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सरकार ने चावल की तीन श्रेणियों पर निर्यात शुल्क आधा किया

Lokesh Pal September 30, 2024 02:30 149 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने चावल की तीन श्रेणियों पर निर्यात शुल्क 20% से घटाकर 10% कर दिया है।

चावल की विभिन्न किस्में

भूसी (Husk)

  • चावल के दाने की बाहरी परत, जिसे मिलिंग प्रक्रिया (Milling Process) के दौरान हटा दिया जाता है। 
  • इसे चावल का छिलका भी कहा जाता है।

भूसी वाला (भूरा) चावल [Husked (Brown) Rice]

  • चावल के दाने जिनकी भूसी निकाल दी गई है, लेकिन अभी भी चोकर की परत बनी हुई है, जो भूसी के नीचे पोषक तत्त्वों से भरपूर परत है।
  • इस प्रकार के चावल को साबुत अनाज माना जाता है और सफेद चावल की तुलना में इसमें अधिक पोषण मूल्य होता है।

उबले हुए चावल/ पैराबॉयल्ड राइस (Parboiled Rice) 

  • चावल का एक प्रकार जिसे पीसने से पहले आंशिक रूप से पकाया जाता है।
  • यह प्रक्रिया नियमित सफेद चावल की तुलना में विटामिन B तथा आयरन सहित अधिक पोषक तत्त्वों को बनाए रखने में मदद करती है।
  • उबले हुए चावल की बनावट भी सख्त होती है और इसका उपयोग अक्सर ऐसे व्यंजनों में किया जाता है, जिन्हें पकाने में अधिक समय लगता है।

सफेद चावल (White rice

  • चावल के दाने जिनमें से भूसी एवं चोकर दोनों की परत निकाल दी गई हो।
  • हालाँकि इसकी बनावट नरम होती है और यह जल्दी पक जाता है, लेकिन यह भूरे या उबले चावल की तुलना में कम पौष्टिक होता है।

बासमती चावल (Basmati rice) 

  • चावल की एक लंबी दाने वाली किस्म, जो अपनी सुगंधित खुशबू और मुलायम बनावट के लिए जानी जाती है। 
  • यह सफेद या भूरे रंग का हो सकता है।

संबंधित तथ्य 

  • सरकारी अधिसूचना के अनुसार, यह कटौती भूसी सहित चावल (धान या खुरदुरा), भूसी युक्त (भूरा) चावल, तथा उबले हुए चावल (पैराबॉयल्ड राइस) पर लागू होगी।

निर्यात शुल्क कम करने के कारण

  • अधिशेष भंडार: अनाज के स्टॉक में वृद्धि हुई है और आने वाले हफ्तों में नई फसल आने की उम्मीद है।
  • निर्यात को बढ़ावा देना: कम निर्यात शुल्क से भारत के निर्यात मूल्य कम होंगे और अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट को बढ़ावा मिलेगा।
  • प्रतिस्पर्द्धी दबाव: यह कदम थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और म्याँमार जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों को अपनी कीमतें कम करने के लिए मजबूर करेगा।

भारत में चावल उत्पादन

  • वैश्विक व्यापार हिस्सा
    • भारत विश्व स्तर पर चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। 
    • यह देश दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है, जिसकी वैश्विक बाजार में 45% हिस्सेदारी है।
  • शीर्ष चावल उत्पादक राज्य
    • प्रमुख उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु।
    • उच्च उपज वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, केरल।

चावल संबंधी अन्य प्रमुख तथ्य

  • मुख्य भोजन: चावल अधिकांश भारतीयों के लिए प्राथमिक भोजन स्रोत है।
  • खरीफ फसल: उच्च तापमान (25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) में उगती है, उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है, और वार्षिक वर्षा 100 सेमी. से अधिक होती है।

  • सिंचाई: कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई का उपयोग करके चावल की खेती की जाती है।
  • बहु फसलें: पश्चिम बंगाल और दक्षिणी राज्यों में, किसान सालाना दो से तीन चावल की फसलें उगाते हैं।
  • पश्चिम बंगाल में तीन फसलें: ‘औस’, ‘अमन’ तथा ‘बोरो’ चावल की खेती की जाती है।
  • फसल क्षेत्र: भारत के कुल फसल क्षेत्र का लगभग 25% चावल की खेती के लिए आवंटित है।

भारत में चावल निर्यात से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • अप्रत्यक्ष तरीके से जल निर्यात
    • चावल की खेती में जल की बहुत अधिक आवश्यकता होती है, तथा बड़े पैमाने पर चावल का निर्यात पहले से ही जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में जल की कमी को और बढ़ा सकता है।
    • इससे स्थानीय जल संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है तथा गेहूँ एवं दालों जैसी अन्य फसलों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो सिंचाई पर निर्भर हैं।
  • खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ
    • चावल निर्यात पर अत्यधिक निर्भरता घरेलू खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है, विशेषकर जब भारत की जनसंख्या में वृद्धि हो रही हो।
    • अत्यधिक निर्यात से घरेलू कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे कमजोर आबादी के लिए चावल कम किफायती हो जाएगा।
  • फसल विविधता पर प्रभाव
    • चावल की खेती पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से फसल विविधता कम हो सकती है, जिससे कृषि क्षेत्र कीटों, बीमारियों और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है।
    • दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और लचीलेपन के लिए विविध कृषि प्रणाली को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • व्यापार नीतियाँ तथा सब्सिडी
    • सब्सिडी तथा निर्यात प्रोत्साहन जैसी सरकारी नीतियाँ चावल के निर्यात को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • नीतियों में संतुलन बनाए रखना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका घरेलू किसानों या उपभोक्ताओं पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े और साथ ही वैश्विक बाजारों में अनुचित प्रतिस्पर्द्धा से बचा जा सके।

चावल की खेती में सुधार की तकनीक

  • प्रत्यक्ष बुवाई वाला चावल (Direct Seeded Rice-DSR)
    • ‘ब्रॉडकास्टिंग सीड तकनीक’ के नाम से भी जानी जाने वाली DSR एक ऐसी विधि है, जो धान की खेती में कम जल का उपयोग करती है।
    • पारंपरिक नर्सरी स्थापना तथा रोपाई प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए, बीजों को प्रत्यक्ष तौर पर खेतों में बोया जाता है।

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