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गोल्ड नैनो पार्टिकल

Lokesh Pal September 15, 2025 04:04 88 0

संदर्भ

कोलकाता स्थित एस. एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (DST संस्थान) के वैज्ञानिकों ने गोल्ड नैनो पार्टिकल (AuNPs) में नए व्यवहार की खोज की है।

गोल्ड नैनो पार्टिकल  (AuNPs) के बारे में

  • अवलोकन: गोल्ड नैनो पार्टिकल स्वर्ण के सूक्ष्म कण होते हैं, जिनका आकार आमतौर पर 1-100 नैनोमीटर तक होता है।
  • इस नैनोस्केल पर, स्वर्ण अद्वितीय भौतिक, रासायनिक और प्रकाशिक गुण प्रदर्शित करता है, जो सामान्य स्वर्ण के गुणों से बहुत अलग होते हैं।

गोल्ड नैनो पार्टिकल के अद्वितीय गुण

  • प्रकाशिक गुण
    • सरफेस प्लाज्मोन रेजोनेंस (SPR): गोल्ड नैनो पार्टिकल (AuNPs) प्रकाश के साथ दृढ़ता से अन्योन्यक्रिया करते हैं।
    • उनका रंग कण के आकार और उनके परिक्षेपित या एकत्रित होने के आधार पर बदलता है।
    • उदाहरण: लाल → परिक्षेपित; नीला/बैंगनी → एकत्रित
  • उच्च पृष्ठीय क्षेत्रफल-से-आयतन अनुपात (High Surface Area-to-Volume Ratio): यह गुण इसे उत्प्रेरण और औषधि वितरण में अत्यधिक क्रियाशील और उपयोगी बनाता है।
  • जैव अनुकूलता: गोल्ड नैनो पार्टिकल आमतौर पर जैविक प्रणालियों में सुरक्षित है, जिससे चिकित्सा अनुप्रयोगों की अनुमति मिलती है।
  • सरल कार्यात्मककरण: लक्षित अनुप्रयोगों के लिए जैव-अणुओं (एंटीबॉडी, DNA, औषधियाँ) के साथ लेपित किया जा सकता है।

गोल्ड नैनो पार्टिकल के अनुप्रयोग

  • चिकित्सा एवं निदान
    • बायोसेंसर: रंग परिवर्तन, रोगों का पता लगाने में मदद करता है (जैसे- गर्भावस्था परीक्षण स्ट्रिप्स, त्वरित निदान किट)।
    • दवा वितरण: कैंसर कोशिकाओं तक दवाओं का लक्षित वितरण।
    • इमेजिंग: चिकित्सा इमेजिंग और फोटोथर्मल थेरेपी में उपयोग किया जाता है।
  • पर्यावरणीय अनुप्रयोग: जल और मृदा में भारी धातुओं, प्रदूषकों या विषाक्त पदार्थों का पता लगाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रकाशिकी: प्रकाशिक उपकरणों, सेंसरों और नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग किया जाता है।
  • उत्प्रेरण: बड़े सतही क्षेत्र के कारण रासायनिक अभिक्रियाओं को बढ़ाता है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • एकत्रीकरण समस्या: गोल्ड नैनो पार्टिकल आपस में चिपक जाते हैं, जिससे उनके गुण बदल जाते हैं और प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • लागत और मापनीयता: बड़े पैमाने पर उत्पादन अभी भी महँगा है।

शोध निष्कर्ष

  • अध्ययन किए गए अणु
    • ग्वानिडीन हाइड्रोक्लोराइड (Guanidine Hydrochloride-GdnHCl): प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त एक प्रबल लवण; यह नैनो पार्टिकल्स के तीव्र, सघन समूहन का कारण बनता है।
    • एल-ट्रिप्टोफैन (L-Trp): प्रोटीन में मौजूद एक अमीनो एसिड जो नींद/आराम से जुड़ा है; GdnHCl के साथ संयुक्त होने पर क्लस्टरिंग को बाधित करता है।
  • पहचानी गई घटना: 
    • फ्रस्ट्रेटिड  एग्रीगेशन  (frustrated aggregation):  नैनो पार्टिकल्स एकत्रित होने का प्रयास करते हैं, लेकिन L-Trp हस्तक्षेप करता है, जिससे शिथिल, शाखित, स्थिर संरचनाओं का निर्माण होता है।

अनुसंधान क्रियाविधि (Research Methodology)

  • प्रयुक्त तकनीक: इवेनसेंट वेव कैविटी रिंगडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (EW-CRDS)।
  • उपयोगिता: उच्च संवेदनशीलता के साथ नैनो पार्टिकल्स के व्यवहार की रियल टाइम निगरानी की अनुमति।
  • अवलोकन: L-Trp ग्वानिडिनियम आयनों को स्थिर करता है, एकत्रीकरण को धीमा करता है और स्थिर, मुक्त नैनो पार्टिकल्स संरचनाओं के निर्माण को सक्षम बनाता है।

इवेनसेंट वेव कैविटी रिंगडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी  (EW-CRDS) के बारे में

  • अवलोकन: यह एक अति-संवेदनशील प्रकाशीय तकनीक है, जिसका उपयोग सतहों या अंतरापृष्ठों पर प्रकाश-पदार्थ अंतःक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
  • क्रियाविधि: यह एक प्रकाशीय स्तंभ में प्रकाश के क्षय काल (Decay time) को मापकर कार्य करती है, जहाँ इवेनसेंट वेव (सतह के निकट एक घातांकीय क्षयकारी क्षेत्र) अणुओं या नैनो पार्टिकल्स के साथ अंतःक्रिया करती है।
  • कार्यक्षेत्र: अधिशोषण, एकत्रीकरण, या रासायनिक अभिक्रियाओं जैसी नैनोस्केल प्रक्रियाओं की रियल टाइम, उच्च-सटीक निगरानी प्रदान करता है।

खोज का महत्त्व

  • मौलिक अंतर्दृष्टि: दैनिक जैव-अणुओं के साथ नैनोकणों की अंतःक्रिया की एक नई समझ प्रदान करता है।
  • तकनीकी प्रभाव
    • अधिक विश्वसनीय बायोसेंसर डिजाइन करना संभव बनाता है।
    • स्थिर नैनो पार्टिकल्स के व्यवहार के माध्यम से नैदानिक ​​उपकरणों में सुधार करता है।
    • नियंत्रित कण एकत्रीकरण सुनिश्चित करके दवा वितरण प्रणालियों को बेहतर बनाता है।
  • वैज्ञानिक योगदान: यह दर्शाता है कि उन्नत ऑप्टिकल उपकरण किस प्रकार संवेदनशील नैनोस्केल प्रक्रियाओं की जाँच कर सकते हैं।

एस. एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के बारे में

  • अवलोकन: भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान।
  • स्थापना: भौतिक विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस (बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और बोसॉन अवधारणा के लिए विख्यात) के सम्मान में वर्ष 1986 में कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थापित।
  • संबंधित क्षेत्र: मौलिक विज्ञान, विशेष रूप से भौतिकी, रसायन विज्ञान, जैविक विज्ञान और अंतःविषय क्षेत्रों में अग्रणी अनुसंधान संचालित करता है।

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