है। (इसने आवंटित 42.69 करोड़ रुपये में से केवल 13.56 करोड़ रुपये का उपयोग किया है।)
      • NCR शहरों में फरीदाबाद 39% व्यय के साथ सबसे पीछे रहा, गाजियाबाद ने 89% उपयोग किया तथा नोएडा ने सबसे कम 11% उपयोग दर्ज किया।
    • प्रदूषण न्यूनीकरण लक्ष्य: रिपोर्ट के अंतर्गत शामिल 19 शहरों में से केवल पाँच शहर ही अब तक वार्षिक वायु प्रदूषण न्यूनीकरण लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं।
      • उदाहरण: आवंटित धनराशि का 92% खर्च करने के बावजूद, नवी मुंबई में PM10 का स्तर 11% तक खराब हो गया है।
    • अपूर्ण ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’: 19 शहरों में से आठ (जैसे- फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद और अमृतसर और खुर्जा के NCR शहर) ने विभिन्न प्रदूषण स्रोतों के योगदान का आकलन करने के लिए ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’ अभी तक पूरा नहीं किया है।
      • दिल्ली के ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’ से पता चलता है कि PM10 का 17.5-30.6% स्तर मिट्टी, सड़क की धूल और निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न होता है, जबकि 12-37% कोयला और फ्लाई ऐश से उत्पन्न होता है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के बारे में

  • यह वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक ढाँचा तैयार करने का पहला राष्ट्रीय प्रयास है, जिसमें संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के बीच सहयोगात्मक, बहु-स्तरीय और अंतर-क्षेत्रीय दृष्टिकोण शामिल है।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)।
  • लक्ष्य: वर्ष 2017 को आधार वर्ष मानकर वर्ष 2025-26 तक PM10 सांद्रता के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों की प्राप्ति अथवा 40% तक की कमी लाना।
  • उद्देश्य
    • देश भर में एक प्रभावी और कुशल परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को बढ़ाना और विकसित करना तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण एवं उपशमन के लिए शमन उपायों का कठोर कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • लक्ष्य
    • PM10 के स्तर में 3-15% की कमी: 82 शहरों को PM10 के स्तर में 3-15% की कमी लानी है, जिससे वायु गुणवत्ता में PM10 के स्तर में 40% तक की समग्र कमी लाई जा सके।
      • इन्हें केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया जाता है और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के माध्यम से वितरित किया जाता है
    • वार्षिक PM10 स्तर में 15% की कमी: 15वें वित्त आयोग के वायु गुणवत्ता अनुदान के अंतर्गत 49 शहरों को वार्षिक औसत PM10 सांद्रता में 15% की कमी लानी है।
      • इन्हें 15वें वित्त आयोग के तहत अनुदान द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, जो राज्य वित्त मंत्रालयों और शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से दिया जाता है।
  • लक्षित शहर: कार्यक्रम कुल मिलाकर 131 शहरों पर केंद्रित है, जिसमें सभी हितधारकों को शामिल करके 24 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 123 गैर-प्राप्ति शहर (Non-Attainment Cities- NAC) और अतिरिक्त दस लाख से अधिक शहर (Million-Plus Cities- MPC) शामिल हैं।
    • गैर-प्राप्ति शहर (NAC): ये वे शहर हैं, जो लगातार पाँच वर्षों तक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा नहीं करने के लिए पहचाने गए हैं।
    • मिलियन-प्लस शहर (MPC): वायु गुणवत्ता सुधार के लिए प्रदर्शन आधारित अनुदान प्राप्त करने के लिए 15वें वित्त आयोग द्वारा पहचाने गए।
  • प्रगति की निगरानी: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme) के कार्यान्वयन की निगरानी PRANA पोर्टल (गैर-प्राप्ति शहरों में वायु प्रदूषण के विनियमन के लिए पोर्टल) द्वारा की जाएगी।
    • यह पोर्टल शहर की वायु कार्य योजना के कार्यान्वयन की भौतिक और वित्तीय स्थिति पर नजर रखेगा तथा NCAP के अंतर्गत वायु गुणवत्ता प्रबंधन प्रयासों के बारे में जनता को जानकारी प्रदान करेगा।

राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS)

  • ये तकनीकी मानक हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए बिना वायु में मौजूद प्रदूषकों की अधिकतम मात्रा निर्धारित करते हैं।
  • द्वारा अधिसूचित: मानकों को CPCB [वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 द्वारा दी गई शक्तियों के तहत] द्वारा वर्ष 2009 में अधिसूचित किया गया है।
  • कवरेज: इसमें 12 प्रदूषक शामिल हैं:- सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, PM10, PM5, ओजोन, लेड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, बेंजीन, बेंजो पायरीन, आर्सेनिक, निकेल।
  • निगरानी: CPCB राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) के माध्यम से NAAQS के अनुपालन की निगरानी करता है।

सीमाएँ

  • खराब व्यय प्रबंधन: सड़क की धूल को नियंत्रित करने के लिए गड्ढों को ढँकने, यांत्रिक सफाई मशीनों एवं जल के छिड़काव आदि जैसे कार्यों पर भारी राशि खर्च की गई है, जबकि उद्योग से होने वाले विषाक्त उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर एक प्रतिशत से भी कम राशि खर्च की गई है।
    • ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (CSE) की एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि 10,566.47 करोड़ रुपये में से 40% धनराशि अप्रयुक्त रह गई है।
  • मिश्रित परिणाम: पाँच वर्ष के अंत में यह कार्यक्रम ज्यादातर विफल रहा है, फिर भी अधिकांश शहर वर्ष 2017 के स्तर की तुलना में वायु प्रदूषण सांद्रता को 20-30% कम करने के NCAP के लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहे हैं।
    • एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2014-2021 के दौरान वायु प्रदूषण को कम करने में अधिकांश लाभ तेज हवाओं एवं अन्य मौसम संबंधी कारकों के कारण हुआ है।
  • गलत क्रियान्वयन: NCAP का प्राथमिक फोकस धूल जैसे मोटे PM10 कणों को कम करना है, जबकि इसे PM2.5 कणों को कम करने पर होना चाहिए, जो तब उद्योग परिवहन और दहन के अन्य स्रोतों से उत्सर्जन को संबोधित करेंगे।
  • संकीर्ण पहुँच: ऊर्जा और स्वच्छ वायु पर अनुसंधान केंद्र के विश्लेषण के अनुसार, NCAP द्वारा कवर नहीं किए गए वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर की रिपोर्ट करने वाले शहरों की संख्या बढ़ रही है।
  • क्षेत्रीय स्तर पर बेमेल स्थिति: परिवहन से होने वाला वायु प्रदूषण भारत के वायु प्रदूषण भार का एक-चौथाई से अधिक हिस्सा बनाता है, लेकिन NCAP फंड का केवल 13% इन उत्सर्जन को संबोधित करने के लिए निर्देशित किया जाता है। इसी तरह उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन को भी नजरअंदाज किया जाता है।
  • प्रगति के परस्पर विरोधी मीट्रिक: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) कार्यक्रम के विभिन्न घटकों में प्रगति को कवर करने वाले 258 मीट्रिक की एक सूची रखता है, लेकिन दो चैनलों (82 शहर और 49 शहर) के लिए सफलता के मीट्रिक अलग-अलग हैं, जिससे बेंचमार्किंग एक जटिल प्रयास बन जाता है।

आगे की राह

  • प्रदर्शन बेंचमार्क को फिर से परिभाषित करना: वर्तमान PM10 के बजाय PM2.5 को प्रदर्शन-संबंधी वित्तपोषण के लिए बेंचमार्क बनाना।
  • मेट्रिक्स को सरल बनाना: दहन स्रोतों को प्राथमिकता देने के लिए मेट्रिक्स में सुधार करना और वित्तपोषण को क्षेत्रीय लक्ष्यों से जोड़ना जैसे कि परिवहन क्षेत्रों से प्रदूषण को कम करने पर खर्च किए जाने वाले फंड का 25%, जो भारत के प्रदूषण में लगभग एक-चौथाई योगदान देता है।
    • शहरों में नियोजन और कार्यान्वयन के लिए मजबूत संस्थागत तंत्र और क्षमता स्थापित करना।
  • PRANA पोर्टल में सुधार: PRANA पोर्टल को सार्वजनिक डोमेन में अधिक जानकारी डालने की आवश्यकता है, जैसे कि प्रदूषण स्रोतों की सूची प्रदान करना या शहरों ने वायु प्रदूषण में कमी कैसे हासिल की है, इस बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना।
  • ‘एयरशेड दृष्टिकोण’ (Airshed Approach) को लागू करना: यह दृष्टिकोण राजनीतिक या प्रशासनिक सीमाओं के विपरीत एक सामान्य भौगोलिक क्षेत्र में प्रदूषण को संबोधित करता है, जबकि औद्योगिक उत्सर्जन को NCAP कार्य योजनाओं के तहत टाला जाता है क्योंकि वे शहर और नगरपालिका सीमाओं से परे शहरों की परिधि में स्थित हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) वायु प्रदूषण की सीमा पार प्रकृति को पहचानता है और उसका समाधान करता है।

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