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हेमा समिति की रिपोर्ट

Lokesh Pal August 21, 2024 03:09 86 0

संदर्भ

हाल ही में मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के समक्ष आने वाली समस्याओं पर ‘जस्टिस के. हेमा समिति’ की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

रिपोर्ट के अनुसार, मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले निम्नलिखित मुद्दे हैं।

  • यौन संबंध की माँग: ये महिलाओं से फिल्म उद्योग में प्रवेश करने के समय से ही की जाती हैं।
    • यह समिति फिल्म उद्योग में ‘कास्टिंग काउच’  की पुष्टि करती है।
      • कास्टिंग काउच मनोरंजन उद्योग में रोजगार, मुख्य रूप से अभिनय भूमिकाओं के बदले में आवेदक से यौन संबंधों की माँग करने की एक प्रथा है।
  • उत्पीड़न एवं यातना: महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न एवं दुर्व्यवहार कार्यस्थल पर, परिवहन के दौरान तथा आवास के स्थानों पर होता है।
    • ऑनलाइन उत्पीड़न।
    • यदि महिलाएँ यौन माँगों को पूर्ण करने में नाराजगी या अनिच्छा व्यक्त करती हैं तो उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।
  • सुविधाओं एवं सुरक्षा की कमी: कार्यस्थलों, विशेषकर बाहरी स्थानों पर, महिलाओं के लिए शौचालय और चेंजिंग रूम सहित बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण कई महिलाओं में यूरिनरी-संक्रमण की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
    • महिलाओं को उनके कार्यस्थल एवं आवास पर सुरक्षा का अभाव है।
  • प्रतिबंध: सिनेमा में महिलाओं पर अनधिकृत एवं अवैध प्रतिबंध।
    • महिलाओं को फिल्म उद्योग में काम करने से प्रतिबंधित करने की धमकी देकर उन्हें चुप करा दिया जाता है।
  • भेदभाव: पुरुष प्रभुत्व, लिंग पूर्वाग्रह एवं लिंग भेदभाव की संस्कृति।
    • पुरुषों एवं महिलाओं के बीच पारिश्रमिक की असमानता, तथा पारिश्रमिक में लैंगिक भेदभाव होता है।
    • कुछ मामलों में जूनियर कलाकारों के साथ ‘गुलामों से भी बुरा व्यवहार’  किया जाता है एवं उनसे 19 घंटे तक काम लिया जाता है। 
  • अनुशासनहीनता: नशीली दवाओं और शराब का प्रयोग, कार्यस्थल पर अव्यवस्थित आचरण और दुर्व्यवहार, जो घोर अनुशासनहीनता को जन्म देता है।
  • टिप्पणियाँ: महिलाओं  का कार्यस्थल पर अपमानजनक या अभद्र टिप्पणियों का शिकार होना।
  • पारिश्रमिक पर विफलता: स्वीकृत पारिश्रमिक का भुगतान करने में नियोक्ता की विफलता।
    • कुछ लोग लिखित अनुबंध की कमी का लाभ उठाकर अभिनेताओं एवं तकनीशियनों को मौखिक रूप से दिए गए पारिश्रमिक से भी वंचित कर देते हैं। 
    • जूनियर कलाकारों को न्यूनतम पारिश्रमिक का अभाव है। 
  • प्रतिरोध/अनिच्छा: महिलाओं को सिनेमा के तकनीकी पक्ष पर कार्य करने की अनुमति देना।
  • कानूनी मुद्दे: महिलाओं  का अपने अधिकारों के बारे में कानूनी जागरूकता का अभाव।
    • उनकी शिकायतों के निवारण के लिए किसी कानूनी रूप से गठित प्राधिकारी का अभाव।
  • चिंताएँ 
    • आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की अप्रभावी होना: हेमा समिति के अनुसार, ICC अप्रभावी हो सकती है क्योंकि शक्तिशाली व्यक्ति ICC सदस्यों को उनकी माँग के अनुसार शिकायत से निपटने के लिए धमका सकते हैं या मजबूर कर सकते हैं। 
    • गोपनीयता: यदि ICC का गठन उद्योग जगत के लोगों द्वारा किया गया है, तो इससे उसके समक्ष प्रकट की गई सूचना की गोपनीयता पर भी संदेह उत्पन्न होता है, जिससे शिकायतकर्ताओं को और अधिक परेशानी होती है।
  • सिफारिश: यह समिति सरकार से सिनेमा में महिलाओं के समक्ष आने वाले सभी मुद्दों के समाधान के लिए एक उचित कानून बनाने एवं एक ट्रिब्यूनल गठित करने की सिफारिश करती है।

भारत में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी ढाँचा

  • यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offences- POCSO) अधिनियम, 2012
    • दायरा: बच्चों को यौन हमले, उत्पीड़न एवं अश्लील साहित्य जैसे यौन अपराधों से बचाता है।
    • दंड: अपराधियों के लिए कठोर कारावास एवं जुर्माने सहित गंभीर दंड लगाया जाता है।
  • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013
    • दुष्कर्म की परिभाषा का विस्तार किया गया एवं दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म मामले के बाद यौन हिंसा से संबंधित नए अपराध प्रस्तुत किए गए।
    • नए अपराध: इसमें पीछा करना, ताँक-झाँक करना एवं एसिड हमले जैसे अपराध शामिल हैं।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013
    • दायरा: कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देता है।
    • तंत्र: उत्पीड़न की शिकायतों के निस्तारण के लिए कार्यस्थलों को आंतरिक शिकायत समितियाँ (ICCs) स्थापित करने की आवश्यकता है।
    •  पीड़ित महिला
      • ‘पीड़ित महिला’ में कोई भी महिला शामिल है, जो प्रतिवादी द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाती है।
      • यह परिभाषा नौकरीपेशा महिलाओं एवं निवास स्थान पर रहने वाली महिलाओं दोनों पर लागू होती है।

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