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वैश्वीकरण और भारत

Lokesh Pal April 29, 2025 03:13 8 0

संदर्भ

अमेरिकी संरक्षणवाद (28% टैरिफ), अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध तथा भारत-पाकिस्तान तनाव (पहलगाम घटना के बाद) के कारण वैश्विक मंदी की संभावना जताई जा रही है, जिससे भारत की आर्थिक संवृद्धि को खतरा है, तथा अनुकूलन के लिए सुधारों की आवश्यकता है।

वैश्वीकरण के बारे में

  • वैश्वीकरण का तात्पर्य व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी, सूचना और लोगों की आवाजाही के माध्यम से देशों के बीच बढ़ती हुई परस्पर संबद्धता और अन्योन्याश्रयता से है।
  • यह आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विस्तृत है।

वैश्वीकरण का विकास

आद्य-वैश्वीकरण: प्राचीन व्यापार मार्ग (पहली शताब्दी ईसा पूर्व – 15वीं शताब्दी ईसवी)

  • सिल्क रोड (पहली शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईसवी तक; 13वीं-14वीं शताब्दी ईसवी में पुनर्सक्रिय)
    • स्थल मार्गों के माध्यम से चीन और रोम के बीच लंबी दूरी के व्यापार का पहला उदाहरण मिलता है।
    • रेशम और मसालों जैसी वस्तुओं का परिवहन हुआ, जिससे पहली बार वैश्विक व्यापार संबंध स्थापित हुए।
    • शक्तिशाली साम्राज्यों (हान चीन, रोमन साम्राज्य, मंगोल साम्राज्य) के तहत व्यापार का विस्तार हुआ।
    • राजनीतिक स्थिरता में अवरोध उत्पन्न होने पर व्यापार बाधित हुआ।
  • मसाला मार्ग (7वीं से 15वीं शताब्दी)
    • इस्लाम के उदय के बाद इस्लामी व्यापारियों द्वारा समुद्री व्यापार का विस्तार किया गया।
    • भूमध्य सागर, हिंद महासागर, दक्षिण-पूर्व एशिया के माध्यम से व्यापार का प्रसार हुआ।
    • लौंग, जायफल, जावित्री जैसे उच्च मूल्य वाले सामानों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • इस्लामिक व्यापार का प्रभुत्व स्पेन से इंडोनेशिया तक फैला हुआ था।

वैश्वीकरण 1.0: खोज का युग (15वीं-18वीं शताब्दी)

  • यूरोपीय अंवेषण ने वैश्विक संबंधों का विस्तार किया। उदाहरण के लिए, कोलंबस द्वारा अमेरिका की ‘खोज’, वास्को दा गामा का भारत पहुँचना।
  • वैज्ञानिक क्रांति ने शिपिंग, नेविगेशन और खगोल विज्ञान में सुधार किया।
  • यूरोपीय शक्तियों (पुर्तगाल, स्पेन, ब्रिटेन, नीदरलैंड) ने औपनिवेशिक साम्राज्यों का निर्माण किया।
  • वैश्विक व्यापार का विस्तार हुआ, लेकिन-
    • व्यापार शोषणकारी तथा असमान बना रहा।
    • व्यापारिक अर्थव्यवस्थाएँ उभरीं (उपनिवेशों ने कच्चा माल उपलब्ध कराया, तैयार माल खरीदा)।
    • दास व्यापार वैश्विक वाणिज्य का एक प्रमुख हिस्सा बन गया।

वैश्वीकरण 2.0: प्रथम चरण (19वीं शताब्दी से वर्ष 1914 तक)

  • ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर वैश्वीकरण को गति दी।
  • आविष्कार: वाष्प इंजन, रेलवे, टेलीग्राफ।
  • स्वेज नहर (वर्ष 1869) के खुलने से पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्गों के माध्यम से व्यापार को गति मिली।
  • इनमें व्यापक विस्तार
    • वैश्विक व्यापार (निर्यात वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 6% से बढ़कर 14% हो गया)।
    • खानों, बागानों, रेलवे (जैसे- भारत, अफ्रीका) में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
  • इस चरण के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था पहली बार आपस में जुड़ी।

पतन: वर्ष 1914–1945 (वैश्विक युद्ध एवं महामंदी)

  • प्रथम विश्व युद्ध ने वैश्विक व्यापार को तहस-नहस कर दिया।
  • संरक्षणवाद और आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
  • महामंदी (1929) ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को और भी अधिक विखंडित कर दिया।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध ने अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को ध्वस्त कर दिया।

वैश्वीकरण 3.0: दूसरी और तीसरा चरण (वर्ष 1945 के बाद से वर्ष 2008 तक)

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की पुनर्प्राप्ति
    • संयुक्त राज्य अमेरिकार पश्चिमी यूरोप के नेतृत्व में।
    • IMF, विश्व बैंक, GATT (बाद में WTO) का निर्माण।
    • पुनर्निर्माण प्रयासों (जैसे- मार्शल योजना) ने व्यापार को बढ़ावा दिया।
    • यूरोपीय संघ तथा अन्य क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉकों का गठन।
  • वर्ष 1989 के बाद का वैश्विक विस्तार
    • बर्लिन की दीवार का गिरना (वर्ष 1989) और सोवियत संघ के पतन ने पूर्वी यूरोप को एकीकृत किया।
    • चीन विश्व व्यापार संगठन (वर्ष 2001) में शामिल हुआ जिससे वैश्विक विनिर्माण क्रांति के लिए अनुकूल स्थितियाँ उत्पन्न की।
    • तीसरी औद्योगिक क्रांति (इंटरनेट) ने कनेक्टिविटी को बढ़ावा दिया।
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ: अनुसंधान एवं विकास, उत्पादन, वितरण कई देशों में विस्तृत हो गया।
    • वैश्विक निर्यात सकल घरेलू उत्पाद के 25% पर पहुँच गया, व्यापार वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधा हो गया।

21वीं सदी: वैश्वीकरण 4.0

  • वैश्वीकरण 4.0 से तात्पर्य वैश्वीकरण के नए चरण से है, जो इस प्रकार है-
    • चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) (AI, IoT, रोबोटिक्स, जैव प्रौद्योगिकी जैसी प्रौद्योगिकियाँ)।
    • बहुध्रुवीय भू-राजनीति, पारिस्थितिक चुनौतियाँ और बढ़ती असमानता
    • यह अर्थव्यवस्थाओं, समाजों, शासन और वैश्विक सहयोग को नया आकार देने वाले तीव्र तकनीकी परिवर्तनों पर बल देता है।
  • हाइपरकनेक्टिविटी का नया चरण: AI, बिग डेटा, ब्लॉकचेन, ई-कॉमर्स द्वारा संचालित।
  • सेवाओं का वैश्वीकरण: सॉफ्टवेयर, परामर्श और वित्त जैसी सेवाएँ सीमा पार व्यापार पर प्रभावी हैं।
  • नई शक्तियों का उदय: चीन, भारत, ब्राजील और आसियान अर्थव्यवस्थाओं के उदय ने वैश्विक आर्थिक गतिशीलता को नया आकार दिया।
  • सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताएँ: अनियंत्रित वैश्वीकरण से जुड़ी असमानता, रोजगार छूटने, जलवायु परिवर्तन के संबंध में आलोचना की जाती है।

वैश्वीकरण की विशेषताएँ एवं लक्षण

  • सीमापार आर्थिक एकीकरण: विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएँ व्यापार, निवेश और उत्पादन नेटवर्क के माध्यम से तेजी से आपस में जुड़ रही हैं।
    • 2000 के दशक की शुरुआत तक, वैश्विक व्यापार (निर्यात + आयात) वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग आधा हिस्सा था।
  • तकनीकी उन्नति से कनेक्टिविटी बढ़ रही है: परिवहन, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी में नवाचारों ने समय एवं दूरी को बहुत कम कर दिया है।
    • डिजिटल क्रांति: अलीबाबा के ‘सिल्क रोड’ मुख्यालय जैसे इंटरनेट और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का उदय प्राचीन व्यापार व्यवस्थाओं को डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ता है।
  • बहुराष्ट्रीय निगमों (MNC) का उदय: MNCs ने कई देशों में उत्पादन, सेवाएँ और बाजार फैलाए, जो वैश्वीकरण के प्रमुख चालक बन गए।
    • MNCs के पास अक्सर कई विकासशील देशों के बजट से अधिक संपत्ति होती है।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: विश्व में विचारों, कलाओं, भोजन और जीवन शैली का तीव्र प्रसार, संस्कृतियों के मिश्रण (संकरण) की ओर ले जाता है।
    • फास्ट फूड के माध्यम से अमेरिकीकरण (जैसे- भारत में मैकडॉनल्ड्स को अपनाया जाना)।
  • परस्पर निर्भरता एवं गतिशीलता में वृद्धि: देश आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
  • वैश्विक गाँव की अवधारणा: महाद्वीपों में आपूर्ति शृंखलाओं का एकीकरण, उदाहरण के रूप में: एक ही परिधान का उत्पादन कोरिया, थाईलैंड, भारत और यूरोप में होना।
  • वैश्वीकरण प्रक्रिया की अपरिवर्तनीयता: एक बार जब वैश्विक संबंध गहराई से स्थापित हो जाते हैं, तो संकटों के बीच भी उन्हें पूरी तरह से उलटना मुश्किल होता है।
    • यूक्रेन पर रूसी आक्रमण (2022) ने वैश्विक खाद्य और ईंधन की कीमतों को प्रत्येक स्थान पर प्रभावित किया, जिससे पता चलता है कि कैसे परस्पर जुड़ी अर्थव्यवस्थाएँ बनी हुई हैं।
  • ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव: मूल्य सृजन तेजी से विशुद्ध रूप से भौतिक वस्तुओं के बजाय IT, सॉफ्टवेयर, मीडिया जैसे ज्ञान उद्योगों पर आधारित है।
    • भारत का IT क्षेत्र (BPM, ITeS सहित) भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 13% से अधिक का योगदान देता है।

भारत में वैश्वीकरण को बढ़ावा देने वाले कारक

  • आर्थिक उदारीकरण और नीति सुधार (वर्ष 1991 के बाद): अर्थव्यवस्था को खोलने, व्यापार को उदार बनाने और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रमुख नीतिगत बदलाव किए गए हैं।
    • वर्ष 1991 के LPG सुधारों (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) ने विदेशी व्यापार और निवेश पर प्रतिबंध हटा दिए।
  • तकनीकी प्रगति में तेजी: परिवहन, संचार और IT में सफलताओं ने भौगोलिक दूरियों को कम कर दिया है।
  • इंटरनेट एवं IT क्रांति: ग्राहक सेवा, अनुसंधान और विकास जैसी सेवाओं को भारत में आउटसोर्स करने की अनुमति (उदाहरण- विदेशी ग्राहकों को सेवा देने वाले बंगलूरू में कॉल सेंटर) दी।
  • बहुराष्ट्रीय निगमों (MNC) का उदय: MNC ने स्थानीय बाजारों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जोड़ते हुए पूरे भारत में अपना उत्पादन और विपणन नेटवर्क का विस्तार किया।
    • MNC ने न केवल पूँजी बल्कि प्रौद्योगिकी, प्रबंधन प्रथाओं और वैश्विक वितरण प्रणाली भी स्थापित की।
  • वैश्विक संगठनों से संस्थागत समर्थन: अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने व्यापार उदारीकरण और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित किया।
    • वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने से भारत की वैश्विक बाजारों तक पहुँच बढ़ी।
  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) क्षेत्र का उदय: भारत की मजबूत ICT क्षमताओं ने इसे आउटसोर्सिंग के लिए एक वैश्विक गंतव्य बना दिया।
    • भारत के IT उद्योग के वर्ष 2026 तक 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आँकड़े को छूने की संभावना है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 10% का योगदान देगा।
    • बड़ा कुशल और लागत प्रभावी कार्यबल भारत का शिक्षित, अंग्रेजी भाषी और अपेक्षाकृत कम लागत वाला श्रम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए आकर्षक बन गया है।
    • उदाहरण: फोर्ड मोटर्स को कार और पुर्जे बनाने के लिए कुशल भारतीय इंजीनियरों तथा कम लागत वाले कार्यबल से लाभ हुआ।
  • वैश्विक प्रवासी और प्रेषण: विदेश में एक बड़े भारतीय प्रवासी ने वैश्विक नेटवर्क के साथ भारत के एकीकरण को मजबूत किया।
    • प्रेषण, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

भारत में वैश्वीकरण को समर्थन देने वाली सरकारी नीतियाँ

  • नई आर्थिक नीति, 1991 (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण – LPG सुधार): लाइसेंस राज को समाप्त किया (औद्योगिक लाइसेंसिंग को समाप्त किया गया) गया।
    • विदेशी व्यापार तथा निवेश नीतियों को उदार बनाया गया।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया और सरकारी नियंत्रण को कम किया गया।
  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (Foreign Exchange Management Act- FEMA), 1999: प्रतिबंधात्मक विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) को प्रतिस्थापित किया।
    • विदेशी व्यापार और भुगतान को अधिक उदार बनाया, सीमा-पार निवेश को प्रोत्साहित किया।
  • EXIM नीति (निर्यात-आयात नीति) 1992-1997: मात्रात्मक प्रतिबंधों को कम करके और निर्यात को बढ़ावा देकर व्यापार को उदार बनाया।
    • भारत की व्यापार नीति का ध्यान आयात प्रतिस्थापन से निर्यात संवर्द्धन की ओर स्थानांतरित किया।
  • भारत की विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) की सदस्यता, 1995: भारत को वैश्विक बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में एकीकृत किया।
    • भारत को खुले व्यापार व्यवहार, टैरिफ कटौती और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के लिए प्रतिबद्ध किया।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones- SEZ) अधिनियम, 2005: शुल्क-मुक्त व्यवस्था और विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे के साथ निर्यात-उन्मुख औद्योगिक परिक्षेत्र का निर्माण।
    • विनिर्माण निर्यात को बढ़ावा देने और FDI को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा।
  • स्टार्ट-अप इंडिया पहल (2016): उद्यमिता, नवाचार और भारतीय स्टार्ट-अप को वैश्विक बाजारों में एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • मेक इन इंडिया अभियान (2014): भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलने का लक्ष्य।
    • रक्षा, विमानन और रेलवे जैसे क्षेत्रों को खोलकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया।
  • कौशल विकास और उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति (2015): विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी कार्यबल तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया।
    • भारतीय श्रम बाजार को तैयार करने के लिए वैश्विक कौशल मानकों के साथ संरेखित किया।
  • डिजिटल इंडिया अभियान (2015): ई-गवर्नेंस, डिजिटल अर्थव्यवस्था और IT-सक्षम सेवाओं को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विस्तार किया।

भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव

आर्थिक प्रभाव

  • व्यापार और निर्यात में वृद्धि: विदेशी व्यापार भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने वाला एक प्रमुख माध्यम बन गया है।
    • फोर्ड मोटर्स ने भारत में न केवल घरेलू खपत के लिए बल्कि दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको और यू.एस.ए. जैसे देशों को निर्यात के लिए भी कारों का उत्पादन किया।
  • विदेशी निवेश (Foreign Investment- FDI) का प्रवाह: भारत ने वर्ष 1991 के बाद व्यापार और निवेश नीतियों को उदार बनाया, जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ आकर्षित हुईं।
    • कारगिल फूड्स, एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी, ने पारख फूड्स को खरीदा और भारत में खाद्य तेल उत्पादन का विस्तार किया।
  • सेवा क्षेत्र का उदय: IT और ITeS बूम ने भारत को वैश्विक आउटसोर्सिंग हब बना दिया है।
    • IT और BPM क्षेत्रों द्वारा संचालित भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था अब जीडीपी में 13% से अधिक का योगदान देती है। 

सामाजिक प्रभाव

  • मध्यम वर्ग का उदय: आय स्तर में वृद्धि, उपभोग पैटर्न में बदलाव।
    • भारतीयों ने वैश्विक वस्तुओं– कार, इलेक्ट्रॉनिक्स, ब्रांडेड कपड़ों तक पहुँचना शुरू कर दिया।
  • रोजगार के अवसर: IT, दूरसंचार, BPO में नई नौकरियाँ पैदा हुईं।
    • हालाँकि, आयातित वस्तुओं से प्रतिस्पर्द्धा के कारण अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों और पारंपरिक कारीगरों को विस्थापन का सामना करना पड़ा।
  • जीवन शैली में बदलाव: खाद्य आदतों में पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव देखा (उदाहरण के लिए, मैकडॉनल्ड्स का भारतीय स्वाद के अनुसार ढलना) गया।
    • अंतरराष्ट्रीय शिक्षा, फैशन, मीडिया के लिए बढ़ती प्राथमिकता।

कृषि और छोटे उत्पादकों पर प्रभाव

  • आयात से प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय किसानों और छोटे उद्योगों को सस्ते विदेशी सामानों के कारण दबाव का सामना करना पड़ा।
    • खिलौनों के मामले में, सस्ते चीनी आयात के कारण 70-80% भारतीय खिलौनों की दुकानें बंद हो गईं
  • बाजार तक पहुँच: कुछ क्षेत्रों को निर्यात के अवसरों (जैसे- कपास, चावल) से लाभ हुआ, लेकिन कई छोटे उत्पादकों में खराब बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी के कारण प्रतिस्पर्द्धा की कमी थी।

सांस्कृतिक प्रभाव

  • सांस्कृतिक संकरण: विचारों और संस्कृति के आदान-प्रदान ने वैश्विक रुझानों से प्रभावित एक भारतीय पहचान बनाई।
    • पश्चिमी संगीत, फास्ट फूड, फिल्में, फैशन भारतीय परंपराओं के साथ घुल गए।
  • स्वदेशी संस्कृतियों के लिए खतरा: वैश्वीकरण ने सांस्कृतिक समरूपता को जन्म दिया, जिससे अक्सर स्थानीय भाषाएँ, रीति-रिवाज और छोटे सांस्कृतिक उद्योग हाशिए पर चले गए।

तकनीकी प्रभाव

  •  ICT का प्रसार: मोबाइल प्रौद्योगिकी, इंटरनेट, डिजिटल प्लेटफॉर्म तक त्वरित पहुँच।
    • अलीबाबा (वैश्विक मॉडल) जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने फ्लिपकार्ट, पेटीएम जैसे भारतीय स्टार्ट-अप को प्रभावित किया।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: सहयोग और प्रौद्योगिकी समझौतों ने भारत के विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों को उन्नत करने में मदद की।

पर्यावरणीय एवं सामाजिक चुनौतियाँ

  • पर्यावरण क्षरण: उच्च औद्योगिक उत्पादन ने पर्यावरण संबंधी समस्याओं को बढ़ा दिया है।
    • वैश्वीकरण के कारण परिवहन, उत्सर्जन और संसाधनों की कमी में वृद्धि हुई।
  • असमानता और शहरी-ग्रामीण विभाजन: वैश्वीकरण के लाभ बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी, बुनियादी ढाँचे की कमी तथा वैश्वीकरण के लाभों से बहिष्कार का सामना करना जारी रहा।

वैश्वीकरण की चुनौतियाँ

  • आर्थिक असमानताएँ: वैश्वीकरण ने अमीरों और गरीबों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है। वैश्विक विकास के लाभ असमान रूप से वितरित किए गए हैं, जिससे कई वर्ग हाशिए पर चले गए हैं।
    • भारत के शीर्ष 10% लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का लगभग 77% हिस्सा है, जो विषम धन वितरण को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक क्षरण: संस्कृति का एकरूपीकरण हुआ है, जहाँ स्थानीय परंपराएँ और पहचानें प्रमुख पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में कमजोर हो रही हैं।
    • मैकडॉनल्ड्स जैसी फास्ट फूड चेन भारतीय व्यंजनों (पनीर टिक्का बर्गर) को अपना रही हैं जो ‘ग्लोकलाइजेशन’ का प्रतीक है, लेकिन पारंपरिक खाद्य आदतों और पहनावे को तेजी से पश्चिमी मानदंडों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
  • आदिवासी और ग्रामीण आबादी का विस्थापन: वैश्विक पूँजी द्वारा संचालित विकास परियोजनाओं ने प्रायः पर्याप्त पुनर्वास के बिना स्वदेशी समुदायों को विस्थापित कर दिया है।
    • नर्मदा बचाओ आंदोलन बड़े बाँधों और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण होने वाले विस्थापन के विरुद्ध एक उल्लेखनीय आंदोलन है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की कमजोरी: भारत का लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में है। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा छोटे उत्पादकों और अनौपचारिक श्रमिकों पर दबाव डालती है, जिससे आजीविका अनिश्चित हो जाती है।
    • सस्ते चीनी कपड़ों की आमद ने पारंपरिक भारतीय बुनकरों और अनौपचारिक कपड़ा श्रमिकों को प्रभावित किया है।
  • पर्यावरण क्षरण: वैश्वीकरण-प्रेरित औद्योगीकरण ने प्राकृतिक संसाधनों, प्रदूषण और पर्यावरणीय खतरों के अति दोहन को जन्म दिया है।
    • विकसित देशों से भारत में ई-कचरे की डंपिंग बच्चों तथा गरीब समुदायों को खतरनाक परिस्थितियों में डालती है।
    • शिपिंग, विमानन और औद्योगिक उत्पादन के कारण CO2 उत्सर्जन में वृद्धि
  • बेरोजगारी में वृद्धि: वैश्वीकरण के बाद जीडीपी वृद्धि में तेजी आई है, लेकिन रोजगार सृजन ने गति नहीं पकड़ी है, जिसके कारण ‘बेरोजगारी में वृद्धि’ हुई है।
    • स्वचालन में वृद्धि तथा कुशल श्रम के लिए वरीयता ने कम कुशल श्रमिकों के लिए अवसरों को कम कर दिया है।
  • संरक्षणवाद और विवैश्वीकरण के रुझान: विश्व में बढ़ते संरक्षणवादी उपाय, जैसे कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, भारत के निर्यात-संचालित क्षेत्रों के लिए चुनौतियाँ पेश करते हैं।
    • अमेरिका और यूरोप में आव्रजन मानदंडों को कड़ा करने के बीच भारत को अपने सॉफ्टवेयर निर्यात की वृद्धि को बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
  • राजनीतिक और शासन संबंधी चुनौतियाँ: वैश्वीकरण राष्ट्र-राज्यों के नियंत्रण को कमजोर करता है जबकि वैश्विक संस्थाएँ इस कमी को पूरा करने के लिए संघर्ष करती हैं।

विवैश्वीकरण

  • वैश्वीकरण का तात्पर्य व्यापार, वित्त, प्रौद्योगिकी और संस्कृति में वैश्विक अंतर्संबंधों में मंदी, ठहराव या उलटफेर से है।
  • यह सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में वैश्विक व्यापार में गिरावट, संरक्षणवादी नीतियों का फिर से उभरना, राष्ट्रवाद और सीमा पार आंदोलनों में कमी को दर्शाता है।
  • विवैश्वीकरण वैश्विक संबंधों से पूरी तरह पीछे हटना नहीं है, बल्कि वैश्विक एकीकरण पर राष्ट्रीय संप्रभुता के पुनर्स्थापन, स्थानीयकरण की ओर बढ़ना है।

विवैश्वीकरण की ओर ले जाने वाले कारक

  • वैश्विक वित्तीय संकट (2008): वैश्विक बाजारों में भरोसा टूट गया; देशों ने अपना ध्यान अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित कर दिया।
  • बढ़ती असमानता: वैश्वीकरण के असमान लाभों ने मध्यम वर्ग, खासकर पश्चिमी देशों में असंतोष पैदा किया।
  • व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण टैरिफ बढ़ गए और अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रतिबंधित हो गया।
  • तकनीकी व्यवधान: स्वचालन और नई प्रौद्योगिकियों ने देशों को आउटसोर्सिंग के बजाय घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता दी।
  • कोविड-19 महामारी: वैश्विक आपूर्ति शृंखला की कमजोरियों को उजागर किया; देशों ने आत्मनिर्भरता पर जोर  (जैसे- भारत का आत्मनिर्भर भारत) दिया।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ: साइबर खतरों, प्रौद्योगिकी वर्चस्व के डर ने अधिक आर्थिक राष्ट्रवाद और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा को बढ़ावा दिया।

विवैश्वीकरण के संकेतक

  • वैश्विक निर्यात में ठहराव: 2000 के दशक के आसपास (वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का ~25%) चरम पर पहुँचने के बाद, निर्यात का हिस्सा स्थिर हो गया है और थोड़ा कम हो गया है।
  • सीमा पार निवेश में कमी: कई क्षेत्रों में FDI प्रवाह अस्थिर और घट रहा है।
  • वैश्वीकरण पर क्षेत्रवाद: क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉकों (जैसे- RCEP, USMCA) का उदय वैश्विक व्यापार के स्थान पर निकट पड़ोसियों को प्राथमिकता देता है।

भारत में विवैश्वीकरण की प्रवृत्तियाँ

  • आत्मनिर्भर भारत अभियान: घरेलू विनिर्माण को मजबूत करने, आयात निर्भरता को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • FTA की समीक्षा: स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा के लिए भारत मौजूदा मुक्त व्यापार समझौतों का पुनर्मूल्यांकन कर रहा है।
  • व्यापार संरक्षण उपाय: भारतीय निर्माताओं की सुरक्षा के लिए स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे आयातों पर टैरिफ आरोपित करना।
  • प्रौद्योगिकी संप्रभुता: वैश्विक तकनीकी दिग्गजों पर निर्भरता के बजाय स्वदेशी डिजिटल प्लेटफॉर्म (जैसे- UPI, ONDC) को बढ़ावा देना।

वैश्वीकरण के संबंध में आगे की राह

  • समावेशी वैश्वीकरण को बढ़ावा देना: सुनिश्चित करना कि वैश्वीकरण के लाभ समाज के सभी वर्गों में व्यापक और निष्पक्ष रूप से वितरित हों।
    • उन नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना जो असमानता को कम करती हैं, सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देती हैं और हाशिए पर स्थित समूहों को सशक्त बनाती हैं।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से प्रभावित छोटे उत्पादकों, अनौपचारिक श्रमिकों और ग्रामीण समुदायों के लिए समर्थन।
  • घरेलू क्षमताओं को मजबूत करना (खुलेपन के साथ आत्मनिर्भरता): पूर्ण संरक्षणवाद का सहारा लिए बिना मजबूत घरेलू उद्योग और नवाचार क्षमताएँ स्थापित करना।
    • आत्मनिर्भर भारत जैसी पहल का उद्देश्य दुनिया से जुड़े रहते हुए भारत की क्षमता को बढ़ाना है।
    • विनिर्माण, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में निवेश करना।
  • वैश्विक शासन संरचनाओं की फिर से कल्पना करना: वैश्विक संस्थानों (जैसे-WTO, IMF) का आधुनिकीकरण करना ताकि उन्हें अधिक लोकतांत्रिक, प्रतिनिधि और डिजिटल व्यापार, साइबर सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी नई-युग की चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाया जा सके।
    • वैश्विक कल्याण के लिए बहुपक्षीय सहयोग और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि विकासशील देशों की वैश्विक निर्णय लेने में अधिक सशक्त अभिव्यक्ति हो।
  • संधारणीय और पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी: वैश्वीकरण को पर्यावरणीय संधारणीयता और उत्तरदायी उपभोग के सिद्धांतों के साथ संरेखित करना।
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में जलवायु लचीलापन तथा पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को शामिल किया जाना चाहिए।
  • समान विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: विकास अंतराल को बढ़ाने के बजाय उन्हें पाटने के लिए AI, ब्लॉकचेन और IoT जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना।
    • छोटे व्यवसायों के लिए डिजिटल शिक्षा, ग्रामीण इंटरनेट पहुँच और ई-कॉमर्स समर्थन में निवेश करना।
    • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा तथा डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी दिग्गजों को विनियमित करना।
  • लचीली और विविधतापूर्ण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ: ऐसी आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना, जो कुछ देशों या क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भर न हों।
    • क्षेत्रीय उत्पादन केंद्रों और फ्रेंड-शोरिंग (आपूर्ति शृंखलाओं को विश्वसनीय भागीदारों तक ले जाना) को प्रोत्साहित करना।
    • रसद, बुनियादी ढाँचे तथा स्थानीय विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना।
  • नागरिकों और सरकारों के बीच एक नया सामाजिक समझौता बढ़ावा देना: वैश्वीकृत विश्व में नौकरी की सुरक्षा, कल्याण तथा पहचान के बारे में नागरिकों की चिंताओं को संबोधित करके शासन में विश्वास को नवीनीकृत करना।
    • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, कौशल पुनः प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा सामुदायिक सशक्तीकरण आर्थिक सुधारों के साथ संरेखित होना चाहिए।

निष्कर्ष: 

वैश्वीकरण, जो 1991 के बाद भारत के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है, अमेरिकी संरक्षणवाद, अमेरिका-चीन व्यापार तनाव और क्षेत्रीय संघर्षों के कारण वर्ष 2025 में मंदी का सामना कर सकता है, जिससे लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए सुधारों की आवश्यकता है। भारत को समावेशी, सतत् विकास को बढ़ावा देते हुए वैश्विक एकीकरण को बनाए रखने के लिए अपनी व्यापक आर्थिक स्थिरता और रणनीतिक नीतियों का लाभ उठाना चाहिए।

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