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शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) की शासन-संरचना

Lokesh Pal November 14, 2025 01:24 13 0

संदर्भ 

केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने ‘को-ऑप कुंभ 2025’ (Co-Op Kumbh 2025) का उद्घाटन किया, जो भारत के शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के भविष्य पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है और इसके दौरान दिल्ली घोषणा 2025 को अपनाया गया।

दिल्ली घोषणा 2025 के बारे में

  • यह को-ऑप कुंभ 2025 में अपनाया गया एक नीतिगत दस्तावेज, जिसका शीर्षक है:- ‘दिल्ली घोषणा 2025-2030 तक का रोडमैप’ है।
  • यह दस्तावेज शहरी सहकारी ऋण पारिस्थितिकी तंत्र (UCBs + क्रेडिट सोसायटीज) के लिए वर्ष 2030 तक की एक रणनीतिक रूपरेखा के रूप में तैयार किया गया है।

को-ऑपरेटिव कुंभ 2025 के बारे में

  • यह शहरी सहकारी ऋण क्षेत्र पर आधारित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है, जो सहयोग, नवाचार और नीतिगत प्रगति पर केंद्रित है।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय।
  • आयोजक संस्था: ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज’ (NAFCUB)।
    • ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसायटीज’ (NAFCUB): यह शहरी सहकारी बैंकों और क्रेडिट सोसायटीज के लिए शीर्ष प्रचारक संस्था है, जो फरवरी 1977 में एक बहु-राज्य सहकारी संस्था के रूप में पंजीकृत की गई थी।
  • थीम: डिजिटलाइजिंग ड्रीम्स-समुदायों को सशक्त बनाना (Digitalising Dreams-Empowering Communities)।
  • यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित ‘अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025’ के अनुरूप आयोजित किया गया है।
  • डिजिटल पहलें: ‘सहकार डिजी-पे’ (Sahkar Digi-Pay) और ‘सहकार डिजी-लोन’ (Sahkar Digi-Loan) ऐप का शुभारंभ किया गया, ताकि छोटे-से-छोटे शहरी सहकारी बैंक भी डिजिटल भुगतान और ऋण सुविधा प्रदान कर सकें।
  • विस्तार लक्ष्य: अगले 5 वर्षों में 2 लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक शहर में एक शहरी सहकारी बैंक (UCB) स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।

सहकारी बैंकों के बारे में

  • सहकारी बैंक वे वित्तीय संस्थान हैं, जो अपने सदस्यों के स्वामित्व और नियंत्रण में कार्य करते हैं और सदस्य ही उनके ग्राहक भी होते हैं

  • इनका गठन साझा सहयोग के सिद्धांत पर किया जाता है ताकि सामान्य बैंकिंग कार्य किए जा सकें।
  • वे शेयरों के माध्यम से पूँजी जुटाते हैं, जमाएँ स्वीकार करते हैं और ऋण प्रदान करते हैं
  • पंजीकरण: संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के अधीन होगा।
  • वे निम्नलिखित के अंतर्गत शासित होते हैं:-
    • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949: वर्ष 1966 में एक संशोधन के माध्यम से इन्हें बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में लाया गया।
    • बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1955: इसने RBI को शहरी सहकारी बैंकों पर अधिक नियंत्रण प्रदान किया है, जिससे उसे उनके प्रबंधन और प्रशासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति मिली है।
    • सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार (RCS): राज्य सरकारें/केंद्र सरकार RCS के माध्यम से प्रशासनिक कार्यों को नियंत्रित करती हैं।
  • श्रेणियाँ: इन्हें शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों में विभाजित किया गया है।

सहकारी बैंकों की प्रमुख विशेषताएँ 

  • स्वामित्व: सहकारी बैंक अपने सदस्यों के स्वामित्व में होते हैं, जो बैंक के शेयरधारक भी होते हैं।
  • नियंत्रण: सदस्यों द्वारा बैंक के निदेशक मंडल का चुनाव किया जाता है और निर्णयन प्रक्रिया में सहभागिता होती है।
  • लाभ:  लाभांश के रूप में लाभ का वितरण सदस्यों के बीच किया जाता है।
  • सेवाएँ:  ये बैंकिंग सेवाएँ, जैसे- बचत खाते, ऋण, बीमा आदि प्रदान करते हैं।
  • सामुदायिक दृष्टिकोण: स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं को पूरा करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • नैतिक मूल्य: लोकतंत्र, समानता और एकजुटता जैसे सहकारिता के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं और नैतिक एवं सतत् संचालन का पालन करते हैं।

शहरी सहकारी बैंक (UCBs)

  • ये बैंक शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में सहकारी ढाँचे पर संगठित और संचालित वित्तीय संस्थान हैं।
  • वर्ष 2021 में, RBI ने एक समिति (एन. एस. विश्वनाथन समिति) नियुक्त की, जिसने UCB के लिए 4-स्तरीय संरचना का सुझाव दिया।
    • स्तर 1 (Tier 1): ₹100 करोड़ तक की जमा राशि वाले बैंक।
    • स्तर 2 (Tier 2): ₹100 करोड़ से ₹1,000 करोड़ तक की जमा राशि।
    • स्तर 3 (Tier 3): ₹1,000 करोड़ से ₹10,000 करोड़ तक।
    • स्तर 4 (Tier 4): ₹10,000 करोड़ से अधिक जमा राशि वाले बैंक।
  • UCBs की वर्तमान स्थिति 
    • संख्या: 1,457 शहरी सहकारी बैंक, 34 राज्य सहकारी बैंक (StCBs), 351 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs) और 1 औद्योगिक सहकारी बैंक।
    • कृषि ऋण योगदान: कुल कृषि ऋण का लगभग 11% योगदान।
    • जमा आधार: ₹5.26 ट्रिलियन।
    • क्षेत्रीय हिस्सेदारी: 31 मार्च, 2020 तक, बैंकिंग क्षेत्र की लगभग 94% संस्थाएँ UCBs थीं।
    • कुल हिस्सेदारी: बैंकिंग क्षेत्र की कुल जमा राशि का 3.24% और अग्रिमों का 2.69%।
    • वित्तीय समावेशन प्रभाव: लगभग 8.52 करोड़ जमाकर्ताओं और 67 लाख ऋणकर्ताओं की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

एन. एस. विश्वनाथन समिति की प्रमुख सिफारिशें

फरवरी 2021 में, RBI ने प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर एन. एस. विश्वनाथन ने की।

  • पूँजी से जोखिम-भारित परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) में भिन्नता: शहरी सहकारी बैंकों के लिए 9% से 15% तक लचीले CRAR का सुझाव दिया गया, जिसमें टियर-4 शहरी सहकारी बैंकों के लिए बेसल III मानदंड शामिल हैं।
  • ऋणों के लिए अलग-अलग सीमाएँ: विभिन्न शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) श्रेणियों के लिए गृह ऋण, स्वर्ण आभूषणों पर ऋण और असुरक्षित ऋणों के लिए अलग-अलग सीमाएँ निर्धारित की गई हैं।
  • समेकन दृष्टिकोण: अनुशंसा की गई कि RBI को स्वैच्छिक समेकन के प्रति काफी हद तक तटस्थ रुख अपनाना चाहिए, लेकिन विवेकपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा न करने वाले शहरी सहकारी बैंकों के लिए अनिवार्य विलय का सुझाव दिया गया।
  • शहरी सहकारी बैंकों का समाधान: सुझाव दिया गया कि बैंकिंग विनियमन (BR) अधिनियम के तहत, RBI, स्वैच्छिक कार्रवाई अपर्याप्त होने पर शहरी सहकारी बैंकों के अनिवार्य समामेलन या पुनर्निर्माण की योजनाएँ तैयार कर सकता है।
  • पर्यवेक्षी कार्रवाई ढाँचा (SAF): SAF के लिए एक द्वि-संकेतक दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखा गया, जिसमें वर्तमान त्रि-संकेतक दृष्टिकोण के बजाय केवल परिसंपत्ति गुणवत्ता और पूँजी (NNPA और CRAR के माध्यम से मापी गई) पर विचार किया गया।
  • अम्ब्रेला संगठन (UO) की भूमिका: इस क्षेत्र को मजबूत बनाने में अम्ब्रेला संगठन (UO) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया, और सुझाव दिया गया कि इसे न्यूनतम 300 करोड़ रुपये की पूँजी के साथ वित्तीय रूप से मजबूत होना चाहिए।

शहरी सहकारी बैंकों का महत्त्व

  • वित्तीय समावेशन: ये छोटे उधारकर्ताओं और निम्न-आय वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जिन्हें वाणिज्यिक बैंक अक्सर अनदेखा करते है।
    •  MSME, शहरी गरीब, स्वरोजगार और मजदूर वर्ग को सस्ते ऋण प्रदान करते हैं।
  • स्थानीय फोकस: सीमित क्षेत्र में कार्य करते हैं, जिससे स्थानीय आवश्यकताओं की गहरी समझ होती है और निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं।
  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL): कुल ऋण का कम-से-कम 60% प्राथमिकता वाले क्षेत्रों (जैसे- लघु व्यवसाय, आवास, शिक्षा, कमजोर वर्ग) में देना अनिवार्य है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: स्थानीय बचत को स्थानीय निवेश में परिवर्तित करते हैं, जिससे रोजगार और सूक्ष्म उद्यम को प्रोत्साहन मिलता है तथा साहूकारों पर निर्भरता घटती है।
  • सहकारी स्वामित्व: ‘पारस्परिक लाभ’ सिद्धांत पर आधारित, जहाँ सदस्य स्वामी और लाभार्थी दोनों होते हैं।
    • यह समुदाय में विश्वास, जवाबदेही और लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया को मजबूत करता है।

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