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आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें

Lokesh Pal July 09, 2025 02:00 14 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी वार्ताकार भारत से यह आग्रह कर रहे हैं कि वह अपने कृषि बाजार को आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (GM) फसलों के लिए उपलब्ध कराए।

भारत में कृषि

  • भारत की 40% से अधिक आबादी के लिए कृषि प्राथमिक आजीविका बनी हुई है।
  • भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 18% (वित्त वर्ष 2023-24 के अनुमान के अनुसार) है।
  • यह खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार और निर्यात आय के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • हालाँकि, यह क्षेत्र निम्नलिखित समस्याओं से ग्रस्त है:-
    • वैश्विक मानकों की तुलना में कम उत्पादकता।
    • जलवायु आघातों एवं कीटों के संक्रमण के प्रति उच्च संवेदनशीलता।
    • लागत-गहन कृषि (उर्वरक, कीटनाशक) मृदा और जल की गुणवत्ता को खराब कर रही है।
    • विखंडित भूमि स्वामित्व और स्थिर प्रौद्योगिकी अपनाना।
  • तकनीकी हस्तक्षेप की आवश्यकता: स्थिर पैदावार को संबोधित करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, कृषि जैव प्रौद्योगिकी को विश्व स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें ऐसे ही एक नवाचार का प्रतिनिधित्व करती हैं।

GM फसलें क्या हैं?

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें वे पौधे हैं, जिनके आनुवंशिक पदार्थ (DNA) को आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी या आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके बदला जाता है।
  • इसका लक्ष्य वांछनीय गुणों को प्रस्तुत करना है, जो स्वाभाविक रूप से मौजूद नहीं हैं या पारंपरिक प्रजनन के माध्यम से प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं।
  • सामान्य जनता के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया गया पहला आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) पौधा टमाटर था, जिसका आविष्कार वर्ष 1994 में अमेरिका में हुआ था।
  • वर्ष 2023 तक, लगभग 76 देशों में 200 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सोयाबीन, मक्का, कैनोला सहित कई अन्य फसलों की कृषि की जा रही थी।
  • प्रस्तुत किए गए सामान्य लक्षण
    • कीट प्रतिरोध (जैसे- बैसिलस थुरिंजिएंसिस से Bt जीन)
    • शाकनाशी सहिष्णुता (जैसे- ग्लाइफोसेट प्रतिरोध)
    • सूखा या लवणता के प्रति सहिष्णु
    • देरी से पकना या बेहतर शेल्फ लाइफ
    • पोषण में वृद्धि (जैसे- विटामिन A से प्रचुर गोल्डन राइस)।

GM प्रौद्योगिकी कैसे कार्य करती है?

  • आनुवंशिक संशोधन की अवधारणा
    • आनुवंशिक संशोधन में पौधे के DNA में विदेशी जीन (ट्रांसजीन) डालकर उसमें परिवर्तन करना शामिल है, जो वांछित लक्षण व्यक्त करते हैं।
    • ये जीन बैक्टीरिया, वायरस, जानवरों या अन्य पौधों से आ सकते हैं।
    • इसका लक्ष्य पौधे को एक ऐसा गुण स्थापित करना है, जो उसमें स्वाभाविक रूप से नहीं होता है, जैसे कीटों के प्रति प्रतिरोध या शाकनाशियों/सूखे के प्रति सहनशीलता।

  • जीन स्थानांतरण की तकनीकें
    • एग्रोबैक्टीरियम-मध्यस्थ जीन स्थानांतरण: एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफैसियंस का उपयोग करता है, जो एक प्राकृतिक मृदा जीवाणु है, जो पौधों को संक्रमित करता है।
      • वैज्ञानिक जीवाणु को निष्क्रिय कर देते हैं और इसे पौधे के जीनोम में वांछित जीन डालने के लिए एक वेक्टर के रूप में उपयोग करते हैं।
      • कपास और टमाटर जैसे द्विबीजपत्री पौधों के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • जीन गन (बायोलिस्टिक्स): वांछित DNA के साथ लेपित सोने या टंगस्टन कणों को पौधों की कोशिकाओं में क्षेपित किय जाता है।
      • मक्का और चावल जैसे मोनोकोट के लिए उपयोगी होता है।
      • DNA जीनोम में अनियमित ढंग से एकीकृत होता है।
    • जीनोम संपादन: CRISPR/Cas9 जैसे उपकरण विदेशी DNA प्रविष्टि के बिना मूल जीन के एडिटिंग की अनुमति देते हैं।
      • यह भारत में अभी भी शोध के चरणों में है, लेकिन तनाव सहिष्णुता और पोषण संबंधी लक्षणों के लिए अगली पीढ़ी की तकनीक के रूप में देखा जाता है।
  • पौधों में जीन एक्सप्रेशन: ट्रांसजीन एक प्राकृतिक जीन की तरह व्यवहार करता है:-
    • यह एक प्रोटीन (जैसे- Bt कॉटन में Cry1Ac) उत्पन्न करता है, जो कीटों को प्रभावित करती है।
    • HT फसलों में, जीन पौधे को ग्लाइफोसेट हर्बिसाइड स्प्रे से बचने में मदद करता है, क्योंकि यह रसायन को आंतरिक रूप से नष्ट कर देता है।

    • उदाहरण: Bt कॉटन
      • आरोपित किया गया जीन: बैसिलस थुरिंजिएंसिस से Cry1Ac या Cry2Ab
      • एक्सप्रेस्ड प्रोटीन: पौधे के ऊतकों में विष उत्पन्न करता है।
      • प्रभाव: यह आंत की परत को नष्ट करके पौधे पर भोजन के लिए आश्रित बॉलवर्म को समाप्त करता है।
  • जीन स्टैकिंग (एकाधिक लक्षण)
    • कुछ GM फसलों में एक से अधिक विशेषताएँ होती हैं, जैसे:-
      • Bt + HT कपास (कीट + शाकनाशी प्रतिरोध)।
    • जिसे ‘स्टैक्ड जीन’ या स्टैक्ड विशेषताएँ कहा जाता है, जिसकी अब किसानों द्वारा आम तौर पर माँग की जाती है।

भारत में GM फसलें

  • व्यावसायिक खेती के लिए एकमात्र स्वीकृत GM फसल: Bt कॉटन
    • Bt कॉटन (बोलगार्ड I और बोलगार्ड II) को आधिकारिक तौर पर वर्ष 2002 में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा अनुमोदित किया गया था।
      • कपास उत्पादन वर्ष 2002-03 में 13.6 मिलियन गाँठों से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 39.8 मिलियन गाँठों तक पहुँच गया, जो 193 प्रतिशत की अभूतपूर्व वृद्धि दर्शाता है।
    • वर्ष 2023-24 तक, भारत की 90% से अधिक कपास की खेती Bt कपास के अंतर्गत होगी।
    • इससे उपज में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और कीटनाशकों के उपयोग में कमी आई, विशेषकर गुजरात और महाराष्ट्र में।
    • हालाँकि, कीट प्रतिरोध और विनियामक ठहराव के कारण वर्ष 2015 से उत्पादकता लाभ स्थिर हो गया है और इसमें गिरावट आई है।
  • Bt बैंगन: स्वीकृत लेकिन स्थगन के अधीन
    • तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय और कॉर्नेल विश्वविद्यालय के सहयोग से माहिको द्वारा विकसित किया गया है।
    • वर्ष 2009 में GEAC द्वारा अनुमोदित, लेकिन सार्वजनिक विरोध और विशेषज्ञों की असहमति के बाद पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनिश्चितकालीन रोक लगा दी गई।
    • इस बीच, बांग्लादेश ने वर्ष 2013 में Bt बैंगन का व्यावसायीकरण किया, जो नीति में क्षेत्रीय विचलन को दर्शाता है।
  • GM सरसों (DMH-11): शर्तों के साथ मंजूरी दी गई लेकिन अभी तक व्यावसायीकरण नहीं हुआ।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा बार्नेसे-बारस्टार-बार जीन प्रणाली का उपयोग करके विकसित किया गया।
    • GEAC ने अक्टूबर 2022 में 4 वर्ष के व्यावसायीकरण के बाद निगरानी की आवश्यकता के साथ पर्यावरणीय मंजूरी दे दी।
    • नियामक बाधाओं और संभावित सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण वाणिज्यिक उत्सर्जन अभी भी लंबित है।
  • शाकनाशी-सहिष्णु (Herbicide-Tolerant- HT) Bt कपास: स्वीकृत नहीं है लेकिन अवैध रूप से व्यापक पैमाने पर खेती की जाती है।
    • HT-Bt कपास में कीट प्रतिरोधक क्षमता और ग्लाइफोसेट हर्बिसाइड के प्रति सहिष्णुता दोनों ही गुण हैं।
    • 2010 के दशक में जैव सुरक्षा चिंताओं के कारण महिको-मोनसेंटो कंपनी द्वारा आधिकारिक परीक्षण रोक दिए गए थे।
    • अनुमोदन न मिलने के बावजूद, विशेषतः गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भारत के 15-25% कपास क्षेत्र में अवैध HT-Bt बीजों का उपयोग किया जाता है।
    • इस बाजार ने जैव सुरक्षा और जवाबदेही के मुद्दे उत्पन्न हुए हैं, जबकि इस तरह की तकनीक के लिए किसानों की माँग भी परिलक्षित हुई है।
  • GM सोयाबीन और GM मक्का (मकई): GM सोयाबीन और मक्का की खेती को मंजूरी नहीं दी गई है, हालाँकि आयातित GM सोया/मकई पोल्ट्री और मवेशी चारा शृंखलाओं के माध्यम से प्रवेश कर चुके हैं।
    • भारत खाद्य सुरक्षा, पारिस्थितिकी और व्यापार संवेदनशीलता चिंताओं का हवाला देते हुए अनुमोदन का विरोध करना जारी रखता है।

भारत के लिए GM फसलों का महत्त्व

  • पैदावार के अंतर को पाटना: कपास, दलहन और तिलहन में भारत की पैदावार वैश्विक मानकों से बहुत कम है।
    • उस अवधि में भारतीय पैदावार में तीन गुना वृद्धि हुई, 504 किलोग्राम/हेक्टेयर का परिणाम अभी भी अमेरिका के 1,008 किलोग्राम/हेक्टेयर और चीन के 1,761 किलोग्राम/हेक्टेयर की पैदावार से बहुत पीछे है।
  • इनपुट लागत और रासायनिक निर्भरता को कम करना: Bt कपास जैसी GM फसलों ने कीटनाशकों के उपयोग को 50% तक कम कर दिया है, जिससे लागत में कटौती हुई है और पर्यावरण सुरक्षा में सुधार हुआ है।
    • HT फसलें हाथ से निराई के कार्य में कमी लाती हैं, जिससे विशेष रूप से वर्षा आधारित क्षेत्रों में श्रम निर्भरता कम होती है।
  • जलवायु लचीलापन बढ़ाना: GM संबंधी गुण सूखे, बाढ़ और गर्मी के प्रति सहिष्णुता में सुधार कर सकते हैं, जिससे कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीली हो सकती है।
    • भारत की मानसून पर निर्भर और तेजी से परिवर्तित होती जलवायु के प्रति संवेदनशील कृषि के लिए आवश्यक है।
  • पोषण सुरक्षा का समर्थन करना: गोल्डन राइस और आयरन/जिंक युक्त अनाज जैसी जैव-फोर्टिफाइड GM फसलें भुखमरी से निपटने के लिए उपाय प्रदान करती हैं।
    • सार्वजनिक पोषण कार्यक्रमों (जैसे- PDS, मिड-डे मील) को पूरक बना सकते हैं।
  • किसानों की आय और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना: Bt कपास ने आय में वृद्धि और कृषि विकास को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से गुजरात में।
    • व्यापक रूप से GM अपनाने से निर्यात (जैसे– कपास, सोयाबीन) को पुनर्सक्रिय किया जा सकता है और आयात निर्भरता (जैसे- खाद्य तेल) को कम किया जा सकता है।
  • भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना: GM सरसों (DMH-11) जैसी घरेलू तकनीकें भारत की नवाचार क्षमता को दर्शाती हैं।
    • उचित समर्थन के साथ, भारत अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) के तहत ₹1 लाख करोड़ के अनुसंधान विकास और नवाचार (RDI) पहल के तहत एशिया और अफ्रीका के लिए बीज तकनीक केंद्र का निर्माण कर सकता है।

GM फसलों के अनुप्रयोग

  • बायोफोर्टिफिकेशन: यह फसलों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने की प्रक्रिया है।
    • बायोफोर्टिफिकेशन प्राप्त करने के लिए आनुवंशिक संशोधन सबसे प्रभावी विधि के रूप में उभरा है।
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2000 में प्रस्तुत किया गया बीटा (β)-कैरोटीन-समृद्ध ‘गोल्डन राइस’, GM बायोफोर्टिफिकेशन का पहला सफल अनुप्रयोग था।
    • यह नवाचार न केवल कुपोषण को संबोधित करता है बल्कि कैंसर, मधुमेह और हृदय संबंधी समस्याओं जैसी बीमारियों को रोकने में भी मदद करता है।
  • खाद्य टीके: GM पौधों को खाद्य वैक्सीन बनाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है, जो पारंपरिक टीकों के लिए एक सुरक्षित और अधिक लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करते हैं।
    • ये टीके कम विनिर्माण लागत और न्यूनतम दुष्प्रभावों जैसे महत्त्वपूर्ण लाभों से युक्त होते हैं, जो उन्हें वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक आकर्षक नवाचार बनाते हैं।
  • जैव ईंधन: चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन, जो GM शैवाल एवं साइनोबैक्टीरिया से प्राप्त होते हैं, वे सतत् ऊर्जा का उत्पादन करने की अपनी क्षमता के लिए ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।
    • यह अनुप्रयोग पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए वैश्विक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • फाइटोरेमेडिएशन: आनुवंशिक संशोधन का उपयोग फाइटोरेमेडिएशन में किया जा रहा है, जिसमें मृदा एवं जल प्रदूषकों को स्वच्छ करने के लिए GM पौधों का उपयोग करना शामिल है।
    • प्रदूषकों का अपघटन करने वाले विशिष्ट एंजाइमों का उत्पादन करने वाले जीनों को पौधों में समाविष्ट कर उनकी जैव-इंजीनियरिंग की जा सकती है।

भारत में GM फसलों का नियामक ढाँचा

  • कानूनी आधार: भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों का विनियमन निम्नलिखित के तहत किया जाता है:-
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
      • विशेष रूप से, इस अधिनियम की धारा 6, 8 और 25 के तहत बनाए गए नियम 1989
      • इन्हें ‘खतरनाक सूक्ष्मजीवों/आनुवंशिक रूप से इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण के लिए नियम’ के रूप में जाना जाता है।
  • प्रमुख नियामक निकाय
    • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC): केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)) के अधीन कार्य करती है।
      • GM जीवों के बड़े पैमाने पर उपयोग और वाणिज्यिक प्रयोग के लिए पर्यावरणीय मंजूरी देने के लिए अंतिम प्राधिकरण।
    • जेनेटिक हस्तक्षेप पर समीक्षा समिति (Review Committee on Genetic Manipulation- RCGM): जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्य करती है।
      • पूर्व-व्यावसायिक परीक्षणों, जैव सुरक्षा अध्ययनों की निगरानी करती है और सीमित क्षेत्र परीक्षणों को मंजूरी देती है।
    • राज्य जैव प्रौद्योगिकी समन्वय समिति (State Biotechnology Coordination Committee- SBCC): राज्य संस्थानों में सुरक्षा उपायों की निगरानी करती है।
    • जिला स्तरीय समिति (DLC): जिला स्तर पर अनुपालन निरीक्षण करती है।

भारत में GM फसलों की आलोचना और चुनौतियाँ

  • विनियामक बाधाएँ एवं देरी: भारत की GM फसल स्वीकृतियाँ EPA, 1986 (नियम, 1989) के तहत एक बहुस्तरीय संरचना द्वारा शासित होती हैं।
    • उदाहरण: Bt बैंगन, जिसे वर्ष 2009 में GEAC द्वारा मंजूरी दी गई थी, अभी भी स्थगन के अधीन है।
  • न्यायिक अतिरेक और नीतिगत पक्षाघात: जनहित याचिकाओं और सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेपों की एक शृंखला ने GM फसल की तैनाती को अवरुद्ध या विलंबित कर दिया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति (TEC) ने जैव सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2013 में GM फसल के क्षेत्रीय परीक्षणों को रोकने की सिफारिश की।
  • स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: आलोचक जैव विविधता, गैर-लक्षित जीवों और मानव स्वास्थ्य पर GM खाद्य पदार्थों के प्रभावों पर दीर्घकालिक साक्ष्य की कमी का हवाला देते हैं।
    • पर्यावरणविदों का तर्क है कि GM फसलें एकल फसल को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे कृषि-विविधता को खतरा हो सकता है।
      • उदाहरण: बैंगन की विभिन्न किस्मों को Bt बैंगन से बदलने से स्थानीय किस्मों का उत्पादन कम हो सकता है।
    • किंतु एलर्जी उत्पन्न करने की क्षमता, जीन स्थानांतरण और एंटीबायोटिक प्रतिरोध संबंधी चिंताओं पर बहस जारी है।
  • सार्वजनिक अविश्वास एवं वैचारिक विरोध: गैर-सरकारी संगठनों, कार्यकर्ताओं और राजनीतिक समूहों के कड़े विरोध के कारण सार्वजनिक चर्चा में ध्रुवीकरण हुआ है।
    • उदाहरण के लिए, GM फसल विरोधी अभियानों ने वैज्ञानिक स्वीकृति के बावजूद Bt बैंगन की व्यावसायिक शुरुआत को रोक दिया।
  • पारदर्शिता और किसान भागीदारी का अभाव: GM परीक्षणों और अनुमोदनों पर अधिकांश निर्णय ‘टेक्नोक्रेट’ के नेतृत्व में होते हैं, जिसमें किसान एवं नागरिक समाज शामिल नहीं होते है।
    • परीक्षण या व्यावसायीकरण चरणों में सार्वजनिक सुनवाई के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है।
  • सुपरवीड्स और कीट प्रतिरोध का उदय: HT-Bt कपास जैसी शाकनाशी-सहिष्णु फसलों के निरंतर उपयोग से ग्लाइफोसेट-प्रतिरोधी खरपतवार उत्पन्न हो सकते हैं।
    • इसी तरह, पिंक बॉलवर्म जैसे कीटों ने Bt कपास के प्रतिरोध विकसित किया, जिससे इसकी प्रभावशीलता कम हो गई।
  • बीजों पर कॉरपोरेट नियंत्रण: GM तकनीक को प्रायः पेटेंट कराया जाता है, जिससे बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों को इनकी कृषि इनपुट पर नियंत्रण मिल जाता है।
    • यह किसानों की बीज संप्रभुता को कमजोर करता है और इनपुट लागत पर निर्भरता बढ़ाता है।
    • उदाहरण: मोनसेंटो के Bt कॉटन एकाधिकार के कारण भारत में रॉयल्टी शुल्क को लेकर विवाद हुआ।
  • पारंपरिक कृषि पद्धतियों में व्यवधान: पारंपरिक बीज-बचत और प्रजनन पद्धतियाँ कम हो रही हैं, क्योंकि किसान वाणिज्यिक GM बीजों की ओर रुख कर रहे हैं, जिन्हें दोबारा नहीं लगाया जा सकता या फिर उनका दोबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  • अगली पीढ़ी की GM फसलों को मंजूरी नहीं: भारत ने कई अगली पीढ़ी की GM फसलों (जैसे- HT-Bt कॉटन, GM सरसों, Bt बैंगन) को सफल परीक्षणों और कुछ मामलों में GEAC के बावजूद मंजूरी नहीं दी है।
    • इससे भारतीय कृषि Bt कपास (जैसे- बोलगार्ड-II) जैसी पुरानी GM तकनीकों तक सीमित रह गई है, जिनकी उत्पादकता में प्रारंभिक बढ़त समय के साथ कीटों की प्रतिरोधकता तथा विशेषताओं में विविधता की कमी के कारण या तो स्थिर हो गई है या घटने लगी है।

भारत में GM फसलों के लिए आगे की राह

  • विज्ञान आधारित विनियामक ढाँचे को मजबूत करना: समयबद्ध, पारदर्शी और जोखिम आधारित मूल्यांकन के साथ GEAC और RCGM के तहत स्वीकृतियों को सुव्यवस्थित करना।
    • नियामकों को राजनीतिक और वैचारिक दबावों से स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए सशक्त बनाना।
    • उदाहरण: वर्ष 2022 में सशर्त रूप से स्वीकृत GM सरसों (DMH-11) के लिए अंतिम मंजूरी में तेजी लाना।
  • विशेषता शुल्क नीति को संशोधित और तर्कसंगत बनाना: निजी अनुसंधान और विकास के लिए उचित रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश (SPCO, 2015) पर पुनर्विचार करना।
  • अगली पीढ़ी की GM फसलों को वैध एवं विनियमित करना: सख्त जैव सुरक्षा मानकों के तहत HT-Bt कपास, Bt बैंगन, GM सरसों और अन्य फसलों को मंजूरी देना।
    • अवैध अपनाने पर अंकुश लगाने और बीज की गुणवत्ता के प्रति जवाबदेही लाने के लिए उपयोग की निगरानी करना।
  • जीएम अनुसंधान में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश: स्वदेशी जैव प्रौद्योगिकी विकास के लिए ₹1 लाख करोड़ के अनुसंधान, विकास और नवाचार कोष का लाभ उठाना।
    • सार्वजनिक संस्थाओं (जैसे- ICAR, IARI, DU) को GM सरसों जैसे अपने नवाचारों का व्यावसायीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • सार्वजनिक सहभागिता और पारदर्शिता बढ़ाना: जागरूकता अभियान, सामुदायिक परीक्षण और भागीदारीपूर्ण निर्णय लेने के माध्यम से जनता का विश्वास अर्जित करना।
    • गलत सूचना और वैचारिक पूर्वाग्रह से निपटने के लिए जैव सुरक्षा समीक्षा में किसानों, वैज्ञानिकों और नागरिक समाज को शामिल करना।
  • GM निर्यात और बीज कूटनीति को बढ़ावा देना: भारत द्वारा एशिया और अफ्रीका के लिए GM बीज प्रौद्योगिकी का एक क्षेत्रीय केंद्र बनाना।
    • वर्ष 2003 से वर्ष 2021 के बीच देरी से स्वीकृति और नीतिगत अनिश्चितता के कारण भारत संभावित जैव प्रौद्योगिकी विकास की महत्त्वपूर्ण क्षमता खो चुका है।
  • ‘प्लो-टू-प्लेट’ नीति आधारित दृष्टिकोण अपनाना: GM फसलों को एक व्यापक कृषि-तकनीक नीति में एकीकृत करना जो खाद्य सुरक्षा, स्थिरता और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करती है।

निष्कर्ष

भारत कृषि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक निर्णायक बिंदु पर खड़ा है। GM फसलें खाद्य सुरक्षा, किसान कल्याण और जलवायु लचीलेपन का मार्ग प्रदान करती हैं, लेकिन उनके अपनाने में वैज्ञानिक नवाचार को सार्वजनिक विश्वास, पर्यावरण सुरक्षा और नियामक अखंडता के साथ संतुलित करना होगा। एक अच्छी तरह से निर्मित पारदर्शी और समावेशी GM नीति उनकी वास्तविक क्षमता को प्रदर्शित कर सकती है।

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