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वैश्विक आपदाओं से वर्ष 2025 की पहली छमाही में 135 अरब डॉलर की हानि का अनुमान

Lokesh Pal August 08, 2025 03:30 161 0

संदर्भ

ज्यूरिख (जर्मनी) स्थित एक प्रमुख पुनर्बीमा कंपनी, स्विस रे के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं के कारण वर्ष 2025 की पहली छमाही (पहली छमाही) में वैश्विक स्तर पर 135 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जो वर्ष 2024 की इसी अवधि के 123 अरब डॉलर से कहीं अधिक है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • अमेरिका में रिकॉर्ड वनाग्नि से नुकसान: जनवरी 2025 में लॉस एंजिल्स में लगी वनाग्नि से अनुमानित 40 अरब डॉलर का नुकसान हुआ, जो वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे बड़ा बीमाकृत वनाग्नि से नुकसान है।
    • इसके कारणों में तेज हवाएँ, वर्षा की कमी एवं उच्च-मूल्य वाली संपत्तियों वाले उच्च-घनत्व वाले आवासीय क्षेत्र शामिल हैं।
    • वनाग्नि से संबंधित नुकसान अब सभी प्राकृतिक आपदा दावों का 7% है, जो वर्ष 2015 से पहले केवल 1% था।

  • गंभीर तूफान: वर्ष 2025 की पहली छमाही में गंभीर तूफानों से बीमित नुकसान 31 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
  • तूफान के मौसम की चेतावनी: ऐतिहासिक रूप से, वर्ष के उत्तरार्द्ध में उत्तरी अटलांटिक तूफान के मौसम के कारण अधिक नुकसान होता है।
    • यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो वर्ष 2025 में कुल वैश्विक बीमाकृत घाटा ‘स्विस रे’ के 150 अरब डॉलर के अनुमान से अधिक हो सकता है।
  • म्याँमार में भूकंप: मार्च 2025 में आए एक बड़े भूकंप ने म्याँमार को प्रभावित किया, जिसके झटके थाईलैंड, भारत एवं चीन में महसूस किए गए।
    • अकेले थाईलैंड में, बीमाकृत घाटा 1.5 अरब डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था।
  • मानव निर्मित आपदाएँ: औद्योगिक दुर्घटनाओं एवं अन्य मानव निर्मित घटनाओं के कारण 8 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें से 7 अरब डॉलर का बीमा किया गया था।
    • बीमा एवं जोखिम रुझान: प्राकृतिक आपदाओं से हुए 135 अरब डॉलर के नुकसान में से 80 अरब डॉलर का बीमा किया गया था, जो 10 वर्षीय औसत (वर्ष 2025 की कीमतों के अनुसार समायोजित) से लगभग दोगुना है।
  • आवश्यक कार्रवाई
    • भविष्य में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए शमन एवं अनुकूलन सबसे प्रभावी तरीके हैं।
    • बाढ़ सुरक्षा अवसंरचना (डाइक, बाँध, द्वार) आपदाओं के बाद पुनर्निर्माण की तुलना में 10 गुना अधिक लागत प्रभावी हो सकती है।
    • जलवायु-अनुकूल योजना, पूर्व चेतावनी प्रणालियों एवं भूमि-उपयोग नियमों के माध्यम से अनूकूलन पर जोर देना।

प्राकृतिक आपदाएँ, प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होने वाली एक आकस्मिक, विनाशकारी घटना होती है, जिसके परिणामस्वरूप किसी समुदाय या समाज को भारी नुकसान होता है। ये घटनाएँ व्यापक विनाश, जनहानि एवं भारी आर्थिक एवं पर्यावरणीय क्षति का कारण बनती हैं। मुख्य अंतर यह है कि ये मानवीय क्रियाओं के बजाय प्राकृतिक शक्तियों द्वारा संचालित होती हैं।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भारत की संवेदनशीलता

  • भौगोलिक जोखिम
    • हिमालयी क्षेत्र: विवर्तनिक गतिविधियों के कारण भूकंप एवं भूस्खलन की आशंका।
    • तटीय क्षेत्र: चक्रवातों, तूफान एवं सुनामी के प्रति संवेदनशील, विशेष रूप से पूर्वी तट पर।
    • उत्तर एवं पूर्वोत्तर भारत: नदियों में उफान, हिमनद झीलों के फटने एवं मानसून की चरम स्थितियों के कारण अक्सर बाढ़ आती है।
    • पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत: अक्सर सूखे एवं लू से प्रभावित।
  • जलवायु एवं मौसमी रुझान
    • जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में परिवर्तनशीलता बढ़ रही है, जिससे उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश जैसे स्थानों में अचानक बाढ़ आ रही है तथा वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में कम वर्षा हो रही है।

भारत में प्राकृतिक आपदाओं का आर्थिक प्रभाव

  • प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान: बुनियादी ढाँचे की क्षति, फसल हानि एवं आजीविका में व्यवधान के कारण सकल घरेलू उत्पाद का अनुमानित 2-3% प्रतिवर्ष (विश्व बैंक के अनुसार)।
    • उदाहरण: अकेले चक्रवात अम्फान (2020) ने पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में अनुमानित 13 अरब डॉलर का नुकसान पहुँचाया था।
  • क्षेत्रीय प्रभाव
    • कृषि: जलवायु के प्रति अत्यधिक संवेदनशील; बार-बार सूखा एवं बेमौसम वर्षा फसलों को नष्ट कर देती है, जिससे खाद्य सुरक्षा तथा किसानों की आय प्रभावित होती है।
    • बुनियादी ढाँचा: सड़क, रेलवे एवं विद्युत ग्रिड अक्सर बाधित होते हैं; पुनर्निर्माण के कारण महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक निवेश में बाधा आती है।
    • शहरी अर्थव्यवस्था: मुंबई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में बाढ़ आर्थिक उत्पादकता को गंभीर रूप से बाधित करती है।
  • बीमा पहुँच
    • बहुत कम: भारत में आपदा से होने वाले नुकसान का 1% से भी कम बीमाकृत है (UNDRR), जिससे आपदा के बाद राहत एवं पुनर्वास के लिए सरकार पर राजकोषीय बोझ बढ़ जाता है।
    • दीर्घकालिक विकासात्मक क्षति: प्राकृतिक आपदाएँ गरीबी, विस्थापन एवं स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ाती हैं तथा वर्षों के विकास लाभों को उलट देती हैं, विशेषकर बिहार, असम एवं ओडिशा जैसे आपदा-प्रवण राज्यों में।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) एवं आर्थिक तैयारी

  • नीतिगत ढाँचा
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: संस्थागत तैयारियों के लिए NDMA एवं SDMA के गठन को अनिवार्य बनाता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP): राष्ट्रीय योजना में जोखिम न्यूनीकरण, पूर्व चेतावनी एवं जलवायु लचीलेपन को एकीकृत करती है।
  • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
    • IMD एवं ISRO ने उपग्रह-आधारित चक्रवात तथा बाढ़ पूर्वानुमान प्रणालियाँ विकसित की हैं।
    • चक्रवात-प्रवण क्षेत्रों में अब मोबाइल-आधारित अलर्ट का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है (उदाहरण के लिए, फानी, 2019)।
  • शमन कार्यक्रम
    • राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (National Cyclone Risk Mitigation Project- NCRMP)।
    • स्मार्ट सिटी मिशन एवं शहरी बाढ़ प्रतिरोधक अवसंरचना का त्वरित कार्यान्वयन।
    • प्रकृति-आधारित समाधानों पर जोर: मैंग्रोव, जलग्रहण प्रबंधन, हरित बफर।
  • आपदा जोखिम वित्तपोषण
    • राज्य एवं राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (State and National Disaster Response Funds- SDRF/NDRF) आपदा पूर्व एवं आपदा पश्चात् राहत प्रदान करते हैं।
    • जोखिम हस्तांतरण तंत्रों पर जोर देना जैसे:-
      • आपदा बॉण्ड।
      • किसानों के लिए बीमा (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना)।
      • निजी बीमा कंपनियों की भूमिका बढ़ाना।