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वैश्विक प्लास्टिक संधि

Lokesh Pal November 30, 2024 02:13 91 0

संदर्भ

अंतर-सरकारी वार्ता समिति के 5वें सत्र (INC-5) में भाग ले रहे भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने सदस्य देशों से प्लास्टिक प्रदूषण पर नए अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन के लिए स्पष्ट दायरा और सिद्धांत विकसित करने का आह्वान किया। 

मॉडल के रूप में वैश्विक संधियाँ

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: एकीकृत वैश्विक प्रतिबंधों के माध्यम से ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के 99% को सफलतापूर्वक समाप्त किया गया।
  • प्रासंगिकता: पर्यावरणीय संकटों को संबोधित करने के लिए एकीकृत, बाध्यकारी समझौतों की क्षमता को दर्शाता है।

संबंधित तथ्य 

  • भारत ने इस बात पर जोर दिया कि अन्य बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों जैसे कि बेसल, रॉटरडैम और स्टॉकहोम सम्मेलनों तथा विश्व व्यापार संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अधिदेशों के साथ कोई ओवरलैप नहीं होना चाहिए।

वैश्विक प्लास्टिक संधि वार्ता (Global Plastics Treaty Negotiations)

  • उद्देश्य: प्लास्टिक प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही समाप्त करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन बनाएँ।

भारत की स्थिति

  • विकासशील देशों के लिए मुआवजा: विकासशील देशों को नियंत्रण उपायों को लागू करने की लागत के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: ‘राष्ट्रीय परिस्थितियों’ का सम्मान करने वाले प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर जोर दिया।
  • समर्पित बहुपक्षीय निधि
    • विकासशील देशों के लिए अनुदान आधारित वित्त।
    • विकसित देशों से अतिरिक्त योगदान, अन्य वित्तीय हस्तांतरणों से अलग।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक सहायक निकाय द्वारा शासन।
  • दृष्टिकोण: मुख्य रूप से वित्तीय तंत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए समावेशिता, आम सहमति और समझौते की गति पर जोर दिया गया।
  • पॉलिमर उत्पादन: पॉलिमर उत्पादन पर प्रतिबंधों का विरोध करता है, उन्हें UNeA 2022 अधिदेश से परे मानता है।
  • समर्थन तंत्र: विकासशील देशों की सहायता के लिए संधि में वित्तीय और तकनीकी सहायता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का आह्वान करता है।
  • रासायनिक विनियमन: हानिकारक रसायनों पर निर्णय वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर और घरेलू स्तर पर विनियमित किए जाने की वकालत करता है।
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध: अपने राष्ट्रीय प्रयासों के हिस्से के रूप में वर्ष 2022 में एकल-उपयोग प्लास्टिक की 19 श्रेणियों पर प्रतिबंध लगाया।
  • व्यावहारिक चरण-आउट: विशिष्ट प्लास्टिक वस्तुओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर व्यावहारिक, राष्ट्रीय स्तर पर संचालित निर्णयों का आग्रह करता है।

प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में सफल देश

  • रवांडा: वर्ष 2008 में, रवांडा ने एकल उपयोग वाले प्लास्टिक बैग और बोतलों पर प्रतिबंध लगा दिया तथा प्रतिबंध को सामुदायिक सेवा कार्यक्रम में एकीकृत कर दिया।
  • ऑस्ट्रिया: ऑस्ट्रिया की रीसाइक्लिंग दरें दुनिया में सबसे अधिक हैं, जहाँ 96% आबादी अपने अपशिष्ट को पुनर्चक्रण योग्य श्रेणियों में अलग करती है।
  • वेल्स (Wales): वेल्स अपने कुल अपशिष्ट का लगभग 65% पुनर्चक्रण करता है।
  • दक्षिण कोरिया: दक्षिण कोरिया में खाद्य पुनर्चक्रण दर 95% है।

संधि वार्ता में प्रमुख घटनाएँ

  • वर्ष 2017: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा ने समुद्री अपशिष्ट तथा प्लास्टिक प्रदूषण पर एक विशेषज्ञ समूह की स्थापना की।
  • वर्ष 2018: विशेषज्ञ समूह ने वैश्विक बाध्यकारी समझौते की खोज करने की सिफारिश की।
  • वर्ष 2019: अफ्रीकी, नॉर्डिक, प्रशांत तथा कैरेबियाई देशों की ओर से वैश्विक समझौते का समर्थन करने की प्रतिबद्धता।
  • वर्ष 2020: यूरोपीय संघ के सदस्य देश तथा निजी कंपनियाँ एक संधि की वकालत करती हैं।
    • वैश्विक प्लास्टिक समझौते के लिए व्यावसायिक घोषणा-पत्र लॉन्च किया गया।
  • वर्ष 2021: 700 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संधि वार्ता का आग्रह करते हुए नागरिक समाज घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए गए।
  • वर्ष 2022: संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि की दिशा में कार्य करने के लिए संकल्प 5/14 को अपनाया। उरुग्वे में INC-1 ने संधि के लिए आधार तैयार किया। वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन की शुरुआत की गई।
  • वर्ष 2023: केन्या के नैरोबी में INC-3 में ‘शून्य मसौदा’ (Zero Draft) संधि का मसौदा तैयार किया गया।
  • वर्ष 2024: INC-4 (ओटावा): संकटग्रस्त प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के नियमों पर चर्चा की गई।
  • INC-5 (बुसान): दिसंबर 2024 तक संधि के लिए अंतिम वार्ता।

प्लास्टिक क्या है?

  • प्लास्टिक एक सिंथेटिक पदार्थ है, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जैसे कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से प्राप्त पॉलिमर से बनाया जाता है।
  • इसकी बहुमुखी प्रतिभा, स्थायित्व और कम लागत के कारण इसे पैकेजिंग, निर्माण, कपड़ा और अन्य उद्योगों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालाँकि, इसकी गैर-बायोडिग्रेडेबिलिटी इसे एक महत्त्वपूर्ण प्रदूषक बनाती है।

माइक्रोप्लास्टिक क्या हैं?

  • माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर से भी छोटे आकार के सूक्ष्म प्लास्टिक कण होते हैं, जो बड़े प्लास्टिक अपशिष्ट के विघटन से या जानबूझकर निर्मित (जैसे- सौंदर्य प्रसाधनों या औद्योगिक अनुप्रयोगों में) उत्पन्न होते हैं।
  • इन्हें इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: सीधे माइक्रोबीड्स, पेलेट या फाइबर के रूप में निर्मित (जैसे, सौंदर्य प्रसाधन, डिटर्जेंट में)।
    • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: सूर्य के प्रकाश, तरंगों और अपक्षय जैसे पर्यावरणीय कारकों के कारण बड़े प्लास्टिक के क्षरण से निर्मित।

वैश्विक प्लास्टिक संधि की आवश्यकता

  • वार्षिक उत्पादन: विश्व स्तर पर 462 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है; 90% पृथ्वी को प्रदूषित करता है।
  • UNEP के अनुसार, प्रत्येक दिन, दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में 2,000 कचरा ट्रकों के बराबर प्लास्टिक फेंका जाता है।
  • प्रभाव
    • पर्यावरण: प्रत्येक वर्ष 19-23 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रिसता है, जिससे झीलें, नदियाँ और समुद्र प्रदूषित होते हैं।
    • स्वास्थ्य: जोखिमों में रासायनिक जोखिम और माइक्रोप्लास्टिक अंतर्ग्रहण शामिल हैं, जो मानव अंगों और जैव-विविधता को प्रभावित करते हैं।
    • आर्थिक: स्वच्छ पर्यावरण (जैसे, मछली पकड़ना, पर्यटन) पर निर्भर आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं को बाधित करता है।
  • अनुमानित प्रवृत्ति: यदि तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया तो वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण तीन गुना हो सकता है।
  • भारत: नेचर जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि भारत वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे अधिक योगदानकर्ता है।
    • दुनिया भर में उत्पन्न होने वाले कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग पाँचवाँ हिस्सा भारत में उत्पन्न होता है।
  • जलवायु परिवर्तन का सूत्रधार: प्लास्टिक जलवायु परिवर्तन में भी योगदान देता है। वर्ष 2020 में, इसने वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का 3.6% उत्पन्न किया, जिसमें से 90% मात्रात्मक उत्सर्जन प्लास्टिक उत्पादन से आया, जिसमें कच्चे माल के रूप में जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है।

प्लास्टिक प्रदूषण का वैश्विक वितरण

  • महासागर: अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष 9-14 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा महासागरों में जाता है।
    • मारियाना ट्रेंच और आर्कटिक सागर जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरा पाया गया है।
  • भूमि और मिट्टी: गलत तरीके से प्रबंधित प्लास्टिक कचरा स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को दूषित करता है, अकेले कृषि में वार्षिक 12.5 मिलियन टन प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है।
    • माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी में घुल जाता है, जिससे मिट्टी की सेहत और फसल की पैदावार प्रभावित होती है।
  • नदियाँ और झीलें: गंगा और यांग्त्जी जैसी नदियाँ बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरे को महासागरों तक ले जाती हैं।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि अमेरिका में ग्रेट लेक्स और अफ्रीका में विक्टोरिया झील जैसी झीलों में प्लास्टिक कचरा जमा हो रहा है।
  • वायुमंडल: माइक्रोप्लास्टिक वायुमंडल के माध्यम से फैलता है, हिमालय और पाइरेनीज (Pyrenees) जैसे दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में भी जमा हो जाता है।
  • जैव-विविधता हॉटस्पॉट
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें कोरल रीफ भी शामिल है, कछुए और जलीय पक्षियों जैसी प्रजातियों द्वारा उलझने एवं निगलने के कारण उच्च जोखिम में है।
    • प्लास्टिक दूषित क्षेत्रों में चरने वाले पशुओं सहित स्थलीय प्रजातियों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • शहरी क्षेत्र: शहरी केंद्रों में पैकेजिंग एवं उपभोक्ता उत्पादों के कारण भारी मात्रा में प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन का लगभग 36% पैकेजिंग के लिए होता है, जिसमें से अधिकांश कचरा बन जाता है।
  • ध्रुवीय क्षेत्र: आर्कटिक समुद्री बर्फ और अंटार्कटिका में माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है, जो समुद्री धाराओं और वायुमंडलीय मार्गों द्वारा ले जाया जाता है।

भारत में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए गए कदम

  • UNDP इंडिया का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम (वर्ष 2018-2024): इस कार्यक्रम का उद्देश्य पर्यावरण पर प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रभाव को कम करना है।
    • इसका उद्देश्य भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं में सुधार लाना था।
  • सिंगल-यूज प्लास्टिक (Single-Use Plastics- SUP) पर प्रतिबंध: पर्यावरण मंत्रालय ने मुश्किल से एकत्रित होने वाले तथा रीसाइकिल होने वाले सिंगल-यूज प्लास्टिक (SUP) आइटम पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • 120 माइक्रोन से पतले प्लास्टिक बैग का निर्माण, आयात, बिक्री तथा उपयोग प्रतिबंधित है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 ने प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) की शुरुआत की।
    • ये नियम निम्नलिखित के लिए लक्ष्य निर्धारित करते हैं:
      • प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट का पुनर्चक्रण।
      • कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग का पुनः उपयोग।
      • पैकेजिंग में पुनर्चक्रित प्लास्टिक का उपयोग।
  • स्वच्छ भारत मिशन: वर्ष 2014 में शुरू किया गया, इसका उद्देश्य खुले में शौच को समाप्त करना और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना है।
  • भारत प्लास्टिक समझौता: इस पहल का उद्देश्य प्लास्टिक के जीवन चक्र को बदलना है।
    • वर्ष 2030 तक IPP का लक्ष्य है:
      • अनावश्यक या समस्याग्रस्त प्लास्टिक पैकेजिंग को हटाना।
      • 100% प्लास्टिक पैकेजिंग को पुनः उपयोग योग्य, पुनर्चक्रण योग्य या खाद बनाने योग्य बनाएँ।
      • सभी प्लास्टिक पैकेजिंग में औसतन 25% पुनर्चक्रण सामग्री प्राप्त करना।
  • प्रोजेक्ट RePLAN (Project RePLAN): ‘RePLAN’ का मतलब है प्रकृति में प्लास्टिक को कम करना।
    • इसका उद्देश्य प्लास्टिक अपशिष्ट को कपास के रेशों के साथ मिलाकर कैरी बैग बनाना था।
  • अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): अन-प्लास्टिक का मतलब है सभी प्लास्टिक को एक परिपत्र अर्थव्यवस्था में ले जाना और अनावश्यक प्लास्टिक को खत्म करना।
    • इस पहल का उद्देश्य पृथ्वी के कल्याण पर नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।
  • गोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (GoLitter Partnerships Project): यह पहल मत्स्यपालन और शिपिंग से समुद्री प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने के लिए की गई थी।

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक पहल

  • लूप को बंद करना (Closing the Loop): यह परियोजना एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग की है।
    • उद्देश्य: प्लास्टिक कचरे से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिए नीति समाधान बनाने में शहरों की मदद करना।
  • वैश्विक पर्यटन प्लास्टिक पहल: इस पहल का उद्देश्य वर्ष 2025 तक पर्यटन उद्योग से प्रदूषण के स्तर को कम करना है।
    • दृष्टिकोण: प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए व्यवसायों, सरकारों और हितधारकों को प्रोत्साहित करना।
  • यूएनईपी प्लास्टिक पहल (UNEP Plastics Initiative)
    • लक्ष्य: वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना।
    • दृष्टिकोण: रैखिक ‘टेक-मेक-डिस्पोज’ (Take-Make-Dispose) मॉडल से एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना, जहाँ प्लास्टिक का पुनः उपयोग, पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग किया जाता है।  
  • ‘ग्लोबल प्लास्टिक एक्शन पार्टनरशिप’ (Global Plastic Action Partnership- GPAP)
    • लक्ष्य: प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने के लिए सार्थक कार्रवाई करना।  
    • दृष्टिकोण: व्यवसायों, सरकारों, सामुदायिक समूहों और विशेषज्ञों के बीच सहयोग।
  • यूरोपीय संघ प्लास्टिक रणनीति (european Union Plastics Strategy)
    • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक यूरोपीय संघ के बाजार में उपलब्ध सभी प्लास्टिक पैकेजिंग को पुनः उपयोग योग्य या पुनर्चक्रण योग्य बनाना।
    • दृष्टिकोण: रीसाइक्लिंग पर विनियमन को मजबूत करना और कानून के लिए विज्ञान आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
  • नई प्लास्टिक अर्थव्यवस्था वैश्विक प्रतिबद्धता
    • वर्ष 2018 में, UNEP ने नई प्लास्टिक अर्थव्यवस्था के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता पर एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के साथ मिलकर कार्य किया।
    • यह समझौता निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के नेताओं को प्लास्टिक के इर्द-गिर्द चक्रीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट करता है।
  • स्वच्छ समुद्र अभियान
    • फरवरी 2017 में, UNEP ने इसे लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य समुद्री कूड़े और प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में सरकारों, आम जनता, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को शामिल करना था।

प्लास्टिक प्रदूषण पर अंकुश लगाने में चुनौतियाँ तथा मुद्दे

  • प्लास्टिक पर अत्यधिक निर्भरता: प्लास्टिक पैकेजिंग (वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन का 36%), निर्माण (प्रति वर्ष 100 बिलियन टन अपशिष्ट) और कपड़ा (कपड़ों की 60% सामग्री प्लास्टिक आधारित है) जैसे उद्योगों का अभिन्न अंग है। विकल्पों पर स्विच करना महंगा और तार्किक रूप से जटिल है।
  • वैश्विक विनियमनों का अभाव: हालाँकि 175 देशों ने प्लास्टिक संधि (UNEA संकल्प 5/14, 2022) के लिए अधिदेश अपनाया है, प्रगति धीमी है। प्रमुख राष्ट्र और उद्योग बाध्यकारी समझौतों का विरोध करते हैं, जिससे प्रभावशाली वैश्विक कार्रवाई में देरी होती है।
  • विकल्पों की उच्च लागत: बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक और पुन: प्रयोज्य सामग्री पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में 20-50% अधिक महंगी हैं, जो विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर अपनाने में बाधा डालती हैं।
  • प्लास्टिक जीवनचक्र मुद्दे: प्लास्टिक में हानिकारक योजक और रसायन पारिस्थितिकी तंत्र में घुल जाते हैं। उदाहरण के लिए, पैकेजिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले थैलेट मिट्टी और पानी को दूषित करते हैं, जिससे जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
  • समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण: प्रत्येक वर्ष 9-14 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट महासागरों में प्रवेश करता है। अकेले मछली पालन से निकलने वाले घोस्ट नेट्स (Ghost Nets) 45 मिलियन किलोग्राम से अधिक का योगदान देते हैं, जिससे समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचता है।
    • उदाहरण के लिए, समुद्री कछुए अक्सर प्लास्टिक की थैलियों को जेलीफिश समझ लेते हैं, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
  • उद्योगों का प्रतिरोध: एक्सॉनमोबिल (exxonMobil) तथा डॉव (Dow) जैसी पेट्रोकेमिकल दिग्गज कंपनियाँ वर्जिन प्लास्टिक उत्पादन पर प्रतिबंध के खिलाफ सिफारिश कर रही हैं।
    • वर्ष 2024 तक, 98% एकल-उपयोग प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होंगे, जिससे उनकी लाभप्रदता बनी रहेगी।
  • रीसाइकिलिंग की अक्षमताएँ: दुनिया भर में केवल 9% प्लास्टिक का ही पुनर्चक्रण किया जाता है, शेष को जला (12%) दिया जाता है या त्याग (79%) दिया जाता है। खाद्य अवशेषों से संदूषण और अलग-अलग अपशिष्ट संग्रह की कमी प्रमुख बाधाएँ हैं।
  • माइक्रोप्लास्टिक समस्या: कपड़ों (लॉन्ड्री से सालाना आधा मिलियन टन) और टायर के घिसने से निकलने वाले माइक्रोप्लास्टिक जल निकायों को दूषित करते हैं। अध्ययनों में दुनिया भर में नल के जल के 83% नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है।
  • नीति कार्यान्वयन में कमियाँ: भारत में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध (वर्ष 2022) जैसी नीतियाँ अक्सर खराब प्रवर्तन के कारण विफल हो जाती हैं। इसके विपरीत, रवांडा में वर्ष 2008 से प्लास्टिक बैग पर सख्त प्रतिबंध एक वैश्विक मॉडल रहा है, जो प्रभावी शासन की आवश्यकता को साबित करता है।

प्लास्टिक प्रदूषण पर अंकुश लगाने संबंधी आगे की राह

  • एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: वर्ष 2008 से रवांडा के प्रतिबंध जैसे सफल मॉडल का अनुसरण करते हुए, कठोर दंड के साथ एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू करना, जिससे प्लास्टिक अपशिष्ट में उल्लेखनीय कमी आई।
  • परिपत्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: पुनः उपयोग तथा पुनर्चक्रण के लिए उत्पादों को डिजाइन करने को प्रोत्साहित करना, जिससे वर्जिन प्लास्टिक पर निर्भरता कम हो। उदाहरणों में एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन की परिपत्र प्रणालियों के लिए वैश्विक पहल शामिल हैं।
  • अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करना: विशेष रूप से केन्या तथा भारत जैसे उच्च अपशिष्ट उत्पादन वाले देशों में कुशल पृथक्करण, संग्रह और पुनर्चक्रण के लिए बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
  • विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (ePR): कंपनियों को उपभोक्ता-पश्चात् प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन करने का आदेश दिया जाना चाहिए, जैसा कि जर्मनी के पैकेजिंग अधिनियम में देखा गया है, जो पुनर्चक्रण प्रणालियों को वित्तपोषित करता है।
  • प्लास्टिक के लिए विकल्पों का विस्तार: स्वीडन के बायोप्लास्टिक में निवेश की नकल करते हुए, किफायती बायोडिग्रेडेबल या पुन: प्रयोज्य सामग्रियों के लिए अनुसंधान एवं विकास प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करना।
  • माइक्रोप्लास्टिक को संबोधित करना: कपड़ा तथा मत्स्यपालन जैसे उद्योगों को विनियमित करना और महासागर माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए वॉशिंग मशीन माइक्रोफाइबर फिल्टर जैसे नवाचारों को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक सहयोग: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता के बाद, वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी और ज्ञान साझा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना।

निष्कर्ष

प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक संकट है, जिसके लिए तत्काल, सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है। संधारणीय प्रथाओं को अपनाकर, विनियमों को लागू करके और नवाचार को बढ़ावा देकर, एक सर्कुलर इकॉनमी की ओर बढ़ सकते हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र, मानव स्वास्थ्य और पृथ्वी के भविष्य की रक्षा कर सकते हैं।

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