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भारत में भूजल संदूषण

Lokesh Pal August 09, 2025 03:04 6 0

संदर्भ

भारत में भूजल संदूषण एक मंद किंतु गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल में बदल गया है, जिससे पेयजल और सिंचाई के लिए इस पर निर्भर लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।

भूजल क्या है?

भूजल वह जल है, जो भूमि की सतह के नीचे संतृप्त क्षेत्रों में मौजूद होता है। संतृप्त क्षेत्र की ऊपरी सतह को जल स्तर कहा जाता है।

भूजल पर निर्भरता

  • भारत में 85% से अधिक ग्रामीण पेयजल तथा 65% से अधिक सिंचाई जल, भूमि के निचे उपस्थित जल से आता है।
  • प्रचुर नदियों और मानसून के बावजूद, भूजल घरेलू और कृषि आवश्यकताओं के लिए प्राथमिक स्रोत बना हुआ है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB)

  • CGWB भारत में भूजल संसाधनों के विकास और प्रबंधन के लिए उत्तरदायी शीर्ष राष्ट्रीय संगठन है।
  • नोडल मंत्रालय: जल शक्ति मंत्रालय, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग के अधीन कार्य करता है।
  • स्थापना: भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत अन्वेषणात्मक नलकूप संगठन (ETO) का नाम परिवर्तित कर वर्ष 1970 में इसकी स्थापना की गई।
    • बाद में, वर्ष 1972 में इसे भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूजल विभाग में विलय कर दिया गया।
  • अधिदेश: इसकी भूमिका में देश भर में सतत् भूजल उपयोग के लिए वैज्ञानिक सर्वेक्षण, निगरानी, मूल्यांकन और नीतियाँ तैयार करना शामिल है।
  • रिपोर्ट: वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट प्रकाशित करता है।

संकट की प्रकृति

  • भूजल नाइट्रेट, भारी धातुओं, औद्योगिक विषाक्त पदार्थों, फ्लोराइड, आर्सेनिक, यूरेनियम और सूक्ष्म जीवों से लगातार दूषित होता जा रहा है।
  • प्रदूषण उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग, औद्योगिक उत्सर्जन, सेप्टिक टैंकों से निक्षालन और अत्यधिक निष्कर्षण से उत्पन्न होता है।
  • वर्ष 2024 की CGWB रिपोर्ट, 440 जिलों के 20% से अधिक नमूनों में संदूषण दर्शाती है।

संदूषण प्रभावित क्षेत्र स्वास्थ्य पर प्रभाव
फ्लोराइड
  • 20 राज्यों में 230 जिले।
  • राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में उच्च प्रसार
  • उदाहरण: शिवपुरी: 2.92 मिलीग्राम/लीटर (WHO  सीमा 1.5 मिलीग्राम/लीटर)।
स्केल्टल फ्लोरोसिस के कारण जोड़ों में दर्द, हड्डियों में विकृति, विकास अवरुद्ध होना (विशेषकर बच्चों में)
आर्सेनिक
  • गंगा क्षेत्र: पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, असम।
  • उदाहरण: बलिया, उत्तर प्रदेश 200 µg/L (20× WHO सीमा 10 µg/L)।
त्वचा के घाव, गैंग्रीन, श्वसन रोग, कैंसर (10,000 से अधिक कैंसर मामलों से जुड़ा)।
नाइट्रेट
  • उत्तर भारत में व्यापक रूप से फैला हुआ।
    • 56% जिले सुरक्षित स्तर से ऊपर।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा: 50 मि.ग्रा./लीटर।
शिशुओं में ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ (जब फॉर्मूला दूध में मिलाया जाता है)।

पाँच वर्षों में नाइट्रेट विषाक्तता के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में 28% की वृद्धि हुई है।

यूरेनियम
  • पंजाब का मालवा क्षेत्र
    • 66% नमूने बच्चों के लिए जोखिम भरे हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की 30 µg/L की सीमा से अधिक।
बच्चों में गुर्दे की क्षति, विकास संबंधी जोखिम।
भारी धातुएँ (सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, पारा)
  • कानपुर (उत्तर प्रदेश), वापी (गुजरात) जैसे औद्योगिक क्षेत्र।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमाएँ
    • सीसा के लिए 0.01 मिलीग्राम/लीटर।
    • कैडमियम के लिए 0.003 मिलीग्राम/लीटर।
    • क्रोमियम के लिए 0.05 मिलीग्राम/लीटर।
    • अकार्बनिक पारे के लिए 6 माइक्रोग्राम/लीटर।
विकासात्मक देरी, एनीमिया, तंत्रिका संबंधी क्षति।
रोगजनकों
  • सीवेजरिसाव सेप्टिक सिस्टम वाले क्षेत्र
  • उदाहरण: पैकरापुर, भुवनेश्वर में जल प्रदूषण के कारण 500 से अधिक निवासी बीमार पड़ गए।
हैजा, हेपेटाइटिस, पेचिश का प्रकोप।

संकट क्यों बना हुआ है?

  • संस्थागत विखंडन: केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल शक्ति मंत्रालय जैसी एजेंसियाँ अपर्याप्त समन्वय के साथ अलग-अलग काम करती हैं।
  • कमजोर कानूनी प्रवर्तन: जल अधिनियम, 1974 भूजल के मुद्दे को शायद ही संबोधित करता है; अनुपालन में नरमी है और खामियाँ प्रदूषकों के पक्ष में हैं।
  • वास्तविक समय के आँकड़ों का अभाव: निगरानी कम होती है; पूर्व चेतावनी प्रणालियों के अभाव में हस्तक्षेप में देरी होती है।
  • अत्यधिक निष्कर्षण: अत्यधिक पंपिंग से जल स्तर कम होता है, प्रदूषक केंद्रित होते हैं और लवणता का अतिक्रमण बढ़ता है।

संकट से निपटने के लिए सुझाव

  • नियामक सुधार: एक राष्ट्रीय भूजल प्रदूषण नियंत्रण ढाँचा स्थापित करना और CGWB को प्रवर्तन शक्तियों से सशक्त बनाना।
  • आधुनिक निगरानी प्रणालियाँ: रियल-टाइम सेंसर, रिमोट सेंसिंग और ओपन-एक्सेस प्लेटफॉर्म तैनात करना; स्वास्थ्य निगरानी प्रणालियों के साथ एकीकृत करना।
  • लक्षित उपचार: सामुदायिक स्तर पर आर्सेनिक और फ्लोराइड निष्कासन संयंत्र स्थापित करना; पाइप से जल की पहुँच में सुधार करना।
  • अपशिष्ट और औद्योगिक सुधार: शून्य द्रव उत्सर्जन (ZLD) लागू करना, लैंडफिल को विनियमित करना और अवैध उत्सर्जन पर दंड लगाना।
  • कृषि-रसायन प्रबंधन: जैविक खेती को बढ़ावा देना, उर्वरक उपयोग को विनियमित करना और संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन सुनिश्चित करना।
  • नागरिक-केंद्रित शासन: जल परीक्षण, निगरानी और जागरूकता में पंचायतों, जल उपयोगकर्ता समूहों और स्कूलों को शामिल करना।

निष्कर्ष

भारत का भूजल संकट अब कमी का नहीं, बल्कि सुरक्षा और अस्तित्व का सवाल है। जन स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और भावी पीढ़ियों को होने वाले अपूरणीय नुकसान को रोकने के लिए तत्काल और समन्वित कार्रवाई आवश्यक है।

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