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ग्लोबल फ्री स्पीच इंडेक्स

Lokesh Pal March 20, 2025 03:24 49 0

संदर्भ

हाल ही में ‘द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच’ द्वारा किए गए वैश्विक सर्वेक्षण में मुक्त भाषण के समर्थन के मामले में 33 देशों में से भारत को 24वाँ स्थान दिया गया है।

‘ग्लोबल फ्री स्पीच इंडेक्स’

  • ‘ग्लोबल फ्री स्पीच इंडेक्स’ का संचालन ‘द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच’ नामक एक स्वतंत्र अमेरिकी थिंक टैंक द्वारा किया जाता है।
  • यह इंडेक्स 33 देशों में मुक्त भाषण के प्रति लोगों के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करता है।
  • वर्ष 2024 का सर्वेक्षण वैश्विक रुझानों, क्षेत्रीय विविधताओं तथा विश्व में मुक्त अभिव्यक्ति के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।

सूचकांक की मुख्य विशेषताएँ 

  • शीर्ष प्रदर्शनकर्ता: इस सूचकांक की रैंकिंग में स्कैंडिनेवियाई देशों का प्रभुत्व है, जिसमें नॉर्वे (87.9) तथा डेनमार्क (87.0) सूचकांक में सबसे आगे हैं।
  • सबसे बड़ा सुधार: इंडोनेशिया (56.8), मलेशिया (55.4), तथा पाकिस्तान (57.0) ने महत्त्वपूर्ण प्रगति दिखाई, हालाँकि वे रैंकिंग के निचले स्तर पर हैं।
  • समर्थन में कमी: अमेरिका, इजरायल और जापान सहित कई लोकतांत्रिक देशों में वर्ष 2021 के बाद से मुक्त भाषण के समर्थन के संबंध में गिरावट देखी गई है।
  • अधिनायकवादी झुकाव का समर्थन करने वाले देश: हंगरी (85.5) और वेनेजुएला (81.8) जैसे देशों ने इस परिप्रेक्ष्य में उच्च स्कोर किया, जिससे सरकारी प्रतिबंधों और सार्वजनिक दृष्टिकोण के बीच एक विसंगति का पता चलता है।

‘द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच’ के बारे में

  • ‘फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच’ संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपाती थिंक टैंक है।
  • यह मौलिक मानव अधिकार तथा लोकतांत्रिक समाजों की आधारशिला के रूप में मुक्त भाषण के महत्त्व पर शोध, विश्लेषण और प्रचार करने के लिए समर्पित है।
  • यह संगठन 21वीं सदी में मुक्त अभिव्यक्ति से संबंधित वैश्विक रुझानों, चुनौतियों और अवसरों को समझने पर ध्यान केंद्रित करता है।

सूचकांक में भारत का स्थान

  • रैंक: 33 देशों में से 24वाँ, 62.6 के स्कोर के साथ।
  • सार्वजनिक धारणा: भारतीयों का मानना ​​है कि वाक् स्वतंत्रता में सुधार हुआ है, लेकिन रैंकिंग एवं पर्यवेक्षकों का सुझाव है कि वर्ष 2021 से यह और भी खराब हो गई है।
  • विरोधाभास: जहाँ ज्यादातर भारतीय वाक् स्वतंत्रता को महत्त्व देते हैं, वहीं 37% लोग नीतियों की आलोचना करने पर सरकारी प्रतिबंधों का समर्थन करते हैं (सभी सर्वेक्षण किए गए देशों में सबसे ज्यादा प्रतिशत)।

वैश्विक रुझान एवं अवलोकन

  • विवादास्पद भाषण के प्रति प्रतिबद्धता का क्षरण: हालाँकि मुक्त भाषण के लिए अमूर्त समर्थन मजबूत बना हुआ है, विवादास्पद या असहमतिपूर्ण विचारों का बचाव करने की इच्छा वैश्विक स्तर पर कम हो रही है।
  • लोकतांत्रिक पिछड़ापन: भारत, हंगरी और वेनेजुएला जैसे देशों में मुक्त भाषण के लिए सार्वजनिक समर्थन तथा वास्तविक सरकारी सुरक्षा के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर दिखाई देता है।
    • ये राष्ट्र राजनीतिक स्वतंत्रता के प्रति सम्मान में गिरावट के साथ लोकतांत्रिक पिछड़ेपन का अनुभव कर रहे हैं।
  • सांस्कृतिक बनाम कानूनी सुरक्षा: स्वतंत्र भाषण केवल एक कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह सार्वजनिक बहस तथा असहमति के प्रति सहिष्णुता की संस्कृति पर भी निर्भर करता है। सार्वजनिक प्रतिबद्धता के बिना, कानूनी सुरक्षा अप्रभावी हो सकती है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम घृणास्पद भाषण

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और घृणास्पद भाषण के बीच बहस अपनी राय व्यक्त करने तथा नुकसान पहुँचाने के बीच की अत्यंत कम अंतर को इंगित करती है।
  • हालाँकि मुक्त भाषण एक मौलिक अधिकार है, घृणास्पद भाषण को अक्सर सामाजिक सद्भाव के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है। चुनौती व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सार्वजनिक सुरक्षा और गरिमा के साथ संतुलित करना है।

घृणास्पद भाषण 

  • घृणास्पद भाषण से तात्पर्य ऐसे भाषण से है, जो धर्म, जाति, नृजातीयता, लिंग आदि के आधार पर व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ हिंसा, भेदभाव अथवा दुश्मनी को बढ़ावा देता है।
  • भारत में घृणास्पद भाषण के विरुद्ध कानून
    • धारा 153A (IPC): समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाले भाषण के संबंध में दंड का प्रावधान करती है।
    • धारा 295A (IPC): जानबूझकर धार्मिक विश्वासों का अपमान करने वाले भाषण को अपराध मानती है।
    • धारा 505 (IPC): सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने वाले बयानों पर प्रतिबंध लगाती है।
    • IT अधिनियम, 2000: डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अभद्र भाषा को नियंत्रित करता है।

भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान में निहित एक मौलिक अधिकार है।
  • यह भारत के लोकतंत्र की आधारशिला है, जो नागरिकों को अपनी राय, विश्वास और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है।
  • हालाँकि, यह अधिकार पूर्ण नहीं है और सार्वजनिक व्यवस्था, सुरक्षा और नैतिकता सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है, जिसमें कहा गया है:-
    • ‘सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।’
  • यह प्रावधान संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा है।

उचित प्रतिबंध

  • हालाँकि अनुच्छेद-19(1)(a) मुक्त भाषण का अधिकार देता है, अनुच्छेद-19(2) इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाता है। 
  • प्रतिबंधों के आधार में शामिल हैं:-
    • भारत की संप्रभुता एवं अखंडता
    • राज्य (राष्ट्र) की सुरक्षा
    • विदेशी राज्यों (राष्ट्रों) के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    • सार्वजनिक व्यवस्था
    • शिष्टता या नैतिकता
    • न्यायालय की अवमानना
    • मानहानि
    • अपराध के लिए उकसाना

वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  • रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है।
    • न्यायालय ने एक पत्रिका पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि उस समय सार्वजनिक व्यवस्था प्रतिबंध के लिए वैध आधार नहीं थी।
  • बेनेट कोलमैन एंड कंपनी बनाम भारत संघ (1972): न्यायालय ने निर्णय दिया कि समाचार-पत्र संचलन नियंत्रण अनुच्छेद-19(1)(a) का उल्लंघन करता है।
    • इसने इस बात पर जोर दिया कि प्रेस की स्वतंत्रता में बिना किसी प्रतिबंध के लोगों तक पहुँचने का अधिकार शामिल है।
  • इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बनाम भारत संघ (1985): इस मामले में घोषित किया कि प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है और समाचार-पत्रों पर अत्यधिक करों को खारिज कर दिया।
  • LIC बनाम मनुभाई डी. शाह (1992): इस बात पर जोर दिया गया कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार में उत्तर देने और अपनी राय प्रसारित करने का अधिकार भी शामिल है।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): IT अधिनियम की धारा 66A को खारिज कर दिया गया।
    • यह ऑनलाइन मुक्त भाषण का सबसे महत्त्वपूर्ण मामला था।
    • न्यायालय ने IT अधिनियम की धारा 66A को रद्द कर दिया, जो ‘आक्रामक’ ऑनलाइन भाषण के संबंध में गिरफ्तारी की अनुमति देता था।
    • न्यायालय ने माना कि अस्पष्ट एवं मनमाने प्रतिबंध मुक्त भाषण का उल्लंघन करते हैं।

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