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उच्च सागर संधि (हाई सी ट्रीटी)

Lokesh Pal September 04, 2025 03:36 87 0

संदर्भ

प्रीपकॉम II (PrepCom II) के दौरान काबो वर्डे (Cabo Verde) और ‘सेंट किट्स एंड नेविस’ (Saint Kitts & Nevis) द्वारा अनुसमर्थन पूरा करने के साथ, उच्च सागर संधि (हाई सी ट्रीटी) को लागू होने के लिए अब केवल छह और अनुसमर्थनों की आवश्यकता है। इसके बाद, पक्षकारों के पहले सम्मेलन (COP1) 2026 के अंत में होने की उम्मीद है।

प्रिपेरटॉरी कमीशन (Preparatory Commission) के बारे में

  • अधिदेश: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा उच्च सागर संधि के लागू होने तथा पक्षकारों के पहले सम्मेलन (COP) की तैयारी के लिए इसकी स्थापना की गई थी।
  • महत्त्व: विश्व के दो-तिहाई महासागरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए परिचालन नियमों, संस्थागत निकायों और वित्तीय तंत्रों को परिभाषित करता है।
  • प्रीपकॉम I (अप्रैल 2025): संधि कार्यान्वयन पर चर्चा शुरू की गई, जिसमें नियमों, शासन और वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • प्रीपकॉम II (18-29 अगस्त, 2025, न्यूयॉर्क): सरकारों, नागरिक समाज और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के 200 से अधिक प्रतिनिधि वार्ता जारी रखने और प्रस्तावों को परिष्कृत करने के लिए एकत्र हुए।

प्रीपकॉम II में मुख्य चर्चाएँ

  • COP बैठकों के नियम: वार्ता की आवृत्ति, पर्यवेक्षकों की भागीदारी, मतदान प्रक्रियाएँ, और लघु द्वीपीय तथा अल्पविकसित देशों का प्रतिनिधित्व।
  • वैज्ञानिक एवं तकनीकी निकाय: प्रारूप मॉडल साझा किया गया; चर्चाओं में स्वदेशी ज्ञान, लैंगिक संतुलन और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व शामिल थे।
  • सचिवालय की अवस्थिति: बेल्जियम और चिली ने मेजबानी की पेशकश की; निर्णयन प्रक्रिया निष्पक्षता, खुलेपन और प्रभावशीलता द्वारा निर्देशित होगी।
  • वित्तीय व्यवस्था: वैश्विक पर्यावरण सुविधा के साथ साझेदारी पर विचार किया गया; दो नए कोषों के प्रस्ताव (एक संरक्षण के लिए, दूसरा विकासशील देशों की भागीदारी का समर्थन करने के लिए) लाया गया।
  • ‘क्लीयरिंग हाउस’ तंत्र: एक ऑनलाइन डेटा और प्रशिक्षण मंच की आवश्यकता पर सहमति हुई; विशेषज्ञ समूह की संरचना का मुद्दा अनसुलझा रह गया, जिसे अगले सत्र के लिए स्थगित कर दिया गया।

उच्च सागर (हाई सी) क्या हैं?

वर्ष 1958 के जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार, उच्च सागर किसी भी राष्ट्र के अधिकार क्षेत्र से बाहर स्थित समुद्री क्षेत्र हैं।

  • ये किसी देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) से आगे तक विस्तारित होते हैं, जो आमतौर पर उसके तट से 200 समुद्री मील तक विस्तृत होता है।

उच्च सागर (हाई सी) का महत्त्व

  • व्यापक कवरेज: यह महासागरों के 64% से अधिक और पृथ्वी की सतह के 43% से अधिक भाग को कवर करता है, तथा इसमें लगभग 2.2 मिलियन समुद्री प्रजातियाँ और खरबों सूक्ष्मजीव मौजूद हैं।
  • पर्यावरण नियामक: वैश्विक CO₂ का 25% अवशोषित करना, विश्व की आधी ऑक्सीजन का उत्पादन करना और ऊष्मा वितरित करके जलवायु को संतुलित करना।
  • संसाधन भंडार: समुद्री भोजन, खनिज, आनुवंशिक संसाधन और मानव उपयोग के लिए आवश्यक औषधीय यौगिक प्रदान करना।
  • जैव विविधता केंद्र: समृद्ध समुद्री जीवन का समर्थन करना, जिसमें अभी भी अज्ञात प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • चुनौतियाँ: स्वामित्व की कमी से अत्यधिक मत्स्यन, जैव विविधता का ह्रास, प्लास्टिक डंपिंग (वर्ष 2021 में 17 मिलियन टन), अम्लीकरण और प्रदूषण होता है।

उच्च सागर संधि (हाई सी ट्रीटी) क्या है?

  • मार्च 2023 में अपनाई गई संयुक्त राष्ट्र उच्च सागर संधि, राष्ट्रीय अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) से परे समुद्री क्षेत्रों को विनियमित करने के लिए एक वैश्विक समझौता है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के अंतर्गत एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।

संधि के प्रमुख उद्देश्य

  • समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas- MPA): जैव विविधता के संरक्षण, गतिविधियों के नियमन और 30×30 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संरक्षित क्षेत्र (वर्ष 2030 तक महासागरों के 30% हिस्से की सुरक्षा) विकसित करना।
  • समान लाभ साझाकरण: व्यावसायिक रूप से मूल्यवान समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभों तक उचित पहुँच की गारंटी देना।
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): उन परियोजनाओं के लिए EIA की आवश्यकता होती है, जो समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जिनमें राष्ट्रीय जल क्षेत्र के भीतर की परियोजनाएँ भी शामिल हैं।
  • क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: सतत् उपयोग और संरक्षण के लिए ज्ञान, प्रौद्योगिकी और संसाधनों के साथ विकासशील देशों को सहायता प्रदान करना।

हस्ताक्षर एवं अनुसमर्थन

  • वैश्विक स्थिति: अगस्त 2025 तक, 141 देशों ने उच्च सागर संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • अनुसमर्थन: अब तक, 54 देशों ने इसका अनुसमर्थन किया है (न्यूनतम अनुसमर्थन 60 देशों की आवश्यकता है)।
  • भारत की स्थिति: भारत ने वर्ष 2024 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया है।

भविष्य का रोडमैप

  • प्रीपकॉम III (मार्च-अप्रैल 2026) में वार्ताएँ शुरू होंगी।
  • COP1 से पहले परिचालन विवरण को अंतिम रूप दिया जाएगा।
  • प्रतिनिधियों ने प्रीपकॉम II को सफल बताया और लंबित मुद्दों के बावजूद नियमों, संस्थाओं और वित्तपोषण पर प्रगति का उल्लेख किया।

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