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जर्मनी द्वारा भारत को पनडुब्बियाँ बेचने का प्रस्ताव (Germany proposes to sell submarines to India)

Samsul Ansari January 29, 2024 06:19 243 0

संदर्भ 

राजनयिक सूत्रों के अनुसार, जर्मनी ने नौसेना के P-75I खरीद कार्यक्रम के तहत भारत को छह उन्नत पारंपरिक पनडुब्बियाँ बेचने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।

संबंधित तथ्य

  • उच्च स्तरीय चर्चाएँ: जर्मन रक्षा मंत्री ने जून 2023 में भारत का दौरा किया और ‘थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स’ (TKMS) की वकालत की।
    • जर्मनी की ‘थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स’ (ThyssenKrupp Marine Systems) नौसैनिक जहाजों, सतही जहाजों और पनडुब्बियों के प्रदाताओं की एक ‘ग्रुप एंड होल्डिंग’ कंपनी है।
  • रणनीतिक साझेदारी मानदंड: केवल जर्मनी और स्पेन ही P-75I समय सीमा के तहत बोली प्रस्तुत करने के लिए तकनीकी मानदंडों को पूरा करते हैं।

प्रोजेक्ट-75 (Project-75)

  • पृष्ठभूमि: प्रोजेक्ट-75 की कल्पना वर्ष 1997 में दो स्वदेशी SSK पनडुब्बियों के निर्माण के लिए की गई थी, जिन्हें टाइप 1500 के नाम से जाना जाता है।
    • वर्ष 1999 में, सुरक्षा पर कैबिनेट समिति ने वर्ष 2030 तक 24 पनडुब्बियों के निर्माण के लिए नौसेना की 30-वर्षीय योजना को मंजूरी दी थी।
  • प्रोजेक्ट के चरण 
  • पहला चरण: उत्पादन को दो पंक्तियों में स्थापित किया जाना था, प्रत्येक पंक्ति में छह पनडुब्बियों का उत्पादन किया जाना था।
    • पहला: P-75  
    • दूसरा: P-75I
  • प्रोजेक्ट P-75 
    • P-75 के लिए अनुबंध पर वर्ष 2005 में ‘नवल ग्रुप’ और ‘मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड’ (MDL) के साथ हस्ताक्षर किए गए थे।
  • प्रोजेक्ट-75 के तहत छह पनडुब्बियाँ हैं: आईएनएस कलवरी, आईएनएस वाग्शीर, आईएनएस वेला, आईएनएस खंडेरी, आईएनएस करंज और आईएनएस वागीर।
  • स्कॉर्पीन क्लास की विशेषताएँ
    • प्रोजेक्ट-75 के तहत स्कॉर्पीन क्लास की तरह पनडुब्बियों में उन्नत स्टील्थ विशेषताएँ शामिल हैं, जिनमें शामिल हैं
      • बेहतर ध्वनिक अवशोषण तकनीक
      • कम विकर्णित शोर स्तर
      • लंबी दूरी तक निर्देशित टॉरपीडो
      • ट्यूब से प्रक्षेपित जहाजरोधी मिसाइलें
      • सोनार और सेंसर सुइट्स (Sensor Suites)
  • महत्त्व: 
    • यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) परियोजनाओं में से एक है।
    • यह तीव्रता से और अधिक महत्त्वपूर्ण तकनीकी अपनाने के साथ-साथ भारत में पनडुब्बी निर्माण के लिए एक स्तरीय औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास की अनुमति देगा।
    • यह आयात पर वर्तमान निर्भरता को कम करके आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
  • प्रोजेक्ट 75 पनडुब्बियों की सीमाएँ
  • बैटरी चालित बाधाएँ: प्रगति के बावजूद, विद्युत बैटरियों पर निर्भर प्रोजेक्ट-75 पनडुब्बियों को रिचार्जिंग के लिए प्रत्येक 48 घंटे में सतह पर आने की आवश्यकता होती है।
  • प्रोजेक्ट-75I: यह प्रोजेक्ट-75 का अनुवर्ती है और अपने पूर्ववर्ती डिजाइन एवं प्रौद्योगिकी में सुधार करता है।
    • यह भारत का पहला रणनीतिक साझेदारी मॉडल है।

रणनीतिक साझेदारी मॉडल (Strategic Partnerships Model)

  • रक्षा क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी पर नीति को मई 2017 में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • इस नीति का उद्देश्य रक्षा प्लेटफॉर्मों और उपकरणों के निर्माण में निजी क्षेत्र की व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक पारदर्शी, उद्देश्यपूर्ण और कार्यात्मक तंत्र को संस्थागत बनाना है।

रणनीतिक साझेदारी (SP) मार्ग के तहत अधिग्रहण के लिए निम्नलिखित चार खंडों की पहचान की गई है;

  • लड़ाकू विमान
  • हेलीकॉप्टर
  • पनडुब्बियाँ
  • बख्तरबंद लड़ाकू वाहन (AFVs)/मुख्य युद्धक टैंक (MBTs)।

पारंपरिक पनडुब्बी के लिए एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक के लाभ

  • उन्नत जलमग्न सहनशक्ति: AIP पारंपरिक पनडुब्बियों को लंबे समय तक जलमग्न रहने की अनुमति देता है, जिससे बार-बार सतह पर आने की आवश्यकता कम हो जाती है।
  • AIP का तंत्र: डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के विपरीत, जिन्हें बैटरी रिचार्ज के लिए सतह की आवश्यकता होती है, AIP तंत्र पनडुब्बियों को जल में डूबे रहने के दौरान बैटरी चार्ज करने में सक्षम बनाता है।
  • भारत की प्राथमिकता: ईंधन सेल पर आधारित AIP
    • भारत, P-75I परियोजना के तहत ईंधन सेल पर आधारित AIP की माँग कर रहा है।
    • ये सेल रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं, जिससे पनडुब्बियों के लिए कुशल बैटरी रिचार्ज की सुविधा मिलती है।

  • यह भारत की पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिए डिजाइन और प्रौद्योगिकी को बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • प्रोजेक्ट-75I: AIP प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन
    • प्रोजेक्ट-75I में सीमाओं को पार करने के लिए ‘एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन’ (AIP) तकनीक शामिल है।
    • AIP, पनडुब्बियों को दो सप्ताह तक की विस्तारित अवधि तक जल में रहने में सक्षम बनाता है।

वर्तमान भारतीय पनडुब्बी बेड़ा (Fleet)

  • मौजूदा बेड़ा: भारत के पास वर्तमान में 16 पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ (SSKs) हैं।
    • P-75 के तहत अंतिम दो कलवरी क्लास पनडुब्बियों के चालू होने से संख्या 18 हो जाएगी। इसके अतिरिक्त भारत के पास दो परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बियाँ (SSBN) हैं।
  • पनडुब्बियों के प्रकार
    • बेड़े में चार शिशुमार क्लास (जर्मनी के साथ सहयोग), आठ, किलो क्लास (रूस के साथ सहयोग) और चार कलवरी क्लास (MDL, भारत में निर्मित) की पनडुब्बियाँ शामिल हैं।
सबमरीन क्लास विवरण
SSBN (बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन)
  • परमाणु-चालित पनडुब्बियों को पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBMs) के कई समूहों को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है, जो प्रायः एकल या एकाधिक परमाणु हथियारों से युक्त होती हैं।
  • इसका प्राथमिक मिशन, परमाणु त्रय (Nuclear Triad) के तीसरे चरण को पूरा करते हुए विनाशकारी प्रतिशोध या सुनिश्चितकारी द्वितीय स्ट्राइक क्षमता प्रदान करना है।
SSN (परमाणु हमला करने वाली पनडुब्बियाँ)
  • SSNs में जल के अंदर रहने की अनंत क्षमता होती है। चूँकि वे बैटरी द्वारा संचालित नहीं होती हैं, इसलिए उन्हें डीजल इंजन द्वारा चार्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • परमाणु संचालित इंजन द्वारा संचालित, इन पनडुब्बियों को केवल चालक दल हेतु आपूर्ति के संबंध में सतह पर आने की आवश्यकता होती है।
SSK (मूल डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी)
    • मूल रूप से डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के रूप में डिजाइन और निर्मित किया गया। इन्हें संचालित करने के लिए वायु और ईंधन की आवश्यकता होती है।
  • उन्हें बार-बार जल की सतह पर आने की आवश्यकता होती है।

 

सबमर्सिबल (Submersibles), पनडुब्बियों से किस प्रकार भिन्न हैं?

  • पनडुब्बी: पनडुब्बी में “बंदरगाह छोड़ने और बंदरगाह पर पुनः वापस आने की पर्याप्त क्षमता होती है।
    • इसका अर्थ यह है कि एक पनडुब्बी स्वतंत्र रूप से समुद्र के तल तक जा सकती है और वापस आ सकती है।
  • सबमर्सिबल: एक सबमर्सिबल में बहुत सीमित शक्ति भंडार होता है इसलिए इसे एक ‘मदर शिप’ की आवश्यकता होती है जो इसे लॉन्च कर सके और इसे पुनर्प्राप्त कर सके।
    • इसका अर्थ यह है कि पनडुब्बी के विपरीत, इसमें समुद्र के तल तक जाने और वापस आने की शक्ति नहीं होती है।

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