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जीन एडिटिंग थेरेपी

Lokesh Pal May 20, 2025 03:30 5 0

संदर्भ

विश्व में पहली बार, अमेरिकी शोधकर्ताओं ने CRISPR-आधारित जीन एडिटिंग का सफलतापूर्वक उपयोग करके KJ नामक एक बच्चे का उपचार किया, जो कार्बामॉयल फॉस्फेट सिंथेटेस 1 (CPS-1) की कमी से पीड़ित था, जो एक जानलेवा आनुवंशिक विकार है।

CPS-1 की कमी के बारे में

  • कार्बामॉयल फॉस्फेट सिंथेटेस 1 (CPS-1) की कमी एक दुर्लभ लेकिन गंभीर यूरिया चक्र विकार (Urea Cycle Disorder – UCD) है। यह विकार CPS1 जीन में उत्पन्न होने वाले म्यूटेशन के कारण होता है, जिससे यकृत (लीवर) अमोनिया को यूरिया में बदलने की क्षमता खो देता है। 
    • लगभग 50% नवजातों की मृत्यु इस रोग के कारण होती है, विशेषकर अगर शीघ्र निदान और आक्रामक उपचार न किया जाए।
  • लक्षण: रोगियों में निम्नलिखित लक्षण देखे जाते हैं: शरीर में अमोनिया के निर्माण के कारण सुस्ती और साँस लेने में तकलीफ।
  • पारंपरिक उपचार की सीमाएँ: यकृत प्रत्यारोपण प्रायः एकमात्र दीर्घकालिक उपचार होता है, लेकिन शिशु आमतौर पर जीवन के शुरुआती दौर में इस प्रक्रिया के लिए तैयार नहीं होते हैं।
  • चिकित्सीय सफलता: डॉक्टरों ने KJ नामक एक बच्चे के जीनोम में उत्परिवर्तन को ठीक करने के लिए “के-एबे’’ (k-abe) नामक अनुकूलित CRISPR-आधारित जीन-एडिटिंग  चिकित्सा का उपयोग किया।
  • लक्षित वितरण: जीन-एडिटिंग उपकरण को यकृत तक सुरक्षित वितरण के लिए लिपिड नैनोकणों में समाहित किया गया था।
  • परिणाम: तीन बार इंजेक्शन लगाने के बाद, बच्चा प्रोटीन को सहन कर सकता था, उसे कम दवा की खुराक की आवश्यकता थी और बिना किसी गंभीर दुष्प्रभाव के वजन बढ़ना शुरू हो गया।
  • FDA अनुमोदन: U.S. FDA ने इस व्यक्तिगत चिकित्सा के लिए आपातकालीन स्वीकृति प्रदान की, जो दुर्लभ रोग प्रबंधन में जीन-एडिटिंग की बढ़ती स्वीकृति को उजागर करती है।

सफलता का महत्त्व

  • इन-विवो एडिटिंग की नैदानिक ​​सफलता: यह पहला व्यक्तिगत इन-विवो जीन-एडिटिंग उपचार था, जो सीधे मानव शरीर के अंदर किया गया।
  • अनुकूलित थेरेपी: यह हजारों दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के लक्षित उपचार का मार्ग प्रशस्त करता है, जहाँ अंग प्रत्यारोपण या आजीवन दवा का उपयोग वर्तमान में एकमात्र विकल्प है।
  • सटीक उपचार: लिपिड नैनोकणों के उपयोग ने प्रतिरक्षा जटिलताओं को उत्प्रेरित किए बिना यकृत तक सुरक्षित और सटीक वितरण सुनिश्चित किया।

जीन एडिटिंग थेरेपी (Gene Editing Therapy) क्या है?

  • जीन एडिटिंग  को थेरेपी एक तरह का उपचार है, जिसमें रोग के विकास के लिए जिम्मेदार दोषपूर्ण जीन को ठीक करने के लिए DNA में परिवर्तन किया जाता है।
  • यह जीन थेरेपी से अलग है, जिसमें आमतौर पर मौजूदा जीन में बदलाव किए बिना एक सामान्य जीन जोड़ा जाता है।
  • प्रयोग किया जाने वाला उपकरण: सबसे सामान्य उपकरण CRISPR-Cas9 है, जो दोषपूर्ण DNA अनुक्रमों को काटने और बदलने के लिए आणविक कैंची (Molecular Scissors) के रूप में कार्य करता है।

जीन थेरेपी के प्रकार

लक्षित सेल के आधार पर प्रकार

पहलू

सोमेटिक जीन थेरेपी

 (Somatic Gene Therapy)

जर्मलाइन जीन थेरेपी

 (Germline Gene Therapy)

लक्षित कोशिकाएं सोमेटिक जीन थेरेपी शरीर की गैर-प्रजनन कोशिकाओं, जैसे यकृत या रक्त कोशिकाओं को लक्षित करती है। जर्मलाइन जीन थेरेपी जनन कोशिकाओं को लक्षित करती है, जिसमें शुक्राणु या अंडाणु कोशिकाएँ शामिल हैं।
आनुवांशिकता सोमेटिक सेल में किए गए आनुवंशिक परिवर्तन भावी पीढ़ियों तक नहीं पहुँचते। आनुवंशिक परिवर्तन वंशानुगत होते हैं तथा संतानों में स्थानांतरित हो सकते हैं।
चिकित्सीय सीमाए  इसका उपयोग आनुवंशिक विकारों या बीमारियों से पीड़ित मौजूदा रोगियों के उपचार के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य भावी पीढ़ियों को आनुवंशिक विकारों से बचाना है।
नैतिक स्वीकार्यता सोमेटिक जीन थेरेपी को विश्व स्तर पर नैदानिक ​​अभ्यास में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और इसका प्रयोग किया जाता है। जर्मलाइन जीन थेरेपी नैतिक रूप से विवादास्पद है और वर्तमान में कई देशों में प्रतिबंधित है।
जोखिम स्तर इसमें अनपेक्षित दीर्घकालिक परिणामों का जोखिम कम होता है, क्योंकि परिवर्तन केवल उपचारित व्यक्ति को ही प्रभावित करते हैं। इसमें जोखिम अधिक है, क्योंकि अनपेक्षित आनुवंशिक परिवर्तन भावी पीढ़ियों को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
उदाहरण जीन संयोजन का उपयोग करके सिकल सेल एनीमिया, हीमोफीलिया और ल्यूकेमिया का उपचार। भ्रूण अवस्था में ‘टे-सैक’ (Tay-Sachs), सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis) या ‘हंटिंगटन रोग’ (Huntington’s disease) का संभावित उपचार।

प्रक्रिया के स्थान के आधार पर प्रकार: इन-विवो (In-Vivo) और एक्स-विवो (Ex-Vivo) थेरेपी

पहलू

इन-विवो जीन थेरेपी

एक्स-विवो जीन थेरेपी

परिभाषा जीन एडिटिंग सीधे रोगी के शरीर के अंदर किया जाता है। जीन एडिटिंग रोगी के शरीर से निकाली गई कोशिकाओं पर शरीर के बाहर किया जाता है।
प्रक्रिया चिकित्सीय जीन या जीन-एडिटिंग  उपकरण शरीर में लक्षित ऊतकों तक पहुँचाए जाते हैं। कोशिकाओं को प्रयोगशाला में संशोधित किया जाता है और फिर रोगी के शरीर में पुनः स्थापित किया जाता है।
समय और जटिलता यह कोशिका निष्कर्षण और पुनःप्रवेश से बचकर समग्र समय और जटिलता को कम करता है। कोशिका पृथक्करण, संवर्द्धन और पुनःप्रवेश की आवश्यकता के कारण यह अधिक जटिल है।
वितरण विधि लक्षित ऊतक वितरण के लिए वायरल वेक्टर या नैनोकणों (जैसे- लिपिड) का उपयोग करता है। जीन सम्मिलन के लिए नियंत्रित प्रयोगशाला व्यवस्था में ‘इलेक्ट्रोपोरेशन’ या ‘वायरल वैक्टर’ का उपयोग करता है।
ऊतक तक पहुँच यह उन ऊतकों के लिए सबसे उपयुक्त है, जिन तक शरीर के बाहर पहुँचना या उन्हें संशोधित करना कठिन होता है। रक्त या प्रतिरक्षा कोशिकाओं के लिए अधिक उपयुक्त जिन्हें आसानी से निकाला और पुनः संचारित किया जा सकता है।
उदाहरण शिशु KJ में CPS-1 की कमी के उपचार के लिए CRISPR का प्रयोग सीधे यकृत में किया गया। कैंसर के लिए CAR-T कोशिका थेरेपी में T-कोशिकाओं का ex-vivo संशोधन शामिल होता है।

जीन थेरेपी में भारत की तैयारी

  • नीतिगत ढाँचा: भारत ने जीन थेरेपी उत्पाद विकास और नैदानिक ​​परीक्षणों पर मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
  • बुनियादी ढाँचा: CSIR- इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (CSIR-IGIB), इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB), और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) द्वारा वित्तपोषित प्रयोगशालाएँ, जैसे- उभरते जैव प्रौद्योगिकी केंद्र जीन एडिटिंग, आणविक निदान और चिकित्सीय नवाचार जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान कर रहे हैं।
  • आगे की राह: भारत को सार्वजनिक निवेश का विस्तार करने, परीक्षण अनुमोदन में तेजी लाने और दुर्लभ बीमारियों के लिए सस्ती स्वदेशी जीन थेरेपी विकसित करने की आवश्यकता है।
    • जीनोम इंडिया परियोजना का वर्तमान परिणाम इस दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है।

अनुप्रयोग

  • वर्तमान उपयोग: सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हीमोफिलिया, ल्यूकेमिया और अब CPS-1 की कमी के लिए उपचार।
  • संभावित उपयोग: अल्जाइमर, पार्किंसंस, हृदय रोग और अन्य चयापचय या न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों जैसी बीमारियों का उपचार कर सकता है।
  • उभरता हुआ उपयोग: कैंसर इम्यूनोथेरेपी में, जहाँ एडिटिंग सेल ट्यूमर सेल को लक्षित करती हैं और उन्हें मार देती हैं।

नैतिक और विनियामक बाधाएँ

  • नैतिक चिंताएँ: जीन एडिटिंग से अनपेक्षित आनुवंशिक उत्परिवर्तन, दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणाम, तथा जर्मलाइन संशोधनों से संबंधित विवाद उत्पन्न होने का खतरा रहता है, जो भावी पीढ़ियों को प्रभावित करते हैं।
  • दुरुपयोग की संभावना: गैर-चिकित्सीय संवर्द्धन के लिए प्रौद्योगिकी के संभावित दुरुपयोग को लेकर भय बढ़ रहा है, जैसे कि चयनित लक्षणों वाले ‘डिजाइनर बेबीज’ (Designer Babies) बनाना, जिससे सामाजिक-नैतिक और न्याय संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • नियामक निरीक्षण: इस क्षेत्र में सुरक्षा, प्रभावकारिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियामक ढाँचे की आवश्यकता है, विशेषतः जब नवजात शिशुओं जैसी सुभेद्य आबादी में इसका उपयोग किया जाता है।
  • वैश्विक विचलन: जबकि अमेरिका और चीन जैसे देश परीक्षण और अनुमोदन में अग्रणी हैं, कई देश दीर्घकालिक सुरक्षा डेटा की कमी और अनसुलझे नैतिक प्रश्नों का हवाला देते हुए सतर्क बने हुए हैं।
  • लागत और पहुँच: जीन थेरेपी अत्यधिक महंगी हैं, जो समृद्ध आबादी तक पहुँच को सीमित करती हैं और स्वास्थ्य सेवा असमानता को बढ़ाती हैं। वहनीयता सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत चुनौती बनी हुई है।

निष्कर्ष

CPS-1 की कमी से पीड़ित शिशु को बचाने में ‘जीन-एडिटिंग थेरेपी’ की सफलता ने सटीक चिकित्सा में एक परिवर्तनकारी कार्य किया है। नैतिक सावधानी और विनियामक स्पष्टता के साथ, ऐसे व्यक्तिगत जीनोमिक हस्तक्षेप भारत जैसे देशों सहित स्वास्थ्य सेवा के भविष्य में क्रांति ला सकते हैं।

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