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गर्मी एवं जल संबंधी तनाव के कारण वर्ष 2050 तक खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा

Lokesh Pal June 26, 2024 04:48 46 0

संदर्भ

हाल ही में जारी ‘खाद्य उत्पादन पर गर्मी और जल संबंधी तनाव का वैश्विक प्रभाव तथा गंभीर खाद्य असुरक्षा’ नामक एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बढ़ती गर्मी एवं जल के तनाव से वर्ष 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन में 6-14 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • प्रकाशित: रिपोर्ट को साइंस वीकली नेचर के साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित किया गया था। 
  • सारांश: रिपोर्ट में विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के लिए वर्ष 2020 की तुलना में 2050 में खाद्य उत्पादन में कमी की प्रवृत्ति दिखाई गई है। 
  • खाद्य उत्पादन में गिरावट: जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी और जल संबंधी तनाव से कृषि उत्पादन में कमी आएगी, जिससे वैश्विक खाद्य उत्पादन में नकारात्मक रीओ से प्रभावित होगा, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर खाद्य असुरक्षा वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होगी।
    • भारत: वर्ष 2050 में खाद्य उत्पादन में 16.1 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है।
    • चीन: खाद्य उत्पादन में 22.4 प्रतिशत की गिरावट देखी जा सकती है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: 12.6 प्रतिशत की गिरावट।
    • अफ्रीका में: 8.2-11.8 प्रतिशत की गिरावट।
    • ऑस्ट्रेलिया: 14.7 प्रतिशत।
  • गंभीर खाद्य असुरक्षा: वैश्विक स्तर पर, गंभीर खाद्य असुरक्षा वाले अतिरिक्त लोगों की संख्या वर्ष 2020 के सापेक्ष वर्ष 2050 तक 556 मिलियन से 1.36 बिलियन के बीच बढ़ सकती है।
  • चीन और आसियान देशों जैसे क्षेत्र वर्ष 2050 तक शुद्ध खाद्य निर्यातक से खाद्य आयातक बन सकते हैं। 
  • खाद्य मुद्रास्फीति: सबसे चरम वार्मिंग की स्थित युक्त परिदृश्य और उच्च जल तनाव वाले क्षेत्रों में समग्र रूप से खाद्य कीमतों में पर्याप्त वृद्धि देखने को मिल सकती है।
  •  व्यापार: सापेक्ष क्षेत्रीय खाद्य मूल्य परिवर्तनों के कारण, निम्न से उच्च जल तनाव वाले देशों और क्षेत्रों से कृषि वस्तुओं में व्यापार का प्रवाह बढ़ गया है।

खाद्य असुरक्षा के बारे में

  • परिभाषा: संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन,  खाद्य असुरक्षा को इस प्रकार परिभाषित करता है जब लोगों के पास पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थों, जो सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिए उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं तथा प्राथमिकताओं को पूरा करते हैं। तक पर्याप्त भौतिक और आर्थिक पहुंँच का अभाव होता है। 
    • खाद्य असुरक्षा की गंभीरता अलग-अलग स्तरों पर अनुभव की जा सकती है, जब कोई व्यक्ति गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त होता है, तो उसका भोजन समाप्त हो जाता है और वह एक या अधिक दिन तक बिना भोजन के  रहता है।
  • वर्तमान स्थिति: खाद्य संकट 2024 पर वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में 59 देशों में लगभग 282 मिलियन लोगों को तीव्र खाद्य असुरक्षा के उच्च स्तर का सामना करना पड़ेगा, जिसमें चरम मौसम खाद्य संकट को बढ़ाने वाला दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होगा।
    • तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों का अनुपात लगातार चार वर्षों से उच्च बना हुआ है, जो कि कुल मूल्यांकन में लगभग 22 प्रतिशत है।

  • खाद्य असुरक्षा के कारण
    • जलवायु परिवर्तन: आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन खाद्य असुरक्षा का मुख्य कारण है क्योंकि यह वर्षा और तापमान के पैटर्न (बाढ़ और सूखा) को परिवर्तित कर रहा है तथा कृषि उत्पादन को कम करके खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाली चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा रहा है।
      • 18 देशों में चरम  मौसमी की स्थितियांँ इसका मुख्य कारण रही, जहाँ 72 मिलियन से अधिक लोग ऐसी चरम मौसम घटनाओं के कारण उच्च स्तर की गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।
    • गरीबी: गरीबी खाद्य असुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। सीमित वित्तीय संसाधनों वाले लोगों को पौष्टिक भोजन खरीदने में कठिनाई हो सकती है, जिसके कारण अपर्याप्त आहार और भूख की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
    • संघर्ष और हिंसा: सशस्त्र संघर्ष, युद्ध और नागरिक अशांति खाद्य उत्पादन, वितरण और पहुंँच को बाधित करते हैं। संघर्ष-प्रेरित विस्थापन अक्सर प्रभावित आबादी के लिए खाद्य असुरक्षा का कारण बनता है।
      • यूक्रेन में युद्ध के कारण गेहूँ के आटे और कुकिंग आयल की कीमतें बढ़ गई हैं।
    • प्राकृतिक आपदाएँ: भूकंप, तूफान, सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ फसलों, बुनियादी ढाँचे और खाद्य भंडारण सुविधाओं को नष्ट कर सकती हैं, जिससे खाद्यान्न की कमी हो सकती है।
    • आर्थिक क्षति: आर्थिक संकट, जैसे कि मंदी या मुद्रा अवमूल्यन, खाद्य कीमतों तथा आय के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे सुभेद्य आबादी के लिए भोजन कम किफायती  होता है।
    • फसल और पशुधन रोग: फसलों और पशुधन को प्रभावित करने वाली रोगों के प्रकोप से किसानों और चरवाहों के लिए खाद्य आपूर्ति और उनकी आजीविका नष्ट हो सकती है।

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