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जर्मनी और भारत के मध्य रक्षा संबंध में वृद्धि

Lokesh Pal September 11, 2024 04:40 34 0

संदर्भ

शीर्ष हथियार निर्यातक जर्मनी की भारत के रक्षा बाजार में न्यूनतम उपस्थिति है, लेकिन रूस का यूक्रेन पर ध्यान केंद्रित करना भारत-प्रशांत गतिशीलता में बदलाव के बीच संबंधों को बढ़ाने का अवसर प्रस्तुत करता है।

भारत की रक्षा साझेदारियाँ 

  • भारत के शीर्ष रक्षा आपूर्तिकर्ता: रूस, फ्राँस, अमेरिका, इजरायल और दक्षिण कोरिया। 
  • रूस का प्रभुत्व: ऐतिहासिक रूप से, रूस भारत का शीर्ष रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है।
    • रूस वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता हुआ करता था, जो विशेष रूप से कम लागत वाले क्षेत्र में मजबूत था। 
    • नाटो और इजरायली उपकरण: नाटो और इजरायल के रक्षा उपकरण आम तौर पर अधिक महंगे होते हैं, जिससे कम लागत वाले बाजार में उनकी भूमिका सीमित हो जाती है।
  • फ्राँस और अमेरिका का बढ़ता प्रभाव: फ्राँस और अमेरिका ने हाल के वर्षों में भारत के साथ अपने रक्षा सहयोग का विस्तार किया है। 
  • रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में चीन की सीमित अपील
    • रूस के लिए संभावित प्रतिस्थापन: चीन एकमात्र ऐसा देश है, जो कम लागत वाले रक्षा क्षेत्र में रूस की जगह ले सकता है।
    • भारतीय परिप्रेक्ष्य: भारत के लिए, रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में चीन की ओर रुख करना वांछनीय विकल्प नहीं है।

तरंग शक्ति: एक ऐतिहासिक बहुपक्षीय वायु सेना अभ्यास

  • जर्मन लुफ्तवाफे की पहली भागीदारी: जर्मन वायु सेना ने पहली बार भारतीय वायु क्षेत्र में अगस्त में भारतीय वायु सेना (IAF) द्वारा आयोजित तरंग शक्ति के प्रथम चरण के दौरान भाग लिया।
    • ‘जर्मन लुफ्तवाफे’ जर्मनी की वायु सेना को संदर्भित करता है।
  • द्विवार्षिक अभ्यास की घोषणा: यह घोषणा की गई कि तरंग शक्ति एक द्विवार्षिक आयोजन बन जाएगा। 
  • तरंग शक्ति का महत्त्व: तरंग शक्ति ने पैसिफिक स्काइज 24 की तैयारी के रूप में कार्य किया।
    • पैसिफिक स्काइज 24, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्राँस, जर्मनी और स्पेन का सबसे बड़ा संयुक्त हवाई अभ्यास है।
  • तरंग शक्ति पर जर्मन वायु सेना का दृष्टिकोण
    • गैर-आक्रामक रुख: इस बात पर जोर दिया गया कि यह अभ्यास किसी विशेष राष्ट्र के खिलाफ लक्षित नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य साझेदारी को मजबूत करना था।
    • संचालन पैमाना: तरंग शक्ति के दौरान लुफ्तवाफे ने 1.3 मिलियन किलोमीटर की उड़ान भरी, जो एक जर्मन संगठन के लिए पूरे एक वर्ष के उड़ान घंटों के बराबर है।

भारत-जर्मनी रक्षा सहयोग

  • प्रारंभिक अवस्था: शीर्ष वैश्विक हथियार निर्यातकों में से एक होने के बावजूद, जर्मनी का भारत के साथ रक्षा संबंध अपेक्षाकृत नवजात अवस्था में है, लेकिन इसमें विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ते अवसर दिखाई दे रहे हैं।
  • वर्ष 2006 रक्षा समझौता: सुरक्षा और रक्षा सहयोग पर भारत-जर्मनी समझौते पर वर्ष 2006 में हस्ताक्षर किए गए, जिसका उद्देश्य प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त रक्षा परियोजनाएँ थीं।
  • थिसेनक्रुप-MDL साझेदारी: वर्ष 2023 में, थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) और मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) ने भारतीय नौसेना के लिए स्थानीय पनडुब्बी निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो गहन संबंधों को उजागर करता है।
    • उन्होंने भारतीय पनडुब्बी आईएनएस ‘शंकुश’ के आधुनिकीकरण के लिए काम किया है और डीजल पनडुब्बियों के निर्माण के लिए 4.8 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट 75 (भारत) कार्यक्रम के लिए भी संयुक्त रूप से बोली लगाई है। 
    • TKMS, जहाँ पनडुब्बी के डिजाइन, इंजीनियरिंग और परामर्श के लिए जिम्मेदार होगा, वहीं MDL भारतीय नौसेना को निर्माण और डिलीवरी का प्रबंधन करेगा।

शामिल प्रमुख मुद्दे

  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: रक्षा साझेदारी के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रमुख पूर्व-शर्तों में से एक है क्योंकि भारत घरेलू स्तर पर रक्षा उपकरणों के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित करता है। जबकि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण महत्त्वपूर्ण है, यह उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी विनिमय को सीमित कर सकता है।
  • अंतर-संचालन चुनौतियाँ: भारत रूसी और पश्चिमी रक्षा प्लेटफॉर्मों का मिश्रण संचालित करता है, जो एकीकरण चुनौतियों का सामना करता है, लेकिन जर्मनी जैसे यूरोपीय भागीदारों के साथ सहयोग में लचीलापन भी प्रदान करता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी की रुचि के कारण

  • हिंद-प्रशांत का सामरिक महत्त्व: इस क्षेत्र में दुनिया के दस सबसे बड़े बंदरगाहों में से नौ स्थित हैं, जो इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण बनाता है।
    • हिंद-प्रशांत सुरक्षा में जर्मनी की भागीदारी मुक्त और स्थिर शिपिंग मार्गों को संरक्षित करने में उसकी रुचि से प्रेरित है।
  • चीनी आक्रामकता: दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण और सैन्य ठिकानों की स्थापना क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है और समुद्री मार्गों, संसाधनों और मछली पकड़ने के अधिकारों को बाधित करती है।
  • चीन के साथ आर्थिक संबंध: राजनीतिक चिंताओं के बावजूद, चीन के साथ जर्मनी का पर्याप्त व्यापार क्षेत्रीय सुरक्षा पर इसके रुख को जटिल बनाता है।
  • राजनीतिक संकेत के रूप में जर्मनी की सैन्य उपस्थिति: इंडो-पैसिफिक में जर्मनी की सैन्य उपस्थिति, अनियमित जल में भी अंतरराष्ट्रीय नियमों को लागू करने की इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बदलाव: रूस-यूक्रेन युद्ध और रूस-चीन के बीच घनिष्ठ संबंध जर्मनी सहित यूरोप को एक प्रमुख भू-राजनीतिक क्षेत्र के रूप में इंडो-पैसिफिक की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
  • आर्थिक कदम: वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 60% इस क्षेत्र से आने के कारण, जर्मनी की निर्यात संचालित अर्थव्यवस्था सीधे प्रभावित होती है।

भारत और जर्मनी के बीच सहयोग और साझा लक्ष्य

  •  UNSC विस्तार के लिए समर्थन: भारत और जर्मनी, जापान और ब्राजील के साथ मिलकर जी-4 ढाँचे के तहत UNSC सुधारों और स्थायी सदस्यता का समर्थन कर रहे हैं।
  • CDRI सदस्यता: जर्मनी वर्ष 2020 में आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) का सदस्य बन गया, जो वैश्विक अवसंरचना लचीलापन बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन: जर्मनी अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का एक सक्रिय सदस्य है, जो सौर ऊर्जा और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
  • संरेखित इंडो-पैसिफिक रणनीतियाँ: जर्मनी की इंडो-पैसिफिक रणनीति भारत के दृष्टिकोण के साथ निकटता से जुड़ी हुई है, जो क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग के लिए एक साझा दृष्टिकोण का संकेत देती है।

आगे की राह

वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, जर्मनी की उभरती विदेश नीति अब भारत के साथ मजबूत साझेदारी पर जोर देती है। इस रणनीतिक संरेखण में न केवल द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने की क्षमता है, बल्कि भारत के साथ यूरोपीय संघ के व्यापक जुड़ाव को भी मजबूत करने की क्षमता है।

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