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चाँदीपुरा वायरस की जीनोम मैपिंग

Lokesh Pal September 06, 2024 01:56 49 0

संदर्भ

गांधीनगर स्थित गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (GBRC) ने चाँदीपुरा वेसिकुलोवायरस (Chandipura Vesiculovirus- CHPV) का एकमात्र पूर्ण रूप से जीनोम मैपिंग प्रकाशित किया है। 

चाँदीपुर वेसिकुलोवायरस के बारे में

  • वर्गीकरण: चाँदीपुरा वायरस रैबडोविरिडे (Rhabdoviridae) परिवार से संबंधित है, जिसमें रेबीज वायरस भी शामिल है। 
  • वायरस का प्रभाव: यह वायरस पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी भारत में, विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान, एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के छिटपुट मामलों और प्रकोपों ​​का कारण बनता है। 
  • पहली पहचान: इस वायरस की पहली पहचान वर्ष 1965 में महाराष्ट्र के एक गाँव चाँदीपुरा में हुई थी। 
  • प्रकार: चाँदीपुरा वायरस एक आवृत RNA वायरस है।
  • खोजा गया: वर्ष 1965 में इस वायरस की पहली बार भारत में खोज होने के बाद से, इसके अधिकांश मामले भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित रहे हैं। यद्यपि भारत के बाहर कोई मनुष्य से संबंधित मामला नहीं देखा गया है। 
  • ट्रांसमिशन वेक्टर
    • प्राथमिक वेक्टर: फीमेल फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई (Female Phlebotomine sandfly)
    • अतिरिक्त वाहक: मच्छर और टिक। 
  • संचरण तंत्र (Transmission Mechanism): यह वायरस इन कीटों की लार ग्रंथियों में रहता है और इनके काटने से मनुष्यों या अन्य कशेरुकियों में फैल सकता है। 
  • सरकारी पहल: सरकार ने राज्य भर में वेक्टर नियंत्रण और चाँदीपुरा वायरस की रोकथाम के लिए अभियान शुरू किया है, रोग नियंत्रण के लिए गाँवों में मैलाथियान पाउडर (एक प्रकार का कीटनाशक) का छिड़काव किया जा रहा है। 

जीनोम मैपिंग (Genome Mapping) क्या है? 

  • यह किसी जीव के गुणसूत्रों पर जीन के स्थान का निर्धारण करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
  • अनुप्रयोग: जीनोम मैपिंग से इस बारे में महत्त्वपूर्ण साक्ष्य मिलते हैं कि वायरस कहाँ से आता है, यह कैसे बदल रहा है तथा क्या इसमें कोई उत्परिवर्तन है, जो इसे अधिक संक्रामक या घातक बना सकता है। 
  • जीनोम मैपिंग बनाम जीनोम अनुक्रमण

जीनोम मैपिंग

जीनोम अनुक्रमण

विवरण जीनोम संरचना का सामान्य अवलोकन देता है।  आनुवंशिक सामग्री का अत्यधिक विस्तृत, आधार-दर-आधार विवरण प्रदान करता है। 
उद्देश्य

जीनोम मैपिंग में किसी जीव के जीनोम का मैप या ब्लूप्रिंट बनाना शामिल है। यह जीनोम के भीतर जीन और अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषताओं, जैसे नियामक तत्त्वों या मार्करों के स्थानों की पहचान करता है। 

जीनोम अनुक्रमण में जीव के DNA में न्यूक्लियोटाइड बेस (एडेनिन, थाइमिन, साइटोसिन और ग्वानिन) का सटीक क्रम निर्धारित करना शामिल है। यह जीव के सटीक आनुवंशिक कोड को प्रकट करता है। 

उपयोग लक्षणों या रोगों से जुड़े जीनों का पता लगाने में सहायता करता है। 

उत्परिवर्तनों की पहचान करना, आनुवंशिक भिन्नता का अध्ययन करना, तथा व्यक्तिगत चिकित्सा में सहायता करना।

जीनोम अनुक्रमण के अनुप्रयोग

  • चिकित्सा अनुसंधान और निदान: जीनोम अनुक्रमण का उपयोग आनुवंशिक परीक्षण और वंशानुगत रोगों के निदान के लिए किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: SARS-CoV-2 संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (WGS) डेटा के अध्ययन से इस रोगजनक के बारे में कई महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं। 
  • औषधि विकास: जीनोम अनुक्रमण का उपयोग नए औषधि लक्ष्यों की पहचान करने, औषधि प्रभावकारिता को अनुकूलित करने और वैयक्तिक चिकित्सा विकसित करने के लिए किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: यदि किसी मरीज के ट्यूमर में EGFR जीन में उत्परिवर्तन है, तो जीनोम अनुक्रमण द्वारा इस उत्परिवर्तन की पहचान की जा सकती है। 
    • इस जानकारी के आधार पर, डॉक्टर लक्षित उपचार, जैसे कि EGFR अवरोधक, सुझा सकते हैं, जो इस विशिष्ट आनुवंशिक परिवर्तन वाले रोगियों के लिए अधिक प्रभावी होते हैं। 
  • कृषि: जीनोम अनुक्रमण से फसलों और पशुओं को वांछित गुणों जैसे अधिक उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और पोषण सामग्री के साथ प्रजनन करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए: बीटी कॉटन। 
  • फोरेंसिक: जीनोम अनुक्रमण का उपयोग फोरेंसिक विश्लेषण के लिए किया जा सकता है, जैसे कि अपराध और प्राकृतिक आपदाओं के पीड़ितों की पहचान करना। 
    • उदाहरण के लिए: फोरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल पर पाए गए DNA (उदाहरण के लिए रक्त या बाल) की तुलना संदिग्धों से लिए गए DNA नमूनों से कर सकते हैं। 
  • जैव इंजीनियरिंग: जीनोम अनुक्रमण विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए सिंथेटिक जैविक प्रणालियों और जैव अणुओं के डिजाइन और विकास में सहायता कर सकता है। 

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट के बारे में

  • अनुसंधान का नेतृत्व: जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र के नेतृत्व में एक शोध पहल है और इसमें देश भर के 20 से अधिक विश्वविद्यालय शामिल हैं। 
  • उद्देश्य: नमूने एकत्र करना, डेटा संकलित करना, अनुसंधान करना और भारतीय संदर्भ में ‘जीनोम ग्रिड’ बनाना। 
  • अनुप्रयोग: कृषि, जैव प्रौद्योगिकी, तथा कैंसर एवं मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल में प्रगति। 

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