ग्रीन-बियर्ड जीन (Green-Beard genes) इस बात का कारण बता सकते हैं कि प्रकृति में परोपकारिता का सार्वभौमिक गुण कैसे उत्पन्न हुआ।
संबंधित तथ्य
अध्ययन में प्रयुक्त अमीबा: शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए अमीबा प्रजाति,डिक्टिओस्टेलियम डिस्कोइडम का उपयोग किया।
यह एक स्वतंत्र-जीवित, तेजी से बढ़ने वाला, एककोशिकीय अमीबा है।
अध्ययन
यूके अध्ययन: मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यू.के. के शोधकर्ताओं द्वारा वर्ष 2017 में किए गए एक अध्ययन में बताया गया कि डी. डिस्कोइडम जीनोम में दो जीन, अर्थात्, tgrB1 और tgrC1, ग्रीन-बियर्ड जीन के सभी गुणों को प्रदर्शित करते हैं।
यूएसए अध्ययन: यू.एस. में बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं द्वारा वर्ष 2024 में किए गए एक अध्ययन में इस बात के प्रमाण प्राप्त हुए कि डी. डिस्कोइडम में ग्रीन-बियर्ड जीन के सभी गुण मौजूद हैं।
डिस्कोइडम अमीबा इन ग्रीन बियर्ड जीन का उपयोग चिमेरिज्म के जोखिम को कम करने के लिए करते हैं।
प्रकाशित: दोनों अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुए थे।
प्रक्रिया
शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में पेट्री डिश में उत्पन्न किए गए जीवाणु ‘लॉन’ को अमीबाओं के खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किया।
एग्रीगेट्स का निर्माण: जब जीवाणु समाप्त हो जाते हैं तो अमीबा गुणन क्रिया बंद कर देते हैं और बहुकोशिकीय एग्रीगेट्स बनाने के लिए एक साथ इकट्ठा होते हैं, फिर ‘एग्रीगेट्स’ युक्त शरीर में बदल जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक कुछ मिलीमीटर लंबा होता है।
‘एग्रीगेट्स’ युक्त शरीर: यह मृत कोशिकाओं से निर्मित पतले डंठल से बना होता है, और यह बीजाणुओं का निर्माण करता है। इस एग्रीगेट्स में लगभग 20% अमीबा स्टैक निर्माण के लिए स्वयं को समाप्त कर देते हैं। शेष 80% बीजाणु बन जाते हैं।
चक्र: चींटियाँ और केंचुए जैसे छोटे जीव, बीजाणुओं को नए खाद्य स्रोतों में फैला देते हैं, जहाँ वे अंकुरित होकर अमीबा को छोड़ते हैं। नए अमीबा पुनः विकास, विभाजन और फैलाव के चक्र को दोहराते हैं।
निष्कर्ष
TgrB1 और TgrC1 जीन: ये डी. डिस्कोइडम जीनोम में एक दूसरे के निकट स्थित होते हैं, और एक साथ व्यक्त होते हैं।
इनमें कोशिकाओं के लिए दो कोशिका सतह प्रोटीन निर्माण की जानकारी होती है, जिन्हें TgrB1 और TgrC1 कहा जाता है।
बंधन: एक कोशिका पर TgrB1 प्रोटीन दूसरे पर TgrC1 प्रोटीन से बँधता है। यदि बंधन मजबूत है, तो TgrB1 प्रोटीन सक्रिय होता है और परोपकारी व्यवहार प्रदान करता है, जो स्टैक निर्माण के लिए अमीबा की इच्छा के रूप में प्रकट होता है।
एकल स्ट्रेन की कोशिकाओं के TgrB1 और TgrC1 प्रोटीन के बीच बंधन मजबूत होता है, और आत्म-पहचान एवं कोशिका-कोशिका सहयोग की ओर ले जाता है।
स्व-पहचान: यह माना जाता है कि ग्रीन-बियर्ड जीन किसी प्रकार के टैग को एनकोड करते हैं, जो जीनोम को उनकी पहचान जानने में मदद करता है।
ग्रीन-बियर्ड जीन, व्यक्तियों को एक-दूसरे को पहचानने और अधिमानतः एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की अनुमति देते हैं।
अन्य जीन के प्रति स्वार्थी व्यवहार: वैकल्पिक रूप से, एक ग्रीन-बियर्ड जीन व्यक्तियों को जीन के एक अलग संस्करण को ले जाने वाले लोगों के प्रति हानिकारक व्यवहार करने के लिए उकसा सकता है।
ग्रीन-बियर्ड जीन
यह एक सैद्धांतिक आनुवंशिक विशेषता है, जो एक विशिष्ट दृश्यमान विशेषता रखने वाले व्यक्तियों को प्रेरित करती है, जैसे कि एक ग्रीन-बियर्ड। यह मान्यता के माध्यम से संचालित होता है और सहकारी लाभ प्रदान करता है।
क्षेत्रीय योगदान: यह विकासवादी जीव विज्ञान में परोपकारिता और संबंध चयन पर अध्ययन में योगदान देता है।
उत्पत्ति: ग्रीन-बियर्ड इफेक्ट की अवधारणा को ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिन्स ने वर्ष 1976 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “द सेल्फिश जीन” में पेश किया था।
मुख्य सिद्धांत
जीन-विशेष संघ: यह प्रस्ताव करता है कि कुछ जीन विशिष्ट दृश्यमान लक्षणों या व्यवहारों से जुड़े होते हैं, जिससे व्यक्ति उन अन्य लोगों की पहचान कर सकते हैं, जिनके पास समान जीन-विशेषता संयोजन होता है।
परोपकारिता और सहयोग: यह सुझाव देता है कि एक विशिष्ट जीन से जुड़े समान दृश्यमान लक्षण या व्यवहार वाले व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति सहयोग करने या परोपकारी व्यवहार प्रदर्शित करने की अधिक संभावना रखते हैं, भले ही वे निकट संबंधित न हों।
भेदभाव: साझा विशेषता की पहचान से वरीयता पूर्वक उपचार या सहयोग होता है, जो जीन-विशेषता संयोजन वाले व्यक्तियों की प्रजनन सफलता को बढ़ा सकता है।
विकासवादी लाभ: ग्रीन-बियर्ड प्रभाव उन व्यक्तियों को विकासवादी लाभ प्रदान कर सकता है, जिनके पास जीन-विशेषता संयोजन होता है, क्योंकि यह समूह के भीतर सहयोग और परोपकारिता को बढ़ावा देता है, जिससे जीन के सभी वाहकों को लाभ होता है।
खोज: मधुमक्खियों, फायर आंट्स, मनुष्यों में इसका अस्तित्व अभी भी काल्पनिक है।
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