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ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना

Lokesh Pal September 13, 2025 02:48 157 0

संदर्भ

केंद्र सरकार वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act- FRA), 2006 के कथित उल्लंघन के संबंध में लिटिल और ग्रेट निकोबार की जनजातीय परिषद की शिकायत की जाँच कर रही है।

  • यह शिकायत 81,000 करोड़ रुपये की ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के लिए लगभग 13,000 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग से संबंधित है।
  • यह मुद्दा तब उठाया गया जब अगस्त 2022 में जारी एक प्रमाण-पत्र में दावा किया गया कि सभी वन अधिकारों की पहचान कर ली गई है और उनका निपटारा कर दिया गया है, जिस पर जनजातीय परिषद ने आपत्ति जताई है।

संबंधित तथ्य

  • जनजातीय कार्य मंत्रालय की कार्रवाई: मंत्री जुएल ओराम ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के मुख्य सचिव से शिकायत के प्रत्येक बिंदु पर एक “तथ्यात्मक रिपोर्ट” माँगी है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता ने मंत्री को पत्र लिखकर वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के उचित कार्यान्वयन का आग्रह किया।
    • विपक्ष ने इस परियोजना की आलोचना एक “सुनियोजित दुस्साहस” के रूप में की और पर्यावरण एवं जनजातीय अधिकारों से जुड़ी चिंताओं को उजागर किया।
    • न्यायिक निगरानी: वन मंजूरियों को चुनौती देने वाली एक याचिका कलकत्ता उच्च न्यायालय में लंबित है; राज्यसभा के प्रश्नों का उत्तर न्यायालय में विचाराधीन होने का संदर्भ देते हुए नहीं दिया गया।

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम लिमिटेड (Andaman and Nicobar Islands Integrated Development Corporation Ltd [ANIIDCO]) के बारे में।

  • परिचय: अर्द्ध-सरकारी एजेंसी, कंपनी अधिनियम के तहत वर्ष 1988 में निगमित।
  • उद्देश्य: क्षेत्र के संतुलित और पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का विकास और व्यावसायिक दोहन करना।
  • मुख्य गतिविधियाँ: पेट्रोलियम उत्पादों, भारत में निर्मित विदेशी शराब और दूध का व्यापार, पर्यटन रिसॉर्ट्स का प्रबंधन तथा पर्यटन एवं मत्स्यपालन के लिए बुनियादी ढाँचे का विकास।
  • परियोजना प्रस्तावक के रूप में नियुक्ति: ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए जुलाई 2020 में अंडमान और निकोबार प्रशासन द्वारा नियुक्त।

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के बारे में

  • विजन: ग्रेट निकोबार को एक रसद, व्यापार और रक्षा केंद्र में परिवर्तित करने और हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति को बेहतर बनाने के लिए एक बहु-घटकीय मेगा विकास परियोजना।
  • स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए EIA अधिसूचना 2006 और शोम्पेन नीति- 2015 के तहत पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों और जनजातीय कल्याण अनुपालन के साथ योजनाबद्ध।
    • शोम्पेन नीति 2015: यह अंडमान और निकोबार प्रशासन द्वारा स्थापित एक नियामक ढाँचा है, जिसका उद्देश्य ग्रेट निकोबार द्वीपसमूह पर बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के दौरान स्वदेशी शोम्पेन जनजाति के कल्याण और अधिकारों को प्राथमिकता देना है।
      • अधिदेश: जनजातीय कल्याण और उनकी सांस्कृतिक विरासत एवं पर्यावरण के संरक्षण को विकास पहलों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • कार्यान्वयन प्राधिकरण: इस परियोजना का कार्यान्वयन पोर्ट ब्लेयर स्थित अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम लिमिटेड (ANIIDCO) द्वारा किया जा रहा है।
  • चरणबद्ध समय-सीमा: निर्माण कार्य वर्ष 2024 से शुरू; आंशिक रूप से वर्ष 2028 तक परिचालन शुरू, तथा पूर्ण पैमाने पर विकास कार्य वर्ष 2050 तक।

शामिल पक्ष:

  • अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (International Container Transhipment Terminal- ICTT): 14.2 मिलियन TEU की क्षमता के साथ, यह कोलंबो/सिंगापुर पर भारत की निर्भरता को कम करेगा और इस द्वीप को एक वैश्विक शिपिंग केंद्र के रूप में स्थापित करेगा।
    • यह मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 और अमृत काल विजन 2047 का हिस्सा है, जो भारत की दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति का समर्थन करता है।
  • ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा: हवाई संपर्क में सुधार करेगा, पर्यटन को बढ़ावा देगा और आपात स्थितियों में सैनिकों और आपूर्ति की त्वरित तैनाती को सक्षम करेगा।
  • 450 MVA गैस + सौर ऊर्जा संयंत्र: सतत् विकास के लिए पारंपरिक और नवीकरणीय स्रोतों के मिश्रण से निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
  • एकीकृत टाउनशिप: निवासियों और श्रमिकों को आवास, बुनियादी ढाँचा और आधुनिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए 16,610 हेक्टेयर में विस्तृत एक नियोजित टाउनशिप।
  • चरणबद्ध विकास: निवेश में वृद्धि करने, पारिस्थितिकी तनाव को कम करने और दो दशकों में अनुकूली योजना बनाने के लिए इसे तीन चरणों (वर्ष 2025-2047) में विभाजित किया गया है।

अंडमान द्वीपसमूह

  • तीन प्रमुख उप-समूहों में विभाजित: उत्तरी अंडमान, मध्य अंडमान और दक्षिणी अंडमान।
  • डंकन पैसेज: इस द्वीपसमूह के दो प्रमुख द्वीपसमूह हैं: लघु अंडमान और ग्रेट अंडमान, जो 50 किलोमीटर चौड़े डंकन पैसेज द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं।
    • यह अंडमान सागर को बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है।
  • राजधानी पोर्ट ब्लेयर दक्षिणी अंडमान में स्थित है।

निकोबार द्वीपसमूह

  • तीन प्रमुख उप-समूहों में विभाजित: उत्तरी, मध्य और दक्षिणी समूह।
  • ग्रेट निकोबार: समूह का सबसे बड़ा और सबसे दक्षिणी द्वीप → इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप से केवल 147 किमी. दूर।
  • भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु: ‘इंदिरा पॉइंट’ ग्रेट निकोबार के दक्षिणी सिरे पर स्थित है।
  • स्वदेशी जातीय समूह: निकोबारी और शोम्पेन
  • ‘दस डिग्री चैनल’: यह उत्तर में अंडमान द्वीपसमूह को दक्षिण में निकोबार द्वीपसमूह से अलग करता है।
  • इनमें से अधिकांश द्वीपों का आधार ज्वालामुखी है। ये तृतीयक बलुआ पत्थर, चूना पत्थर और शेल द्वारा निर्मित हैं।
    • पोर्ट ब्लेयर के उत्तर में बैरन और नारकोंडम द्वीप ज्वालामुखी द्वीप हैं।
  • उत्तरी अंडमान में सैडल पीक (737 मीटर): यह अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की सबसे ऊँची चोटी है।

ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI)

  • बंगाल की खाड़ी में निकोबार द्वीपसमूह का सबसे दक्षिणी द्वीप।

  • संरक्षित स्थल:
    • ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिजर्व
    • कैंपबेल बे राष्ट्रीय उद्यान
    • गैलाथिया राष्ट्रीय उद्यान
  • पारिस्थितिकी महत्त्व
    • अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों सहित उच्च जैव विविधता, जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
    • समुद्री जीवन और प्रवाल भित्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • वर्ष 2013 में UNESCO द्वारा वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में नामित।

परियोजना का महत्त्व

  • रणनीतिक स्थिति: ग्रेट निकोबार मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित है, जहाँ से लगभग 30%-40% वैश्विक व्यापार, जिसमें चीन के तेल और गैस आयात का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, इसी चोकपॉइंट से होकर गुजरता है।
    • यह भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है, समुद्री सुरक्षा को मजबूत करता है और चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति का प्रतिरोध करता है।
  • आर्थिक क्षमता: वर्ष 2040 तक प्रतिवर्ष ₹30,000 करोड़ का अनुमानित राजस्व और रसद, पर्यटन और संबद्ध क्षेत्रों में लगभग 50,000 नौकरियों का सृजन
    • यह सागरमाला पहल का समर्थन करता है और इसका उद्देश्य भारत को सिंगापुर/हांगकांग जैसा एक क्षेत्रीय ट्रांसशिपमेंट केंद्र बनाना है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: चार प्रमुख घटक:
    1. ट्रांसशिपमेंट पोर्ट (5 मिलियन TEU वार्षिक)।
    2. ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा।
    3. 450 मेगावाट बिजली संयंत्र (गैस + सौर)।
    4. लगभग 65,000 लोगों के लिए टाउनशिप।
      • दूरस्थ क्षेत्र में कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे में सुधार।
  • रक्षा आधारित महत्त्व: पूर्वी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक और वायु परिचालन क्षमता में वृद्धि।
    • चोक पॉइंट्स (मलक्का, सुंडा और लोम्बोक जलडमरूमध्य) पर निगरानी को मजबूत करता है।
    • यह अंडमान और निकोबार को एक सुरक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करने के भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण का पूरक है।
    • यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ 2014 और क्वाड की हिंद-प्रशांत रणनीति के अनुरूप है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा मजबूत होती है।
  • क्षेत्रीय कूटनीति: यह बंगाल की खाड़ी और BIMSTEC क्षेत्र में भारत को व्यापार और रसद क्षेत्र में अग्रणी बनाता है। यह ट्रांसशिपमेंट के लिए विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता कम करने में मदद करता है।

परियोजना से जुड़ी चिंताएँ

  • पारिस्थितिकी चिंताएँ: ग्रेट निकोबार एक जैव विविधता हॉटस्पॉट (200 पक्षी प्रजातियाँ, स्थानिक वनस्पतियाँ, प्रवाल भित्तियाँ) है।
    • गैलाथिया खाड़ी: ‘लेदरबै‍क सी टर्टल्स’ के लिए महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल और सुरक्षात्मक मैंग्रोव युक्त रामसर आर्द्रभूमि
    • बड़े पैमाने पर ड्रेजिंग से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है और भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में जोखिम बढ़ जाता है।
    • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के लिए प्रस्तावित उम्मीदवारी संकट में पड़ सकती है।
  • जनजातीय अधिकार और FRA मुद्दे
    • शोम्पेन जनजाति (PVTG) (लगभग 300-400 लोग): शोम्पेन जनजाति (PVTG), जिनकी संख्या लगभग 300–400 है, अपनी 130 वर्ग किलोमीटर पैतृक एवं पवित्र भूमि से विस्थापन के खतरे का सामना कर रही है।
    • अलगाव के कारण रोगों के प्रति संवेदनशीलता (बाह्य रोगजनकों के प्रति कोई प्रतिरक्षा नहीं)।
    • निकोबारी समुदाय: निकोबारी समुदाय ने ‘दबाव में’ प्राप्त सहमति पर चिंता व्यक्त की।
    • वन अधिकार अधिनियम (2006)
      • वन भूमि के हस्तांतरण से पहले अधिकारों की मान्यता और निपटान आवश्यक है।
      • शिकायत दर्ज की गई है कि प्रशासन ने वर्ष 2022 में वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अनुपालन को गलत तरीके से प्रमाणित किया है।
      • कथित तौर पर ग्रामसभा की सहमति उचित रूप से प्राप्त नहीं की गई है, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA) की भावना का उल्लंघन है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA, 2006) के बारे में

  • स्वामित्व का अधिकार: अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को पारंपरिक रूप से गाँव की सीमाओं के भीतर या बाहर एकत्रित की जाने वाली लघु वन उपज के स्वामित्व, संग्रहण, उपयोग और निपटान का अधिकार
  • पात्रता: वन अधिकारों का दावा कोई भी सदस्य या समुदाय कर सकता है → जिसने 13 दिसंबर, 2005 से पहले कम-से-कम तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) तक मुख्य रूप से वास्तविक आजीविका आवश्यकताओं के लिए वन भूमि पर निवास किया हो।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी: केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA)।

वन अधिकार प्रदान करने वाले प्राधिकारी (Authorities For Vesting Forest Rights)

  • ग्राम सभा: व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR), सामुदायिक वन अधिकार (CFR), या दोनों, जिन्हें FDST और OTFD को प्रदान किया जा सकता है, की प्रकृति और सीमा निर्धारित करने की प्रक्रिया आरंभ करने का प्राधिकार निहित है।
  • उप-मंडल स्तरीय समिति: राज्य सरकार द्वारा गठित, ग्राम सभा द्वारा पारित प्रस्तावों की जाँच करती है।
  • जिला स्तरीय समिति: वन अधिकारों का अंतिम अनुमोदन।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 चार प्रकार के अधिकारों को मान्यता देता है

  • भूमि अधिकार: यह अधिनियम वनवासियों को उनके द्वारा कृषि की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है → प्रति परिवार अधिकतम 4 हेक्टेयर तक
    • स्वामित्व केवल उसी भूमि के लिए है, जिस पर संबंधित परिवार वास्तव में खेती कर रहा है और कोई नई भूमि नहीं दी जा सकती।
    • भूमि को उत्तराधिकार के अलावा किसी को बेचा या हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
  • उपयोग के अधिकार: निवासियों के अधिकार लघु वन उपज (जैसे बाँस, तेंदू पत्ता, जड़ी-बूटियाँ, औषधीय पौधे आदि) के संग्रहण के साथ-साथ चरागाह क्षेत्रों एवं पशुचारण मार्गों तक भी विस्तारित हैं।
    • लघु वन उपज में लकड़ी शामिल नहीं है।
  • राहत और विकास के अधिकार: पुनर्वास और वन संरक्षण के प्रतिबंधों के अधीन बुनियादी सुविधाओं के लिए अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन की स्थिति।
  • वन प्रबंधन अधिकार: इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वे पारंपरिक रूप से स्थायी उपयोग के लिए संरक्षित करते आ रहे हैं।

  • शासन और संस्थागत चिंताएँ: सीमित अनुभव (पहले शराब, दूध और पर्यटन रिसॉर्ट्स का संबंधी कार्य प्रबंधन) के बावजूद ANIIDCO को परियोजना प्रस्तावक नियुक्त किया गया।
    • वर्ष 2022 तक पर्यावरण नीति और विशेषज्ञता के अभाव ने उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़े किए।
    • हितों का टकराव: ANIIDCO के अधिकारी पर्यावरणीय निगरानी और अनुमोदन की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं।
      • यह स्वतंत्र निगरानी और पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करता है।
  • कानूनी और नियामक चिंताएँ: परियोजना क्षेत्र में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ-1A) शामिल है → यहाँ सामान्यतः बड़े पैमाने पर निर्माण प्रतिबंधित है।
    • तैयारी की कमी के बावजूद पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को अनियमित बताया गया है।
    • NGT और कलकत्ता उच्च न्यायालय में वन मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिकाएँ लंबित हैं।
  • राजनीतिक एवं सामाजिक चिंताएँ: विपक्षी दल (कांग्रेस, आदि) इस परियोजना की आलोचना “सुनियोजित दुस्साहस” के रूप में कर रहे हैं।
    • आम सहमति से संचालित विकास योजना के बजाय यह राजनीतिक रूप से विभाजनकारी मुद्दा बनने का जोखिम पैदा कर सकती है।

आगे की राह

  1. वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करना: निकोबारी और शोम्पेन जनजातियों की वास्तविक भागीदारी के साथ नए ग्राम सभा परामर्श आयोजित करना।
    • आगे बढ़ने से पूर्व व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों को उचित रूप से मान्यता देना और उनका निपटारा करना।
  2. स्वतंत्र पर्यावरणीय निगरानी: पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के लिए एक स्वतंत्र निगरानी निकाय (ANIIDCO  और अंडमान एवं निकोबार प्रशासन के बाहर) की स्थापना करना।
    • जैव विविधता और आपदा प्रबंधन में विश्वसनीय बाहरी विशेषज्ञों को शामिल करना।
  3. एएनआईआईडीसीओ की क्षमता में सुधार: पेशेवर कर्मचारियों (शहरी योजनाकारों, पारिस्थितिकीविदों, आदिवासी कल्याण विशेषज्ञों) के साथ इसे मजबूत बनाना।
    • कार्यान्वयन के लिए प्रतिष्ठित बुनियादी ढाँचा एजेंसियों के साथ PPP मॉडल पर विचार करना जबकि ANIIDCO समन्वय का कार्य प्रबंधन करना।
  4. चरणबद्ध, पर्यावरण-संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना: बंदरगाह और टाउनशिप विस्तार से पहले कम प्रभाव वाले बुनियादी ढाँचे (हवाई अड्डा, नवीकरणीय ऊर्जा) से शुरुआत करना।
    • भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में आपदा-रोधी डिजाइन को एकीकृत करना।
    • विकल्प के रूप में इको-टूरिज्म और लघु-स्तरीय विकास पर विचार करना।
  5. आदिवासी कल्याण सुरक्षा उपाय: विशेष पुनर्वास और स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों के साथ शोम्पेन और निकोबारी अधिकारों की रक्षा करना।
    • सुनिश्चित करना कि कोई जबरन विस्थापन न हो; निर्णय लेने में आदिवासी सलाहकार परिषदों को शामिल करना।
  6. पारदर्शिता और सार्वजनिक संवाद: सभी मंजूरी दस्तावेज और प्रगति रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में जारी करना।
    • रणनीतिक परियोजनाओं पर ध्रुवीकरण से बचने के लिए सभी दलों के मध्य राजनीतिक सहमति बनाना।

निष्कर्ष 

ग्रेट निकोबार परियोजना में अपार रणनीतिक और आर्थिक संभावनाएँ हैं, लेकिन इसकी सफलता पारिस्थितिकी संवेदनशीलता, वन अधिकार अधिनियम के तहत जनजातीय अधिकारों की रक्षा और शासन संबंधी खामियों को दूर करने पर निर्भर करेगी। एक संतुलित, पारदर्शी और पर्यावरण-संवेदनशील दृष्टिकोण ही भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को उसके संवैधानिक तथा पर्यावरणीय दायित्वों के साथ संतुलित करने का एकमात्र तरीका है।

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