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वर्ष 1975 से ग्लेशियरों से 9 ट्रिलियन टन बर्फ पिघल चुकी है: संयुक्त राष्ट्र

Lokesh Pal March 26, 2025 02:35 53 0

संदर्भ 

हाल ही में जारी यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में ग्लेशियर पहले से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं, पिछले तीन वर्षों की अवधि में ग्लेशियरों में बर्फ के सर्वाधिक द्रव्यमान की हानि रिकॉर्ड स्तर पर देखी गई है।

  • यह रिपोर्ट पेरिस में आयोजित यूनेस्को शिखर सम्मेलन के साथ मेल खाती है, जिसमें प्रथम विश्व ग्लेशियर दिवस (First World Day for Glaciers) मनाया गया तथा दुनिया भर में ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए वैश्विक कार्रवाई का आग्रह किया गया।

हिमनद (ग्लेशियर) के बारे में

  • ग्लेशियर बर्फ के स्थायी पिंड होते हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसकते हैं।
  • ये समय के साथ निर्मित होते हैं, जब जमा हुई बर्फ सघन हिम में परिवर्तित हो जाती है।
  • मुख्य रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों और हिमालय, आल्प्स तथा एंडीज जैसी उच्च ऊँचाई वाली पर्वत शृंखलाओं में पाए जाने वाले ग्लेशियर पृथ्वी की जलवायु और जल प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • दुनिया में 2,00,000 से अधिक ग्लेशियर हैं, जो लगभग 7,00,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र को कवर करते हैं।
  • ग्लेशियर बर्फबारी और तलछट जमाव जैसी संचय प्रक्रियाओं के माध्यम से द्रव्यमान प्राप्त करते हैं और पिघलने एवं वाष्पीकरण जैसी पृथक्करण प्रक्रियाओं के माध्यम से द्रव्यमान खो देते हैं।

  • यूनेस्को का विश्व ग्लेशियर दिवस: 21 मार्च को मनाया जाने वाला यह दिन ग्लेशियर संरक्षण में वैश्विक सहयोग की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष: यूनेस्को और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने आधिकारिक तौर पर 21 जनवरी, 2025 को इस पहल की शुरुआत की थी।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • हिम के नुकसान का पैमाना: वर्ष 1975 से अब तक 9,000 गीगाटन हिम का नुकसान हुआ है, जो जर्मनी के आकार के 25 मीटर मोटे हिम ब्लॉक के बराबर है।
  • हाल ही में ग्लेशियर के नुकसान संबंधी आँकड़े: पिछले छह वर्षों में से पाँच वर्षों में सबसे अधिक ग्लेशियर का नुकसान दर्ज किया गया।
  • वर्ष 2024 में नुकसान: अकेले वर्ष 2024 में 450 गीगाटन हिमनद द्रव्यमान का नुकसान हुआ है।
  • सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र: आर्कटिक, आल्प्स, दक्षिण अमेरिका और तिब्बती पठार सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से हैं।

हिमनद के तेजी से पिघलने के कारण

  • जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण: वैश्विक तापमान में वृद्धि, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के कारण, ग्लेशियरों को अभूतपूर्व दर से पिघला रही है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: कार्बन डाइऑक्साइड और मेथेन के बढ़ते स्तर के कारण वातावरण में ऊष्मा अवरुद्ध हो जाती है, जिससे हिम का क्षरण बढ़ जाता है।

हिमनद निगरानी और संरक्षण में शामिल संगठन

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO): ग्लेशियर पिघलने सहित वैश्विक जलवायु प्रवृत्तियों की निगरानी करता है और ग्लेशियर से संबंधित खतरों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाने पर कार्य करता है। WMO ग्लेशियरों और हिम आवरणों की निगरानी के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करता है।
    • WMO ‘थर्ड पोल रीजनल क्लाइमेट सेंटर नेटवर्क’ (TPRCC-नेटवर्क) हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर परिवर्तनों का नियमित आकलन तैयार करता है और प्रसारित करता है।
  • विश्व ग्लेशियर निगरानी सेवा (World Glacier Monitoring Service-WGMS): स्विट्जरलैंड में स्थित, यह दुनिया भर में ग्लेशियर द्रव्यमान संतुलन और हिम की कमी को ट्रैक करता है तथा जलवायु अनुसंधान के लिए महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है।
  • इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD): हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करता है, ग्लेशियरों के सिकुड़ने और जल संसाधनों एवं पर्वतीय समुदायों पर इसके प्रभाव का अध्ययन करता है।

हिमनद पिघलने के परिणाम

  • समुद्र का बढ़ता जल स्तर: पिघलते ग्लेशियर समुद्र के स्तर में वृद्धि के सबसे बड़े कारणों में से एक हैं।
  • जल की कमी: ग्लेशियर से भरी नदियाँ अरबों लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराती हैं; उनकी कमी से पीने के पानी, कृषि और जलविद्युत शक्ति को खतरा है।
  • अधिक बार होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ: तापमान में वृद्धि से सूखा, हिमस्खलन, भूस्खलन, अचानक बाढ़ और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट (GLOF) की समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
  • पर्वतीय समुदायों के लिए खतरा: पर्वतीय क्षेत्रों में 1.1 बिलियन से अधिक लोग पानी की कमी और प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते जोखिम का सामना कर रहे हैं।
  • सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पहचान का ह्रास: युगांडा के बेकोंजो लोगों जैसे देशज समुदाय ग्लेशियरों को पवित्र मानते हैं; उनके गायब होने से सांस्कृतिक पहचान समाप्त हो रही है।
  • जल को लेकर बढ़ते संघर्ष: पूर्वी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में, घटते ग्लेशियर के जल ने पहले ही महत्त्वपूर्ण संसाधनों तक पहुँच को लेकर संघर्ष को जन्म दे दिया है।
  • जलवायु अस्थिरता में तेजी: ग्लेशियरों के नष्ट होने से वैश्विक मौसम पैटर्न में व्यवधान आता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • बाढ़ का जोखिम बढ़ता है: समुद्र के स्तर में प्रत्येक 1 मिमी. की वृद्धि से सालाना 3,00,000 लोगों को बाढ़ का खतरा होता है।

आगे की राह

  • वैज्ञानिक अनुसंधान को मजबूत करना: उपग्रह और जमीनी अवलोकनों का उपयोग करके ग्लेशियर निगरानी कार्यक्रमों का विस्तार करना ताकि परिवर्तनों को सटीक रूप से ट्रैक किया जा सके।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में सुधार: हिमस्खलन और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट  (GLOF) जैसे हिमनद खतरों का पूर्वानुमान लगाने के लिए उन्नत पूर्वानुमान उपकरण तैनात करना।
  • जलवायु कार्रवाई को बढ़ाना: ग्रीन हाउस उत्सर्जन में कमी लाने हेतु सख्त मानदंड लागू करना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में बदलाव को गति प्रदान करना।
    • उदाहरण: तापमान वृद्धि को सीमित करने और ग्लेशियरों की रक्षा करने के लिए पेरिस समझौते जैसी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को मजबूत करना।
  • सतत् जल प्रबंधन: ग्लेशियर से मिलने वाले मीठे जल के स्रोतों के नुकसान का मुकाबला करने के लिए अनुकूल जल भंडारण और वितरण प्रणाली विकसित करना।

निष्कर्ष 

ग्लेशियर मीठे जल के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण उनमें तेजी से हो रही गिरावट गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक जोखिम उत्पन्न करती है। उनके नुकसान को कम करने और भविष्य की जल सुरक्षा की रक्षा के लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है।

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