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ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना

Lokesh Pal October 14, 2025 03:34 18 0

संदर्भ 

हाल के वर्षों में विश्लेषकों द्वारा ग्रेट निकोबार परियोजना के कारण पारिस्थितिकी शासन, जनजातीय अधिकारों और वन अधिकार अधिनियम, 2006 सहित पर्यावरण कानूनों के अनुपालन पर चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं।

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम लिमिटेड (Andaman and Nicobar Islands Integrated Development Corporation- ANIIDCO) के बारे में

  • परिचय: अर्द्ध-सरकारी एजेंसी, कंपनी अधिनियम के तहत वर्ष 1988 में निगमित किया गया था।
  • उद्देश्य: क्षेत्र के संतुलित और पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का विकास और व्यावसायिक दोहन करना।
  • ‘परियोजना प्रस्तावक’ के रूप में नियुक्ति: ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए जुलाई 2020 में अंडमान और निकोबार प्रशासन द्वारा नियुक्त किया गया है।

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के बारे में

  • विजन: ग्रेट निकोबार को एक रसद, व्यापार और रक्षा केंद्र में बदलने और हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति को बेहतर बनाने के लिए एक बहु-घटकीय मेगा विकास परियोजना है।
  • इस परियोजना का स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 और शोम्पेन नीति-2015 के अंतर्गत पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों और जनजातीय कल्याण अनुपालन के साथ योजना निर्मित की गई है।
    • शोम्पेन नीति-2015: यह अंडमान और निकोबार प्रशासन द्वारा स्थापित एक नियामक ढाँचा है, जिसका उद्देश्य ग्रेट निकोबार द्वीप पर बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के दौरान देशज शोम्पेन जनजाति के कल्याण और अधिकारों को प्राथमिकता देना है।

जैव-सांस्कृतिक अधिकार (Bio-cultural Rights) क्या हैं?

  • जैव-सांस्कृतिक अधिकार देशज और स्थानीय समुदायों के सामूहिक अधिकारों को संदर्भित करते हैं, जिनके अंतर्गत वे अपने प्राकृतिक आवासों और सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा और प्रबंधन करते हैं, जो उन पारिस्थितिकी तंत्रों से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं।
  • ये अधिकार इस बात को मान्यता देते हैं कि जैव विविधता और संस्कृति परस्पर निर्भर हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि समुदाय अपनी पहचान और विरासत को संरक्षित करते हुए अपने पर्यावरण का स्थायी रूप से प्रबंधन कर सकें।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2016 में, कोलंबिया के संवैधानिक न्यायालय ने जैव-सांस्कृतिक अधिकारों की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें इन समुदायों और उनके प्राकृतिक पर्यावरण के बीच अटूट संबंध को स्वीकार किया गया।

प्रमुख घटक

  • अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT): 14.2 मिलियन TEU की क्षमता के साथ, यह कोलंबो/सिंगापुर पर भारत की निर्भरता को कम करेगा और इस द्वीप को एक वैश्विक शिपिंग केंद्र के रूप में स्थापित करेगा।
    • यह मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 और अमृत काल विजन 2047 का हिस्सा है, जो भारत की दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति का समर्थन करता है।
  • ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा: हवाई संपर्क में सुधार करेगा, पर्यटन को बढ़ावा देगा और आपात स्थितियों में सैनिकों तथा आपूर्ति की त्वरित तैनाती को सक्षम करेगा।
  • 450 MVA गैस एवं सौर ऊर्जा संयंत्र: सतत् विकास के लिए पारंपरिक और नवीकरणीय स्रोतों के मिश्रण से निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
  • एकीकृत टाउनशिप: निवासियों और श्रमिकों को आवास, बुनियादी ढाँचा और आधुनिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए 16,610 हेक्टेयर में विस्तृत एक नियोजित टाउनशिप के रूप में स्थापित किया जाएगा।
  • चरणबद्ध विकास: निवेश को एक विस्तार देने, पारिस्थितिकी तनाव को कम करने और दो दशकों में अनुकूली योजना बनाने के लिए इसे तीन चरणों (वर्ष 2025-47) में विभाजित किया गया है।

ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI)

  • बंगाल की खाड़ी में निकोबार द्वीपसमूह का सबसे दक्षिणी द्वीप है।
  • संरक्षित स्थल
    • ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिजर्व
    • कैंपबेल बे राष्ट्रीय उद्यान
    • गैलाथिया राष्ट्रीय उद्यान

  • पारिस्थितिकी महत्त्व
    • अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों सहित उच्च जैव विविधता, जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
    • समुद्री जीवन और प्रवाल भित्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • वर्ष 2013 में यूनेस्को द्वारा ‘वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व’ के रूप में नामित किया गया।

परियोजना का महत्त्व

  • सामरिक स्थिति: ग्रेट निकोबार मलक्का जलडमरूमध्य के पास अवस्थित है, जहाँ से लगभग 30%-40% वैश्विक व्यापार, जिसमें चीन के तेल और गैस आयात का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल है, इसी ‘चोकपॉइंट’ से होकर गुजरता है।
  • आर्थिक क्षमता: यह सागरमाला पहल का समर्थन करता है और इसका उद्देश्य भारत को सिंगापुर/हांगकांग जैसा एक क्षेत्रीय ट्रांसशिपमेंट केंद्र बनाना है।
  • अवसंरचना विकास: चार प्रमुख घटक
    1. ट्रांसशिपमेंट पोर्ट (14.5 मिलियन TEU वार्षिक)।
    2. ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा।
    3. 450 मेगावाट विद्युत संयंत्र (गैस + सौर)।
    4. लगभग 65,000 लोगों के लिए टाउनशिप।
    • दूरस्थ क्षेत्र में कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे में सुधार।
  • रक्षा संबंधी महत्त्व: पूर्वी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक और वायु संचालन क्षमता में वृद्धि होगी।
  • क्षेत्रीय कूटनीति: बंगाल की खाड़ी और बिम्सटेक क्षेत्र में भारत को व्यापार और रसद क्षेत्र में अग्रणी स्थान प्रदान करता है। यह ट्रांसशिपमेंट के लिए विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता कम करने में मदद करता है।

परियोजना से जुड़ी चिंताएँ

  • पारिस्थितिकी चिंताएँ: ग्रेट निकोबार एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है (200 पक्षी प्रजातियाँ, स्थानिक वनस्पतियाँ, प्रवाल भित्तियाँ)।
    • गैलेथिया खाड़ी: जायंट लेदरबैक सी टर्टल (Giant Leatherback Sea Turtle) के लिए महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल और सुरक्षात्मक मैंग्रोव युक्त रामसर आर्द्रभूमि।
    • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का नामांकन खतरे में पड़ सकता है।
  • जनजातीय अधिकार और FRA मुद्दे
    • शोम्पेन जनजाति (PVTG) (लगभग 300-400 लोग): शोम्पेन जनजाति (PVTG) के लगभग 300–400 सदस्य को अपनी 130 वर्ग किलोमीटर के पैतृक और पवित्र भूमि क्षेत्र से विस्थापन का जोखिम है।
    • अलगाव के कारण रोगों के प्रति संवेदनशीलता (बाहरी रोगाणुओं के प्रति कोई प्रतिरक्षा नहीं है) में वृद्धि होगी।
    • वन अधिकार अधिनियम (2006)
      • वन भूमि के हस्तांतरण से पहले अधिकारों की मान्यता और निपटान आवश्यक है।
      • शिकायत दर्ज की गई है कि प्रशासन ने वर्ष 2022 में वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अनुपालन को गलत तरीके से प्रमाणित किया है।
      • कथित तौर पर ग्राम सभा की सहमति ठीक से प्राप्त नहीं की गई है, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA) के उद्देश्य का उल्लंघन है।
  • शासन और संस्थागत चिंताएँ: ANIIDCO को सीमित अनुभव के बावजूद परियोजना प्रस्तावक नियुक्त किया गया।
    • वर्ष 2022 तक पर्यावरण नीति और विशेषज्ञता का अभाव उनके विश्वासनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है।
    • हितों का टकराव: ANIIDCO के प्रमुख वही अधिकारी पर्यावरण निगरानी और मंजूरी के भी प्रभारी हैं।
    • स्वतंत्र निगरानी और पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करता है।
  • कानूनी और नियामक चिंताएँ: परियोजना क्षेत्र में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ-1A) शामिल है → सामान्यतः बड़े पैमाने पर निर्माण पर प्रतिबंध है।
    • अपर्याप्त तैयारी के बावजूद पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को अनियमित बताया गया।
    • NGT और कलकत्ता उच्च न्यायालय में वन मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही हैं।
  • राजनीतिक एवं सामाजिक चिंताएँ: सर्वसम्मति से संचालित विकास योजना के बजाय राजनीतिक रूप से विभाजनकारी मुद्दा बनने का जोखिम है।

पृथ्वी न्यायशास्त्र (Earth Jurisprudence) क्या है?

  • पृथ्वी न्यायशास्त्र एक कानूनी दर्शन है, जो प्रकृति को एक जीवित इकाई के रूप में मान्यता देता है, जिसके अंतर्निहित अधिकार हैं। यह मानव-केंद्रित कानूनों से हटकर पर्यावरण-केंद्रित शासन व्यवस्था की ओर ध्यान केंद्रित करता है, नदियों, वनों और पर्वतों जैसी प्राकृतिक संस्थाओं को कानूनी व्यक्तित्व प्रदान करता है तथा उन्हें न्यायालय में प्रतिनिधित्व एवं संरक्षण का अधिकार देता है।
  • उदाहरण के लिए
    • वर्ष 2017 में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना नदियों के साथ-साथ गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियरों को ‘विधिक व्यक्तित्व का दर्जा’ प्रदान किया।
    • मोहम्मद सलीम बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य मामले में दिए गए निर्णय में इन संस्थाओं को अधिकार और दायित्व प्रदान किए गए, लेकिन केवल एक निर्दिष्ट व्यक्ति के माध्यम से।

आगे की राह

  • पृथ्वी न्यायशास्त्र: “बोलीविया, कोलंबिया, इक्वाडोर और न्यूजीलैंड जैसे देश ‘पृथ्वी न्यायशास्त्र’ (Earth Jurisprudence) अपनाते हैं, जिसमें प्रकृति को कानूनी अधिकार प्रदान किए जाते हैं।यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसे भारत को पारिस्थितिकी संरक्षण को मजबूत करने के लिए अपनाना चाहिए।
  • वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करना: निकोबारी और शोम्पेन जनजातियों की वास्तविक भागीदारी के साथ नए ग्राम सभा परामर्श आयोजित करना।
    • आगे बढ़ने से पहले व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों को उचित रूप से मान्यता देना और उनका निपटारा करना।
  • स्वतंत्र पर्यावरणीय निगरानी: पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के लिए एक स्वतंत्र निगरानी निकाय (ANIIDCO और अंडमान एवं निकोबार प्रशासन के बाहर) की स्थापना करना।
    • जैव विविधता और आपदा प्रबंधन में विश्वसनीय बाहरी विशेषज्ञों को शामिल करना।
  • ANIIDCO की क्षमता में सुधार करना: पेशेवर कर्मचारियों (शहरी योजनाकारों, पारिस्थितिकीविदों, आदिवासी कल्याण विशेषज्ञों) के साथ सुदृढ़ीकरण करना।
    • कार्यान्वयन के लिए प्रतिष्ठित अवसंरचना एजेंसियों के साथ PPP मॉडल पर विचार करना, हालाँकि ANIIDCO समन्वय का कार्य प्रबंधन करेगा। 
  • आदिवासी कल्याण सुरक्षा उपाय: विशेष पुनर्वास और स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों के साथ शोम्पेन और निकोबारी अधिकारों की रक्षा करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि कोई जबरन विस्थापन न हो; निर्णय लेने में जनजातीय सलाहकार परिषदों को शामिल किया जाना चाहिए।

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