ग्लोबल वार्मिंग का एक उल्लेखनीय परिणाम ग्लेशियरों का सिकुड़ना है, जिससे ग्लेशियल झीलों में जल जमा हो रहा है।
हिमनद (ग्लेशियर) क्या हैं?
हिमनद (ग्लेशियर) पहाड़ों पर पाए जाने वाले विशाल, सघन बर्फ के भंडार हैं, जो गुरुत्वाकर्षण एवं अपने वजन के कारण चलते हैं।
हिमनदों (ग्लेशियरों) की संरचना
संचय क्षेत्र (Accumulation Zone): ग्लेशियर का ऊपरी भाग जहाँ बर्फ जमती है और संपीड़ित होकर बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती है।
एब्लेशन जोन (Ablation Zone): ग्लेशियर का निचला हिस्सा जहाँ पिघलता है, जिसके परिणामस्वरूप बर्फ की हानि होती है।
गठन प्रक्रिया
अपरदन प्रक्रिया: जैसे ही ग्लेशियर का संचलन होता हैं, वे चट्टानों को घर्षण के कारण पीसते हैं, जिससे मोराइन (Moraine) नामक मिश्रण बनता है, जिसमें बड़े पत्थरों से लेकर महीन चट्टानी धूल तक सब कुछ शामिल होता है।
झील का निर्माण: जब ग्लेशियर पिघलते हैं एवं पीछे हटते या सिकुड़ते हैं, तो पीछे बचा हुआ क्षेत्र जल से भर जाता है, जिससे हिमनद झीलों का निर्माण होता है।
ग्लेशियर के अंत में मोराइन अक्सर एक प्राकृतिक बाँध के रूप में कार्य करता है, जो जल को अपनी जगह पर स्थिर रखता है।
हिमनद झीलों का महत्त्व
जल प्रवाह नियंत्रण: हिमानी झीलें बफर के रूप में कार्य करती हैं, पिघलते ग्लेशियर के जल के प्रवाह को धीमा कर देती हैं, जिससे जल के प्रवाह को नीचे की ओर नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
समुदायों पर प्रभाव: कभी-कभी, इससे जल की कमी या अचानक बाढ़ आ सकती है, जो आस-पास के समुदायों को प्रभावित करती है।
नदी प्रवाह विनियमन: नदी का स्थिर प्रवाह बनाए रखने में मदद करती है।
जलवायु प्रभाव: बर्फ के भंडारण एवं तापमान को नियंत्रित करके ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने में मदद करती हैं।
हिमानी झीलें नीले रंग की क्यों दिखाई देती हैं?
नीले रंग का प्रभाव: जल में निलंबित महीन चट्टानी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण हिमानी झीलें अक्सर चमकीली नीली दिखाई देती हैं।
हिमालय में हिमनदी झीलों के उदाहरण
गुरुडोंगमार झील (Gurudongmar Lake): उत्तरी सिक्किम में समुद्र तल से 5,430 मीटर ऊपर स्थित है एवं तीस्ता नदी में गिरती है।
पैंगोंग त्सो (Pangong Tso): लद्दाख एवं चीन के बीच सीमा क्षेत्र में 134 किलोमीटर लंबी झील शृंखला।
सामिति झील (Samiti Lake): सिक्किम में कंचनजंगा पर्वत के रास्ते में लगभग 4,300 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।
हिमानी झीलों पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
झीलों के फटने का खतरा बढ़ रहा है: जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, जिससे हिमनद झीलों में जल स्तर बढ़ जाता है एवं मोराइन बाँध टूटने का खतरा बढ़ जाता है।
एक केस स्टडी के रूप में दक्षिण ल्होनक झील (South Lhonak Lake)
तेजी से विकास: सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील, जो पहली बार वर्ष 1962 में उपग्रह चित्रों में दिखाई दी थी, ग्लेशियरों के पिघलने के कारण तेजी से विस्तारित हुई है।
संभावित खतरा: वर्ष 1977 की शुरुआत में केवल 17 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाली इस झील के निरंतर विकास के कारण वर्ष 2017 तक जल निकासी पाइपों की स्थापना की गई।
हालाँकि, ये पाइप अपर्याप्त हैं, जिससे हिमानी झील के फटने के खतरे के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं, जिससे बाढ़ आ सकती है।
भारत में प्रमुख हिमानी झीलें
भारत के हिमालयी क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण हिमनद झीलें हैं, जिनमें से प्रत्येक में अनूठी विशेषताएँ हैं:
गुरुडोंगमार झील (सिक्किम)
ऊँचाई: 5,430 मीटर पर दुनिया की सबसे ऊँची झीलों में से एक।
जल स्रोत: यह अपना जल ग्लेशियरों के पिघलने से प्राप्त करती है।
महत्त्व: स्थानीय समुदायों के लिए धार्मिक महत्त्व रखती है।
चंद्र ताल (हिमाचल प्रदेश)
स्थान: लाहुल-स्पीति क्षेत्र में 4,300 मीटर की ऊँचाई पर।
आकार: अपने सुंदर अर्द्धचंद्राकार आकार के लिए जानी जाती है एवं बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है।
जल स्रोत: ग्लेशियर पिघलने से जल प्राप्त करती है।
सामिति झील (सिक्किम)
ट्रैकिंग स्थल: माउंट कंचनजंगा के ट्रैकिंग पथ के किनारे स्थित है।
विशेषताएँ: अपने स्वच्छ नीले जल के लिए प्रसिद्ध है, जो आसपास के दृश्यों को प्रतिबिंबित करता है।
सतोपंथ ताल (उत्तराखंड)
स्थान: गढ़वाल हिमालय में सतोपंथ ग्लेशियर के पास अवस्थित है।
सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय लोगों के लिए पवित्र स्थान है।
दक्षिण ल्होनक झील (सिक्किम)
जलस्रोत: इसेतीन ग्लेशियरों से जल प्राप्त होता है।
जलवायु प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण इसका तेजी से विस्तार हो रहा है।
जोखिम: बाढ़ का खतरा है, जो आस-पास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
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