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हरित इस्पात नीति

Lokesh Pal April 04, 2024 06:25 309 0

संदर्भ

केंद्रीय इस्पात मंत्रालय ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए एक संपूर्ण हरित इस्पात नीति (Green Steel Policy) तैयार करने के प्रयास प्रारंभ किए हैं।

संबंधित तथ्य

  • इस नीति में उत्पादन प्रक्रियाओं, आवश्यक कौशल, धन की उपलब्धता एवं अन्य प्रासंगिक पहलुओं को परिभाषित करना शामिल होगा।

ग्रीन स्टील (Green Steel) क्या है?

  • ग्रीन स्टील पर्यावरण-अनुकूल एवं टिकाऊ प्रथाओं के माध्यम से निर्मित स्टील है।

  • यह नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा का उपयोग करके, कम कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करके एवं कचरे का बेहतर प्रबंधन करके किया जाता है।
  • इसके निर्माण में जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं होता है।
  • उद्देश्य: इस्पात उत्पादन को अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाना एवं जलवायु पर इसके प्रभाव को कम करना।

कार्बन फुटप्रिंट कम करने की तकनीकें

  • कार्बन-आधारित सामग्री: कम कार्बन-आधारित सामग्री का उपयोग करके एवं अधिक स्टील का पुनर्चक्रण करके कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है।

  • ग्रीन हाइड्रोजन: ग्रीन हाइड्रोजन एक ऐसा मिश्रण है, जो जलने पर केवल जल उत्सर्जित करता है।
    • इसका उत्पादन जल एवं नवीकरणीय विद्युत का उपयोग करके किया जाता है। इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis) कहा जाता है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन इस्पात, विनिर्माण सहित विभिन्न उद्योगों के लिए एक स्वच्छ एवं टिकाऊ विकल्प प्रदान करता है।
  • ब्लू हाइड्रोजन: ब्लू हाइड्रोजन एक अन्य विकल्प है, जो कम कार्बन उत्सर्जन करता है।
    • इसका उत्पादन कार्बन कैप्चर नामक तकनीक के साथ जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके किया जाता है।
  • यह तकनीक कार्बन उत्सर्जन को कैप्चर करने एवं संगृहीत करने में मदद करती है, जिससे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की तुलना में ब्लू हाइड्रोजन अधिक स्वच्छ हो जाता है।
  • ब्लू हाइड्रोजन स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की दिशा में एक संक्रमणकालीन समाधान के रूप में कार्य करता है।
  • इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (Electric Arc Furnaces) : इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस का भी उपयोग किया जाता है, लेकिन वे हमेशा नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित नहीं होती हैं, इसलिए वे जिस स्टील का निर्माण करती हैं वह पूरी तरह से ग्रीन नहीं हो सकती है।

ग्रीन स्टील के लाभ और कमियाँ

लाभ

कमियाँ

  • कार्बन फुटप्रिंट में कमी: पारंपरिक ब्लास्ट फर्नेस की तुलना में ग्रीन स्टील विधियाँ कम CO2 उत्सर्जित करती हैं।
  • संसाधन संरक्षण: यह कोयले पर निर्भरता कम करता है एवं स्क्रैप स्टील का कुशलतापूर्वक उपयोग करता है, स्थिरता को बढ़ावा देता है।
  • उन्नत स्थिरता: ग्रीन स्टील हरित निर्माण एवं बुनियादी ढाँचे का समर्थन करता है, जो एक स्थायी भविष्य में योगदान देता है।
  • उच्च उत्पादन लागत: विकासशील प्रौद्योगिकी के कारण ग्रीन स्टील वर्तमान में अधिक महंगी है।
  • सीमित उपलब्धता: प्रारंभिक चरण एवं उच्च प्रारंभिक निवेश के कारण उत्पादन प्रतिबंधित है।
  • भविष्य की चुनौतियाँ: हरित इस्पात उत्पादन में उपयोग की जाने वाली कुछ तकनीकों का दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है, जिस पर शोध की आवश्यकता है।

भारत में ग्रीन स्टील बनाने के लिए उठाए गए कदम

  • 13 टास्क फोर्स: हरित इस्पात निर्माण के विभिन्न तौर-तरीकों को संबोधित करने के लिए पहले 13 टास्क फोर्स स्थापित की गई थीं।
  • 14 टास्क फोर्स: हाल ही में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए ब्लास्ट फर्नेस संचालन में विकल्प के रूप में बायोचार या बायोमास के उपयोग की जाँच के लिए एक 14 टास्क फोर्स का गठन किया गया था।
  • पायलट परियोजनाएँ एवं हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकी
    • शुद्ध-हाइड्रोजन- DRI: भारत अपनी स्वयं की शुद्ध-हाइड्रोजन-आधारित डायरेक्ट रिडक्शन ऑफ आयरन (Direct Reduction of Iron- DRI) तकनीक की खोज कर रहा है।
      • हाइड्रोजन-आधारित DRI सुविधा के लिए एक कंसोर्टियम के नेतृत्व वाले पायलट प्रोजेक्ट की भी खोज की जा रही है।
    • सहयोग: प्रस्तावित पायलट प्लांट में एकीकृत इस्पात हितधारकों, माध्यमिक हितधारकों एवं वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council for Scientific & Industrial Research- CSIR) लैब के बीच सहयोग शामिल है।
  • हाइड्रोजन का उपयोग: औद्योगिक पैमाने पर हाइड्रोजन-आयरन निर्माण, जिसे डायरेक्ट रिडक्शन ऑफ आयरन (DRI) के रूप में जाना जाता है, उच्च कार्बन उत्सर्जित करने वाले जीवाश्म ईंधन के बजाय हाइड्रोजन का उपयोग करता है, जिसमें अपशिष्ट उत्पाद के रूप में जल होता है।

भारत में भारतीय इस्पात क्षेत्र का अवलोकन

  • यह उद्योग एक अविनियमित क्षेत्र है।
  • वर्गीकरण: भारतीय इस्पात उद्योग को प्रमुख, मुख्य एवं द्वितीयक उत्पादकों में वर्गीकृत किया गया है।
  • उत्पादन सांख्यिकी
    • वित्त वर्ष 2023 में 125.32 मीट्रिक टन उत्पादन के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक है।
    • इसी अवधि के दौरान तैयार इस्पात का उत्पादन 121.29 मीट्रिक टन रहा।
  • विकास के प्रमुख चालक
    • कच्चा माल (लौह अयस्क की उपलब्धता): भारत में लौह अयस्क का समृद्ध भंडार है, जो इस्पात उत्पादन में एक प्रमुख घटक है। 
    • लागत प्रभावी श्रम: भारत में एक बड़ा कार्यबल है एवं इस्पात उद्योग कुशल तथा अकुशल श्रम के लिए उपलब्ध इस कार्यबल का लाभ उठा सकता है।
      • इस्पात उद्योग भारत के समग्र विनिर्माण उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

इस्पात क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की स्थिति

  • भारत का घरेलू क्षेत्र योगदान: आधिकारिक आँकड़ों से पता चलता है कि भारत का घरेलू इस्पात क्षेत्र देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 12% योगदान देता है।
  • उत्सर्जन की तीव्रता: प्रति टन कच्चे इस्पात में उत्सर्जन की तीव्रता लगभग 2.55 टन CO2 है, जो वैश्विक औसत 1.9 टन से अधिक है।

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