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चरागाह पक्षी गणना

Lokesh Pal July 16, 2025 03:02 6 0

संदर्भ

असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य (Kaziranga National Park and Tiger Reserve- KNPTR) में पहली बार आयोजित चरागाह पक्षी गणना (Grassland Bird Census) में 43 प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गईं, जिससे काजीरंगा भारत में चरागाह पक्षी विविधता के एक प्रमुख स्थल के रूप में उभरकर सामने आया।

चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र एक बायोम है, जिसकी विशेषता घास, लघु वृक्ष एवं कभी-कभी कुछ दूरी पर स्थित पेड़ों या झाड़ियों के विशाल विस्तृत क्षेत्र होते है।

संबंधित तथ्य

  • यह अध्ययन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत में आर्द्र चरागाहों का सर्वेक्षण बहुत अच्छी तरह से नहीं किया जाता है। इसलिए, प्रजातियों की समृद्धि के संदर्भ में काजीरंगा के चरागाह पक्षी विविधता की तुलना गुजरात एवं राजस्थान के शुष्क चरागाहों से की जा सकती है।

बन्नी घास के मैदान पुनर्स्थापन परियोजना (Banni Grassland Restoration Project)

  • बन्नी के क्षरित घास के मैदानों को पुनर्जीवित करने के लिए गुजरात वन विभाग द्वारा वर्ष 2019 में शुरू की गई।
  • यह परियोजना आक्रामक ‘प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा’ (Prosopis juliflora) को समाप्त करने एवं देशी घास की प्रजातियों की बुवाई पर केंद्रित है।
  • इसका उद्देश्य पशुपालक समुदायों के लिए चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
  • जल प्रवाह को नियंत्रित करने और मवेशियों की चराई पर रोक लगाने के लिए भूमि जुताई और खाइयों की खुदाई जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

गणना के प्रमुख निष्कर्ष

  • आवास विश्लेषण से पता चला है कि पक्षी विभिन्न प्रकार के घास के मैदानों में रहते थे।
  • ऊँचे, आर्द्र घास के मैदानों में सबसे अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें कई संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण आवास: ऊँचे घास के मैदान, छोटे घास/खुले मैदान एवं झाड़ीदार घास के मैदान।
  • प्रजातियों की विविधता एवं प्रचुरता काजीरंगा घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र के उत्कृष्ट स्वास्थ्य का संकेत देती है।
  • फिन्स वीवर कॉलोनी (Finn’s Weaver Colony)
    • सर्वेक्षण में लुप्तप्राय फिन्स वीवर [प्लोसियस मेगारिन्चस (Ploceus megarhynchus)], जिसे स्थानीय रूप से टुकुरा सोराई (Tukura Sorai) के नाम से जाना जाता है, की एक प्रजनन कॉलोनी का दस्तावेजीकरण किया गया।
    •  यह पक्षी घास के मैदानों के स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी संकेतक है।
    • कई पक्षी-प्रेमियों के लिए इसे “लाइफर” (LIFER) (पहली बार देखा गया) माना जाता है।
  • सर्वेक्षण में प्रमुख प्रजातियाँ: जनगणना में दस प्रमुख प्रजातियों पर जोर दिया गया, जिनमें से कई वैश्विक रूप से संकटग्रस्त हैं या ब्रह्मपुत्र के बाढ़ के मैदानों में स्थानिक हैं।
    • गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियाँ: बंगाल फ्लोरिकन।
    • संकटग्रस्त: स्वैम्प ग्रास बैबलर, फिन्स वीवर।
    • सुभेद्य: स्वैम्प फ्रैंकोलिन, जेर्डन बैबलर, स्लेंडर-बिल्ड बैबलर, ब्लैक-ब्रेस्टेड पैरटबिल, मार्श बैबलर, ब्रिस्टल्ड ग्रासबर्ड।
    • निकट संकटग्रस्त: इंडियन ग्रासबर्ड।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य के बारे में

  • ब्रह्मपुत्र नदी एवं कार्बी (मिकिर) पहाड़ियों, असम के बीच अवस्थित है।
  • काजीरंगा घास के मैदानों, वनों एवं आर्द्रभूमि का मिश्रण है।
  • इसे राष्ट्रीय उद्यान (वर्ष 1974), बाघ अभयारण्य (वर्ष 2007), यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (वर्ष 1985), बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (Important Bird Area- IBA) के रूप में नामित किया गया है।
  • यहाँ वैश्विक ‘इंडियन वन हॉर्नड राइनो’ की दो-तिहाई आबादी (2,613-वर्ष 2022 की गणना के अनुसार) रहती है।
  • भारतीय संरक्षित क्षेत्रों में वन्यजीव संरक्षण में उच्च सफलता।
  • ऑस्ट्रेलेशिया-इंडो-एशियाई फ्लाईवे जंक्शन पर स्थित होने के कारण प्रवासी पक्षियों के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्र।
  • प्रमुख जीव-जंतु
    • ‘बिग फोर’ के लिए जाना जाता है, ‘इंडियन वन हॉर्नड राइनो’, रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, एशियाई वाटर बफेलो।
    • अन्य प्रजातियों में शामिल हैं: स्वैंप डियर, हॉग डियर, गौर, तेंदुआ, फिशिंग कैट, स्मॉल वाइल्ड कैट्स, वेस्टर्न हूलॉक गिब्बन (लुप्तप्राय, भारत की एकमात्र वानर प्रजाति)।
    • लगभग 478 पक्षी प्रजातियाँ (निवासी एवं प्रवासी)
    • गंभीर रूप से लुप्तप्राय बंगाल फ्लोरिकन का आवास।
  • प्रमुख वनस्पति: सघन, ऊँची ‘एलीफेंट ग्रास’ का प्रभुत्व।
    • इसमें शामिल हैं: दलदली भूमि, वाटर लिली, कमल, जलकुंभी, रतन केन (ताड़ की प्रजाति)।

भारत में विविध घासभूमि (चरागाह) पारिस्थितिकी तंत्र

  • दक्कन पठार के घास के मैदान: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में विस्तृत इन घास के मैदानों में छोटी तथा लंबी घासों का मिश्रण पाया जाता है तथा ये भारतीय भेड़िए एवं भारतीय लोमड़ी जैसी प्रजातियों का आवास हैं।
  • पश्चिमी घाट के घास के मैदान (शोला घास के मैदान): केरल, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में ऊँचाई पर स्थित ये घास के मैदान शोला वनों से संबंधित हैं तथा नीलगिरि तहर जैसी स्थानिक प्रजातियों का आवास हैं।
  • पंजाब के मैदान के घास के मैदान (उत्तर-पश्चिमी मैदान): पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले ये उपजाऊ घास के मैदान सिंधु-गंगा के मैदान का हिस्सा हैं तथा भारत में गेहूँ एवं चावल की खेती में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  • पूर्वी हिमालयी घास के मैदान: अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम एवं भूटान में स्थित ये ऊँचाई वाले घास के मैदान जैव विविधता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं तथा लाल पांडा एवं हिम तेंदुए जैसी प्रजातियों का आवास हैं।
  • बन्नी घास के मैदान: गुजरात के कच्छ जिले में स्थित, ये मौसमी बाढ़ प्रभावित घास के मैदान प्रमुख चरागाह के रूप में काम करते हैं एवं विभिन्न प्रकार की प्रवासी पक्षी प्रजातियों को आकर्षित करते हैं।

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