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लैंगिक वेतन अंतराल

Lokesh Pal March 21, 2024 06:06 275 0

संदर्भ

हाल ही में विश्व बैंक समूह (World Bank Group) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि पुरुषों को भुगतान किए गए प्रत्येक $1 पर महिलाओं को केवल 77 सेंट मिलते हैं, जो लैंगिक वेतन असमानता को रेखांकित करता है।

लैंगिक वेतन अंतरालकी गणना कैसे की जाती है?

  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा परिभाषा: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation) लैंगिक वेतन अंतराल को पुरुषों एवं महिलाओं के बीच असमानता के ‘मापन योग्य संकेतक’ के रूप में परिभाषित करता है।
    • वेतन स्तरों के बीच अंतर: ILO लैंगिक वेतन अंतराल को श्रम बाजार में मासिक, प्रति घंटा या दैनिक वेतन के लिए काम करने वाली सभी महिलाओं एवं पुरुषों के वेतन स्तरों के बीच अंतर के रूप में परिभाषित करता है।
    • औसत वेतन अंतर: यह सभी कामकाजी महिलाओं एवं पुरुषों के बीच औसत वेतन अंतर को संदर्भित करता है, न कि केवल समान कार्य के लिए।
  • यह समान कार्य के लिए समान वेतन से कैसे भिन्न है
    • यह ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ से भिन्न है, जिसके लिए समान कार्य करने वाले एवं समान योग्यता वाले पुरुषों एवं महिलाओं के लिए समान वेतन की आवश्यकता होती है।
  • गणना में भिन्नता: अंतर निर्धारित करने का कोई एक तरीका नहीं है। अलग-अलग संगठन भिन्न-भिन्न मापदंड अपनाते हैं, जैसे कि प्रति घंटा या साप्ताहिक वेतन, जिसके परिणामस्वरूप असमान निष्कर्ष निकलते हैं।
  • लैंगिक असमानता: पद्धतिगत मतभेदों के बावजूद, अधिकांश देशों एवं उद्योगों में लैंगिक वेतन असमानता मौजूद है, जो दर्शाता है कि असमानता एक समस्या बनी हुई है।

लैंगिक वेतन अंतराल के कारण

  • श्रम बल में कम भागीदारी (Low Labour Force Participation): सांस्कृतिक अपेक्षाओं एवं स्थापित लैंगिक मानदंडों के कारण पुरुषों की तुलना में कार्यबल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अक्सर कम होता है।
    • कक्षा 10 में नामांकित लड़कियों की संख्या में वृद्धि के बावजूद, भारत की महिला LFPR दो दशकों में 30% से गिरकर 25% हो गई है।
  • व्यावसायिक पृथक्करण: महिलाओं को कम-वेतन वाले पदों या उद्योगों में नियोजित किए जाने की अधिक संभावना है, जबकि इंजीनियरिंग एवं कंप्यूटर विज्ञान जैसे उच्च-वेतन वाले क्षेत्रों में पुरुषों का वर्चस्व है, जिसके परिणामस्वरूप औसत वेतन में असमानताएँ होती हैं।
    • नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (National Association of Software and Services Companies-NASSCOM) द्वारा किए गए शोध के अनुसार, प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्रों में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 29% कम कमाती हैं, वरिष्ठ प्रबंधन स्तरों पर यह अंतर और भी बढ़ जाता है।
  • कम प्रतिनिधित्व: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ‘व्यवसाय एवं प्रबंधन में महिलाएँ’ रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं को प्रबंधन या नेतृत्व पदों पर रहने की संभावना कम है, खासकर उच्च स्तर पर, जो आय को प्रभावित कर सकती है तथा लैंगिक वेतन अंतराल में योगदान कर सकती है।
  • देखभाल अर्थव्यवस्था (Care Economy): अक्सर देखभाल की जिम्मेदारियों के कारण, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अंशकालिक काम अधिक सामान्य है। अंशकालिक काम के लिए अक्सर कम भुगतान किया जाता है और पूर्णकालिक पदों की तुलना में कम लाभ प्रदान करता है।
    • जब महिलाएँ बच्चों की देखभाल के लिए अपने प्रोफेशनल काम से समय निकालती हैं, तो उनकी कमाई प्रभावित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रगति की संभावना कम हो जाती है या कार्यस्थल पर भेदभाव होता है।
  • लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes): महिलाओं से देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देने की अपेक्षा की गई है, जो कार्यस्थल की गतिशीलता को प्रभावित कर सकती है एवं उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिए महिलाओं को कम महत्त्व दिया जा सकता है अथवा उनकी अनदेखी की जा सकती है।
  • कम शैक्षणिक निवेश: महिलाओं की उत्कृष्ट शिक्षा तक पहुँच सीमित हो सकती है या उन्हें सांस्कृतिक मानदंडों अथवा वित्तीय प्रतिबंधों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जो उन्हें उच्च शिक्षा या विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने से रोकते हैं।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कार्यस्थल पर एवं यात्रा के दौरान सुरक्षा संबंधी चिंताएँ महिलाओं के रोजगार विकल्पों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।
  • सेवा क्षेत्र में भेदभाव: 20वीं सदी में सेवा उद्योग के बढ़ने के साथ-साथ वेतन भेदभाव काफी विकसित हुआ।

श्रम बल भागीदारी दर

पुरुष

महिला

वैश्विक 72% 47%
भारत 53.26% 25.51%

  • आयु-संबंधित पैटर्न: रोजगार डेटा के आयु-आधारित विश्लेषण से पता चलता है कि महिलाओं की आय में समान पदों एवं व्यवसायों में पुरुषों की तुलना में 30 तथा 40 की उम्र के बीच गिरावट आती है। इसका कारण अक्सर बच्चों या बुजुर्ग रिश्तेदारों की देखभाल के लिए महिलाओं द्वारा लिए गए कॅरियर ब्रेक को माना जाता है।
  • कार्य-परिवार संतुलन: प्रसिद्ध अर्थशास्त्री क्लाउडिया गोल्डिन का तर्क है कि पुरुषों को पारंपरिक रूप से अपनी नौकरी को प्राथमिकता देने की अनुमति दी गई है, जबकि महिलाओं को पारिवारिक कर्तव्यों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
  • धीमा सुधार: माता-पिता की छुट्टी एवं काम के लचीलेपन जैसी नीतियाँ धीरे-धीरे कमाई के अंतर को कम करती हैं, लेकिन प्रगति धीमी है।

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