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विश्व व्यापार संगठन का गैटीफिकेशन (GATTification)

Lokesh Pal December 25, 2024 04:37 19 0

संदर्भ

जिनेवा स्थित विश्व व्यापार संगठन (WTO), जो एक बहुपक्षीय ट्रेड रेफरी के रूप में कार्य करता है, अब तक ‘एक पूर्ण एवं अच्छी तरह से कार्य करने वाली विवाद निपटान प्रणाली’ को पुनर्स्थापित नहीं कर पा रहा है। उल्लेखनीय है कि अब तक पाँच वर्ष हो गए हैं, जब से अपीलीय निकाय (AB), WTO की दो-स्तरीय विवाद निपटान प्रणाली का दूसरा स्तर, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय के सदस्यों की नियुक्ति को लगातार अवरुद्ध करने के कारण गैर-संचालनशील रहा है।

  • इस संकट ने विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटान प्रणाली को कमजोर किया है, जिससे WTO के समक्ष प्रभावी रूप से लागू करने योग्य कानूनी निर्णयों के बजाय कूटनीति पर निर्भर रहने वाले गैट (GATT) दौर जैसी संभावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बारे में

  • GATT की स्थापना: प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (General Agreement on Tariffs and Trade-GATT) की शुरुआत वर्ष 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में हुई थी, जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की वित्तीय प्रणाली की नींव रखी गई तथा दो प्रमुख संस्थानों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) एवं विश्व बैंक की स्थापना की गई। 
  • इसी दौरान वर्ष 1947 में जिनेवा में 23 देशों द्वारा हस्ताक्षरित GATT के रूप में एक समझौता 1 जनवरी, 1948 को निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ लागू हुआ:
    • आयात कोटा के उपयोग को समाप्त करने के लिए तथा वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार पर शुल्क कम करने हेतु।
  • GATT वर्ष 1948 से अंतरराष्ट्रीय व्यापार को संचालित करने वाला एकमात्र बहुपक्षीय साधन (एक संस्था नहीं) बन गया, जब तक कि वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना नहीं हुई।
  • उरुग्वे दौर वर्ष 1987 से वर्ष 1994 तक आयोजित किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप मारकेश समझौता हुआ, जिसके द्वारा विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई।
    • 15 अप्रैल, 1994 को 124 देशों द्वारा हस्ताक्षरित मारकेश समझौते के अंतर्गत 1 जनवरी, 1995 को WTO ने परिचालन शुरू किया।
    • इसने प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (GATT) की जगह ली है, जो वर्ष 1948 में प्रारंभ हुआ था।

WTO के कार्य

  • मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना: गैर-भेदभाव और पारदर्शिता जैसे व्यापार नियमों को स्थापित और बनाए रखता है। साथ ही, यह टैरिफ और कोटा जैसी बाधाओं को कम करता है।
  • व्यापार विवादों का समाधान: व्यापार विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने के लिए एक कानूनी ढाँचा और प्रक्रिया प्रदान करता है। यह व्यापारिक भागीदारों के बीच बातचीत और मध्यस्थता के लिए एक मंच भी प्रदान करता है।

WTO की संगठनात्मक संरचना

  • मंत्रिस्तरीय सम्मेलन: यह WTO का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्ष में होती है।
  • सामान्य परिषद: यह WTO के दिन-प्रतिदिन के संचालन की देखरेख करती है और इसका मुख्यालय जिनेवा में स्थित है।
    • यह व्यापार वार्ता समिति, विवाद निपटान निकाय और व्यापार नीति समीक्षा निकाय के रूप में भी कार्य करता है।
  • विवाद निपटान पैनल: WTO सदस्यों के बीच विशिष्ट व्यापार विवादों की जाँच करने और निष्कर्षों तथा सिफारिशों के साथ रिपोर्ट जारी करने के लिए स्थापित किया गया।
  • अपीलीय निकाय: व्यापार विवादों में पैनल के निर्णयों के विरुद्ध अपील के लिए सात सदस्यों की एक स्थायी समिति के रूप में इसकी स्थापना की गई थी। इसके प्राथमिक कार्यों में शामिल हैं:-
    • साक्ष्य की पुनः जाँच किए बिना कानूनी व्याख्याओं की समीक्षा करना।
    • पैनल के निष्कर्षों को बनाए रखना, संशोधित करना या परिवर्तित करना।
    • अनुपालन एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए अंतिम और बाध्यकारी निर्णय प्रदान करना।

गैटीफिकेशन  (GATTification) के बारे में

  • विश्व व्यापार संगठन की वर्तमान स्थिति GATT दौर की ओर वापसी का संकेत देती है, जिसे अक्सर WTO के ‘गैटीफिकेशन’ (GATTification) के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसकी मुख्य विशेषता ‘लागू करने योग्य कानूनी निर्णयों के बजाय कूटनीति आधारित व्यापार वार्ता’ है।
  • यह बदलाव प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) युग के सिद्धांतों और प्रथाओं की ओर वापसी का संकेत देता है, जो वर्ष 1995 में शुरू की गई नियम आधारित प्रणाली के बजाय कूटनीति संचालित व्यापार वार्ता है।
  • अपीलीय निकाय (AB) में गतिरोध और वैश्विक व्यापार संबंधों की बदलती गतिशीलता इस प्रवृत्ति का उदाहरण है।

इस गैटीफिकेशन  (GATTification) के प्रमुख संकेतक

  • कानूनी अधिकार का क्षरण: संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा नियुक्तियों को लगातार अवरुद्ध करने के कारण WTO के अपीलीय निकाय की निष्क्रियता ने संगठन को अपने निर्णयों को प्रभावी ढंग से लागू करने में असमर्थ बना दिया है। कानूनी अधिकार में यह शून्यता राष्ट्रों को विवादों को हल करने के लिए तदर्थ राजनयिक समाधानों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1962 के व्यापार विस्तार अधिनियम (Trade Expansion Act) की धारा 232 के अंतर्गत राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2018 में स्टील पर 25% और एल्युमीनियम आयात पर 10% टैरिफ लगाया था।
    • यूरोपीय संघ और कनाडा जैसे व्यापारिक साझेदारों की चुनौतियों के बावजूद, एक कार्यशील अपीलीय निकाय की अनुपस्थिति ने इन विवादों को अनसुलझा छोड़ दिया है, जिससे WTO की विश्वसनीयता कम हुई।
  • एकपार्श्विकतावाद (Unilateralism) का उभार: कानूनी परिणामों के डर के बिना, सदस्य राष्ट्र तेजी से एकपक्षीयता आधारित साधनों का सहारा ले रहे हैं, जो WTO के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
    • यह प्रवृत्ति विशेष रूप से अमेरिका और चीन के बीच व्यापार उपायों और प्रतिशोधात्मक टैरिफ के बढ़ते प्रयोग में स्पष्ट है।
  • खंडित वार्ता: महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति तक पहुँचने में WTO सदस्यों की अक्षमता के कारण WTO सदस्यों के एक उपसमूह के बीच बहुपक्षीय समझौतों में वृद्धि हुई है, जो संगठन की बहुपक्षीय प्रकृति को कमजोर करती है।
    • ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (CPTPP) और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) क्षेत्रीय एवं द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के लिए बढ़ती प्राथमिकता को प्रदर्शित करते हैं।
    • ये रूपरेखाएँ अक्सर प्रमुख WTO सदस्यों को संगठन के दायरे से बाहर कार्य करती हैं, जिससे इसकी प्रासंगिकता और कम हो जाती है।
  • कानूनी प्रतिबद्धताओं में कमी: राष्ट्र अपनी व्यापार नीतियों पर संप्रभुता का दावा करते हैं, बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं का विरोध करने को विवश हो रहे हैं। यह प्रवृत्ति वैश्विक व्यापार उदारीकरण को बढ़ावा देने की तुलना में राष्ट्रीय हितों की रक्षा की ओर एक व्यापक बदलाव को दर्शाती है।
    • वर्ष 2019 में RCEP वार्ता से हटने का भारत का निर्णय इस प्रवृत्ति को रेखांकित करता है। अपने घरेलू उद्योगों एवं किसानों पर संभावित प्रभाव के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए, भारत ने वैश्विक व्यापार ढाँचे में गहन एकीकरण पर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी।

विश्व व्यापार संगठन के गैटीफिकेशन के निहितार्थ

  • विवाद समाधान में अनिश्चितता: अपीलीय निकाय के बिना, असहमत पक्ष गैर-संचालन तंत्र में अपील कर सकते हैं, जिससे विवाद समाधान अनिश्चित काल तक के लिए रुक सकता है।
  • संरक्षणवाद का उदय: देश मुक्त व्यापार और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को कमजोर करते हुए व्यापार अवरोध और सब्सिडी लगा रहे हैं।
  • विश्वास का क्षरण: अनुपालन लागू करने में WTO की अक्षमता बहुपक्षीय प्रणाली में विश्वास को कम करती है, जिससे द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों को बढ़ावा मिलता है।
  • विकासशील देशों पर प्रभाव: WTO के नियम आधारित ढाँचे पर निर्भर छोटे देशों की अर्थव्यवस्थाएँ, खंडित व्यापार व्यवस्था में अधिक कमजोरियों का सामना करती हैं।
  • वैधीकरण में मुक्त होना: बाध्यकारी कानूनी निर्णयों से पीछे हटकर लचीले, राजनीतिक रूप से बातचीत के परिणामों की ओर बढ़ना।
  • संप्रभुता: कानूनी चुनौतियों के डर के बिना संरक्षणवादी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रों के लिए अधिक स्वायत्तता मिलती है।
  • बहुपक्षीयवाद: WTO के बहुपक्षीय ढाँचे को दरकिनार करते हुए, देशों के छोटे समूहों के बीच मुद्दे-विशिष्ट समझौतों पर निर्भरता बढ़ रही है।

आगे की राह

  • अपीलीय निकाय में सुधार: नए सदस्यों की नियुक्ति और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके इसकी स्वतंत्रता और दक्षता सुनिश्चित करना।
  • नियमों का आधुनिकीकरण: प्रौद्योगिकी, बाजार की गतिशीलता और वैश्विक प्राथमिकताओं में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिए व्यापार विनियमों को अपडेट करना।
  • समावेशीपन को बढ़ावा देना: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकासशील देशों की भागीदारी को बढ़ाना।
  • बहुपक्षवाद को मजबूत करना: संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और IMF जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना।
  • भारत का रुख: भारत, विश्व व्यापार संगठन की बहुपक्षीय भावना को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर देता है। यह बहुपक्षीय समझौतों की ओर बदलाव का विरोध करता है, जो अक्सर विकासशील देशों को बाहर रखते हैं और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के हितों को प्राथमिकता देते हैं।
  • विवाद निपटान प्रणाली का पुनर्स्थापन: भारत एक कार्यात्मक और लागू करने योग्य विवाद समाधान प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए अपीलीय निकाय को पुनर्स्थापित करने का दृढ़ता से समर्थन करता है।
    • यह उन छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो अधिक शक्तिशाली व्यापारिक देशों के विरुद्ध अपने हितों की रक्षा के लिए नियम आधारित प्रणाली पर निर्भर हैं।

निष्कर्ष 

विश्व व्यापार संगठन का गैटीफिकेशन इसके मूल सिद्धांतों से हटने को प्रतिबिंबित करता है। जबकि संगठन के कानूनी ढाँचे ने वैश्विक व्यापार में अभूतपूर्व स्थिरता और पूर्वानुमान की पेशकश की, इसकी वर्तमान चुनौतियाँ एकपार्श्विकतावाद और संरक्षणवाद की ओर एक व्यापक भू-राजनीतिक बदलाव को दर्शाती हैं। विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता को पुनर्स्थापित करने के लिए विश्वास का पुनर्निर्माण, नियमों का आधुनिकीकरण और एक निष्पक्ष एवं समावेशी बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है।

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