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वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण

Lokesh Pal August 22, 2025 03:53 4 0

संदर्भ

वर्ष 2022 के बाद से जिनेवा में वैश्विक प्लास्टिक संधि निर्माण के लिए UNEP का छठा प्रयास विफल रहा, क्योंकि देश जिम्मेदारी, निष्पक्षता, प्रवर्तन, उत्पादन सीमा और एकल-उपयोग प्लास्टिक संबंधी विषयों पर विभाजित रहे।

पृष्ठभूमि

  • UNEA पहल (2022): वर्ष 2022 में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (United Nations Environment Assembly- UNEA) ने वर्ष 2024 के अंत तक प्लास्टिक प्रदूषण पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि विकसित करने की प्रक्रिया शुरू की।
  • अंतिम दौर में गतिरोध: प्लास्टिक प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि पर चर्चा का पाँचवाँ और अंतिम दौर बिना किसी समझौते के समाप्त हो गया।

UNEP की हालिया वार्ता के मुख्य परिणाम

  • अगस्त 2025 में बुसान, दक्षिण कोरिया में आयोजित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme- UNEP) के अंतर्गत छठी अंतर-सरकारी वार्ता समिति (Intergovernmental Negotiating Committee- INC-6) की बैठक, कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण संधि का मसौदा तैयार करने में एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण सिद्ध हुई।
  • अभिसरण के क्षेत्र
    • जीवनचक्र दृष्टिकोण: प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए उसके संपूर्ण जीवनचक्र ‘उत्पादन, उपभोग और निपटान’ को शामिल करने पर वैश्विक स्तर पर सहमति बनी है।।
    • वैश्विक दक्षिण के लिए समर्थन: विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता की आवश्यकता की मान्यता।
    • जवाबदेही प्रणालियाँ: पारदर्शिता के लिए रिपोर्टिंग, निगरानी और अनुपालन तंत्र को मजबूत करने पर सहमति।
  • विवाद के बिंदु
    • उत्पादन सीमा बनाम अपशिष्ट प्रबंधन: विकसित देशों ने प्लास्टिक उत्पादन पर सीमा लगाने पर जोर दिया, जबकि विकासशील देशों ने अपशिष्ट प्रबंधन सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना पसंद किया।
    • CBDR बहस: ‘साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों (Common but Differentiated Responsibilities- CBDR)’ पर तीव्र मतभेद, विकासशील देशों ने लचीलेपन और समर्थन की वकालत की, जबकि विकसित देशों ने समान दायित्वों पर जोर दिया।
    • निजी क्षेत्र की भूमिका: इस बात पर विवादास्पद बहस चल रही है कि क्या स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ पर्याप्त हैं या निगमों पर बाध्यकारी नियम लागू किए जाने चाहिए।
    • देशों के बीच मतभेद: विवाद के मुख्य बिंदु यह रहे हैं कि क्या संधि को स्रोत पर प्लास्टिक उत्पादन से निपटना चाहिए और नई प्लास्टिक की मात्रा पर सीमाएँ लगानी चाहिए।
      • तेल उत्पादक और पेट्रोकेमिकल निर्यातक देशों (अमेरिका सहित) ने अधिक महत्त्वाकांक्षी प्रस्तावों को रोक दिया।
      • यूरोपीय संघ और लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) ने अपरिष्कृत प्लास्टिक उत्पादन पर सीमा लगाने की माँग की।
  • परिणाम: हालाँकि संधि का कोई अंतिम उद्देश्य स्वीकृत नहीं हुआ, INC-6 ने INC-7 (वर्ष 2026 की शुरुआत) के लिए विकल्पों को सीमित कर दिया। वर्ष 2026 के अंत तक संधि को अंतिम रूप देने की महत्त्वाकांक्षा अभी भी जीवित है, और सहमति एवं संघर्ष के क्षेत्रों पर स्पष्टता बनी हुई है।
  • भारत का रुख/स्थिति
    • समता और CBDR: भारत ने समता और CBDR पर जोर दिया तथा कहा कि विकासशील देशों में प्लास्टिक का उपयोग विकासात्मक आवश्यकताओं, आजीविका और सामर्थ्य से जुड़ा है।
    • व्यापक उत्पादन सीमा के विरुद्ध: भारत ने व्यापक उत्पादन सीमा का विरोध किया और संदर्भ-विशिष्ट राष्ट्रीय कार्रवाई को प्राथमिकता दी।
    • प्रमुख माँगें
      • प्लास्टिक के विकल्पों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और जलवायु वित्त जैसी व्यवस्थाएँ।
      • अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र को औपचारिक मान्यता।
      • एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को कम करने के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण, आर्थिक वास्तविकताओं के साथ स्थिरता का संतुलन।

प्लास्टिक प्रदूषण संकट के बारे में

  • प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण में प्लास्टिक अपशिष्ट के संचय को संदर्भित करता है, जो पारिस्थितिक तंत्र, वन्यजीवों और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। इसमें एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक, सूक्ष्म प्लास्टिक और सदियों तक बने रहने वाले गैर-जैव-निम्नीकरणीय पदार्थ शामिल हैं।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रकार
    • माइक्रोप्लास्टिक (< 5 मिमी.): 5 मिमी. से छोटे आकार के सूक्ष्म प्लास्टिक कण।
      • स्रोत
        • प्राथमिक: सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स, औद्योगिक स्क्रबर, वस्त्रों से प्राप्त सिंथेटिक माइक्रोफाइबर, अपरिष्कृत रेजिन पेलेट।
        • द्वितीयक: सूर्य के प्रकाश, घर्षण या अनुचित निपटान के कारण बड़े प्लास्टिक का विखंडन।
      • चिंता: अदृश्य लेकिन अत्यधिक खतरनाक; मृदा, नदियों, महासागरों और मानव खाद्य शृंखला में प्रवेश करते हैं।
    • मैक्रोप्लास्टिक (5 मिमी. से अधिक): नग्न आँखों से दिखाई देने वाली बड़ी प्लास्टिक के रूप अपशिष्ट।
      • उदाहरण: प्लास्टिक की बोतलें, मछली पकड़ने के जाल, खाने के डिब्बे, पैकेजिंग सामग्री, बेकार घरेलू प्लास्टिक।
      • चिंता: समुद्री/स्थलीय जानवरों के लिए उलझने और निगलने का खतरा पैदा करते हैं; समय के साथ माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाते हैं।
    • एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single-Use Plastics- SUP): निपटान/पुनर्चक्रण से पहले एक बार उपयोग के लिए डिजाइन किए गए डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पाद।
      • उदाहरण: प्लास्टिक बैग, स्ट्रॉ, कटलरी, प्लेट, पानी की बोतलें, खाद्य पैकेजिंग।

वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर

  • वार्षिक प्लास्टिक उत्पादन: विश्व में प्रत्येक वर्ष 430 मिलियन टन (MT) से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है और अगर मौजूदा रुझान जारी रहे तो वर्ष 2060 तक इसकी मात्रा दोगुनी होने का अनुमान है।
  • अल्पकालिक उत्पाद: वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा अल्पकालिक होता है, जिसका अधिकतर हिस्सा पैकेजिंग और डिस्पोजेबल सामान में होता है, जो लगभग तुरंत ही कचरे में बदल जाते हैं।
  • लैंडफिल और कुप्रबंधन: लगभग 46% प्लास्टिक कचरा लैंडफिल में जाता है, जबकि 22% का कुप्रबंधन होता है, जिससे अपशिष्ट की समस्या और पर्यावरणीय रिसाव होता है।
  • जीवाश्म ईंधन से संबंध: प्लास्टिक मुख्य रूप से जीवाश्म कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से प्राप्त होता है, जो इस क्षेत्र को व्यापक जीवाश्म ईंधन अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाता है।
  • जलवायु परिवर्तन में योगदान: वर्ष 2019 में, प्लास्टिक उत्पादन और अपशिष्ट से 1.8 बिलियन मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हुआ, जो वैश्विक कुल उत्सर्जन का लगभग 3.4% है।
  • भविष्य में उत्सर्जन का जोखिम: वर्ष 2040 तक, वैश्विक तेल खपत में प्लास्टिक का योगदान लगभग 20% होने की उम्मीद है, जिससे जलवायु संकट और भी गंभीर हो जाएगा।
  • समुद्री प्रदूषण: अनुमान है कि प्रतिवर्ष 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक महासागरों में प्रवेश करता है, जिससे सूक्ष्म प्लास्टिक के माध्यम से समुद्री पारितंत्र, खाद्य शृंखला और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है।

भारत का प्लास्टिक पदचिह्न

  • भारत विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक: भारत विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक बन गया है (नेचर में प्रकाशित अध्ययन)।
  • अन्य प्रदूषक: नाइजीरिया (3.5 मीट्रिक टन), इंडोनेशिया (3.4 मीट्रिक टन), चीन (बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन के कारण चौथे स्थान पर)।
  • वार्षिक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन: भारत वार्षिक रूप से लगभग 3.4 मिलियन टन (MT) प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
  • पुनर्चक्रण दर: इस कचरे का केवल लगभग 30% ही पुनर्चक्रित किया जाता है, अधिकांश या तो लैंडफिल में डाल दिया जाता है, जला दिया जाता है अथवा कुप्रबंधित किया जाता है।
  • बढ़ती खपत: भारत में प्लास्टिक की खपत तेजी से बढ़ रही है, जिसकी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 9.7% है, जो वर्ष 2016 – वर्ष 2017 में 14 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2019- वर्ष 2020 में 20 मीट्रिक टन से अधिक हो गई है।

प्लास्टिक प्रदूषण के बहुआयामी प्रभाव

  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र: प्लास्टिक के अंतर्ग्रहण से कछुओं और 800 से अधिक समुद्री प्रजातियों को खतरा है। अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो वर्ष 2050 तक समुद्र में प्लास्टिक की संख्या मछलियों से भी अधिक हो सकती है।
    • स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र: सूक्ष्म प्लास्टिक मृदा की उर्वरता को कम करते हैं और पशुधन तथा स्थलीय वन्यजीवों को नुकसान पहुँचाते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन: प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होते हैं; इनके उत्पादन और भस्मीकरण से ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो जलवायु लक्ष्यों को कमजोर करती हैं।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
    • रासायनिक निक्षालन: प्लास्टिक से बिस्फेनॉल-ए (Bisphenol-A- BPA) और फ्थैलेट्स (Phthalates) जैसे हानिकारक रसायन निकलते हैं, जो हार्मोनल व्यवधान, कैंसर और विकास संबंधी विकारों से जुड़े हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक अंतर्ग्रहण: हाल के अध्ययनों से पता चला है कि मानव रक्त, प्लेसेंटा और फेफड़ों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम अभी भी अज्ञात हैं।
  • आर्थिक प्रभाव
    • समुद्री अर्थव्यवस्था को नुकसान: समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाला वार्षिक आर्थिक नुकसान अरबों डॉलर का है, जिससे मत्स्यपालन, तटीय पर्यटन और वैश्विक शिपिंग उद्योग बाधित होते हैं।
    • अपशिष्ट प्रबंधन का बढ़ता बोझ: देशों को प्लास्टिक कचरे के संग्रहण, उपचार और निपटान में बढ़ती लागत का सामना करना पड़ता है, जबकि अरबों डॉलर मूल्य की मूल्यवान सामग्री लैंडफिल और खुले वातावरण में नष्ट हो जाती है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में प्रमुख चुनौतियाँ

  • सर्वव्यापकता: आर्कटिक की बर्फ, माउंट एवरेस्ट और मारियाना ट्रेंच के अवसाद में प्लास्टिक पाया गया है, जो इस समस्या की वास्तविक सीमा-पारीय प्रकृति को दर्शाता है।
  • जीवनचक्र उत्सर्जन: प्लास्टिक उत्सर्जन न केवल निपटान के दौरान, बल्कि उत्पादन से उपभोग चक्र के दौरान भी होता है।
  • कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरा: खुले में डंपिंग के कारण जलमार्गों, हवाओं और ज्वार-भाटे के माध्यम से परिवहन होता है, जिससे ‘ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच’ जैसे विशाल अपशिष्ट क्षेत्रों का निर्माण होता है।
  • नकली बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक: मजबूत प्रमाणन के अभाव में नकली बायोडिग्रेडेबल/कंपोस्टेबल प्लास्टिक बाजार में उपलब्ध हैं।
  • ई-कॉमर्स और खाद्य वितरण पैकेजिंग: ऑनलाइन खुदरा और खाद्य ऐप्स के माध्यम से शहरी उपभोग ने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक कचरे में वृद्धि की है।
  • सूक्ष्म प्लास्टिक संकट: प्लास्टिक लंबी दूरी तय करता है, समुद्र तल में जम जाता है और बादलों और बर्फबारी के माध्यम से वायुमंडल में भी प्रवेश कर जाता है, जिससे इसे छानना लगभग असंभव हो जाता है।
  • समुद्री अपशिष्ट: समुद्री अपशिष्ट का 60-80% हिस्सा होता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है।
  • स्थलीय प्लास्टिक: 80% प्लास्टिक अपशिष्ट भूमि-आधारित स्रोतों से आता है; केवल 20% समुद्री स्रोतों (मछली पकड़ने के जाल, रस्सियाँ, उपकरण) से आता है।
  • कमज़ोर कार्यान्वयन और निगरानी: PWM नियम वर्ष 2016 और वर्ष 2018 में संशोधन के बावजूद, स्थानीय निकायों में पृथक्करण और प्रवर्तन की स्थिति खराब बनी हुई है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की भूमिका: भारत में लगभग 70% प्लास्टिक रीसाइक्लिंग अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा की जाती है, प्रायः खतरनाक और अनियमित परिस्थितियों में, जिससे आजीविका और सुरक्षा के मुद्दे उठते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए भारत की पहल

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन: नियामक नींव का निर्माण
    • वर्ष 2009 – प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (Plastic Waste Management- PWM) नियम (प्रथम संस्करण): प्लास्टिक अपशिष्ट के संग्रहण और निपटान हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए।
    • वर्ष 2011 – PWM नियमों में संशोधन: अपशिष्ट प्रबंधन में उत्पादकों की जिम्मेदारी को मजबूत किया गया।
    • वर्ष 2014 – स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission- SBM): स्रोत पर पृथक्करण, वैज्ञानिक निपटान और संरचित संग्रहण प्रणालियों को प्रोत्साहित किया गया।
    • वर्ष 2016 – PWM नियम (प्रमुख सुधार): विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) को संस्थागत रूप दिया गया, पृथक्करण को अनिवार्य बनाया गया और पुनर्चक्रण एवं पुन: उपयोग को बढ़ावा दिया गया।
    • वर्ष 2018 – PWM नियमों में संशोधन: EPR दायित्वों को सख्त किया गया और बहु-स्तरीय प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया।
    • 2021 – भारत प्लास्टिक समझौता (CII–WWF): वर्ष 2030 तक 100% पुनर्चक्रण योग्य/खाद योग्य पैकेजिंग प्राप्त करने हेतु कॉरपोरेट प्रतिबद्धता।
    • वर्ष 2021 – ‘अन-प्लास्टिक कलेक्टिव’ (WWF, UNEP, CII): प्लास्टिक के उपयोग को कम करने हेतु एक सहयोगी कॉरपोरेट मंच।
  • प्रतिबंध के उपाय: एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single-Use Plastics- SUP) को लक्षित करना
    • वर्ष 2019 – राष्ट्रीय प्रतिबंध की घोषणा: एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को समाप्त करने के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण।
    • वर्ष 2022 – SUP पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध: प्लास्टिक कटलरी, ईयरबड्स, पॉलीस्टाइनिन वस्तुओं, स्ट्रॉ और इसी तरह के डिस्पोजेबल सामानों पर प्रतिबंध।
  • प्रौद्योगिकी एवं अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा
    • वर्ष 2022- वर्ष 2023 – CSIR और TDB परियोजनाएँ: प्लास्टिक को ईंधन, टाइल, हाइड्रोजन, हरित प्लास्टिसाइजर में परिवर्तित करना; एपीकेमी के पायरोलिसिस तेल क्षेत्र को सहायता।
    • वर्ष 2022 – प्लास्टिक पार्क योजना: 50% परियोजना निधि (अधिकतम ₹40 करोड़) के साथ 10 पार्कों को मंजूरी।
    • वर्ष 2023 – उत्कृष्टता केंद्र: 18 अनुसंधान केंद्र, नई पुनर्चक्रण तकनीकों के लिए ₹345 करोड़ का अनुसंधान एवं विकास आवंटन।
  • जमीनी स्तर पर नवाचार और जागरूकता
    • वर्ष 2021 से आगे – प्लास्टिक सड़कें: प्लास्टिक-बिटुमेन मिश्रण का उपयोग करके 33,700 किलोमीटर से अधिक का निर्माण।
    • वर्ष 2022 – धारावी प्लास्टिक निर्मित संरचना  और पुणे इकोब्रिक्स: स्थानीय समुदाय द्वारा संचालित पुनर्चक्रण समाधान।
    • वर्ष 2022-23 – रचनात्मक जागरूकता परियोजनाएँ: एकल-उपयोग प्लास्टिक मृत्युशय्या (ऋषिकेश), समुद्री कब्रिस्तान (कोझिकोड)।
  • हालिया पहल (वर्ष 2024- वर्ष  2025)
    • वर्ष 2024 – मिशन लाइफ अभियान: एक राष्ट्र, एक मिशन: प्लास्टिक प्रदूषण का अंत।
    • वर्ष 2024 – राज्य/शहर नवाचार
      • वडोदरा: कपड़े के थैले बेचने वाली मशीनें
      • मथुरा: प्लास्टिक-मुक्त ब्रज अभियान
      • मदुरै: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संचालित कचरा निगरानी।
    • वर्ष 2025 – राष्ट्रीय प्लास्टिक प्रदूषण न्यूनीकरण अभियान: बाघ अभयारण्यों, सरकारी कार्यालयों और युवाओं की भागीदारी को लक्षित करना।
    • जून 2025 – राष्ट्रीय प्लास्टिक अपशिष्ट रिपोर्टिंग पोर्टल और डैशबोर्ड: EPR पारदर्शिता और निगरानी को मजबूत किया गया।

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक पहल

  • प्रारंभिक वैश्विक पर्यावरण शासन
    • वर्ष 1989 – खतरनाक अपशिष्टों पर बेसल कन्वेंशन: खतरनाक अपशिष्टों की सीमा पार आवाजाही को नियंत्रित किया गया।
    • वर्ष 2001 – स्टॉकहोम कन्वेंशन: प्लास्टिक सहित स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants- POP) पर ध्यान दिया गया।
  • समुद्री कचरे पर ध्यान (वर्ष 2000- वर्ष 2010)
    • वर्ष 2012 – समुद्री अपशिष्ट पर वैश्विक भागीदारी (GPML, UNEP): ज्ञान और सहयोग के लिए बहु-हितधारक मंच।
    • वर्ष 2017 – UNEA-3 समुद्री कचरा और माइक्रोप्लास्टिक संबंधी संकल्प: समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर पहला संयुक्त राष्ट्र संकल्प।
    • वर्ष 2019 – प्लास्टिक आधारित बेसल कन्वेंशन: प्लास्टिक अपशिष्ट व्यापार को पूर्व सूचित सहमति (Prior Informed Consent- PIC) के अंतर्गत लाया गया।
  • क्षेत्रीय प्रतिक्रियाएँ
    • वर्ष 2021 – यूरोपीय संघ का एकल-उपयोग प्लास्टिक निर्देश: प्लास्टिक कटलरी, स्ट्रॉ, पॉलीस्टाइरीन पर प्रतिबंध, पुनर्चक्रण लक्ष्यों में वृद्धि।
    • वर्ष 2021 – आसियान क्षेत्रीय कार्य योजना (वर्ष 2021- वर्ष 2025): वर्ष 2025 तक समुद्री प्लास्टिक अपशिष्ट में 75% की कमी का लक्ष्य।
  • हाल की वैश्विक और संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली कार्रवाइयाँ
    • वर्ष 2022 – UNEA संकल्प 5/14: वर्ष 2024 तक एक वैश्विक कानूनी रूप से बाध्यकारी प्लास्टिक संधि पर बातचीत अनिवार्य।
    • वर्ष 2022 – नई प्लास्टिक अर्थव्यवस्था वैश्विक प्रतिबद्धता (एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन + UNEP): अपरिष्कृत प्लास्टिक में कटौती के लिए निगमों को शामिल किया गया।
    • वर्ष 2023 – गोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (EU-वित्त पोषित): विकासशील देशों में सर्कुलर समाधानों का समर्थन किया गया।
    • वर्ष 2023-24 – ‘क्लोजिंग द लूप’ (UNESCAP): चक्रीय नीतियों के साथ एशियाई शहरों की सहायता की गई।
    • वर्ष 2025 – INC-5 बुसान (दक्षिण कोरिया): संधि वार्ता का छठा प्रयास, मतभेद अनसुलझे रहे।

आगे की राह 

  • वैश्विक स्तर
    • महत्त्वाकांक्षी संधि संरचना: उत्पादन सीमा, खतरनाक रसायनों के विनियमन और विकासशील देशों के लिए समर्पित वित्तपोषण तंत्र स्थापित करके संधि वार्ताओं को और अधिक महत्त्वाकांक्षा के साथ पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
    • उत्तर-दक्षिण विभाजन को पाटना: समावेशी कूटनीति के माध्यम से वैश्विक अंतर को कम किया जाना चाहिए, जो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, वित्तीय सहायता और समान विकास पथों पर जोर देती है।
    • वैश्विक गठबंधनों को मजबूत करना: प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन और UNEP के नेतृत्व वाली अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC) जैसे मंचों को वर्ष 2025-26 तक एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि बनाने के लिए मजबूत किया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय रणनीति
    • सिद्ध मॉडलों का विस्तार: व्यापक प्रभाव के लिए रीसाइक्ल (तकनीक-सक्षम पुनर्चक्रण), विदाउट (बहु-परत प्लास्टिक पुनर्चक्रण), और प्लास्टिक-संशोधित सड़कों जैसी पहलों का देश भर में विस्तार किया जाना चाहिए।
    • अपशिष्ट अवसंरचना का उन्नयन: अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को स्रोत पर पृथक्करण, विस्तारित सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाओं (MRF) और रिवर्स लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के माध्यम से सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण: लगभग 15 लाख कचरा बीनने वालों को सामाजिक सुरक्षा, डिजिटल भुगतान और सहकारी मॉडलों के माध्यम से औपचारिक प्रणालियों में एकीकृत किया जाना चाहिए।
    • सख्त ईपीआर प्रवर्तन: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) को सर्कुलर इकोनॉमी व्यवसाय मॉडलों के लिए वित्तीय प्रोत्साहनों के साथ-साथ सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
    • अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को बढ़ावा देना: बायोडिग्रेडेबल विकल्पों, कंपोस्टेबल पैकेजिंग और AI-संचालित अपशिष्ट ट्रैकिंग प्रणालियों में अनुसंधान एवं विकास (R&D) को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए।
  • नीति और सामुदायिक एकीकरण
    • अनुपालन को मजबूत करना: एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध की निगरानी और अनुपालन तंत्र में उल्लंघनकर्ताओं के लिए दंड और अनुपालन करने वाले व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन शामिल होने चाहिए।
    • सहयोगी नवाचार को प्रोत्साहित करना: स्टार्ट-अप्स, गैर-सरकारी संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी करके, इको-ब्रिक्स, कपड़े के थैले बेचने वाली मशीनें और कूपन के बदले प्लास्टिक जैसी स्थानीय समाधान विकसित किए जाने चाहिए।
    • हरित उद्यमिता को बढ़ावा देना: अपशिष्ट से धन बनाने वाले स्टार्ट-अप्स को ऋण पहुँच, इनक्यूबेशन कार्यक्रमों और सरकारी खरीद प्राथमिकताओं के माध्यम से समर्थन दिया जाना चाहिए।
    • युवाओं और समुदायों को संगठित करना: राष्ट्रव्यापी प्लास्टिक साक्षरता अभियान, इको-हैकथॉन और स्कूल-स्तरीय शून्य-प्लास्टिक अभियान युवाओं को शामिल करने चाहिए और दीर्घकालिक व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने चाहिए।
  • 3R पर ध्यान केंद्रित करना
    • कम करना: पहला कदम प्लास्टिक की थैलियों पर कर लगाकर, प्लास्टिक निर्माण को प्रतिबंधित करके और जैव-निम्नीकरणीय सामग्रियों जैसे पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देकर एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का उपयोग कम करना है।
      • उदाहरण: REPLAN द्वारा प्रोजेक्ट रिप्लान (प्रकृति में प्लास्टिक का उपयोग कम करना) प्लास्टिक कैरी बैग के लिए सतत् विकल्प प्रदान करता है, जैसे हस्तनिर्मित कागज और कपड़े से बने उत्पाद।
    • पुन: उपयोग: प्लास्टिक उत्पादों के पुन: उपयोग को बढ़ावा देने से नए उत्पादन पर निर्भरता कम होती है और यह नए प्लास्टिक के अति प्रयोग पर एक स्वाभाविक नियंत्रण का काम करता है।
      • उदाहरण: प्लास्टिक की सड़कें और प्लास्टिक से ईंधन रूपांतरण जैसे नवाचार पुन: उपयोग दक्षता को बढ़ाते हैं।
    • पुनर्चक्रण: प्लास्टिक का पुनर्चक्रण यह सुनिश्चित करता है कि कचरे को उपयोगी उत्पादों में पुन: संसाधित किया जाए, जिससे कई लाभ मिलते हैं:
      • मूल्य संवर्द्धन के माध्यम से आर्थिक लाभ।
      • चक्रीय अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन।
      • जीवाश्म ईंधन भंडारों का संरक्षण।
      • लैंडफिल पर बोझ और पर्यावरणीय तनाव में कमी।
      • वर्जिन प्लास्टिक उत्पादन की तुलना में कम ऊर्जा खपत।
      • उदाहरण: भारत का रीसाइक्ल डिजिटल प्लेटफॉर्म उत्पादकों, रीसाइक्लर्स और कचरा बीनने वालों को जोड़कर ‘रीसाइक्लिंग’ मूल्य शृंखला को मजबूत करता है।

निष्कर्ष

प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संवैधानिक पर्यावरणीय मूल्यों को कायम रखता है, अंतर-पीढ़ीगत समानता की रक्षा करता है तथा दीर्घकालिक लचीलेपन के लिए SDG 12 (स्थायी उपभोग) और SDG 14 (स्वस्थ महासागर) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।

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