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कानपुर में भारी धातु प्रदूषण

Lokesh Pal December 16, 2024 03:05 29 0

संदर्भ

कानपुर नगर, कानपुर देहात और फतेहपुर में मिट्टी, भूजल और सतही जल में भारी धातुएँ स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक पाई गई हैं।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) 

पर्यावरण संरक्षण तथा वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों का प्रभावी एवं शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के अंतर्गत की गई थी।

कानपुर भारी धातु संदूषण मामले में NGT की भूमिका

  1. तत्काल कार्रवाई
    • स्वतः संज्ञान कार्यवाही आरंभ करना: NGT मीडिया रिपोर्ट या जनहित याचिका (PIL) के आधार पर मामले का संज्ञान ले सकता है।
    • प्रदूषण नियंत्रण के प्रत्यक्ष उपाय: उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board- UPPCB) को उल्लंघनकर्ताओं, विशेष रूप से चर्मशोधन कारखानों (Tanneries) और रासायनिक उद्योगों का निरीक्षण करने तथा उनकी पहचान करने का आदेश देना।
  2. उपचार आदेश
    • अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (Effluent Treatment Plants- ETP) और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (Common Effluent Treatment Plants- CETP) की स्थापना या उन्नयन को अनिवार्य करना।
    • उद्योगों के लिए शून्य-तरल निर्वहन मानदंडों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना।
  3. प्रभावित निवासियों के लिए मुआवजा
    • “प्रदूषक भुगतान सिद्धांत” के अंतर्गत प्रदूषणकारी उद्योगों पर पर्यावरण मुआवजा लागू करना।
    • क्रोमियम और पारा विषाक्तता से पीड़ित निवासियों को चिकित्सा राहत और वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना।
  4. सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी
    • सरकारी एजेंसियों को निर्देशित करना कि वे प्रदूषण हॉटस्पॉट और शमन रणनीतियों की पहचान करने में समुदायों को सम्मिलित करें।

संबंधित तथ्य

  • उत्तर प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र कानपुर, भारी धातु संदूषण के कारण गंभीर पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  1. भारी धातु संदूषण
    • क्रोमियम और पारा स्तर: रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि दोनों धातुएँ पारिस्थितिकी तंत्र और मानव शरीर में प्रवेश कर चुकी हैं, जिससे जैव संचयन हो रहा है।
    • स्रोत: चर्मशोधन कारखानों (tanneries), इलेक्ट्रोप्लेटिंग इकाइयों और रासायनिक संयंत्रों से निकलने वाले अपशिष्ट मुख्य योगदानकर्ता हैं।
  2. स्वास्थ्य आपातकाल
    • क्रोमियम के संपर्क में आने से श्वसन संबंधी विकार, त्वचा रोग और संभावित कैंसरकारी प्रभाव हो सकते हैं।
    • पारा, एक न्यूरोटॉक्सिन है, जो बच्चों में तंत्रिका संबंधी दुर्बलता, गुर्दे की क्षति और विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।
  3. पर्यावरणीय प्रभाव
    • भूजल संदूषण ने इसे पीने के लिए असुरक्षित बना दिया है।
    • मिट्टी की विषाक्तता ने कृषि को प्रभावित किया है, जिससे खाद्य शृंखला संदूषण और भी बढ़ गया है।
  4. प्रभावित क्षेत्र
    • यह संदूषण कानपुर से आगे बढ़कर आसपास के जिलों में फैल गया है, जो अपर्याप्त नियंत्रण और निगरानी का संकेत देता है।

चुनौतियाँ

  1. पर्यावरण कानूनों का अप्रभावी क्रियान्वयन
    • जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के अंतर्गत औद्योगिक मानदंड अप्रभावी तरीके से लागू किए गए हैं।
  2. मजबूत बुनियादी ढाँचे की कमी  
    • अपर्याप्त अपशिष्ट उपचार संयंत्र (ETP) और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (CETP) हैं। कई चर्मशोधन कारखाने (tanneries) इन सुविधाओं को अनदेखा कर देती हैं।
  3. सार्वजनिक स्वास्थ्य की उपेक्षा
    • स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच और भारी धातु विषाक्तता के लिए बड़े पैमाने पर जाँच नहीं।
    • कम जागरूकता और सीमित नागरिक भागीदारी।
  4. डेटा अंतराल
    • संदूषण के स्तर और स्वास्थ्य परिणामों पर निरंतर निगरानी और सार्वजनिक डेटा की कमी।
    • उदाहरण: समावेशन-बहिष्करण त्रुटियाँ (Inclusion-Exclusion errors)।

संकट के मूल कारण

  1. शिथिल विनियामक निगरानी
    • प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा अपर्याप्त निगरानी ने औद्योगिक इकाइयों को अपशिष्ट उपचार मानदंडों को दरकिनार करने की अनुमति दी है।
  2. अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा
    • अपशिष्ट उपचार संयंत्र (Effluent Treatment Plants- ETP) या तो काम नहीं कर रहे हैं अथवा क्षमता से कम पर काम कर रहे हैं।
  3. जागरूकता और जवाबदेही की कमी
    • निवासी दीर्घकालिक प्रभावों से अनजान रहते हैं, जबकि उद्योग अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं।

वैश्विक स्तर पर धातु संदूषण की घटनाएँ:

  • सैंडोज रासायनिक रिसाव (Sandoz Chemical Spill);
  • हिंकले जल संदूषण (Hinckley Water Contamination);
  • मिनमाटा अपशिष्ट जल प्रदूषण (Minamata Wastewater Pollution)

वर्तमान स्थिति और सरकारी प्रतिक्रिया

  • एनजीटी का हस्तक्षेप: राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पहले भी कानपुर में प्रदूषण को रोकने के लिए कठोर आदेश जारी किए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका बहुत कम असर हुआ है।
  • स्वच्छ गंगा मिशन: नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत प्रयासों का उद्देश्य गंगा में औद्योगिक उत्सर्जन को कम करना है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में खामियाँ बनी हुई हैं।

संकट से निपटने के लिए सिफारिशें

  • तात्कालिक उपाय
    • स्वास्थ्य हस्तक्षेप: स्वास्थ्य जाँच का संचालन करना और प्रभावित आबादी को चिकित्सा सहायता प्रदान करना। उदाहरण- टेलीमेडिसिन का उपयोग।
    • जल सुरक्षा उपाय: टैंकरों या निस्पंदन इकाइयों जैसे वैकल्पिक स्रोतों के माध्यम से स्वच्छ पेयजल तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • मध्यम से दीर्घकालिक समाधान
    • कठोर प्रवर्तन: अपशिष्ट निर्वहन मानदंडों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों को दंडित करना और कार्यात्मक ईटीपी को अनिवार्य करना।
    • दूषित स्थलों का उपचार: मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए बायोरेमेडिएशन तकनीकों और अन्य संधारणीय तरीकों को अपनाना।
    • निगरानी और निरीक्षण: अपशिष्ट निर्वहन को ट्रैक करने के लिए औद्योगिक समूहों में निरंतर निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
  • सामुदायिक जागरूकता
    • निवासियों को सुरक्षित जल उपयोग के बारे में शिक्षित करना और प्रदूषण नियंत्रण उपायों में उनकी भागीदारी की अनुशंसा करना। उदाहरण: स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत इंदौर केस स्टडी।
  • अंतरराष्ट्रीय रूपरेखाओं और समझौतों को पूर्ण करने के लिए सक्रिय रूप से प्रतिबद्ध रहनाजैसे: 
    • पारा पर मिनामाटा कन्वेंशन
    • खतरनाक अपशिष्टों पर बेसल कन्वेंशन
    • भारी धातुओं पर आरहूस प्रोटोकॉल

निष्कर्ष

  • कानपुर में संकट विनाशकारी स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए नियामक निकायों, उद्योगों और समुदायों को सम्मिलित करते हुए समन्वित दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। 
  • भविष्य में इसी तरह की आपात स्थितियों को रोकने के लिए प्रदूषण मानदंडों का प्रभावी प्रवर्तन, प्रभावी उपचार रणनीतियों के साथ मिलकर आवश्यक है। 
  • पर्यावरणीय सुरक्षा बनाम आर्थिक विकास की खोज में, हमारा उत्तरदायित्व सतत् विकास और विकास के ट्रस्टीशिप मॉडल की ओर बढ़ना है।

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