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भारत सरकार द्वारा उत्तर भारत में लवणीय जलकृषि केंद्रों के निर्माण हेतु प्रयास

Lokesh Pal April 10, 2025 03:34 27 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय सचिव, मत्स्य पालन विभाग (DoF) ने लवणीय जल झींगा जलकृषि (Saline Water Shrimp Aquaculture) पर एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की।

  • संयुक्त सचिव ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) एवं नीली क्रांति योजनाओं के तहत राज्यवार प्रगति पर प्रकाश डाला।

उत्तरी राज्यों में PMMSY एवं नीली क्रांति का कार्यान्वयन

राज्य

मुख्य अद्यतित जानकारी

उत्तर प्रदेश
  • मथुरा, आगरा, हाथरस एवं रायबरेली में 1.37 लाख हेक्टेयर अंतर्देशीय लवणीय जलकृषि क्षमता की पहचान की गई।
  • झींगा पालन के लिए PMMSY पहल द्वारा समर्थन दिया जा रहा है।
राजस्थान
  • चूरू एवं गंगानगर जैसे खारे जल वाले जिलों में झींगा पालन का विस्तार किया गया तथा 500 हेक्टेयर भूमि पर इसकी कृषि की जा रही है।
  • PMMSY के तहत चूरू में डायग्नोस्टिक लैब की स्थापना की गई।
पंजाब
  • श्री मुक्तसर साहिब एवं फाजिल्का जिलों में झींगा पालन का विस्तार गया।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: 30 टन का कोल्ड स्टोरेज, बर्फ संयंत्र एवं एक प्रशिक्षण केंद्र (PMMSY, नीली क्रांति)।
हरियाणा
  • 13,914 टन झींगा उत्पादन लक्ष्य हासिल किया गया। 
  • लवणीय जलकृषि को बढ़ावा देने के लिए PMMSY के तहत 57.09 करोड़ रुपये का निवेश किया गया।

लवणीय जलकृषि (Saline Aquaculture) के बारे में

  • लवणीय जलकृषि में ऐसी भूमि पर जलीय प्रजातियों की कृषि शामिल है, जहाँ उच्च लवणता के कारण पारंपरिक कृषि संभव नहीं है।
  • उपयुक्त प्रजातियों में झींगा, मिल्कफिश एवं पर्ल स्पॉट शामिल हैं, जो लवण प्रभावित क्षेत्रों में वैकल्पिक आजीविका प्रदान करते हैं।

लवणीय जलकृषि का महत्त्व एवं लाभ

  • बंजर भूमि को उत्पादक संपदा भूमि में परिवर्तित करता है।
  • पारंपरिक फसलों की तुलना में उच्च मूल्य का रिटर्न प्रदान करता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन एवं आजीविका वृद्धि का समर्थन करता है।
  • समुद्री खाद्य निर्यात को बढ़ावा देता है, जिससे भारत की वैश्विक बाजार में उपस्थिति बढ़ती है।

लवणीय जलकृषि का वर्तमान उपयोग एवं संभावना

  • चार राज्यों में, 58,000 हेक्टेयर लवणीय भूमि की पहचान की गई है, लेकिन वर्तमान में केवल 2,608 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया जा रहा है।
  • पारंपरिक खेती के लिए अनुपयुक्त लवणीय प्रभावित भूमि को उच्च मूल्य वाले जलकृषि केंद्रों में बदला जा सकता है।
  • भारत संवर्धित झींगा का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जहाँ 65% से अधिक समुद्री खाद्य निर्यात मूल्य झींगा से आता है।

लवणीय जल की जलकृषि में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • उच्च स्थापना लागत एवं सीमित सब्सिडी कवरेज प्रमुख बाधाएँ हैं।
  • जलकृषि संचालन के लिए वर्तमान क्षेत्र सीमा 2 हेक्टेयर तक सीमित है, जो मापनीयता में बाधा डालती है।
  • लवणता में उतार-चढ़ाव, उच्च भूमि पट्टे की दरें एवं गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति की कमी बनी हुई है।
  • विपणन अवसंरचना (बाजार, कोल्ड स्टोरेज) की अनुपस्थिति खराब मूल्य प्राप्ति की ओर ले जाती है।
  • इनपुट लागत में वृद्धि एवं फार्म-गेट कीमतों का कम होना लाभप्रदता को कम करती हैं।

इस क्षेत्र को मजबूत करने के प्रस्ताव

  • कृषि अवसंरचना एवं इनपुट बढ़ाना: जलीय कृषि फार्म स्थापित करने के लिए इनपुट लागत को बढ़ाकर ₹25 लाख करने एवं अनुमेय खेत के आकार को 2 हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 हेक्टेयर करने का प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त, किसानों के लिए परिचालन लागत को कम करने के लिए पॉलीथीन लाइनिंग जैसे महत्त्वपूर्ण इनपुट के लिए सब्सिडी बढ़ाने का सुझाव दिया गया है।
  • अवसंरचना एवं विपणन सुधार: क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए सिरसा में एक एकीकृत एक्वा पार्क (Integrated Aqua Park) की स्थापना की योजना बनाई गई है। जलीय कृषि किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए विपणन चैनलों को बेहतर बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • भागीदारी एवं जागरूकता को मजबूत करना: लवणीय भूमि का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए राज्यों, ICAR एवं केंद्रीय एजेंसियों के बीच सहयोग को मजबूत किया जाएगा। विशेष रूप से उत्तरी भारत में झींगा की खपत को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान शुरू किए जाएंगे।
  • अनुसंधान, विकास एवं नीति ढाँचा: तकनीकी पहुँच के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के समर्थन से 25 जिलों में अंतर विश्लेषण किया जाएगा तथा क्लस्टर विकसित किए जाएंगे।
    • झींगा पालन संबंधी दिशा-निर्देशों को अद्यतन करने तथा खारे जलकृषि के लिए एक स्थायी रोडमैप तैयार करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किया जाएगा।

लवणीय जलीय कृषि में आधुनिक संधारणीय कृषि पद्धतियाँ

  • जलवायु-अनुकूल कृषि तकनीकों को अपनाना।
  • लवणता के स्तर को प्रबंधित करने के लिए पॉलीथीन लाइनिंग का उपयोग।
  • जलवायु कृषि की बेहतर पैदावार के लिए बायोफ्लोक प्रौद्योगिकी का एकीकरण।
  • निदान प्रयोगशालाओं एवं अनुसंधान के माध्यम से रोग प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना।

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