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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

Lokesh Pal October 26, 2024 01:57 214 0

संदर्भ

ऐतिहासिक रूप से पहली बार, राजस्थान के जैसलमेर में सुदासरी जीआईबी प्रजनन केंद्र (Sudasari GIB Breeding Centre) में कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के चूजे का जन्म हुआ। 

कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination)

  • कृत्रिम गर्भाधान (AI) एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसका उपयोग प्राकृतिक प्रजनन के बिना जानबूझकर मादा के प्रजनन तंत्र (आमतौर पर गर्भाशय) में शुक्राणु को प्रवेश करके प्रजनन में मदद करने के लिए किया जाता है।
  • इसका उपयोग आमतौर पर मनुष्यों और जानवरों दोनों में विभिन्न कारणों से किया जाता है, जिसमें प्रजनन संबंधी समस्याओं पर नियंत्रण पाना, चयनात्मक प्रजनन और लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण शामिल है।

कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया

  • शुक्राणु संग्रह: अक्सर एक चिकित्सा प्रक्रिया के माध्यम से शुक्राणु को पुरुष (नर) दाता से एकत्र किया जाता है।
  • तैयारी: एकत्रित शुक्राणु के माध्यम से अंडे को निषेचित करने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए संसाधित किया जा सकता है, जैसे उच्च गुणवत्ता वाले शुक्राणु को अलग करना।
  • सम्मिलन: संसाधित शुक्राणु को एक सिरिंज या विशेष कैथेटर का उपयोग करके मादा के जननांगों में प्रवेश कराया जाता है।

संबंधित तथ्य

  • संरक्षण मील का पत्थर: इस उपलब्धि को जीआईबी संरक्षण के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है, क्योंकि इन लुप्तप्राय पक्षियों की संख्या 150 से भी कम बची है, जिनमें से ज्यादातर राजस्थान में हैं।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के बारे में

  • आवास: यह घासस्थल में निवास करने वाली एक प्रजाति है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में स्थानिक है। यह मुख्यतः राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है।
    • महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसकी छोटी आबादी पाई जाती है।
  • चरागाह आवास की प्रमुख संकेतक प्रजातियाँ: यह घास के मैदानों के आवासों के स्वास्थ्य का एक प्रमुख संकेतक है।
  • इसके सिर पर ‘काले मुकुट’ जैसी संरचना से इसकी पहचान होती है।
    • नर में यह मुकुट बड़ा एवं काला होता है।
  • आहार: ये सर्वाहारी होते हैं तथा घास के बीज, टिड्डे और भृंग जैसे कीटों को खाते हैं; कभी-कभी वे छोटे कृंतकों एवं सरीसृपों को भी खाते हैं।
  • संरक्षण स्थिति
    • IUCN की रेड लिस्ट में: गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I (Schedule I) 
    • CITES: परिशिष्ट 1 (Appendix 1)।

GIB के संरक्षण में चुनौतियाँ

  • आबादी में गिरावट के कारक
    • GIB की संकीर्ण सामने की दृष्टि और बड़ा आकार उन्हें विद्युत की लाइनों से टकराव के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बनाता है।
    • GIB नेस्टिंग: GIB प्रतिवर्ष एक ही अंडा देती है, जो बड़ा होता है और जमीन पर रखा जाता है, जिससे वह शिकारियों के कारण असुरक्षित हो जाता है।
      • मादा दूसरा अंडा देने से पहले चूजे को दो वर्ष तक पालती है, जिसका अर्थ है कि प्राकृतिक प्रजनन दर कम है।

  • विद्युत लाइन चैलेंज: डेजर्ट नेशनल पार्क के अंतर्गत वर्ष 2020 के WII अध्ययन में बताया गया है कि विद्युत की लाइनों के कारण प्रतिवर्ष लगभग 84,000 पक्षी मरते हैं, जिनमें GIB भी शामिल है। 
    • हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने GIB की मृत्यु के संदर्भ में विद्युत लाइनों को लेकर आदेश दिया था।

संरक्षण प्रजनन प्रक्रिया

  • संरक्षण प्रजनन की शुरुआत जंगल से अंडे एकत्र करके की जाती है।
  • अंडों को केंद्रों पर कृत्रिम रूप से संजोया जाता हैं और प्रजनन केंद्र में ही उनका संरक्षण किया जाता है।
  • बाद में, केंद्र में वयस्कता के चरण तक पहुँचने वाले चूजे प्रजनन के माध्यम से अगली पीढ़ी को जन्म देते हैं।
  • फिर इन पक्षियों की दूसरी पीढ़ी को जंगल में छोड़ दिया जाता है।

GIB के संरक्षण संबंधी प्रयास 

  • नेशनल बस्टर्ड रिकवरी प्लान (National Bustard Recovery Plan): इन प्रजातियों को पुनः प्राप्त करने की योजना पहली बार वर्ष 2013 में शुरू की गई थी।
  • बस्टर्ड रिकवरी प्रोजेक्ट (Bustard Recovery Project): वर्ष 2016 में शुरू की गई इस परियोजना की योजना राजस्थान सरकार के साथ-साथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बनाई गई थी।
    • प्रतिपूरक वनरोपण कोष ने इस परियोजना को वित्तपोषित किया, जिसमें वनों को गैर-वनीय उपयोगों के लिए बदले में वनरोपण के लिए एकत्रित धन शामिल है।
  • त्रिपक्षीय समझौता: वर्ष 2018 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राजस्थान वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
    • वे GIB कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम पर मिलकर कार्य कर रहे हैं।
    • योजना यह है कि भविष्य में कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्में पक्षियों को जंगल में छोड़ा जाए। 
  • बस्टर्ड रिकवरी परियोजना में निम्नलिखित संरक्षण उपाय शामिल थे:
    • रामदेवरा और सोरसन में दीर्घकालिक संरक्षण प्रजनन केंद्र (CBC) खोलना।
    • टेलीमेट्री आधारित पक्षी ट्रैकिंग और आबादी सर्वेक्षण जैसी क्षेत्र अनुसंधान परियोजनाओं को लागू करना।
    • इनके क्षेत्र में अतिक्रमण को खत्म किया जाना चाहिए, लेकिन इसे व्यावहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
  • रिकवरी कार्यक्रम: भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा तैयार किया गया, जो केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है।
    • एक्स-सीटू संरक्षण केंद्रों में प्रजनन से तैयार किए गए बस्टर्ड को पुनः वनों के अनुकूलन के लिए तैयार करना।
    • कृत्रिम गर्भाधान तकनीक विकसित करना।

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